शुक्रवार, जनवरी 22, 2010

भिखारियों की आमदनी आम आदमी से ज्यादा


संजय
नागपुर।
आप माने या न माने, नगर में भीख मांगने वाले कई भिखारी ऐसे हैं जिनकी आमदनी आम आदमी की आमदनी से कई गुना ज्यादा है। इतना ही नहीं इनमें भीख से मिलने वाले धन का लालच इतना है कि यदि इन्हें भीख मांगने की शर्त पर पुनर्वास की व्यवस्था की जाए, तो भी इन्हें संतोष नहीं होगा। इन दिनों नगर में ताजबाग में ताजुद्दीन बाबा का उर्स का माहौल है। उर्स में शामिल होने के लिए देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आ रहे हैं। लिहाजा, ताजबाग परिसर में एकाएक भिखारियों की संख्या तेजी से बढ़ गई है।
दिल खोलकर भीख देते हैं श्रद्धालु
ताजुद्दीन बाबा के मजार पर आने वाले श्रद्धालु जी खोलकर भिखारियों को भीख दे रहे हैं। कई लोग ऐसे है जो 50 से 100 रुपये भी भीख दे रहे हैं। उर्स के दौरान यहां एक भिखारी की औसतन आय 500 रुपये से भी ज्यादा है। उर्स के दौरान ताजबाग परिसर में करीब 300 भिखारियों का जमावाड़ा है। यदि औसतन एक भिखारी को प्रतिदिन 500 रुपये भी भीख में मिलती है तो प्रतिदिन यहां 1,50,000 हजार रुपये भीख में जा रहे हैं। एक महीने के उर्स में करीब 4 से 5 लाख रुपये इन भिखारियों के जेब में गए। शारीरिक रूप से पूरी तरह से विकलांग कई भिखारियों की आमदनी प्रतिदिन हजार रुपये को भी पार कर रही है। जिन भिखारियों के हाथ-पांव नहीं हैं, उनकी आय ज्यादा है। इसके प्रति लोगों के दिल में दया की भावना उमड़ती है और वे कम विकलांग भिखारियों की अपेक्षा हाथ-पांव रहित भिखारियों को भीख देना पसंद करते हैं।
रिक्शा चालक बना भिखारी
ताजबाग परिसर में कई भिखारी ऐसे हैं जो शारीरिक रूप से सलामत हैं। बातचीत में इसमें से एक भिखारी ने बताया कि वह आम दिनों में रिक्शा चलाता है। काफी मेहनत के बाद भी दो सौ रुपये की भी जुगत नहीं हो पाती है, लेकिन जब यहां उर्स शुरू होता है, तब थोड़ी बदहाली दिखाकर हर दिन तीन से चार सौ रुपये की आमदनी हो जाती है। इन दिनों ताजुद्दीन बाबा परिसर में भीख मांगने वाले करीब 70 फीसदी भिखारी नागपुर से बाहर के हैं। यहां मिठाई बेचने वाले नुरूल हक ने बताया कि यहां हमेशा ही भिखारियों का जमवड़ा रहता है लेकिन उर्स शुरू होते ही नगर के बाहर के भिखारी यहां आ जाते हैं। उर्स खत्म होते ही रातोंरात भिखारी कहां और कैसे गायब हो जाते हैं, किसी को पता तक नहीं चलता। नुरूल ने बताया कि पूरी तरह अपंग अपाहिज भिखारी जो चल नहीं सकते, स्वयं खा नहीं सकते, वे भी उर्स शुरू होने वाले दिन ही अचानक आते हैं और उर्स खत्म होते ही एकाएक गायब हो जाते हैं।

संगठित गिरोह है सक्रिय
जानकारों को कहना है कि इस भिखारियों का एक संगठित गिरोह योजनाबद्ध तरीके से इन भिखारियों को उन जगहों पर लाता और ले जाता है, जहां समय-समय पर भीड़ उमड़ती है। विशेषकर मंदिर और पूजा-पाठ वाले स्थलों पर विभिन्न मौके पर आयोजित होने वाले धार्मिक आयोजनों पर लाने, ले जाने की पूरी व्यवस्था यह गिरोह करता है। हर दिन भिखारियों से होने वाली आय में से एक बड़ी रकम स्वयं रखते हैं। भिखारियों को रहने और उनके मनपसंद खाने की व्यवस्था के साथ ही शराब आदि की व्यवस्था करते हैं। इसके साथ ही इन भिखारियों में एक भिखारी मुखिया होता है।
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1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

इसके पीछे संगठित गिरोह का हाथ होता है..इस बारे में सुना था. आज आप भी बता रहे हैं. हम्म!!