रविवार, दिसंबर 20, 2009

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में धरने पर बैठे है दलित छात्र

राष्ट्रपति महात्मा गांधी के नाम पर यहां स्थापित अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में दलित छात्रों के साथ कथित रूप से भेदभाव बरते जाने की शिकायतों को लेकर एक आंदोलन शुरू हो गया है। छात्रों का अरोप है कि योग्यता के बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन ने पीएचडी पाठयक्रम में प्रवेश देने से इनकार कर दिया है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक आंबेडकर स्टुडेंट फोरम के बैनर तले आंदोलनकारी विद्यार्थी छात्रगण विश्वविद्यालय परिसर में पिछले 12 दिन से अनशन पर बैठे हैं। उन्हें विश्वविद्यालय के गैरदलित छात्रों और विदर्भ क्षेत्र के अन्य दलित संगठनों का भी समर्थन प्राप्त है। आंदोलन के दौरान अनशन पर बैठे राहुल कांबले को जब स्वाथ्य बिगडऩे लगा तो उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया। फिर उसकी जगह दूसरी छात्र ओम प्रकाश बैरागी अनशन पर बैठ गए। बैरागी को भी जब उनके खराब स्वास्थ्य के कारण अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा तो क्रमिक अनशन शुरू हो गया जिसमें 20 से भी अधिक छात्रों ने शिरकत की। छात्रों का कहना है कि इस आंदोलन के बारे में विश्वविद्यालय प्रशासन को पूरी जानकारी है। इसके बाद भी उनकी समस्या के हल के लिए कोई ठोस पहल नहीं हो रहा है। इसके बार में विश्वविद्यालय प्रशासन ने आधिकारिक रूप से टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष सुखदेव थोरात गत 9 दिसंबर को विश्वविद्यालय के द्वितीय दीक्षांत समारोह में भाग लेने यहां आए थे, तब उन्होंने अनशन स्थल पर जाकर आंदोलनरत छात्रों से जाकर बातचीत की थी। पर उनके चले जाने के बाद स्थिति जस की तस बनी हुई है। केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति प्रख्यात हिंदी समालोचक नामवर सिंह तथा कुलपति, चर्चित हिंदी साहित्यकार एवं भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी रहे विभूति नारायण राय हैं। आंबेडकर स्टुडेंट फोरम की केन्द्रीय समिति के सदस्य देवानन्द कुम्हारे का कहना है कि कुलपति छात्र समस्या का निवारण करने के बजाए वर्धा से बाहर चले गए हैं। विश्वविद्यालय के अन्य अधिकारी अनशन के बारे में कुछ बातचीत करने से हिचकते हैं।
राहुल कांबले को इसी विश्वविद्यालय में अनुवाद और निर्वचन विद्यापीठ के एमफिल पाठ्यक्रम में स्वर्ण पदक मिला था। उन्होंने सूचना के अधिकार का इस्तेमाल कर जब यह जानना चाहा के उन्हें प्रवेश क्यों नहीं दिया गया तो विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से जवाब मिला कि वह प्रवेश परीक्षा में तीसरे स्थान पर आए थे, लेकिन विभाग ने इस वर्ष दो ही सीटों पर नामांकन करने का निर्णय किया है।
प्रवेश परीक्षा में दूसरे स्थान पर आयी एक छात्रा ने जब प्रवेश नहीं लिया तो कांबले ने उनकी जगह नामांकन दिए जाने की मांग की लेकिन विभाग इसके लिए तैयार नहीं हुआ। विश्वविद्यालय प्रशासन काम्बले के सूचना के अधिकार का उपयोग करने की बात के कारण उनसे खफा है। छात्रों का अरोप है कि विश्वविद्यालय प्रशासन के अधिकतर अधिकारी दलित विरोधी हैं और उसने आम्बेडकर परिनिर्वाण दिवस के अवसर पर गत 6 दिसम्बर को यहां दलित छात्रों द्वारा निकाले मोमबत्ती मार्च में शामिल एक प्रोफेसर, कारूण्यकारा तक को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया। उसी दिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक कविता पाठ का आयोजन किया था जिसमें वह प्रोफेसर नहीं गए थे।
पिछले वर्ष भी विश्वविद्यालय में नामांकन से वंचित कुछ दलित छात्रों ने आन्दोलन किया था। बाद में दलित संगठनों आदि के हस्तक्षेप के बाद आरक्षण अधिनियम के तहत उन्हें नामांकन दिए जाने के बाद आन्दोलन समाप्त हो सका था।
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