शनिवार, जनवरी 09, 2010

विदर्भ के लिए लोहा गर्म है, हर कोई मारना चाहता है हथौड़ा


20 को विदर्भ स्तर पर हड़ताल
आंदोलन का झंडा विदर्भ राज्य संग्राम समिति के हाथ में
संजय स्वदेश
नागपुर। तेलंगाना आंदोलन ने पृथक विदर्भ आंदोलन को संजीवनी दे दी है। इसका शोर गत माह नागपुर में बीत शीत्रसत्र जोर पकडऩे लगा। 6 जनवरी को नागपुर में आयोजित कांग्रेस की एक सभा में कई कांग्रेसी नेताओं ने ही पृथक विदर्भ की मांग के लिए मुख्यमंत्री पर विदर्भ में विकास के प्रति भेदभाव का अरोप लगाया। पृथक विदर्भ के पक्ष नकारात्मक बातें करने वाले मुख्यमंत्री पूरी तरह से विदर्भ समर्थकों से घीरे दिखे। इस कार्यक्रम से पूर्व इसी दिन नागपुर में उद्यागपतियों की एक सभा में विदर्भवादी नेता जामुवंतराव धोते के नेतृत्व में हंगामा हुआ। मुख्यमंत्री पहले इन नेताओं से मिले तब बैठक शुरू हुई।
विदर्भ क्रांति की भड़कती ज्वाला को भांपते हुए आखिर मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण और राज्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मणिकराव ठाकरे ने मंच से यह घोषणा कर ही दी कि पार्टी इसके वे अलाकमान से बात करेंगे। विदर्भ समर्थकों ने भी तब तक आंदोलन जारी रखने की बात की।
7 जनवरी को राष्ट्रपति अमरावती में थी। यहां एक कार्यक्रम में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तथा नागपुर लोकसभा क्षेत्र के सांसद विलास मुत्तेमवार ने मंच से राज्य के मुख्यमंत्री अशोकराव चव्हाण की भूमिका को विदर्भ विरोधी बताया। पृथक विदर्भ राज्य की स्थापना की मांग को लेकर सांसद मुत्तेमवार तथा अन्य विदर्भवादी नेताओं के प्रतिनिधी मंडल राष्ट्रपति प्रतिभादेवी सिंह पाटील को एक निवेदन सौपा।
7 जनवरी को ही इसके बाद दोपहर दो बजे
नागुपर के सिविल लाइन्स स्थित रानी कोठी में आयोजित बैठक में विदर्भ दिग्गज नेताओं एकजुट हुए। इस बैठक में राजनीति के आखाड़े में एक दूसरे के धूर विरोधी नेता एक स्वर में बोले। बैठक के तेवर बता रहे हैं कि पृथक विदर्भ के लिए क्रांति की ज्वाला भड़क उठी है। निवेदन और ज्ञापन तो बहुत हो गए, अब यह सब नहीं। पृथक विदर्भ के लिए अब जिला स्तर पर हड़ताल कर सरकार को झुकने के लिए मजबूर किया जाएगा। बैठक में उपस्थित नेताओं ने एक सुर में कहा कि आजादी के लिए महात्मा गांधी ने जिस तरह अहिंसा के पथ पर चलकर आजादी दिलाई उसी तरह अलग विदर्भ राज्य के लिए आंदोलन किया जाएगा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रणजीत बाबू देशमुख की ओर से आयोजित इस महत्वपूर्ण सर्वदलीय सभा में सीपीआई, मनसे तथा शिवसेना के अतिरिक्त सभी प्रमुख दलों के नेता शामिल हुए। सभा में 20 जनवरी को विदर्भ स्तर पर हड़ताल पर सभी ने सहमति जताई। विदर्भ के संघर्ष के लिए विदर्भ राज्य संग्राम समिति भी बनाई है। हड़ताल की रूपरेखा पर 11 जनवरी को अगली बैठक बुलाई गई है। रणजीत देशमुख ने कहा कि हमें शांतिपूर्ण तरीके से महात्मा गांधी के सिद्धांतो को अपनाते हुए विदर्भ आंदोलन को आगे बढ़ाना है। विदर्भ आंदोलन की आंच तेज करने को लेकर सभा में थोड़ा-हंगामा हुआ। पूर्व राज्य मंत्री सुलेखा कुंभारे ने कहा कि विदर्भ की मांग पर अब तक कई बार निवेदन और ज्ञापन सौंपे जा चुके हैं। समय आ गया है कि अब इस आंदोलन की ज्वाला भड़काई जाए। आंदोलन को तेज करने पर कई नेताओं ने जोर दिया, तभी शहर के पूर्व पुलिस आयुक्त पी.के.वी. चक्रवर्ती ने कहा कि जोश के साथ होश में रहकर जो आंदोलन चलाए जाते हैं, उन आंदोलनों में हानि कम और लाभ अधिक मिलते हैं। उन्होंने विदर्भ के बंद पर कानूनी जानकारी देते हुए कहा कि इस शब्द का उपयोग कोई न करें। हमें करना वही है जो आप चाहते हैं केवल इस 'बंदÓ शब्द के स्थान पर 'हड़तालÓ शब्द को जोड़ दिया जाए। चक्रवर्र्ती ने कहा कि विदर्भ हड़ताल भी शांतिपूर्ण तरीके से किया जाना चाहिए। यदि किसी ने तोडफ़ोड़ की तो हमें इस पर दु:ख होगा कि विदर्भ का ही नुकसान हो रहा है। अधिकतर वक्ताओं ने पृथक विदर्भ के मुद्दे के समर्थन में तर्क देते हुए कहा कि विदर्भ में बनने वाली बिजली को हम बाहर जाने से रोकेंगे। यहां का कोयला भी उन्हें देना बंद कर दें, ऐसा विरोध कारगर सिद्ध हो सकता है। प्रसिद्ध विदर्भवादी नेता जांबुवंतराव धोटे ने कहा कि अब तक विदर्भ के साथ अन्याय होता रहा है लेकिन अब यह अन्याय नहीं होने देंगे। धोटे ने कहा कि हमारे शोषण से पश्चिम महाराष्ट्र तथा मराठवाड़ा का पोषण होता है। विदर्भ की मांग यहां की जनता की मांग है। इसे अब दबाया नहीं जा सकता। उन्होंने मुख्यमंत्री के बयान की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि उन्हें इस प्रकार की बयानबाजी से परहेज करना चाहिए। भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व सांसद बनवारीलाल पुरोहित ने कहा कि निवेदन और ज्ञापन सौंपने का कार्य सभी प्रधानमंत्री के कार्यकाल में हो चुका है। लेकिन अब इस से हटकर कुछ होना चाहिए। पूर्व मंत्री व कांग्रेस सांसद विलास मुत्तेमवार, विधायक देवेंद्र फडणवीस ने भी इस आंदोलन को आगे बढ़ाने के पक्ष में सुझाव दिए। सभा में विदर्भ आंदोलन को संचालित करने के लिए विदर्भ राज्य संग्राम संघर्ष समिति का प्रस्ताव भी रखा गया तथा आगामी 20 जनवरी को विदर्भ स्तर पर हड़ताल को भी मंजूरी दी गई। 'अभी नहीं तो कभी नहींÓ का नारा लगाते हुए विदर्भवादियों ने कहा कि अभी लोहा गर्म है, इसे ठंडा होने से पूर्व विधान सभा का अधिवेशन विदर्भ राज्य के साथ नागपुर में होना चाहिए। इस का हमें निश्चय करना होगा तथा गांव-गांव में पहुंच कर तालुका स्तर पर भी इस अभियान को जनता के बीच पहुंचाना चाहिए।
इस बैठक से पूर्व कांग्रेस नेता विलासाव मुत्तेमवार 4 जनवरी को नागपुर में एक धरना भी दिया। इस धरने में भी कांग्रेस समेत विदर्भ की लड़ाई लड़ रही दूसरी कई समितियों व नेताओं ने हिस्सा लिया। इस मौके पर राज्य के दुग्ध मंत्री डा. नितिन राऊत ने तो यहां तक कह दिया कि यदि मौका पड़ा तो पृथक विदर्भ के लिए वे राज्य मंत्रीमंडल से इस्तीफा तक दे देंगे। इससे विदर्भ समर्थकों में और जोश आ गया है। 5 जनवरी तो चार युवा नागपुर के जीरो माइल स्थित बीएसएनएल के टावर पर चढ़ गए। पृथक विदर्भ के लिए मुंख्यमंत्री को बुलाने की मांग करने लगे। समझाने बुझाने के बाद जब ये चारों युवा टावर से उतरे तो लोगों ने फूलमाला पहनाकर उनका सम्मान किया।
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अजादी से पहले की है विदर्भ की मांग
आजादी से पूर्व 1888 में अंग्रेजी प्रशासकों ने ब्रिटिस आयुक्तालय में पृथक विदर्भ के लिए प्रस्ताव रखा था। इसके अलावा 1918 में संविधान समीक्षा समिति और डार कमेटी तथा जे.वी.पी. कमेटी ने पृथक विदर्भ पर अपनी सहमति दी थी। आजादी के बाद 1955 में राज्य पुर्नगठन आयोग ने सरकार से कहा था कि स्वतंत्र विदर्भ से ही यहां की जनता को लाभ मिलेगा। इसके बाद 1960 में विदर्भ के नेताओं को राष्ट्रीय नेताओं ने स्वतंत्र विदर्भ राज्य की गठन का आश्वासन दिया। 1988 में युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने यह महसूस किया कि विदर्भ के साथ अन्याय हो रहा है, इसके लिए उन्होंने पी. संगमा को इस पर विस्तृत जानकारी देने की जिम्मेदारी सौंपी थी। श्री संगमा ने भी पृथक विदर्भ के लिए अपनी सहमति सरकार को दी। 1996 में राष्ट्रीय नेता अहमद पटेल, गुलाम नबी आजाद, श्रीमती मीरा कुमार, के. करूणाकरण, स्व.राजश्ेा पायलट, बलराम जाखड़, मुकुल वासनिक, वसंत साठे, एनकेपी साल्वे, स्व. सुधाकर नाईक समेत कई राष्ट्रीय और स्थानीय नेताओं का प्रतिनिधि मंडल तत्कालीन प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौडा से मुलाकात कर स्वतंत्र विदर्भ राज्य के गठन की मांग की। वर्ष, 2000 में जिन तीन नये राज्यों का गठन हुआ। उनका प्रस्ताव 1955 में गठीत राज्य पुर्नगठन आयोग ने नहीं दिया था। कांग्रस के कई वरिष्ठ नेता, संसद और विधायक कई मौके पर सोनिया गांधी से मुलाकात कर पृथक विदर्भ के लिए सहयोग की अपेक्षा जता चुके हैं। इसके लिए आपने पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रणव मुखर्जी के नृतृत्व में स्वतंत्र विदर्भ और तेलंगाना राज्य के लिए पार्टी की एक कमेटी भी बनाई थी। लेकिन अब कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने पृथक तेलंगाना राज्य की पहल करते हुए विदर्भ की अनदेखी कर दिया।
गत पचास सालों में विदर्भ की जनता ने कांग्रेस के प्रति भरोसा जताया है, लेकिन गत दस सालों में इस क्षेत्र के करीब 7 हजार किसानों ने आत्महत्या की है। क्षेत्र के पांच जिले नक्सल समस्या से गंभीर रूप से प्रभावित हैं, बेरोजगारी की समस्या भी गंभीर है। लिहाजा, विदर्भ की जनता इस निष्कर्ष पर पहुंच चुकी है कि विदर्भ का आर्थिक व समाजिक विकास स्वतंत्र राज्य का दर्जा प्राप्त होने के बाद ही संभव हो पाएगा।

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