गुरुवार, जनवरी 14, 2010

कुंभ के मेले के हाईटेक साधु


बिपेन्द्र कुमार सिंह
एक जमाना था, जब लोग अनेक उपलब्धियां हासिल करने के बाद भी सादगी की मिसाल पेश करते थे। पर अब जमाना बदल चुका है। समाज का हर व्यक्ति आधुनिक तकनीकी सुविधाओं से लैस नजर आ रहा है। फिर भला इससे साधु-संत अछूते कैसे रहें? हरिद्वार के इस महाकुंभ में बाबाओंं के बाजार के सच्चे और सादगी पसंद संतों को पहचानना मुश्किल हो जाएगा। साधु-संतों के लिए प्रयोग किये जाने वाले शब्द त्याग और तपस्या काफी पीछे छूट गए हैं और उन पर आधुनिक यंत्रों और धर्म का बाजार हावी हो गया। नतीजतन बाबा अपने कार्यक्रमों के लिए विशेष रूप से कंसेप्ट, स्क्रिप्ट, शूटिंग, लैपटॉप आदि से विशेष रूप से अपनी वेशभूषा का चयन करने लगे हैं। नवोदित बाबाओं, संतों की बात करें तो उनके लिए कुछ ज्यादा ही इंतजाम करना पड़ रहा है। हरिद्वार के इस महाकुंभ में बाबाओं-संतों को जानने-मिलने, उनका आशीर्वाद प्राप्त कर अपने जीवन को सही दिशा देने के लिए पहले राजनीतिक लोगों से लेकर बड़े धनाढ्य जिज्ञासु अभी से ही बाबाओं का इंतजार कर आशीर्वाद पाने के लिए तत्पर हैं। सत्य तो यह है कि हरिद्वार की पावन भूमि अभी तमाम दिव्य, सिद्ध संतों से भरी रहेगी। दिखावे और बाजारवाद से दूर आप की साधना में लीन रहेंगे। ढोंगी और पाखंडी इस दौड़ में अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए कोई अपने को ईश्वर का अवतार तो कोई उनका वेष धारण कर लोगों की अपनी ओर आकर्षित करने में लगे रहेंगे। कुछ तो खुद को ही ईश्वर घोषित किये हुए मिलेंगे जिसे जानने और मानने-पूजने वाली की भी संख्या कम नहीं रहेगी। हरिद्वार के इस महाकुंभ में महिला संतों ने भी दबे पांव की सही लेकिन अपना कब्जा जमाना शुरू कर दिया है। जो महिलाएं कभी पुरुष संतों के पंडाल में प्रवचन सुनने के लिए जाकर बाबा के भक्तों की संख्या बढ़ाने का कार्य करती थीं। वही आज पंडाल के व्यासपीठ पर लोगों की प्रवचन देती नजर आएंगी। कुछ अपनी महिमा का बखान करने के लिए स्वेच्छा से महिला संतों की परिपाटी को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। अन्य पीठों या मतों से जुड़ी महिला उनके सामने चुनौती बनकर सामने आए, इससे बेहतर उन्हें यही लगा कि उनके आश्रम से ही कोई महिला संत समाज में जाए और लोगों को उनकी महिमा बनाते हुए उनका बाजार बढ़ाने में मदद करे।
ये सभी साधु-संत अपने मठ में या गुरुकुल में नहीं रहते बल्कि उनके आधुनिक आश्रम होते हैं। वे महंगी गाडिय़ों में सफर करते हैं। विश्वगुरु और देवभूमि माने जाने वाले भारत के इस हरिद्वार कुंभ में उन साधु-संतों और बाबाओं का बोलबाला है जो आलिशान रिसोर्टनुमा आश्रमों में रहते हैं। इनका विश्वास साधना में कम, संसाधनों में ज्यादा रहता है। ये प्रवचन कम पाखंड ज्यादा करते हैं। जिन्हें कभी अपने प्रचार से परहेज था, वो पूरी तरह आधुनिक यंत्र-तंत्र से लैस हैं। अब देखना यह होगा कि इस महाकुंभ मेें धर्म के नाम पर फरेब करने वाले अपनी दुकान किस तरह सजाते और चलाते हैं।

2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

हम तो उज्जैन में रहते हैं सो तीन सिंहस्थ (कुम्भ) में इन कथित साधुओं की विलासिता को नजदीक से देख चुके हैं… कुछ कहना बेकार है, क्योंकि इनके भक्त ऐसे अंधे हैं कि उन्हें समझाना असम्भव है…। आसाराम बापू का उदाहरण ही ले ली्जिये… जो चल रहा है चलने दो… आप भी कुम्भ के मजे लो, बाबाओं के धन-वैभव का नंगा प्रदर्शन देखो, इनके डेरों में शुद्ध घी की पूड़ियां खाओ और खुश रहो… :)

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

बाबा लोग जानते हैं इस युग का सफलता मंत्र अच्छी मार्केटिंग ही है।
ये शब्द पुष्टिकरण हटाएँ।