शुक्रवार, जनवरी 29, 2010

बाबा बनकर 'गुमनाम' हुए नेताजी?

बाबा बनकर 'गुमनाम' हुए नेताजी?
29 Jan 2010, 1513 hrs
नवभारतटाइम्स.कॉम
नई दिल्ली ।।
आजाद भारत का सबसे बड़ा रहस्य एक बार फिर चर्चा में है। मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक न
ेताजी सुभाष चंद्र बोस पर बनी एक डॉक्युमेंट्री ने इस मुद्दे को फिर जीवित कर दिया है। गौरतलब है कि चार साल पहले नेताजी की मृत्यु की जांच पर बने मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को सरकार ने रद्दी की टोकरी में डाल दिया था।
कमिशन के अध्यक्ष, जस्टिस मनोज मुखर्जी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि दावों के उलट नेताजी की मृत्यु 1945 में प्लेन हादसे में नहीं हुई थी। मुखर्जी ने डॉक्युमेंट्री बनाने वाले फिल्ममेकर अमलनकुसुम घोष को बताया है कि मुझे अब 'पूरा विश्वास' है कि उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में रहने वाले गुमनामी बाबा के भेस में वह नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही थे।
हालांकि अपनी रिपोर्ट में मुखर्जी ने गुमनामी बाबा के बोस होने की संभावना को नकार दिया था अलबत्ता उन्होंने यह कहा था कि नेताजी की मृत्यु प्लेन क्रैश में नहीं हुई थी।
मीडिया में आई खबर के मुताबिक, जस्टिस मुखर्जी का यह बयान 'ब्लैक बॉक्स ऑफ हिस्ट्री' नाम की डॉक्युमेंट्री का हिस्सा है जो 18 फरवरी को कोलकाता में दिखाई जाएगी। पता चला है कि मुखर्जी ने दावा किया है कि उन्होंने ये बातें 'ऑफ द रेकॉर्ड' कही थीं और घोष ने उनकी आपसी बातचीत का इस्तेमाल किया है जो कानूनन और नैतिकता के नजरिए से गलत है।
बताया जा रहा है कि डॉक्युमेंट्री में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मुखर्जी 1985 में मरे गुमनामी बाबा से मिले कागजात की जांच की बात करते हुए कहते हैं, 'निजी तौर पर मैं महसूस करता हूं (मेरा नाम न लें) और मुझे 100 फीसदी विश्वास है कि वह (गुमनामी बाबा) ही नेताजी थे।'
उधर, फिल्ममेकर घोष ने मुखर्जी के इस बयान को डॉक्युमेंट्री में इस्तेमाल करने को सही ठहराया है। वह कहते हैं कि, जस्टिस मुखर्जी ने जो कुछ मुझे बताया उसका राष्ट्रीय महत्व है। इसे दो लोगों की आपसी बातचीत नहीं कह सकते। घोष नहीं मानते कि जो उन्होंने किया वह अनैतिक है। बल्कि घोष कहते हैं कि जस्टिस मुखर्जी जैसे व्यक्ति को इतनी अहम बात जनता से छिपानी नहीं चाहिए थी क्योंकि लोगों को नेताजी के बारे में सच जानने का अधिकार है। घोष ने नेताजी और गुमनामी बाबा से जु़ड़े कई लोगों से बातचीत की। घोष का दावा है कि नेपाल के रास्ते नेताजी साधु के भेस में उत्तर प्रदेश पहुंचे और 1983 से फैजाबाद के राम भवन में रहने लगे।
जिन लोगों से बातचीत की गई उनमें हैंडराइटिंग एक्सपर्ट और नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ क्रिमिनॉलजी के पूर्व अडिशनल डायरेक्टर डॉ. बी. लाल भी शामिल हैं। लाल का कहना है कि गुमनामी बाबा और नेताजी की राइटिंग 'बिल्कुल एक जैसी' थी। गुमनामी बाबा के निजी चिकित्सक डॉ. आर. के. मिश्रा और पी. बंदोपाध्याय के मुताबिक गुमनामी बाबा के पास भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े कागजात और बोस परिवार की तस्वीरों से भरे 40 बक्से थे। यह कागजात और तस्वीरें नेताजी के अलावा किसी और के पास नहीं हो सकते थे।

2 टिप्‍पणियां:

L.R.Gandhi ने कहा…

सत्ता हस्तांतरण की यह एक शार्ट थी कि अगर सुभाष बाबु भारत सरकार के हाथ १९९९ तक आयें तो उन्हें 'ब्रिटेन का युद्ध अपराधी 'करार देते हुए ,ब्रिटेन को सौंप दिया जाएगा -इस विषय में इंग्लैण्ड के प्रधान मंत्री क्लीमेंट एटली ने संसद को सूचित भी किया था।

L.R.Gandhi ने कहा…

सत्ता हस्तांतरण की यह एक शार्ट थी कि अगर सुभाष बाबु भारत सरकार के हाथ १९९९ तक आयें तो उन्हें 'ब्रिटेन का युद्ध अपराधी 'करार देते हुए ,ब्रिटेन को सौंप दिया जाएगा -इस विषय में इंग्लैण्ड के प्रधान मंत्री क्लीमेंट एटली ने संसद को सूचित भी किया था।