गुरुवार, जनवरी 28, 2010

बुलंदियों पर रहा विदर्भ, महाराष्ट्र ने बरबाद किया

नाग-विदर्भ चेंबर ऑफ कॉमर्स में परिचर्चा
नागपुर ।
नाग-विदर्भ चेंबर ऑफ कॉमर्स में आयोजित 'विदर्भ की बुलंदियां व पतनÓ परिचर्चा में वक्ताओं का मानना था कि विदर्भ की धरोहर और आर्थिक स्थिति प्राचीन काल में अपनी बुलंदियों पर थी। विदर्भ के पतन पर दु:ख व्यक्त करते हुए वक्ताओं ने कहा कि सन 1956 में मुंबई राज्य तथा 1960 में महाराष्ट्र में इसका विलय हो जाने के बाद विदर्भ क्षेत्र की पूर्ण रूप से उपेक्षा की गई।
गोंडकाल से आजादी तक बलवानों का राज
विदर्भ के इतिहास का जिक्र करते हुए वक्ताओं ने कहा कि गोंड राजा के काल से देश की आजादी तक यहां बलवान लोगों का राज रहा। पशु पालन, खेती एवं व्यापार भरपूर था। धार्मिक ग्रंथो में बहुत सी जगह विदर्भ का उल्लेख हुआ है। रुक्मिणी की कृष्णजी से विवाह, महाभारत में कुंतिपुर का उल्लेख नल-दमयंति की कहानी, रामायण में जनपदास के रूप में विदर्भ का उल्लेख तथा कालिदास की कविता 'मेघदूतम्Ó में यक्ष गंधर्व के संदर्भ में विदर्भ का उल्लेख यह बताता है कि यह कितनी प्राचीन संस्कृति का प्रतीक है तथा धार्मिक और बुद्धिजीवियों का केंद्र रहा है।
अंग्रेजों के समय भी व्यवसाय बढ़ा
अंग्रेजों के काल में भी यहां के व्यवसाय का खूब विस्तार हुआ। यहां की टीक, सागवन लकड़ी विश्वप्रसिद्ध हुई। जंगलों से लाख का, मैग्नीज आदि का बहुत बड़े रूप में निर्यात हुआ। यहां के कपड़ा मिलों ने सूती कपड़ा क्षेत्र में पूरे देश में अपना नाम कमाया। यहां का वातावरण, लोगों की मेहनत और बुद्धिमत्ता को देखते हुए अंग्रेजों ने भी इसे अपना एक बड़ा प्रशासनिक क्षेत्र बनाया। भौगोलिक रूप से विदर्भ हिंदुस्तान का मध्य क्षेत्र है। यहां के लोग मेहनती व शांत स्वभाव के हैं। यहा का वातावरण एवं ऋतुएं सभी के लिए सहयोगी हैं। यहां का स्थल, रोड, रेल व हवाईं मार्गों से सभी राज्यों से जुड़ा है। यहां पर सभी गांवों में बड़े-बड़े तालाब थे। उच्च किस्म की पशु-संपदा थी। शिक्षा, चिकित्सा, व्यवसाय, वन संपदा तथा खनिज से परिपूर्ण यह क्षेत्र अपने स्थान से 800 कि.मी.क्षेत्र के दायरे में सबसे विकसित क्षेत्र था और यहां के वासियों को इस पर गर्व था। इतनी बुलंदियों पर रहने वाले विदर्भ की गाथा सभी वक्ताओं ने रखी।
महाराष्ट्र में विलय के बाद हुई उपेक्षा
विदर्भ के पतन पर दु:ख व्यक्त करते हुए वक्ताओं ने कहा कि सन 1956 में मुंबई राज्य तथा 1960 में महाराष्ट्र में इसका विलय हो जाने के बाद विदर्भ क्षेत्र की पूर्ण रूप से उपेक्षा की गई। इसका कुछ कारण राज्य सरकार की अनदेखी तथा महाराष्ट्र के अन्य राज्यों से विदर्भ की संस्कृति में फर्क भी महत्वपूर्ण है। वक्ताओं ने कहा कि समय पर विदर्भ के हित में निर्णय नही लेना यहां का बढ़ता हुआ पिछड़ापन यह दर्शाता है कि राज्य सरकार ने यहां पैसा देना तो दूर यहां का पैसा महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों के विकास के लिए किया। कोई न कोई बहाना लेकर यहा की परियोजनाओं को पूर्ण होने नहीं दिया। यहां के विकास को आकड़ों की हेराफेरी में कागजों पर रखा गया। सिंचन के अभाव में यहां का कृषि क्षेत्र खत्म हो गया और किसानों ने आत्महत्या की। मुंबई, पुणे के कारखानों को प्रोत्साहन देकर मुुंबई और उसके आसपास रखा गया। बाहर के लोग आकर वहां बसे मगर विदर्भ में बेरोजगारी हो गई। सारे प्रशासनिक अधिकार मुंबई में केंद्रित रखकर अपना काम कराने के लिए विदर्भ के लोगों की चप्पलें घिस गईं। विदर्भ के हक छीनने वाले लोग जब कभी विदर्भ राज्य की थोड़ी बहुत भी कुछ होने की उम्मीद जगती है तो ये लोग उसमेें अड़ंगा लगाते है और ऐसा जताने की कोशिश करते हैं कि विदर्भवासियों पर अहसान हो रहा है। वक्ताओं का यही निश्कर्ष था कि यदि विदर्भवासी खुशहाली चाहते हैं और आने वाली पीढ़ी को सुनहरा विदर्भ देना चाहते हैं तो उन्हें महाराष्ट्र से विदर्भ को अलग करना ही होगा। जरूरत पड़े तो इसके लिए आंदोलन को और तीव्र करना होगा।
इस अवसर पर हेमंत खुंगर, अध्यक्ष, सुनहरा स्वतंत्र विदर्भ समिति के संयोजक बी.सी. भरतिया, प्रकाश मेहाडिया, महामंत्री मयूर पंचमतिया, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, अजयकुमार मदान, कोषाध्यक्ष हेमंत रविंद्रकुमार गुप्ता, शब्बर शकीर, प्रकाश जैस, सतीश गायकवाड, राजेश वाधवानी, गजानंद गुप्ता, लालचंद गुप्ता आदि प्रमुखता से उपस्थित थे। ऐसी जानकारी चेंबर के मानद सचिव व समिति के महामंत्री प्रकाश मेहाडिया ने दी।

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