रविवार, जनवरी 20, 2008

गरबा और दांडिया से कम नहीं सिद्धियों का धमाल



बादशाह का कमाल

देश में जन्म से लेकर मृत्यु तक हर मौके पर नृत्य की परंपरा है। हर नृत्य में भावनाओं की अभिव्यंजना होती है। अफ्रीका मूल के, पर गुजरात में आ बसे सिद्धियों का परंपरागत नृत्य हजरत बाबा गौर की इबादत में किया जाता है। शायद ही ऐसी कोई पुस्तक हो, जहां इन सिद्धियों का इतिहास मिलता हो। ऐसा विश्वास किया जाता है कि सिद्धियों का धमाल नृत्य करीब 700 साल पुराना है, जिसे गुजरात में बसे इसी सिद्धि समुदाय ने संरक्षित किया है। अपने देश में इस नृत्य के बारे में भले ही जानने वाले कम हैं, लेकिन इसकी प्रसिद्धि बहुत विस्तृत है। धमाल की प्रस्तुति करने वाले सिद्धियों की एक टीम से संजय स्वदेश की बातचीत।
गुजरात के लोकनृत्य गरबा और दांडिया को जितनी लोकप्रियता और सम्मान मिला है, उतना राज्य के सिद्धि आदिवासियों के नृत्य धमाल को नहीं मिला, जबकि यह नृत्य किसी भी मामले में गरबा और दांडिया से कम नहीं है। यह कहना है कि अपनी टीम के साथ करीब 36 देशों में सिद्धी-धमाल का कमाल दिखाने वाले मुन्ना बादशाह का। बहुत ही कम लोग यह जानते होंगे कि नृत्य के कलाकार अफ्रीकि मूल की जनजाति समुदाय के हैं। रूप-रंग और कद काठी भी अफ्रीकी जनजातियों की तरह ही है। पोशाक साधारण और परंपरागत होती है। घुटने तक के स्कर्ट और कमर तथा माथे पर मोर पंख लपेटे हुए, गले कौडिय़ों की माला पहनते हैं। चेहरे पर सफेद, काला,हरा और लाल रंग की पट्टियां बनाते हैं। टीम के सभी सदस्य कम पढ़े-लिखे हैं। कुछ ड्राइविंग करते हैं। बादशाह ने तीसरी कक्षा तक की पढ़ाई की है। उनका कहना है कि नई पीढ़ी के ब"ो ऊंचे दर्जे की पढ़ाई कर रहे हैं। मुन्ना कहते हैं जिंदगी में एक ही ख्वाब है- धमाल को ऊंचाई तक ले जाना है। उनका कहना है कि धमाल सिद्धियों की परंपरा में इस तरह से समाया है कि इसे अलग कर ही नहीं सकते हैं।
16वीं शताब्दी में गुजरात आए थे
सिद्धि गुजरात के तटीय क्षेत्रों पर निवास करने वाली जनजाति है। 16वीं शताब्दी के आस-पास सिद्धियों की एक टीम यहां अफ्रीका से आकर बसी। बादशाह का कहना है कि, ऐसा कहते हैं कि अफ्रीका की एक टीम व्यापार या बेशकीमती पत्थरों की तलाश में रतनपूर आई और यहीं की होकर रह गई। देश भर के सिद्धि अगस्त माह में रतनपुर के हजरत बाबा गौर के दरगाह में इबादत के लिए करीब दस दिन के लिए इक्कठे होते हैं। उस समय यह जगह अफ्रीका के एक गांव की तरह लगता है। अपनी मूल भाषा भूल चुके सिद्धियों ने देश-दुनिया के विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेने के कारण हिंदी भाषा में बातचीत करना सीख लिया है। इनकी आबादी गुजरात के कच्छ,ताला गीर, जाजपीपला, अहमदाबाद, भारूच, रतनपुर, झगडिय़ा और सूरत के अलावा कर्नाटक और अंदमान निकोबार द्वीप समूह तक फैली है। श्री बादशाह के मुताबिक सिद्धियों की कुल आबादी करीब 50 हजार है।
सिर फूटा, उत्साह कम नहीं हुुआ
ये नृत्य के दौरान हवा में नारियाल उछालते हैं और जब वह नीचे गिरता है तो उसे सिर पर रोकते हुए इसे फोड़ते हैं। इस करतबबाजी में कई बार अनहोनी भी हो जाती है। कई बार हवा में उछाली नारियल का नुकिला हिस्सा उसने सिर में लग जाता है और वे खून से लथपथ हो जाते हैं। अपनी कई प्रस्तुतियों में ये नृत्य के दौरान अंगार पर भी चलते हैं, मुन्ना का कहना है कि ऐसी अनहोनी कभी-कभी ही होती है। पर उत्साह कम नहीं होता है।
राष्टï्रपति के अंगरक्षकों ने आतंकवादी समझा
मुन्ना बादशाह अपनी प्रस्तुतियों का संस्मरण सुनाते हुए कहते हैं कि एक कार्यक्रम में राष्टï्रपति के.आर. नारायणन मुख्य अतिथि थे। धमाल के दौरान जब हवा में नारियल उछाला और वह सिर पर गिरने के बजाय सामने बैठे राष्टï्रपति महोदय के पांव पर गिरा। वे सुरक्षा घेरे में थे। उनके अंगरक्षकों ने समझा कि मैं कोई आतंकवादी हूं और राष्टï्रपति को नारियल से मारना चाहता हूं।
अगर मंच पर आएं महिलाएं
सिद्धी महिलाएं भी धमाल करती हैं, लेकिन वे कभी मंच प्रस्तुति नहीं देती हैं। श्री बादशाह का कहना है कि यदि महिलाएं मंच पर आती हैं तो उनका समुदाय और सशक्त होगा।