सोमवार, नवंबर 30, 2009

सफेद सोना से खाली रहेगी सरकारी झोली


संजय स्वदेश, नागपुर। एक जमाने में विदर्भ में के किसान एक क्विंटल कपास खरीद कर एक तोला सोना खरीदता था। इसी लिए विदर्भ में कपास को सफेद सोने की संज्ञा दी जाती है। पर अब वे दिन हवा हुए। पसीने के गुलाब होने का समय बीत चुका है। आज विदर्भ का किसान 5 क्विंटल कपास बेच कर भी एक तोला सोना नहीं खरीद सकता है। बी.टी.कॉटन ने विदर्भ के किसानों में आत्महत्या करने की मजबूरी जन्म देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सरकार ने राहत देने के लिए कपास खरीदी के सरकारी केंद्र शुरू कर समर्थन मूल्य देना शुरू किया। फिर भी किसानों को राहत नहीं हुई। इस साल फिर से स्थिति पिछले साल की तरह है।

विदर्भ के विभिन्न जिलों से यह खबरें आ रही है कि किसान सरकारी कपास खरीदी केंद्र पर कपास बेचने नहीं जा रहे हैं। सरकारी केंद्र पर कपास नहीं बेचने का कारण यह है कि वहां भाव कम मिल रहे हैं। वहीं कई जिलों में खरीदी केंद्र इतना दूर है कि किसान वहां तक कपास लेकर नहीं पहुंच रहे हैं। चंद्रपुर जिले में तो स्थिति यह यह है कि पड़ोसी राज्य आंध्र-प्रदेश के व्यापारी किसानों के कपास सस्ते में खरीद रहे हैं। आंध्र प्रदेश के कुछ व्यापारी चंद्रपुर के किसानों पर नजर रखते हैँ। फसल से पहले ही किसानों को कुछ राशि का बायाना देकर उसे खरीदने का वादा देते हैं। गरीब ओर जरुरतमंद किसान स्थिति और समय से समझौता करते हुए आंध्र व्यापारियों की साहूकारी के फंदे में फंस जाते हैं। यह सिलसिला गत कई सालों से चल रहा है। राज्य में कपास खरीदने में सरकारी एजेंट की भूमिका निभाने वाली संस्था है पणन महासंघ।
राज्य में कपास की खरीदी शुरू हुए तीन सप्ताह से ज्यादा समय हो गए। पर सरकारी केंद्रों पर कपास बेचने में किसानों की भारी अरुचि दिख रही है। स्थिति को देखकर लगता है कि इस बार भी पणन महासंघ को निराशा हाथ लगे। वर्ष 2007-08 और वर्ष 2008-09 में भी किसानों को कपास के मनमुताबिक दाम नहीं मिले। लिहाजा बड़ी संख्या में किसान व्यापारियों की शरण में गए थे। इस साल भी हालत कमोवेश वही दिख रही है। नागपुर जिले के 76 केंद्रों में अब तक लगभग 7678 क्विंटल कपास की खरीदी हो चुकी है जबकि लक्ष्य 150 लाख क्विंटल है।
महासंघ ने इस वर्ष सामान्य कपास खरीदने के लिए 2850 रुपये प्रति क्विंटल का मूल्य निर्धारित किया है। उच्च गुणवत्ता वाले कपास को 3 हजार रुपये प्रति क्विंटल का समर्थन मूल्य दिया जा रहा है। सरकार ने कपास के भुगतान की राशि 15 दिन में करने का आदेश भी दिया है। इसके बाद भी कपास खरीदी शुरू होने के तीन सप्ताह बाद भी किसानों में उदासीनता बनी हुई है जिससे पणन महासंघ का लक्ष्य शायद ही पूरा हो सके। लिहाजा, सरकार की झोली खाली इस बार भी खाली रहने की संभावना दिख रही है। इस साल भी किसानों का एक बड़ा वर्ग सरकारी कपास खरीद केंद्र के बजाय व्यापारियों के पास जा रहा है। पणन महासंघ को कपास खरीदने की शुरुआत अक्टूबर माह में ही कर देनी चाहिए थी। लेकिन चुनावी प्रक्रिया में देरी होने के कारण 5 नवंबर से कपास खरीदी के केंद्र शुरू हुए। इससे पहले दशहरा, दीपावली आदि पर्व पर आर्थिक तंगी के कारण सैकड़ों मजबूर किसानों ने औने-पौने दाम पर अपने कपास व्यापारियों को बेच दिये। सरकार कपास केंद्र पर कपास कम पहुंचने का एक कारण यह भी माना जा रहा है कि केंद्र देर से शुरू हुए।
इस साल नागपुर महासंघ ने करीब 300 लाख क्विंटल कपास उत्पादन का अनुमाान लगाया था। लेकिन इस वर्ष देरी से हुई बारिश और फसल में लाल्या रोग लगने के कारण कपास की फसल पर काफी नाकारात्मक असर पड़ा है। इससे बाजार में करीब 200 से 250 लाख क्विंटल कपास ही आने की संभावना है। महासंघ ने इस वर्ष करीब 150 क्विंटल कपास खरीदने का लक्ष्य रखा है। कपास किसानों को आकर्षित करने के लिए राज्य सरकार ने 500 करोड़ रुपये की गारंटी दी है। 100 करोड़ रुपये मार्जिन मनी के रूप में जारी हो चुके हैं। इसके बाद भी किसानों की विश्वसनीयता व्यापारियों के प्रति ज्यादा है।
ज्ञात हो कि महाराष्टï्र में विशेषकर विदर्भ में कपास का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है। पर गत कुछ वर्षों से कपास की अच्छी कीमत नहीं मिलने के कारण स्थिति बदल गई है। विदर्भ के किसानों का एक बड़ा वर्ग कपास की बजाय सोयाबीन या अन्य फसलों पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। वर्ष 2007 की तुलना में वर्ष 2008 में नागपुर जिले में 18 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में कपास उत्पादन कम हुआ है। जहां वर्ष 2007 में करीब 62 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में कपास लगाया गया था, वहीं वर्ष 2008 में केवल 44 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में ही कपास हुआ। इसी बीच सोयाबीन 2.83 लाख हेक्टेयर क्षेत्र से बढ़कर 3 लाख हेक्टेयर क्षेत्र के ऊपर चला गया है। चालू वर्ष में यह आंकड़ा और कम हो गया है। वर्ष 2009 में करीब 35 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में ही कपास उत्पादन हुआ है। किसान पणन महासंघ के केन्द्रों की बजाय अब सीधा व्यापारियों को अपना कपास बेचना पसंद करते हंै। कारण यहां उन्हें पर्याप्त भाव मिलता है। वे भाव को लेकर मोल-भाव कर सकते हैं।
वर्ष 2007-08 में जहां पणन महासंघ ने कपास के प्रति क्विंटल 2030 रुपये दिये थे, वहीं व्यापारियों ने प्रति क्विंटल 2500 रुपये का भाव दिये। 2008-09 में करीब 2600-2700 के भाव दिए गए तब व्यापारियों ने 3000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव दिए थे। इस साल भी सरकारी और निजी व्यापारियों के भाव में काफी अंतर हैं। कई व्यापारी तो 3200 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा के भाव पर कपास खरीद रहे हैं। पिछले वर्ष अनेक दिनों तक पणन महासंघ के खरीदी केन्द्र सुने पड़े थे। महासंघ जनवरी तक बड़ी मुश्किल से 50 क्विंटल कपास किसान से खरीद पाया था। अगर इस साल भी पर्याप्त भाव नहीं दिया जाता है, तो किसान व्यापारियों की तरफ मुड़ सकता है, जिस कारण पणन महासंघ के केन्द्रों में सन्नाटा रहने की संभावना जतायी जा रही है।
नागपुर जिले के गत वर्ष के कुछ आंकड़ें
सन खरीदी (क्विंटल में) भुगतान
2004-05 211.65 लाख 4739.45 करोड़
2005-06 18.85 लाख 336.39 करोड़
2006-07 32.65 लाख 644.77 करोड़
2007-08 1.29 लाख 26 करोड़
2008-09 168 लाख 4716.09 करोड़

०००००००००००००००००००००००००००

याद आई धूमिल की कविता


संजय स्वदेश
सांसद में सांसदों की अनुपस्थिति के मामले में 30 नवंबर इतिहास बन गया।


सोमवार को संसद की कार्यवाही शुरू होते ही प्रश्नकाल में 38 सांसद सवाल पूछेंने वाले थे। यह पहले तय होता है कि प्रश्नकाल में कौन-सांसद कौन-सा सवाल पूछेंगे। क्योंकि प्रश्नकाल में सवाल पूछने से पूर्व इसकी सूचना देनी पड़ती है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि सोमवार को प्रश्नकाल में महज चार संसद ही पहुंचे। न सवाल पूछने वाले मौजूद थे और न ही जवाब देने वाले। इसी कारण लोकसभा के इतिहास में पहली बार प्रश्नकाल रोकना पड़ा। देश की सबसे बड़ी पंचायत में बैठनेवालों के गैरजिम्मेदार जनप्रतिनिधियों की इस करतूत से कॉलेज के जमाने में धूमिल के काव्य-संग्रह संसद से संड़क तक की एक कविता याद आती है :-

एक आदमी
रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूं -
यह तीसरा आदमी कौन है?
मेरे देश की संसद मौन है।

रविवार, नवंबर 29, 2009

किसानों को पानी पीएगा अदानी




नागपुर से संजय स्वदेश
कभी देश के अव्वल राज्यों की सूची में आने वाला महाराष्ट्र किसान आत्महत्या के कलंक से कलंकित हो गया। दशक से उपर हो गए। किसान आत्महत्या का सिलसिलान हीं था। पैकेज से भी राहत नहीं मिली। हर साल नई-नई समस्याओं की मार किसानों का सहनी पड़ती है। इस साल कम बारिश, फसलों के कम उत्पादन से किसान परेशान हो उठा है। फिर विकट स्थिति सामने हैं। राज्य की दूसरी गंभीर समस्या है बिजली की कटौती। बिजली कटौती के मामले में विदर्भ के नेता हमेशा अपने उपर पक्षपात का अरोप लगाते हैं। विदर्भ में स्थापित विद्युत ईकाइयों से उत्पादित बिजली से दूसरे राज्यों के शहर रौशन होते हैं। बिजली और सिंचाई की समस्या अब एक दूसरे से गुंथ चुके हैं।

राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी किसान हीतों को लेकर राज्य विधानमंडल में सरकार को घेरने की योजना में है। प्रचंड प्रदर्शन की तैयारी चल रही है। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव, सरकार बनने की गहमागहमी और मंत्रिमंडल के बंटवारे के बीच अदानी समेत 13 बड़ी बिजली कंपनियां किसानों के लिए सिंचाई की पानी पर कानूनी रूप से डाका डालने में सफल हो गई हैं। पहले महाराष्ट्र में चल रही बिजली परियोजनाओं की 13 कंपनियों ने राज्य सरकार की ईकाई सिंचाई विकास महामंडल को अपने उस प्रस्ताव पर मंजूरी ले लिया है, जिसमें बिजली परियोजनाओं के लिए सिंचाई परियोजनाओं से पानी की मांग की गई थी। अब सिंचाई की विभिन्न परियोजनाओं से करीब 324.51 एमएमक्यूब पानी बिजली कंपनियों को मिलेगा। जिन बिजली कंपनियों सिंचाई का पानी दिया जाएगा, अभी उनकी तैयारी पूरी तरह से प्रारंभिक अवस्था में हैं। इन्हें शुरू होने में अभी बहुत समय लेगा।
13 बड़ी कंपनियों की बिजली परियोजनाओं ने विदर्भ सिंचाई विकास महामंडल को बिजली उत्पादन के लिए पानी उपलब्ध कराने के प्रस्ताव को नवंबर के प्रथम सप्ताह में ही सरकार की मंजूरी मिलने की सूचना है। यह वह समय था जब मीडिया और जनप्रतिनिधियों को पूरा ध्यान राज्य की राजनीतिक सरगर्मियों के बीच में थी। बिजली उत्पादन के नाम पर सिंचाई का पानी पीने वाली बिजली कंपनियों का दावा है कि इस पानी के बदले वे 12379.80 मेगावॉट बिजली का उत्पादन करेगी। पर यह बिजली गरीब, किसानों को मिलेगी या नहीं, इसे सुनिश्चत नहीं किया गया है।
यह पहला मौका है जब महामंडल ने निजी कंपनियों को सिंचाई परियोजनाओं से पानी उपलब्ध कराने के लिए सहमती दी है। अभी तक विदर्भ के केवल 5 बिजली परियोजनाओं को सिंचाई का पानी उपलब्ध कराया जाता था। हालांकि ये परियोजनाएं सरकारी हैं, बाद में इन्हें कंपनी का रूप दे दिया गया। पहले से पानी उपलब्ध कराई जाने वाली परियोजनाओं में कोराड़ी औष्णिक विद्युत प्रकल्प, खापरखेड़ा औष्णिक विद्युत प्रकल्प, चंद्रपुर औष्णिक विद्युत प्रकल्प, कोराड़ी एक्सटेंशन और पारस औष्णिक विद्युत केंद्र हैं। इन्हें सिंचाई विभाग के विविध परियोजनाओं से 296 एमएमक्यूब पानी उपलब्ध कराया जाता है।
महाराष्ट्र का कुल क्षेत्रफल 3 करोड़ 7 लाख हेक्टेयर है। जानकार कहते हैं कि इसमें करीब 57 प्रतिशत जमीन खेती लायक है। इस खेती लायक जमीन में हर साल करीब 40 से 45 प्रतिशत जमीन पर खेती की जाती है। 16 प्रतिशत जमीन पर दलहन उगाया जाता है। 14 प्रतिशत क्षेत्र में कपास और 12 प्रतिशत क्षेत्र में तिलहन की फसल उगती है। फल और सब्जी-भाजी 4 प्रतिशत और गन्ना महज 3 प्रतिशत क्षेत्र में उगाया जाता है। अन्य उत्पादन में ज्वार की खेती प्रमुख है। रबी के मौसम में होने वाले ज्वार का होने वाला उत्पादन वर्ष 1995 से 98 तक करीब 550 किलो प्रति हेक्टेयर था। आज यह और भी कम हो गई है। इसका कारण यह है कि जिस मौसम में इसकी खेती होती है, जब ज्वार को पर्याप्त मात्रा में सिंचाई नहीं मिल पाता है। करीब एक दशक से ऐसा हो रहा है। अर्याप्त सिंचाई में उत्पादन को बढ़ाने के लिए किसानों ने अधिक उत्पादन देने वाले बीज और रासायकिन खाद का उपयोग मजबूरी में करते हैं। इसके लिए कर्ज भी लेना पड़ता है। यदि सिंचाई की सुविधा दुरुस्त कर दी जाए तो किसानों की आधी समस्या स्वत: हल हो सकती है।
पानी की अनुमति लेने वाली कंपनियों की सूची
अदानी पॉवर महा. लि. (90 एमएमक्यूब),
मे. एसएमएस विद्युत प्रकल्प (59 एमएमक्यूब पानी),
पूर्ति सहकारी शक्कर कारखाना (1.31 एमएमक्यूब),
मे. आयडीएल एनर्जी प्रोजेक्ट लि. (7.80 एमएमक्यूब),
मे. विदर्भ इंडस्ट्रीज पॉवर प्रोजेक्ट (13.35 एमएमक्यूब),
मे. आयडीएल एनर्जी प्रोजेक्ट लि. (10 एमएमक्यूब),
अपर्णा इन्फ्राएनर्जी चंद्रपुर (100 एमएमक्यूब),
सारदाम्बिका पॉवर प्लांट (0.33 एमएमक्यूब),
गोसीखुर्द जलविद्युत प्रकल्प, एनटीपीसी मौदा प्रकल्प, मे. लैन्को महानदी थर्मल पॉवर प्रोजेक्ट मांडवा (40.20 एमएमक्यूब), इंडिया बुल्स पॉवर प्रा. लि. (87.60 एमएमक्यूब), अमरावती थर्मल पॉवर कंपनी (35.92 एमएमक्यूब) है।
००००

शनिवार, नवंबर 28, 2009

रोजगार की गारंटी, पर बेरोजगार तो मिलें



संजय स्वदेश
महाराष्ट्र में रोजगार गारंटी योजना कानून 1977 में तैयार किया गया। 26 जनवरी, 1979 को लागू हुआ। नियमानुसार जो भी मजदूर सरकार से काम मांगता है, उसे 15 दिन में गांव के पास ही काम मिलना चाहिए। काम नहीं दिया गया तो शासन की ओर से बेरोजगारी भत्ता देने का प्रावधान है। महाराष्टï्र से ही प्रेरणा लेकर केंद्र सरकार ने राष्टï्रीय ग्रामीण रोजगार योजना फरवरी 2006 में शुरू की। अब केंद्र व राज्य सरकार द्वारा संयुक्त रूप से देश के कई राज्यों में यह योजना चल रही है।
समय-समय पर इस योजना के लाभ और इसका नजायज लाभ लेने संबंधी खबरे आती रही। पर अब नई खबर यह है कि देश में सबसे पहले गारंटी योजना लागू करने वाले राज्य महाराष्ट्र के प्रमुख शहरों में इस योजना के तहत कार्यों को पूरा करने के लिए पर्याप्त मजदूर नहीं मिल रहे हैं। पिछड़े जिलों में स्थिति ठीक है। मजदूर नहीं मिलने की समस्या उन जिलों की है जहां अधिक उद्योग-धंधे हैं।
के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं। राज्य की महाराष्ट्र ग्रामीण रोजगार गारंटी (हमी) योजना राजय के नागपुर विभाग के अंतर्गत विदर्भ के भंडारा, चंद्रपुर, गढ़चिरोली, गोंदिया जिले को शामिल किया गया। 1 अप्रैल 07 को वर्धा तथा 1 अप्रैल 08 को नागपुर जिले को इस योजना में शामिल किया गया। योजना में मजदूर परिवार को 100 दिन का काम प्रतिदिन 86 रुपये के हिसाब से दिया जाता था, जो अब बढ़ कर 105 रुपये हो गई है। मजदूरों की मजदूरी राष्टï्रीयकृत बैंक अथवा डाकघर से भुगतान किया जाता है। योजना के तहत सिंचाई, वनीकरण, सामाजिक वनीकरण, कृषि आदि विभागों के कार्य किये जाते हैं।
पर राज्य में बेरोजगारी का आलम होने के बाद भी रोजगार गारंटी योजना के लिए सरकार को मजदूर नहीं मिल रहे हंै। फिलहाल महाराष्टï्र ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत नागपुर जिले में 43 कार्य चलाए जा रहे हैं। इन कार्यों के लिए कुल 811 मजदूरों की आवश्यकता है लेकिन केवल 464 मजदूर ही काम में लगे हैं। लिहाजा रोजगार गारंटी योजना के तहत होने वाले विभिन्न सरकारी कार्य सुस्त गति से चल रहे हैं।
जिला परिषद और पंचायत समिति स्तर के कार्यों की गति धीमी होने से कार्य से संबंधित राजनीतिक कार्यकर्ता जिला परिषद के बड़े नेताओं व अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं। मजेदार बात यह है कि गारंटी योजना के तहत मजदूर नहीं मिलने की समस्या आरंभ से ही है। इस साल की शुरुआत से ही मजदूरों की कमी बनी हुई है। आंकड़ों के अनुसार जहां गत अप्रैल माह में जिले में 14 कामों में केवल 407 मजदूर थे। वहीं नवंबर में चल रहे कुल 43 कार्यों में 464 मजदूर ही काम में लगे हैं। इससे योजना के प्रति मजदूरों की उदासीनता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। विश्वस्त सूत्र कहते हैं कि सरकारी आंकड़ों में कार्य करने वाले कई मजदूरों के नाम फर्जी भी हैं। कई ठेकेदार मजदूर नहीं मिलने के कारण फर्जी नाम जोड़ कर मजदूरों की संख्या दिखा रहे हैं और उनकी मजदूरी उठा रहे हैं। वहीं विभागीय स्तर पर रोजगार योजना के तहत मजदूर बढ़ रहे हैं। 6 जिलों में 4 साल की तुलना में इस बार सबसे ज्यादा मजदूर मिले हैं। सन् 2005-06 में अप्रैल माह में नागपुर विभाग में 52 हजार मजदूरों ने काम किया था। सन् 2006-07 में 49,260, सन् 2007-08 में 40,956 मजदूरों ने काम किया, वहीं 2008-09 तक 1 लाख से भी ज्यादा मजदूर कार्यरत थे।
नागपुर विभाग के दूसरे जिलों में उद्योग धंधे कम होने और रोजगार के दूसरे विकल्प नहीं होने के कारण मजदूर इस योजना के तहत काम करने के इच्छुक होते हैं। वहीं नागपुर जिले में दूसरे जिलों की अपेक्षा ज्यादा उद्योग व रोजगार के अन्य विकल्प होने के कारण मजदूर रोजगार गारंटी योजना में काम नहीं करना चाहते हैं। इस योजना के तहत मजदूरों की कमी एक कारण मजदूरी का कम होना भी है। पहले योजना के तहत प्रतिदिन 86 रुपये की मजदूरी मिलती थी जो बढ़ कर 105 रुपये हो गई है। इसके बाद भी मजदूरों की कमी है क्योंकि नागपुर जिले के मजदूर दूसरे कार्यों में प्रति दिन 105 रुपये से ज्यादा कमा लेते हैं। योजना के तहत काम में अरुचि होने का अन्य कारण मजदूरी के भुगतान में देरी भी है। निजी क्षेत्र के मजदूरों को जहां हर दिन के हिसाब से भुगतान होता है, वहीं इस योजना के तहत कार्य करने वाले मजदूरों को अपने भुगतान के लिए दो-दो सप्ताह का इंतजार भी करना पड़ता है।

शुक्रवार, नवंबर 27, 2009

भूमिहीन म्हाडा से आशियाने की आशा

संजय स्वदेश
महाराष्ट्र की सबसे बड़ी गृह निर्माण संस्था म्हाडा से शहर के वे लोग हमेशा इस बात की आस लगाए रखते हैं, जिन्हें शहर में उंची कीमत पर मकान-फ्लैट खरीदने की कूबत नहीं होती है। हर शहर का एक वर्ग यह सपना देखता है कि शायद उनकी किस्मत में म्हाडा के मकान की कोई लॉटरी लग जाए और सस्ते में अपना आशियाना मिल जाए। पर इन दिनों यह सपना देखने वाले क्या जानें कि अब शायद ही म्हाडा उन्हें सस्ते में मकान शायद यही उपलब्ध करा पाये। आप माने या न मानें, राज्य की सबसे बड़ी गृहनिर्माण संस्था म्हाडा भूमिहीन हो चुकी है। म्हाडा की नागपुर और पुणे संभाग के पास जनता को सस्ते में मकान उपलब्ध कराने के लिए जमीन नहीं है। इसका लाभ कुछ बड़े भू-मालिक उठाने के फिराक में हैं। म्हाडा महंगी दरों पर बड़े-बड़े भू-स्वामियों से जमीन खरीदने पर मजबूर है। मंदी के महौल में कई बड़े भूस्वामियों ने म्हाडा से साठ-गांठ कर महंगे दरों पर अपनी जमीन बेची और कई बेचने के फिराक में हैं। कुछ भू-स्वामियों ने तो म्हाडा अधिकारियों से सांठ-गांठ कर शहर से काफी दूर स्थिति उन जमीनों को काफी महंगे दामों पर बेच दिया, जिसे तत्काल भविष्य में किसी तरह की लाभ की गुंजाईश नहीं दिख रही थी। यदि वहां अवास योजनाएं बनाईं भी जाएं तो लोग जाना नहीं चाहेंगे। खुद की जमीन नहीं होने से म्हाडा की अनेक लोक कल्याणयोजनाएं अटकी हुई हंै। सैकड़ों जरूरतमंद म्हाडा में आस लगाए हुए हैं कि कब सस्ते मकानों का विज्ञापन निकलें और उनकी किस्मत में सस्ता मकान आ जाए।

हर दिन 3 किसान मौत को गले लगता है


विदर्भ में हर दिन 3 किसान मौत को गले लगा रहा है
श्रद्धांजलि सभा की शोरगुल में दब गई किसानों की आत्महत्या की खबर
48 घंटे में 6 किसानों ने आत्महत्या की।
विदर्भ में इस साल अब तक 892 आत्महत्याएं,

संजय स्वदेश
नागपुर। गत दो दिन 26/11 की श्रद्धांजलि सभा की धूम रही। इसी बीच विदर्भ के 6 किसानों ने आत्महत्या कर ली। श्रद्धांजलि सभा के खबरों के बीच ये खबर दब गईं। विदर्भ में किसानों की आत्महत्या के मामलों में अचानक तेजी आई है। पता नहीं इससे सरकार सकते में है या नहीं। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार इन दिनों औसतन 3 दु:खी किसान प्रतिदिन आत्महत्या कर रहे हैं। अपेक्षानुसार पैदावार न होने और पैदावार का उचित मूल्य न मिलने के कारण किसान ऐसे कदम उठाने को मजबूर हुए हैं। पिछले 48 घंटों में विदर्भ में 6 किसानों ने आत्महत्या की। इनमें 3 यवतमाल, 2 बुलढाना और एक अकोला जिले का किसान शामिल है। इनमें से एक यवतमाल जिले के सखी ग्राम के 25 वर्षीय मारुति नेताम ने तब यह कठोर कदम उठाया जब उसे पता चला कि उसकी 21 वर्षीय पत्नी वर्षा के पेट में दो माह का गर्भ है। पहले से ही भारी कृषि कर्ज, फसल की बर्बादी और कपास का उचित मूल्य नहीं मिलने के कारण परेशान मारुति परिवार में वृद्धि के लिए तैयार नहीं था।जब गुरुवार की सुबह पोस्टमार्टम के पश्चात मारुति का शव गांव में लाया गया तब का दृश्य बहुत ही मार्मिक था। वर्षा तीन बार बेहोश हुई। वह बार-बार बोल रही थी कि ऐसा कदम उठाने के पूर्व मारुति ने उसका, परिवार के अन्य सदस्यों और होने वाली संतान के विषय में क्यों नहीं सोचा। वणी तहसील के अंतर्गत वीराबाई ग्राम की आदिवासी लड़की वर्षा का मारुति के साथ इसी वर्ष मई माह में विवाह हुआ था। वर्षा ने संवाददाता को बताया कि पानी की कमी के कारण कपास की फसल के चौपट हो जाने से मारुति बहुत परेशान था। उसने डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक से 40,000 रुपए कर्ज लिए थे। इतनी ही राशि खेती के लिए एक महाजन से भी ली थी। किंतु अपने 11 एकड़ की खेती से सिर्फ 5 क्विंटल कच्चा कपास ही मिल पाया। वर्षा ने कहा कि इससे मारुति टूट चुका था। चूंकि उस कच्चे कपास को बेचकर सिर्फ 14 हजार रुपए ही मिले थे, मारुति पिछले 2 दिनों से बेचैन था। उसने बुधवार की दोपहर को कीटनाशक पी लिया। यवतमाल के जिलाधीश संजय देशमुख ने स्वीकार किया कि गुरुवार को जिले में किसान के आत्महत्या की खबर मिली थी। उन्होंने बताया कि अधिकारियों को जांच आदेश दे दिए गए हैं। इन 6 किसानों की आत्महत्या के साथ विदर्भ में इस माह किसान आत्महत्या की संख्या 55 पर पहुंच गई है। पिछले माह यह संख्या 54 थी। विदर्भ जनांदोलन समिति के अध्यक्ष किशोर तिवारी के अनुसार इस वर्ष जनवरी से लेकर अब तक 892 किसान आत्महत्या कर चुके हैं।

गुरुवार, नवंबर 26, 2009

देश में सेना से ज्यादा पुलिसकर्मी शहीद


15 प्रतिशत लोगों के कारण ही बदनाम है पुलिस

कश्मीर से कन्याकुमारी के लिए निकली 8 पुलिस अधिकारियों की सद्भावना रैली का नागपुर में भव्य स्वागत

संजय स्वदेश
नागपुर। आजादी के बाद पड़ोसी राज्यों से हुए युद्ध में जितने सैनिक शहीद हुए हैं, उनके कहीं ज्यादा पुलिसकर्मी विभिन्न घटनाओं में शहीद हुए। यह कहना है हैदराबाद स्थित सरदार बल्लभ भाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस प्रशिक्षण अकादमी के निदेशक आईजी जी.यू . शास्त्री का। श्री शास्त्री राष्ट्रीय एकता और आम जनमानस में फैली पुलिस की नकारात्मक छवि को सुधारने के लिए गत 7 नवंबर से श्रीनगर से कन्याकुमारी तक साइकिल रैली यात्रा पर निकले हैं। इनकी यात्रा में 7 अन्य पुलिस अधिकारियों का समावेश है। गुरुवार की शाम शास्त्री की टीम नागपुर पहुंची। श्री शास्त्री ने कहा कि महज 15 प्रतिशत लोगों का ही पुलिस का समाज के साथ किसी ने किसी तरह से कभी पाला पड़ा रहता है, लेकिन इनमें से बहुत कम लोगों के साथ ही पुलिस के साथ नाकारात्मक अनुभव या भ्रष्टाचार का अनुभव होता है। इन्हीं लोगों के अनुभव को सुनकर समाज के अन्य लोग पुलिस के प्रति नाकारात्मक छवि बना लेते हैं। उन्होंने कहा कि एक शोध रिपोर्ट से पता चला है कि पुलिस के प्रति नाकारात्मक धारणा रखने वाले लोगों ने बताया कि उनका कभी पुलिस के साथ किसी तरह का पाला नहीं पड़ा। वे दूसरे लोगों के कहने, समाचार और फिल्म में प्रस्तुत होने वाली पुलिस की नाकारात्मक छवि के कारण उनकी ऐसी धारणा बनी है। shastri ने बताया कि जनता के बीच इसलिए बदनाम है, क्योंकि पुलिस के कार्य जनता के साथ सीधे जुड़े रहते हैं। वहीं देश की सैन्य बलों के प्रति ऐसा नजरिया नहीं है क्योंकि सेना जनता से कटी रहती है। उन्होंने कहा कि समाज में पुलिस की नकारात्मक छवि की बुनियाद अंग्रेजी शासनकाल से पड़ी है। इसलिए इसे आसानी से नहीं बदला जा सकता है। इसे बदलने में समय लगेगा। उन्होंने कहा कि इस धारणा को बदलने के लिए पुलिस और जनता, दोनों को पहल करनी चाहिए लेकिन पहला कदम पुलिस को बढ़ाना होगा। उन्होंने मीडिया से अपील की कि वह पुलिस की नाकरात्मक छवि सुधारने में सहयोग करे। दो लोगों से शुरू हुई यात्राश्री शास्त्री ने बताया कि वे कश्मीर से कन्याकुमारी तक की इस यात्रा में अभी तक अनेक तरह के अनुभव हुए। लोग हमें प्रोत्साहित कर रहे हैं। जब यात्रा शुरू हुई थी तब मात्र दो लोग ही थे। बाद में जम्मू में तीन अन्य यात्री
इस यात्रा के हिस्सा बने। दिल्ली पहुंचते ही रैली में तीन लोग और जुड़ गए। उन्होंने बताया कि हैदराबाद में और भी लोग इस रैली से जुड़ेंगे। साइकिल की भूमिका महत्वपूर्ण श्री शास्त्री ने कहा कि रैली के लिए उन्होंने साइकिल का ही साधन इसलिए चुना क्योंकि इससे शरीर का अच्छा व्यायाम होता है। आज लोग थोड़ी दूर चलने के लिए भी वाहन पर निर्भर हो गए हैं। इससे न केवल उनका शरीर जड़ हो रहा है, बल्कि पेट्रोल नष्ट हो रहा है और पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। साइकिल की यात्रा हर मामले में लाभकारी है। उन्होंने बताया कि कई देश के लोग साइकिल के महत्व को समझने लगे हैं। पड़ोसी देश चीन में हजारों लोग साधन होने के बाद भी साइकिल चलाते हैं। हर दिन 100 किलोमीटर हर दिन 100 किलोमीटर पुलिस मुख्यालय में रैली टीम का भव्य स्वागत शहर पुलिस आयुक्त प्रवीण दीक्षित के नेतृत्व में किया गया। पुलिस की बैंड टीम ने मधुर धुनों से स्वागत किया। एनसीसी, एनएसएस, आरएसपी कैड्ेस ने भी रैली में आए अधिकारियों का स्वागत किया। 7 नवंबर को श्रीनगर से चली इस रैली का समापन 14 दिसंबर को कन्याकुमारी में होगा। श्री शास्त्री ने बताया कि रैली को मार्ग में सीमा सुरक्षा बल और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की सुरक्षा मिल रही है। उनके साथ एक साइकिल मैकेनिक भी वाहन में चल रहा है। उन्होंने बताया कि रैली के बीच कई बार साइकिल पंचर होती है। हर दिन औसतन 100 से 110 किलोमीटर की यात्रा होती है। रैली टीम में जी.एस.यू. शास्त्री के अलावा मिलन कनस्कर- पुलिस प्रशिक्षण अकादमी के उपनिदेशक, अजयकुमार नंद- अकादमी के सहायक उपनिदेशक, कवायद अनुदेशक हरिओम, नागेश पाल, पालिनी कुमार, अब्दुल समद, राजेंद्र शामिल हैं।

अनौचारिक चर्चा के दौरान निखिल वागले के साथ पत्रकारों की शाब्दिक झड़प


संजय स्वदेश
नागपुर। धंतोली स्थित तिलक पत्रकार भवन में आयोजित एक अनौपचारिक चर्चा में आईबीएन लोकमत के संपादक निखील वागले और पत्रकारों के बीच शाब्दीक झड़प हो गई। बातचीत में श्री वागले ने जैसे ही चुनाव के दौरान चैनलों समेत प्रिंट मीडिया को पैकेज सिस्टम पर बिकने की बात पर कोसना शुरू किया, कई पत्रकार बिफर पड़े। श्री वागले का कहना था कि हर बार के चुनाव में भी कई पत्रकार व न्यूज चैनल राजनीतिज्ञों के हाथों बिक गए। इस पर आपत्ति जताते हुए उपस्थित पत्रकारों ने श्री बागले को अपने गिरेबान में झांकने की सलाह देते हुए कहा कि वे जिस चैनल के लिए कार्य करते हैं और जो चैनल जिस समाचार पत्र समूह से जुड़ा है, उन पर भी चुनाव के दौरान भ्रष्टाचार के आरोप लगे। उनसे जुड़े दोनों मीडिया हाऊस ने भी चुनाव के दौरान पैकेज के साथ खबरे प्रसारित व प्रकाशित की। उपस्थित पत्रकारों ने यह सवाल दागा कि दूसरे मीडिया हाउस पर ऐसे आरोप लगाने की ठेकेदारी किसने दी। कई पत्रकारों ने उनकी शब्द रचना वाक्य प्रयोग पर सवाल उठाते हुए कहा कि आप भी कई बार जबरन लोगों से उलझकर उनसे गलत तरिके से पेश आते हैं। आप से ही सभी का झगड़ा क्यों होता है? पत्रकारिता में जुबान पर संयम रखना जरूरी होता है।एक सवाल के जवाब में श्री वागले ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि मैं पहले भारतीय हूँ बाद में मराठी। 20 वर्षों से मैं भी मराठियों के लिए संघर्ष कर रहा हूँ। मगर मेरे संघर्ष करने का तरीका मनसे जैसा नहीं है। एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि ब्राह्मण नेता, दलित नेता, अल्पसंख्यक नेता जैसे जातिवाचक शब्दों का उल्लेख सामाजिक विशलेषण के लिए उचित होता है। मगर चुनाव के दौरान इसका उपयोग गलत है। पूरी चर्चा के दौरान पत्रकारों व श्री वागले में शाब्दिक झड़प हुई।

२६/११ के शहीदों को मुआवजा नहीं मिला : गड़करी


किसान और खेतीहर मजदूरों की मांगों के समर्थन में भाजपा का मोर्चा मोर्चा 8 को
संजय स्वदेश
नागपुर।

भाजपा प्रदेशाध्यक्ष नितिन गडकरी ने कहा है कि २६/११ के शहीदों को अभी तक मुआवजा नहीं मिला। सरकार ने शहीद परिवारों को पेट्रोलपंप देने की बात भी कही थी, लेकिन वह भी अभी तक नहीं मिला। राज्य सरकार शहीदों का संपूर्ण विवरण तैयार करने में नकाम रही है। इसलिए उन्हें अभी तक केंद्र सरकार से मुआवजा नहीं मिल पाया है। श्री गडकरी ने नागपुर स्थित शहर कार्यालय से मुंबई के पत्रकारों से भी विडियो कांफ्रेंसिग से बातचीत की। उन्होंने कहा कि शहीरों के मुआवजे के लिए संपूर्ण आवश्यक विवरण तैयार करने के लिए पार्टी के उपाध्यक्ष किरीट सोमैय्या राष्ट्रपति से मुलाकात कर इसकी विस्तृत चर्चा की है। उन्होंने बताया कि शहीदी के एक साल होने पर भी उनके परिवारों को मुआवजा राशि नहीं मिलने के कारण सरकार की लापरवाही है। राज्य सरकार ने मुआवजे के लिए अभी तक शहीदों का संपूर्ण विवरण नहीं दिया है। भाजपा में शहीदों का संपूर्ण विवरण तैयार कर राष्ट्रपति को सौंपा हैं। उन्होंने बताया कि विदर्भ की किसान तथा खेत मजदूरों की मांगों के लिए विशेषकर विदर्भ का आकालग्रस्त घोषित करने के लिए भारतीय जनता पार्टी की ओर से 8 दिसंबर को नागपुर में शुरू हो रहे राज्य विधानमंडल के शीतसत्र के दाद्यैरान एक प्रचंड मोर्चा निकालेगी। मोर्चे का नेतृत्व भाजपा राष्ट्रीय महासचिव गोपीनाथ मुंडे करेंगे। उन्होंने बताया कि सरकार विदर्भ के किसान और खेतिहार मजदूरों के के मामले में भी उदासीन है। इसलिए उनके हीतों की रक्षा के लिए करीब दो लाख किसानों के साथ भाजपा मोर्चा निकालेगी। उन्होंने कहा कि मोर्चे के माध्यम से विदर्भ को आकालग्रस्त घोषित करने, किसानों का पूरा कर्ज माफ, 3 प्रतिशत के हिसाब से अगले साल तक नया कर्ज उपलब्ध कराने, फसल नष्ट हो जाने से बेरोजगार किसानों के लिये रोगायों के काम देने, इसमें 105 रूपये से 120 रूपये मजदूरी बढ़ाने, सरल तरीके से बीपीएल कार्ड उपलब्ध कराने, खादों पर सबसिडी देने , जवाहर योजना अंतर्गत किसानों को दी जानेवाली राशि जल्द उपलब्ध कराने आदि मांगों के लिए सरकार पर दवाब डाला जाएगा। उन्होंने कहा कि मोर्चे में विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता एकनाथ खडसे, विधान परिषद विरोधी पार्टी के नेता पांडुरंग फूडकर तथा मोर्चा में पार्टी के विदर्भ के सभी सांसद, विधायक तथा मुख्य पदाधिकारी प्रुमख रूप से उपस्थित रहेंगे।

मंगलवार, नवंबर 24, 2009

लिबरहान लीक का दोषी कौन : उमा भारती


मुस्लिम समुदाय को आधुनिक विचारधारा वाले नेतृत्व में आने के लिए मीडिया से माहौल बनाने का आह्वान

फिर से रथयात्रा निकालने के लिए आडवाणी से किया अनुरोध

संजय स्वदेश


नागपुर। लिबरहान आयोग की रिपोर्ट लीक हो गई, लेकिन इसका दोषी कौन है? चिदंबरम या फिर लिबरहान? सरकार को इन दोनों में से दोषी सुनिश्चित कर जल्द से जल्द दंडित करना चाहिए। यह कहना है लोकजनशक्ति पार्टी की नेता उमा भारती का। वे धंतोली स्थित तिलक पत्रकार भवन में पत्रकारों से बातचीत कर रही थीं। इसके साथ ही सुश्री भारती ने भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को फिर से देश में रथ यात्रा शुरू करने का अनुरोध करते हुए अपना पूरा सहयोग देने की बात कही। उन्होंने मुस्लिमों को जिद छोड़ राम मंदिर निर्माण में सहयोग देने का आह्वान किया। सुश्री भारती ने कहा कि मैं पहले ही अयोध्या मामले में अपनी नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार कर चुंकि हूं और अभी भी नैतिक जिम्मेदारी लेती हूं। लेकिन पूरे प्रकरण में सरकार के लिए लिबरहान लीक के दोषी को दंड आवश्यक है। पूर्व प्रधानमंत्री पी।वी। नरसिम्हा राव की तरिफ करते हुए सुश्री भारती ने कहा कि श्री राव रामभक्त थे। इसलिए उन्होंने अयोध्या में पैरा मिलिट्री फोर्स नहीं भेजा। वे चाहते थे 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में सुबह 11 बजे ही पैरा मिलिट्री भेज देते थे। लेकिन रामभक्त होने के कारण उन्होंने शाम छह बजे पैरा मिलिट्री फोर्स भेजा। इसी तरह पंडित नेहरू ने भी अयोध्या मामले में स्पष्ट कहा था- कि राम देश की जनता के रगों में बसते हैं, इसे मत छेड़ो। कांग्रेसियों को अपने पूर्व प्रधानमंत्री के रामभक्त होने का गर्व करना चाहिए और अयोध्या में राममंदिर निर्माण के लिए अपना रुख सकारात्मक करना चाहिए। सुश्री भारती ने कहा कि देश में कई पार्टियों ने धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कीचड़ की राजनीति की और मुस्लिमों को धोखे में रखा। लेकिन गत एक दशक से मुस्लिम समुदाय को एक भी आधुनिक विचार का मुस्लिम नेतृत्व नहीं मिला। उन्होंने कहा कि मलेशिया का मुस्लिम समुदाय स्वयं को राम का पूर्वज कहने में गर्व महसूस करता है। पाकिस्तान में कई मस्जिद तोड़ कर वहां विकास किए गए। मॉल्स बने। भारत के मुस्लिम समुदाय को यह समझना चाहिए कि जिस तरह से मक्का मदीना उनके लिए पवित्र तीर्थ है, उसी तरह से हिंदुओं के लिए अयोध्या महत्वपूर्ण है। सुश्री भारती ने मीडिया से अनुरोध किया कि वे मुस्लिम समुदाय को आधुनिक नेतृत्व में आये और अपनी जिद छोड़ें। जिस तरह से अजमेर उनके लिए मायने रखता है, उसी तरह हमारे लिए अयोध्या की राम जन्मभूमि महत्वपूर्ण हैं। वहां आज भी राम की मूर्ति है। हर दिन पूजा होती है। दूर-दूर तक कहीं से भी कोई मजार नहीं है। उन्होंने कहा कि कि अयोध्या में विवादित ढांचा गिराने में अटल बिहारी वाजपेयी की कोई भूमिका नहीं है। मंदिर के गुंबज पर झंडा लहराने वाला वासुदेव अग्रवाल था। वह कोई आर।एस।एस. का स्वयंसवेक नहीं था। वह हिंदू था। उसे गोली मारी गई। अटल बिहारी वाजपेयी व्यावहारिक हिंदू हैं। वे शिव की पूजा करते हैं। एनडीए सरकार के कार्यकाल के अंतिम दिनों में वाजपेयीजी ने मुझसे कहा था कि हम दो बार प्रधानमंत्री बन गए। चुनावी घोषणापत्र में मंदिर मुद्दा नहीं था। फिर भी हमें अब मंदिर के लिए कुछ करना चाहिए। इस बातचीत के करीब 15 दिनों के बाद ही अचानक इंडिया शाइनिंग का मुद्दा आया और समय से छह माह पूर्व ही लोकसभा भंग हो गई। सुश्री भारती ने कहा कि वे संघ की स्वयंसेवक हैं। नागपुर आकर वे संघ मुख्यालय नहीं गई, क्योंकि इससे लोग अलग अर्थ लगा लेते। वे वर्धा के एक गांव में किसी वैवाहिक समारोह में हिस्सा लेने गईं थी। मंगलवार को संसद में लिबरहान आयोग की रिपोर्ट प्रस्तुत होने से कई पत्रकारों ने उन्हें फोन कर प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की। इसी कारण अचानक नागपुर में प्रेस-कांफ्रेंस आयोजित करना पड़ी। एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि वे फिर से भाजपा में नहीं जाएंगी। यदि लालकृष्ण आडवाणी फिर से सोमनाथ से रथ यात्रा निकालते हैं तो भारतीय जनशक्ति पार्टी की अध्यक्ष के रूप में उनका पूरा साथ दूंगी। राम मंदिर निर्माण आंदोलन का नेतृत्व विश्व हिंदू परिषद के हाथ में है। इसलिए वे कल दिल्ली जाकर अशोक सिंघल से मिलेगी। भाजपा की अंदरूनी कलह पर पूछे गए एक सवाल पर सुश्री भारती ने दो टूक कहा- मैं दूसरे के फटे में टांग नहीं अड़ाती।


रविवार, नवंबर 22, 2009

बाल ठाकरे में अयोध्या जाने की हिम्मत नहीं : अशोक सिंघल


बहक गये हैं राज ठाकरे

संजय स्वदेश


नागपुर। अयोध्या में गिराये गए बाबरी ढांचे का श्रेय लेने वाले शिवसेना प्रमुख के दावे पर विश्व हिंदू परिषद के वरिष्ठ नेता अशोक सिंघल ने राम बाण छोड़ते हुए कहा है कि ठाकरे में इतनी हिम्मत नहीं कि अयोध्या जाते। औपचारिकता के लिए केवल अपने एक प्रतिनिधि मनोहर जोशी को वहां भेजा। बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराने के लिए लाखों रामभक्त अध्योध्या पहुंचे, लेकिन एक भी शिवसैनिक नहीं आया। इसके उलट बाल ठाकरे ने यह दावा किया था कि बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराने में शिवसैनिकों को गर्व है। रविवार की सुबह एक प्रेस कान्फ्रेंस में विहिप नेता ने ठाकरे पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मस्जिद के ढांचे को गिराने में केवल एक प्रतिनिधि को भेज कर ठाकरे का ढांचा गिराने का दावा गलत है। उस समय आयोध्या में पहुंचे चार लाख रामभक्तों में एक भी शिवसैनिक नहीं था। गुजरात के गोधरा दंगों पर प्रतिक्रिया में श्री सिंघल ने कहा कि मोदी में दंगे कराने का दम नहीं था। गोधरा कांड राम का कोप था। इसकी स्वाभाविक प्रतिक्रिया स्वरूप गुजरात में दंगे हुए। समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आजमी के विधानसभा में शपथ लेने के दौरान मनसे विधायकों की धक्का-मुक्की और दुव्र्यवहार पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में सिंघल ने कहा कि राज ठाकरे अच्छे घराने से हैं। लेकिन इन दिनों बहक गये हैं। वे महाराष्ट्र से हिंदी भाषियों को निकाल नहीं सकते हैं। राज ठाकरे के ऐसे कार्यों को प्रोत्साहन नहीं देना चाहिए। भगवान उसे सद्बुद्धि दे। उन्होंने कहा कि देश में आतंक का वातावरण तैयार हो रहा है। वंदे मातरम फतवा के मामले में श्री सिंघल ने गृहमंत्री को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि अफसोस की बात है कि जिस मंच पर देश के गृहमंत्री थे, उसी मंच से वंदे मातरम के खिलाफ फतवा जारी हुआ। ज्ञात हो कि कुछ दिन पूर्व विहिप के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष प्रवीण तोगडिय़ा ने एक प्रेस कान्फ्रेंस में कहा था- फतवा तब जारी हुआ था, जब चिदंबरम वहां से जा चुके थे। श्री सिंघल ने कहा कि इस देश में रहना है तो हर किसी को वंदे मातरम का सम्मान करना होगा। यह आजादी का महामंत्र था। उन्होंने कहा कि जन गण मन गीत का स्वर गाते हुए हजारों लोगों ने अपना बलिदान दिया। वंदे मातरम का विरोध केवल शत्रु ही कर सकते हैं। इसका विरोध करने वाले भारत में पाकिस्तान बनाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि 50 साल पूर्व तिब्बत एक स्वतंत्र राष्ट्र था। दलाई लामा तिब्बत के धार्मिक और राजकीय नेता हैं। इसके बाद भी चीन बार-बार भारत को घुड़की देता है। सरकार कहती है कि चीन से कोई झगड़ा नहीं है। सरकार चीन से डर रही है, जबकि हमारी सेना चीन से मुकाबला करने में सक्षम है। दूसरी ओर देश के अंदर 300 जिले नक्सलवाद के चपेट में हैं। पर सरकार की नीति स्पष्ट नहीं है। आज की जैसी स्थितियां बन रही है, उसमें हिंदुवादी संगठन फिर से संगठित हो रहे हैं। ०००००००००००००००००००००००००००००००००००००

गुरुवार, नवंबर 19, 2009

पत्नी सताए तो किसे बतायें


संजय स्वदेश

अभी तक ज्यादातर महिलाओं पर अत्याचार के मामले सामने आते रहे हैं। इसे रोकने के लिए सशक्त कानून भी बनाए गए हैं। समय बदल रहा है। महिला सशक्तिकरण के जमाने में अब पति पत्नी से पीडि़त हैं। चाहे वे पत्नी के लगाए गए दहेज प्रताडऩा और घरेलू हिंसा के झूठे आरोप हों या फिर घर में आपसी कलह। पत्नीपीडि़ता कहां जाए? न कोई हमदर्दी न कोई सरकारी मदद। 19 नंवबर। तंग पति अंतरराष्ट्रीय पति दिवस मना रहे हैं। पार्टी करके। बैठक करके। फिल्म देखकर। कुछ पीडि़तों का समूहीक पिकनिक मनाकर एक दिन खुशियों का जी रहे हैं। अपने लिए। शायद वैसा दिन पत्नी के साथ फिर कभी नहीं जी पाएंगे। हकीकत बदल रही है। यकीन मानिये जितनी हिंसा महिलाओं के साथ हो रही है, वैसी ही हिंसा पुरुषों के साथ हो रही है। दो वर्ग बन गए हैं। एक ओर जहां पति पत्नी को पीटता है, वहीं दूसरे वर्ग में पत्नी से पति पीडि़त होकर दिल में टिस लिए जिंदगी से हर आस छोड़ रहा है। पहली बार त्रिनाद और टूबंको में 1999 में 19 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस के रूप में मनाया गया। भारत में इसी शुरुआत 2007 से हुई। पत्नी से प्रताडि़त होने के मामले में देश का कोई शहर अछूता नहीं है। बस अंतर इतना है कि महिलाओं से जुड़ी हिंसा को मीडिया ज्यादा कवरेज देता है। पीडि़त पति शर्म संकोच से कहीं नही जाते हैं। करीब डेढ़ दशक पूर्व दिल्ली के विभिन्न इलाकों में कई जगह लिखा हुआ मिलता था - पत्नी सताएं तो हमे बताएं, मिले नहीं लिखें। अब वो तख्ती तो नहीं दिखती है, लेकिन पीडि़त बढ़ गए हैं।

आए दिन शादीशुदा पुरुषों की आत्महत्या के मामले प्रकाश में आते हैं। पर इसके पीछे की सच्चाई से बहुत कम ही लोग ही रू-ब-रू हो पाते हैं। कई बार इन कानूनों का दुरुपयोग कर पत्नी पति को प्रताडि़त करती है। इससे तंग आकर अनेक लोगों ने आत्महत्या की राह चुनी है। वर्षों गुजर गए। पत्नी पीडि़तों समूह संगठित होकर सरकार से लगातार संघर्ष कर देहेज उत्पीडऩ के कानून 498-ए में बदलवा कर इस जमानती बनाने की मांग कर रहा है। बदलाव के लिए सरकार विचार कर रही है। संगठन अगल पुरुष कल्याण मंत्रालय की मांग कर रहे हैं। पुरुषों के पक्ष में दस्ताबेज जुगाड़ कर सरकार के पास ज्ञापन भेजकर लगातार दवाब बना रहे हैं। कई शहरों में पत्नी पीडि़तों का समूह कही चुपचाप तो कहीं खुलेआम बैठक करते हैं। एक-दूसरे की समस्या सुनते हैं और सहयोग करते हैं। जब नया पीडि़त आता है तो उनकी काउंसलिंग होती है जिससे कि वह आत्महत्या न कर सके। पत्नी पीडि़त राजेश बखारिया दहेज उत्पीडऩ कानून के चक्कर में वर्षों से कोर्ट के चक्कर काटते-काटते इस अपने जैसे दूसरे पीडि़तों का दु:ख दर्द बांटते हैं। सहयोग करते हैं। कहते हैं कि अब तो नई नवेली दुलहन भी छोटी-छोटी बात पर दहेज विरोधी काननू का हवाला देकर घर-परिवार में वर्चस्व जमाने की कोशिश करती हैं। खेद की बात है कि जैसे ही पत्नी आरोप लगाती है और बात थाने तक पहुंचती है और मामला दर्ज होता है तो पति को जेल जाना पड़ता है। वह घोर अवसाद का शिकार हो जाता है। पत्नी की हरकतों से बेटे-भाई की जिंदगी में पडऩे वाली खलल से कर्ई मां-बहनों का दिल टूटा है। युवा पति कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटते-काटते अधेड़ हो रहे हैं। लिहाजा, इस चक्कर में पड़े अधिकतर लोग आत्महत्या को अंतिम विकल्प मान लेते हैं। क्योंकि जैसे ही पत्नी के अरोप पुलिस दर्ज करती है, नौकरी चाहे सरकारी हो या निजी चली जाती है। श्रम और रोजगार मंत्रालय के वर्ष 2001-05 के जारी आंकड़ों के मुताबिक निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों से करीब 14 लाख लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। कई सर्वे व जांच में यह बात सामने आ चुकी है कि आईपीसी की धारा 498 ए का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हो रहा है। इसके तहत कई पतियों पर दहेज के लिए पत्नी को प्रताडि़त करने के झूठे अरोप लगे हैं। दो साल पूर्व लागू घरेलू हिंसा उन्नमूलन कानून 2005 से तो महिलाओं को और ताकत दे दी है। उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2006 में एक सिविल याचिका 583 में यह टिप्पणी की थी कि इस कानून को तैयार करते समय कई खामियां रह गई हैं। उन खामियों का फायदा उठा कर कई पत्नियां पति को धमका रही हैं। उन्होंने बताया कि आंकड़े देखें तो औसतन जहां हर 19 मिनट में देश में किसी व्यक्ति की हत्या होती है, वहीं हर 10 मिनट में एक विवाहित व्यक्ति आत्महत्या करता है। वर्ष 2005-07 के आंकड़ों के मुताबिक दहेज उत्पीडऩ मामले में कानून की धारा 498-ए, के तहत 1,39,058 मामले दर्ज हुए।पत्नी पीडि़तों की एक संस्था सेव इंडिया फैमिली फउंडेशन पत्नी पीडि़तों को काउंसलिंग से मामले सुलझाने की कोशिश करता है। फाउंडेशन सरकार पर लगातार स्वतंत्र रूप से पुरुष कल्याण मंत्रालय बनाने की मांग कर रहा है। श्री बखारिया का कहना है कि यदि पत्नी किसी भी कारण से आत्महत्या करती है तो पुलिस तुरंत केस दर्ज कर आरोपियों को हवालात में ले लेती है। घर घरेलू कलह से तंग आकर पति आत्महत्या करता है तो पत्नी से पूछताछ तक नहीं होती है। पत्नी के प्रताडि़त करने के अधिकतर मामले साल 2000 से तेजी से बढ़े हैं। इसका प्रमुख जिम्मेदार टीवी पर प्रसारित होने वाले कुछ धारावाहिक हैं जिनकी अनाप-शनाप कहानी में नकारात्मक छवि वाली महिला पात्रों ने समाज में गलत असर छोड़ा है। लड़कों वालों में वधु पक्ष के परिवार के अनावश्यक हस्तक्षेप बढ़ा है जिससे महिलाओं में अहम् आ जाता है। बॉक्स में देश में आत्महत्या के मामले वर्ष 2005-07विवाहित पुरुष विवाहित महिलाएं1,65,528 88,128आत्महत्या का अनुपात प्रतिशत विवाहित पुरुष विवाहित महिलाएं65.25 34.75०००००० ००००० ०००० ०००० ००संजय स्वदेश, मुख्य संवाददाता, दैनिक 1857, नागपुर

बुधवार, नवंबर 18, 2009

बढ़ता ही जा रहा है बसपा के बागियों का गुस्सा



भैंस के साथ बसपा कार्यकर्ताओं ने किया प्रदर्शन'वीर सिंह, सचान, साखरे हटाओ,


महाराष्ट्र बसपा बचाओÓ अभियान जारी


संजय स्वदेश


नागपुर। करीब एक दशक पूर्व महाराष्ट्र की राजनीति में मजबूत पांच जमा कर कांग्रेस को शिकस्त कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली बहुजन समाज पार्टी राज्य में पूरी तरह से अंर्तकलह में फंस चुकी है। बीत विधानसभा चुनाव में बसपा के वोट प्रतिशत में भारी गिरावट उसकी ताकत का आईन दिखा चुके हैं। हर का ठिकरा किसके सिर फोटो जाए, इसको लेकर राज्य के कार्यकर्ता और पदाधिकारी आपस में भीड़े हुए हैं। महाराष्ट्र में बसपा के प्रभारी पदाधिकारियों का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा है। गत एक नवंबर से शुरू हुआ बसपा पदाधिकारियों के खिलाफ बसपा कार्यकर्ताओं का गुस्सा अभी तक शांत नहीं हुआ है। मंगलवार को पार्टी के कार्यकर्ताओं ने मेडिकल कॉलेज चौक पर पार्टी के कार्यकर्ताओं ने पार्टी के महाराष्ट्र प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ एक भैंस पर नारे लिख कर प्रदर्शन किया। कार्यकर्ताओं ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर बसपा सुप्रीमों बहनजी का दलाल होने आरोप लगाया है। ज्ञात हो कि विधानसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद कार्यकर्ताओं में उपजा असंतोष और विवाद चुनाव परिणाम आने के बाद से ही बढ़ता जा रहा है। इस असंतोष को दबाने के लिए पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष सुरेश साखरे ने सात समर्पित कार्यकताओं को निष्कासित कर दिया था। इससे मामला और भड़क गया। अगले दिन नारी रोड स्थित पार्टी के कार्यालय में पार्टी के अन्य दस पदाधिकारियों ने इस्तीफा देकर राज्य पार्टी के प्रमुख पदाधिकारियों को हटाने की मांग करते हुए धरने पर बैठ गए थे। उन्होंने कार्यालय पर ताला भी ठोक दिया था। पार्टी सेअसंतुष्ट कार्यकर्ताओं का कहना है कि पार्टी की डूबती नैया को बचाने के लिए शीर्ष पदाधिकारी वीर सिंह, के।के सचान, सुरेश साखरे को हटाना आवश्यक है। इसके लिए वे हर प्रदर्शन में 'वीर सिंह, सचान, साखरे हटाओ, महाराष्ट्र बसपा बचाओÓ के नारे लगा रहे हैं। उनका कहना है कि पार्टी पार्टी के बागी नेताओं के धरना आंदोलन को विदर्भ के कार्यकताओं का समर्थन है। बसपा पार्षद हबीबुर्रहमान अंसारी ने पिछले दिनों कहा था कि विधानसभा चुनाव में बसपा की करारी हार की जिम्मेदारी प्रभारी नेताओं की है। वे राज्य में पार्टी का बेड़ागर्क करना चाहते हैं, लेकिन हम उनके मंसूबों को कामयाब नहीं होने देंगे। ज्ञात हो कि एक दशक पूर्व तक विदर्भ में प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच तीसरी ताकत बन कर उभरी बहुजन समाज पार्टी का जमीन लगातार खिसकती जा रही है। हर बार प्रमुख दल विशेष कर कांग्रेस के वोटों में सेंध लगाने वाला हाथी इतनी सुस्त पड़ गया कि कई सीटों पर जीत का अंतर बसपा उम्मीदवार को मिले कुल वोटों से भी ज्यादा नजर आया।पिछले दिनों पार्टी कार्यकर्ताओं को यह भनक लगी थी कि उत्तर प्रदेश में हो रहे उप चुनावों के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती पार्टी पदाधिकारियों से राज्य विधानसभा चुनाव में हुई करारी हार की खोज खबर लेने वाली थी। इसे लेकर पार्टी पदाधिकारियों के पहले से ही हाथपांव फूले हुए थे। इसके बाद पार्टी का विद्रोह के तेवर तेज हो गए। पार्टी पार्टी की हार की समीक्षा के लिए आयोजित हर बैठक में शीर्ष पदाधिकारियों को विरोध का सामना करना पड़ा था।


मंगलवार, नवंबर 10, 2009

बाप की गलती क्या सुधारेग अबू आजमी : डा. तोगडिय़ा


संजय स्वदेश
नागपुर। महाराष्ट्र विधानसभा में हिंदी में शपथ ग्रहण को लेकर सोमवार को हो हल्ला हो, रहा है। उसमें चारों ओर राज ठाकरे की बुराई हो रही है। लेकिन इसी बीच विश्व हिंदू परिष के अंतरराष्ट्रीय महासचिव डा। प्रवीण तोगडिय़ां ने यह कह कर अबू आजमी पर धावा बोल दिया है कि हिंदू को लेकर जो गलती अबू आजमी के बाप ने किया उसे सुधारने का काम अबू न करें। एक जमाने में अबू आजमी के बाप ने उत्तर प्रदेश में हिंदी का विरोध कर उर्दू का समर्थन किया था। कल तक जो हिंदी भाषा का विरोध कर उर्दू के समर्थन में लड़ रहा था, उसे हिंदी भाषा का समर्थन करने का कोई अधिकार नहीं।


नागपुर के तिलक पत्रकार भवन में आयोजित एक प्रेस कांन्फ्रेंस में डा. तोगडिय़ों ने कहा कि अबू आजमी मराठियों और हिंदुओं के बीच वैमनस्य फैला रहे हैं। किसी भी समुदाय को अबू आजमी के बहकावे में आने की जरूरत नहीं है। हम हिंदी-मराठी मसला आपस में हल कर लेंगे। मैं उर्दू भाषा का हिमायती नहीं हंू। बाकी सभी भाषाओं का मैं दिल से आदर करता हूॅँ। हिंदी भाषा को शस्त्र बनाकर राजनीति की रोटी सेंकने का काम अबू आजमी कर रहे हैं। राज ठाकरे सही हैं या गलत? इस पर डा. तोगडिय़ा ने कुछ भी कहने से इनकार किया। दलाई लामा के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि तिब्बत को अलग राष्ट्र बना देना चाहिए ताकि चीन का सारा फोकस उधर चला जाए। चीन को सबक सिखाने के बारे में हम सरकार पर दबाव बनाएंगे।डा. तोगडिय़ा ने कहा कि राष्ट्रगान 'जन-गण-मनÓ तथा राष्ट्रगीत वंदे मातरम् दोनों का अपमान राष्ट्रद्रोह है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद देवबंद के उलेमाओं ने वंदे मातरम् पर फतवा जारी कर देशद्रोही होने का प्रमाण दिया है। देवबंद समुदाय इस तरह के फतवे से आतंकियों के हांैसले बुलंद कर रहा है। इसमें शामिल सभी उलेमाओं, मौलवियों को गिरफ्तार किया जाना चाहिए। अगर सरकार इन पर कार्रवाई नहीं करती तो हम जनता से आह्वान करेंगे कि वे ऐसे लोगों को देश से खदेड़ दें। डा. तोगडिय़ा ने कहा कि भारत में मुगलों का विरोध शिवाजी भोसले ने किया। दारूल उल देवबंद के उलेमाओं ने पाकिस्तान के ५०० मदरसों में आतंकियों को प्रशिक्षित कर तालिबान को जन्म दिया। कंधार हाईजेक में शामिल अजहर मसूद भी देवबंद से संबंधित है। भारत की भूमि पर ऐसे लोगों को एक दिन भी रहने का अधिकार नहीं है। हम सरकार पर दवाब बनाकर उलेमाओं के खिलाफ कार्रवाई की मांग करेंगे। एक सवाल के जवाब में डा. तोगडिय़ा ने कहा कि मैं गृह मंत्री पी. चिदंबरम का पक्ष नहीं लूंगा। जिस समय फतवा जारी हुआ उस समय वे वहां मौजूद नहीं थे।

रविवार, नवंबर 08, 2009

आधी सदी का निर्वासित जीवन



संजय स्वदेश


ठंड के मौसम में तिब्बती शरणार्थियों के गर्म कपड़ों से कौन परिचित नहीं होगा। हर साल सर्दी शुरू होते ही देश के प्रमुख शहरों में कई तिब्बती सपरिवार आते हैं। उनके रंग-बिरंगे फैशनेबल गर्म कपड़े नागपुर के लोग खूब पसंद करते हैं। गर्म कपड़ों के खरीदार शायद ही उनके आंखों में झांकते दर्द को पढऩे की कोशिश करते होंगे। पचास साल हो गए। तिब्बती लोग देश के विभिन्न क्षेत्रों में निर्वासित जीवन जीने को अभिशप्त हैं। हालांकि सरकार ने उन्हें गुजारा करने के लिए खेती की जमीन भी दी है। खेती से इतनी आय नहीं होती कि वे साल भर गुजारा कर सकें । लिहाजा, सर्दी शुरू होते ही वे विभिन्न शहरों में गर्म कपड़े बेचने निकल पड़ते हैं। 50 साल से खानाबदोश जीवन से तंग तिब्बती परिवार, नई पीढ़ी को इस पेशे नहीं जोडऩा चाहते हैं।


संतरानगरी नागपुर के मध्य में स्थित यशवंत स्टेडियम के समीप पटवर्धन मैदान में तिब्बती शरणार्थियों ने गर्म कपड़े की दुकानें सजा दी हैं। ये वर्षों से संतरानगरी में आ रहे हैं। बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि संतरानगरी के इन मेहमानों का जीवनयापन केवल गर्म कपड़ों के व्यवसाय से नहीं चलता है। यह उनका केवल तीन-से चार महीने का व्यवसाय है। बाकी समय तो वे खेती करते हैं। खेती में जी-तोड़ मोहनत के बाद भी उन्हें इतनी कमाई नहीं होती कि वे साल भर गुजारा कर सकें। मौसम ने बेरुखी दिखाई तो खेती से भारी नुकसान उठाना पड़ता है। तब इस नुकसान की भरपाई अक्सर सर्द मौसम में गर्म कपड़ों के व्यापार से होती है। मैसूर की डोलमा ने बताया कि वह 5 एकड़ जमीन में खेती करती हैं, पर खेती में लागत ज्यादा होने और मौसम की बेरुखी से जब अच्छी फसल नहीं होती तब आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। उन्हें इस पेशे में नहीं लाना है, क्योंकि यह बहुत तकलीफ वाला है। सर्द मौसम में सुबह जल्दी उठ कर घर का काम, फिर स्टॉल सजाओ, रात को घर वापस जाकर खाना बनाना-खाना। अपने लिए समय ही नहीं मिलता है। प्रेमा दसवीं की छात्रा है। उसके परिवार के लोग गोंदिया में चावल की खेती करते हैं। कहती है वह केवल दुकान में बैठती है। बारी-बारी से दुकान में बैठने से घर के दूसरे लोग आराम कर लेते हैं। हुबली की भी यही परेशानी है। कहती हंै कि जब खेती पर मौसम की मार पड़ती है, तो सर्दी में फैशनेबल गर्म कपड़ों का साथ मिलता है। नागपुर के लोग गर्म कपड़ों में भी फैशन और स्टाइल देखते हैं। इसलिए यहां फैशनेबल कपड़े ज्यादा लेकर आते हैं। तेंजिन कहती हैं कि गर्म कपड़ों का व्यवसाय कुछ महीने का है। कई सालों से इसी व्यवसाय से जुड़े हैं, इसलिए दूसरा बदलने की सोचते नहीं। तिब्बती शरणाथियों के संगठन के प्रमुख टी. नूरपुर ने बताया कि अल्पकालीन समय के लिए बने इस बाजार के लिए वे मनपा को चार लाख रुपये किराये के रूप में देते हैं। हर साल मनपा की ओर से ही इस बाजार की व्यवस्था की जाती है। यहां करीब 60 परिवारों के स्टॉल हैं। हर परिवार के नन्हे-मुन्ने इसी बाजार में खेलते हैं। श्री नूरपूर ने बताया कि उनके गर्म कपड़े दिल्ली और पंजाब से आते हैं। कई दुकानदार बैंक से ऋण लेकर स्टॉल सजाते हैं। विश्वसनीयता के आधार पर व्यापारी कपड़े भी उधार देते हैं। नवंबर से जनवरी तक नागपुर में रहते हैं। इस बीच व्यापारी अपनी उधार वसूली के लिए आते हैं। पिछले साल ठंड ज्यादा होने से कपड़े जल्दी बिक गये थे। फिलहाल अभी ठंड नहीं होने से बिक्री सामान्य है। कई दुकानदारों के पास ऋण चुकाने भर की पर्याप्त कमाई नहीं होती तो उनकी चिंता बढ़ जाती है। खेती में उपज और सर्दी कम होने से कई परिवार कर्ज के बोझ से दब जाते हैं।

पढ़ाई पूरी करने के शर्त पर बच्चों को रोजगार



संजय स्वदेश


नागपुर के विभिन्न चौक-चौराहों पर गुजरते वक्त दीवारों पर कामगार मुले पाहिजे और उसके नीचे दो मोबइल नंबर लिखा नजर आता है। इस विज्ञापन को गौर से पढऩे वाले शायद सोचते हो कि बच्चे सस्ते मजदूर होते हैं, इसलिए उनके ही रोजगार के लिए यह विज्ञापन होगा। पर इस विज्ञापन को को पढ़कर इसके पीछे के सामाजिक उद्देश्य के बारे में कोई नहीं जानता है। आमतौर पर पढ़ कर लोग यही समझते हैं कि इस माध्यम से बच्चों को काम दिया जाता होगा। पर हकीकत कुछ और है। इश्तहार देने वाले सुजाता नगर के बुद्धरक्षित बन्सोड हैं।



श्री बन्सोड पढऩे-लिखने की उम्र में मजदूरी करने वाले बच्चों के लिए रोजगार के साथ-साथ शिक्षा की राह आसान करने का बीड़ा उठाये हुए हैं। गत एक वर्ष से वे अब तक दर्जनों बच्चों को शिक्षा की राह दिखा चुके हैं।श्री बन्सोड का कहना है कि हर दिन उनके पास पांच-छह बच्चों को फोन आता है। फोन करने वाले बच्चों को वे घर बुलाते हैं। उनकी हर स्थिति अच्छी तरह से समझते हैं। यदि बच्चो की उम्र 14 साल से ऊपर होती है, तो उसे इस शर्त पर कार आदि की साफ-सफाई का काम देते हैं कि वह अपनी पढ़ाई पूरी करेगा। यदि लड़के की उम्र 14 साल से कम होती है, तो उसे समझाते हैं और उसे नगर के नि:शुल्क छात्रावास में दाखिला दिलाते हैं। इसके लिए कुछ आर्थिक सहयोग भी देते हैं। स्वयं ट्यूशन पढ़ाते हैं। यदि किसी कारणवश उस समय छात्रावास में दाखिले का समय निकल चुका होता है, तो उसके माता-पिता से मिल कर इस बात के लिए सहमत करते हैं कि बच्चों को पढ़ायें और निश्चित समय पर छात्रावास में दाखिला दिलायें, जहां उन्हें नि:शुल्क शिक्षा मिलेगी।स्टेशन पर भाग कर आए बच्चों की तलाश बुद्धरक्षित सुबह 4 बजे स्टेशन पर बाहर से भाग कर आने वाले बच्चों की तलाश में जाते हैं। यदि किसी दिन ऐसा लड़का मिल जाता है, तो उससे बातचीत कर दोस्ती करते हैं। उसे काम के साथ-साथ पढ़ाई कराने के लिए सहमत कर अपने घर लाते हैं। फिर उसके साथ घर जाकर बच्चों के माता-पिता से मिलते हैं और उन्हें काम कराने के बजाये पढ़ाने के लिए सहमत करते हैं।कहां से मिली प्रेरणा?बुद्धरक्षित 12 भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं। उम्र 32 साल की है। बचपन में ही गंदे नाले और गलियों में प्लास्टिक और हड्डियां चुनते थे। उसे बेचने से जो पैसा मिलता था, उससे पेट भरते। एक बार घर से भाग कर मुंबई गए तो वहां गलत लोगों के चंगुल में फंस गए। लेकिन मां की याद ने वापस नागपुर आने के लिए विवश कर दिया। नागपुर वापस आए तो बहुजय हिताय संस्था से संपर्क हुआ। यहां से मजदूरी के साथ-साथ पढ़ाई की प्रेरणा मिली। स्नातक पूरी करने के बाद समाज सेवा में स्नातकोत्तर किया। फिलहाल डॉ. भीमराव अंबेडकर कॉलेज से कानून की पढ़ाई कर रहे हैं।
जेल में बंद मासूमों को देनी है नई जिंदगीबुद्धरक्षित का कहना हैकि कानून की पढ़ाई करने का मकसद उन बच्चों को एक नई जिंदगी देना है जो बचपन में छोटे-मोटे अपराध के कारण जेल में हैं। भागे हुए बच्चों को पढ़ाने के उद्देश्य से कई लोग आर्थिक मदद देते हैं। 14 साल से अधिक उम्र के जो बच्चो हमारी टीम में होते हैं। वे पढ़ाई के साथ-साथ सप्ताह में एक या दो बार कार धोते हैं। इसके एवज में उन्हें 1000-1200 रुपया मासिक पारिश्रमिक मिल जाता है।क्या कहते हैं लोग?लीक से हटकर काम करने वाले दूसरे लोगों की तरह बुद्धरक्षित को भी लोग पागल समझते हैं। घर वालों के विरोध के चलते अलग से किराये के मकान में रहते हैं। कहते हैं कि जब वे गंदी बस्तियों में बच्चों के माता-पिता को पढ़ाने के लिए समझाने जाते हैं, तो लोग हंसते हैं। लेकिन बुद्धरक्षित को इन सबकी चिंता नहीं। उनका काम तो बस अपने काम में लगे रहना है। उन्होंने बताया कि अब उन्होंने इसके साथ नया काम और शुरू किया है। बस्ती में निर्धन और बेसहारा लोग जब बीमार पड़ते हैं तो उनके इलाज के लिए वे सरकारी अस्पताल ले जाते हैं और मदद करते हैं।