मंगलवार, दिसंबर 29, 2009

नदी को नाला कह जिम्मेदारियों से बच जाती हैं हर सरकार

नागपुर। मानव ने जल को जीविका का साधन मान लिया, इसी कारण उसके सामने जल का गंभीर संकट उत्पन्न हो रहा है। यदि जल को जीवन माना गया होता तो इसे पोषण मिलता है। अब जल संकट से निपटने के लिए जल साक्षरता चलाने की जरूरत है। यह कहना है प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह का। वे अमरावती रोड स्थित विनोबा भावे केंद्र में जल बिरादरी की आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। श्री सिंह ने कहा कि नागपुर की नाग नदी पूरी तरह से नाला बन चुकी है।
राज्य के जिम्मेदार मंत्री भी इसे नदी कहने की भूल नहीं करते हैं। वे दृढ़ शब्दों में कहते हैं कि नाग नाला अब कभी नदी नहीं बन सकती है। उन्होंने कहा कि किसी भी नदी को नाला कह कर हर राज्य की सरकार अपनी जिम्मेदारियों से बच जाती है। क्योंकि सरकार जानती है कि किसी भी नदी के जमीन को कानून नहीं बदल सकता है। उन्होंने कहा कि नदी संस्कृति का अंक है। जैसे ही संस्कृति पर संभ्यता हावी होती है, नदी नाला बन जाती है। नदी के नाला होने से सरकार समेत स्थानीय निकाय की जिम्मेदारियां कम हो जाती हैं। जो शहर अपने आप को विकसित कहते हैं, उनका पैमाना यह है वे अपने यहां के बहने वाली नदी को नाला बना लेते हैं। दिल्ली युमना नदी को नाला बना कर राजनीतिक राजनधानी होने का गर्व करती है। मुंबई की भी नदी है, पर आर्थिक राजधानी होने का गर्व है। इसी तरह बराणसी में नदी नाला बन रही है और शहर सांस्कृति राजधानी होने का गर्व कर रहा है। उन्होंने कहा कि वह नदी भाग्यशाली है जिसके नाले के बदलने स्वरूप को रोकने के लिए लोग संकल्प कर रहे हैं। आज भी देश में ईमानदार लोग सक्रिय है। ऐसी लोगों के संघर्ष का ही परिणाम है कि विदर्भ में अदानी परियोजना को रद्द करना पड़ा।
श्री सिंह ने कहा कि शहरों में गांव के लोग मजबूरी में पलायन कर रहे हैं। इसे रोकना बेहद जरूरी है। मजबूरी में शहर आए ग्रामीण बेवश होकर बदहाल जिंदगी जी रहा है। मजबूरी में कच्ची और मलीन बस्तियां बन रही हैं। ज्यादा कमाने के बाद भी वह खुश नहीं है। सरकार को इन ग्रामीणों की मजबूरी समझना चाहिए। उसे रोजगार के लिए गांव में ही विकल्प उपलब्ध कराना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस समय हिंदुस्तान में संस्कृति ओर संभ्यता का संघर्ष हो रहा है। शहरों में सभ्यता हावी है। यह गांवों में भी प्रसारित हो रही है। संस्कृति पंचतत्वों से बनी है। इसलिए संस्कृति में आत्मा है। संभ्यता की प्रवृति ठीक नहीं है। यह शोषण से विकसित हुआ है। इसमें कोई आत्मा नहीं है। इसलिए संस्कृति और संभ्यता के अंतर को समझना बेहद जरूरी है। श्रोताओं से बातचीत के दौरान राजेन्द्र सिंह ने कहा कि आकर््िटेक इंजीनियरों को जन संरक्ष्ण के लिए आगे आना चाहिए। हर नये बनने वाले मकान व भवन में प्रकृति जल के संरक्षण के उपाय करना चाहिए। मनपा के आयुक्त असीम गुप्त कार्यशाला का उद्घाटन करने वाले थे। लेकिन वे उपस्थित नहीं हो सके। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ पर्यावरण विशेषज्ञ रमेश लाडखेडकर ने किया। प्रस्ताविक भाषण जल बिरादरी के विदर्भ समन्वयक श्याम पांढरी पांडे ने दिया। जल बिरादरी के नागपुर समन्वयक स्वानंद सोनी ने अतिथियों का स्वागत किया।
भारत को बार्बाद चीन का हाईड्रोजन परियोजना
एक सवाल के जवाब में राजेंद्र सिंह ने बताया कि ब्रह्मपुत्र नदी के उपर चीन अपनी सीमा में चांग नदी के पानी से हाइड्रोजन बम बनाने की परियोजना शुरू करने वाला है। अभी परियोजना आरंभिक चरण में है। अभी वहां डैम बनाने के लिए स्थानीय निवासियों को हटाया गया है। भारत सरकार इस परियोजन पर यह कहकर विरोध नहीं कर रही है कि परियोजना चीन अपनी सीमा के अंदर शुरू कर रहा है। जबकि हकीकत यह है कि इसका पूरा नुकसान केवल भारत का है। वह बाढ़ के जरिये भारत को परेशान कर सकता है। यह स्थिति वैसे ही है जैसे कोई अपने घर के दिवाल के पास कोई बम चलाने के लिए पलीते में आग लगा दिया हो। ऐसी स्थिति में यह कह कर अपनी जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ सकते हैं कि यह काम घर की सीमा से बाहर हो रहा है।
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