रविवार, फ़रवरी 28, 2010

कमांडो को पीटा, रिवाल्वर और वाकीटाकी लेकर चलता बना


Attaacker: Photo by Ravikant Kambale

नागपुर। अपराधियों के हौसले कितने प्रबल हो चुके हैं, इसका जीता जागता उदाहरण रविवार की दोपहर काटोल नाका, गिट्टीखदान में देखने को मिला। क्षेत्र में गत कई वर्षों से अवैध शराब का धंधा कर रहे खूखांर अपराधी सुरेंद्र उर्फ बबलू हौसला प्रसाद यादव (30) ने सरेआम एक चेतक पुलिस कमांडो योगेश आटे की पिटाई कर उसे न केवल गंभीर रूप से घायल किया, बल्कि, उसकी सर्विस लोडेड सर्विस रिवाल्वर व वाकी टॉकी लेकर फरार हो गया। उसे खोजने में लिए चलाये गए पुलिस ऑपरेशन को वह कपड़े बदल-बदल कर घंटो तक चकमा देता रहा। आखिर वह पुलिस के हथ्थे चढ़ ही गया।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक रविवार को दोपहर 3 बजे के करीब चेतक कमांडो योगेश आटे अपनी सरकारी मोटरसाईकिल से क्षेत्र में पेट्रोलिंग कर रहे थे। वे होली के मद्देनजर इलाके के अवैध करोबार पर नजर रखे हुए थे। धोकड़ा से गुजरते वक्त उन्हें सुरेंद्र यादव अपने साथियों के साथ संदेहास्पद स्थिति में खड़ा दिखाई दिया। जब कमांडो योगेश ने उनसे पूछताछ की तो, वह आगबबूला हो उठा। इतना ही नहीं योगेश के साथ बदसलूकी भी करने लगा।
इससे दोनों के बीच जमकर हाथापाई हुई। इसी बीच आरोपी सुरेंद्र यादव ने लोहे की रॉड से कमांडो योगेश पर हमला कर दिया। इससे योगेश को गंभीर चोट आई। योगेश को गंभीर रूप से घायल करने के बाद आरोपी सुरेंद्र यादव उनकी सर्विस रिवाल्वर तथा वाकीटाकी लेकर भाग निकला। कमांडो योगेश आटे को तुरंत समीप ही स्थित आरआर हस्पताल में उपचारार्थ भर्ती कराया गया। लेकिन बाद में धंतोली के एक निजी हस्पताल में ले जया गया। इस हादसे से पुलिस हरकत में आ गई। पुलिस ने सुरेंद्र को पकडऩे के लिए सर्चिग ऑपरेशन चलाया। सुरेद्र ने और पुलिस के बीच लुका-छिपी का खेल चलता रहा। पुलिस को चकमा देने के लिए सुरेंद्र ने कई बार कपड़े बदले। लेकिन पीएसआई जाधव ने उसे मकर धोकड़ा नाले के समीप से भागते वक्त दबोच लिया। उसके पास से कमांडो योगेश से छिनी हुई लोडेड नाइन एमएम रिवाल्वर, मैगजीन और वाकीटाकी जब्त की गई। पुलिस सूत्रों का कहना है कि यदि आरोपी बबलू उर्फ सुरेंद्र यादव को जल्द न गिरफ्तार किया जाता, तो शायद होली की पूर्व संध्या के पहले ही पुलिस विभाग पर एक बड़ा कलंक लग जाता। मगर पुलिस की मुस्तैदी से ये शातिर आरोपी पकड़ा गया।
सूत्रों से मिली जानकारी से पता चला कि कमांडो योगेश पहले गिट्टीखदान पुलिस स्टेशन में तैनात था। साथ ही वह आरोपी बबलू यादव से हर महीने वसूली भी किया करता था। बाद में योगेश का तबादला राणा प्रताप नगर हो गया और वहां से वह चेतक कमांडो दस्ते में शामिल हो गया। शहर में पेट्रोलिंग कर रहे सभी कमांडो दस्तों का पेट्रोलिंग करने के लिए 2-3 पुलिस स्टेशनों का इलाका दिया जाता है। जहां इन्हें 24 घंटे 2 शिफ्ट में ड्यूटी करनी पड़ती है। होली के त्यौहार में शहर के सभी अवैध व्यवसायी देशी दारू, विदेशी दारू की बेखौफ होकर बिक्री करते हैं। इनके इस कार्य में पुलिस की भूमिका भी संदिग्ध रहती है। बताया जा रहा है कि कमांडो द्वारा जारी वसूली अभियान के कारण ही यह शर्मनाक घटना हुई। पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये गए शातिर अपराधी बबलू उर्फ सुरेंद्र यादव पर जानलेवा हमला लूटपाट, डकैती करने समेत दर्जनों गुनाह विभिन्न पुलिस थानों में दर्ज है।
०००००००००००००००००००००००००
नहर के पास बच्चे की लाश मिली
संवाददाता
कन्हान।
कन्हान नगर के समीप बोरडा निमखेडा ग्राम के मार्ग से करीब चार कि.मी. दूर नहर के पास रविवार को पुलिस को 11 वर्षीय अज्ञात बालक की लाश मिली। पुलिस सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार कांन्द्री निवासी मोतीलाल देशमुख के खेत के पानी के कुंअे मेें धर्मराज मनघटे को बालक की लाश दिखाई दी। उसने इसकी सूचना पुलिस को दी। सूचना पाकर पुलिस की एक टीम मौके पर पहुंची। समाचार लिखे जाने तक मृतक बालक की शिनाख्त पुलिस नहीं हो पाई थी।
..........................

शुक्रवार, फ़रवरी 26, 2010

बाघ बफर जोन पर भारी पड़े खनन माफिया


forest minister talking with journalist of nagpur

वनमंत्री पतंगराव कदम ने बताया कि बाघ बफर जोन के गांवों के पुनर्वसन की जरूरत ही नहीं
संजय स्वदेश
नागपुर।

आखिर खनन ठेकेदारों की प्रभावशाली लॉबी बाघ बफर जोन पर भारी पड़ गई। चंद्रपुर के ताड़ोबा-अंधारी में टाईगर रिजर्व परियोजना (टीएटीआर) से प्रभावित गांवों के पुनर्वास को लेकर गुरुवार को आयोजित बैठक के बाद नागपुर आए महाराष्ट्र के वनमंत्री पतंगराव कदम ने बताया कि बाघ बफर जोन के गांवों के पुनर्वसन की जरूरत ही नहीं है। मतलब साफ है। बाघ बफर जोन के लिए प्रस्तावित जमीन का अधिग्रहण नहीं किया जाएगा। वनमंत्री ने इस निर्णय के पीछे तर्क दिया कि वन विभाग बाघों की सुरक्षा और प्रभावित गांवों के लिए उनके लिए खुद खास व्यवस्था करने की योजना में है। यहां इंसान और जानवर एक ही क्षेत्र में रहेंगे। उन्होंने कहा कि अभ्यारण्य का निर्माण करते समय गांवों को अभ्यारण्य के क्षेत्र से बाहर बसाना पड़ता है। मगर बफर जोन में ऐसा नहीं करना पड़ता। ताड़ोबा में जानवरों को पीने के पानी की भी व्यवस्था नहीं है, पानी की तलाश में जानवर गांव-बस्ती तक आ जाते हैं। यह एक गंभीर समस्या है। इस विषय पर विभाग के शीर्ष अधिकारियों से चर्चा कर इसका हल निकाला जाएगा। सूत्रों का कहना है कि वनमंत्री ने बाघ बफर जोन के लिए प्रस्तावित जमीनों के अधिग्रहण नहीं करने का निर्णय खन माफियाओं के प्रभाव में आकर लिया है। जब से यह योजना प्रस्तावित थी, तब से खनन क्षेत्र के ठेकेदार वन विभाग के अधिकारियों के साथ मंत्री पर प्रस्तावित क्षेत्र को बाघ बफर जोन के लिए नहीं देने के लिए लॉबिंग कर रहे थे।

अब मारेंगे नहीं पकड़ेंगे बाघ

पिछले दिनों चंद्रपुर जिले में एक तेंदुए के कारण 5 लोगों की मौत हुई। पिछले साल भी वन्य जीवों का ग्रामीणों पर हमला हुआ था। जब लगातार लोग मर रहे थे, तब ग्रामीणों पर हमला करने वाले बाघों को मारने का आदेश दिया गया था। ऐसी घटनाओं के सवाल पर वनमंत्री का कहना है कि अब ग्रामीणों पर बाघ हमला करेंगे तो, पहले उसे पकडऩे का प्रयास किया जाएगा। पकड़ने का विकल्प नहीं मिलने पर ही उसे मारने का आदेश दिया जाएगा।

पुलिस के साथ पहुंचते है वनकर्मी
एक सवाल के जवाब में वनमंत्री ने कहा कि लोगों की शिकायत रहती है कि जब तेंदुएं किसी इंसान पर हमला कर मार दते हैं तो वन अधिकारी तुरंत घटनास्थल पर नहीं पहुंचते। इस शिकायत में आंशिक सच्चाई है, क्योंकि जहां ऐसी घटना होती है, वहां का माहौल अलग होता है। अगर वन अधिकारी अकेला उस जगह पर तुरंत चले जाएं तो आक्रोशित लोग वनकर्मी को भी मार सकते हैं। इसलिए घटनास्थल पर पुलिस पहुंचने के बाद ही वन अधिकारी घटनास्थल पर जाते हैं।

भूखे बाघ-तेदुएं गांव में आते हैं
जंगल में बाघ, तेंदुएं व अन्य जानवरों को खाना-पानी नहीं मिल पाता है, तो वे गांवों कि तरफ आते हैं। कई बार जानवरों की आपसी लड़ाई में भी कई बाघ और तेंदुएं घायल हो जाते हैं, उनको सुरक्षित रखने तथा उनका इलाज करवाने के लिए उन्हें रेस्क्यू सेंटर में रखना आवश्यक होता है। फिलहाल वन विभाग के अलग-अलग रेस्क्यू सेंटर में तकरीबन 60 तेंदुएं हैं। एक इंसान को मारने से किसी तेंदुएं की गिनती नरभक्षकी के रूप में नहीं की जाती, उसके लिए कुछ मानक निश्चित किये गये हैं। कुछ उद्यानों में तेंदुओं को रखा है। वन विभाग तेंदुओं पर ध्यान रखने के लिए विडियो रिकॉर्डिग की योजना में है।

मुआवजा बढ़ाने पर विचार
वन संरक्षित क्षेत्रों में जिन किसानों की खेती का जानवर नुकसान करते हैं, उन्हें वन विभाग की ओर से 2000 रूपये प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मुआवजा दिया जाता है। ज्यादा नुकसान होने पर 15 हजार रूपये प्रति हेक्टेयर की दर से मुआवजा दिया जाता है। वन्य जीवों द्वारा किसानों की फसल नष्ट करने पर दी जाने वाली भरपाई की प्रतिहेक्टेयर दो हजार रूपये की दर से मुआवजा राशि काफी कम है। वनमंत्री का कहना है कि इसे बढ़ाने के लिए जल्द ही मंत्रिमंडल के सामने प्रस्ताव लाया जाएगा।

अभ्यारण्य की जमीन की भरपाई कहीं और
वनमंत्री पतंग राव कदम का कहना है कि राज्य में 6 सेंचुरीज(अभ्यारण्य) के गठन में जितना वन संरक्षित भाग कम होने वाला है, उसकी भरपाई राज्य में कहीं और की जाएगी। इसके लिए वन विभाग राज्य सरकार से जमीन की मांग करेगी। इसके लिए प्रस्ताव पुनर्गठन कमेटी में रखी गई है। लेकिन अभी इसकी मंजूरी नहीं मिली है। मानसिंग को अभ्यारण्य घोषित करने का निर्णय पहले ही हो चुका है।

गुरुवार, फ़रवरी 25, 2010

न्यूयार्क के परिषद में उठेगा खैरलांजी का मामला

संजय स्वदेश
नागपुर।
वर्ष 2006 में विदर्भ के भंडारा जिले में चर्चित खैरलांजी दलित हत्याकांड का मुद्दा न्यूयार्क में आयोजित होने वाली ग्लोबल एनजीओ फोरम फॉर वुमेन की अंतरराष्ट्रीय परिषद में उठेगी। दो दिवसीय परिषद 27 फरवरी से शुरू हो रही है। इस परिदस में शामिल होने के लिए समाजिक कार्यकर्ता एवं स्त्री अत्याचार विरोधी परिषद की अध्यक्ष डॉ. सीमा साखरे न्यूयार्क जा रही है। डा. साखरे ने बताया कि देश में सरकार के पास समाज में परिवर्तन लाने की कोई योजना नहीं है। कल्याणकारी योजनाएं सरकार के भरोसे वहीं चलती। सरकार काम कानेवाली संस्थाओं को समय पर अनुदान नहीं देती। स्त्रियों पर अत्याचार के संदर्भ में सरकार अल्पावासगृह, हेल्प लाइन, पारिवारिक सलाह सेवा केंद्र बड़े पैमाने पर शुरु करने को घोषणा तो करती है, लेकिन जो भी समाजसेवी संस्थाएं इस दिशा में काम करती हैं, उन्हें दो-दो साल अनुदान नहीं मिलता है। महिला बाल कल्याण मंत्रालय या फिर सोशल वेलफेयर बोर्ड की ओर से भी अनुदान देने में देरी होगी।
डा. साखरे ने बताया कि 498 अ कानून पुलिस और समाज में लोगों को ठीक तरह से समझ नहीं आने के कारण इसका व्यापक लाभ महिलाओं को नहीं मिल पा रहा है। पुलिस भी महिला अत्याचार की अनदेखी कर रही है। आज भी महिलाओं लैंगिक शोषण, मानसिक सोशन, दहेज, मानसिक, आर्थिक सोशल आदि बदस्तूर जारी है। अंतर राष्ट्रीय स्तर पर वे भारतीय महिला खासकर पिछड़े वर्ग की महिलाओं पर होने वाले अत्याचार न्यूयार्क परिषद में उठाएगी।
डा. साखरे ने बताया कि इस बैठक में वे महिलाओं पर खासकर दलित महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के साथ नागपुर में वर्ष 2006 के चर्चित खैरलांजी प्रकरण में सुरेखा भोतमांगे के परिवार पर हुए क्रूर अत्याचार को उठाएगी।
ज्ञात हो कि खौरलांजी मामले में छह आरोपियों को कोर्ट ने मौत की सजा सुना चुकी है।
००००००००००००००००००००००००००००००

इनकी मौन भाषा समझिये

मुझे ई-मेल से चंचल मुखर्जी की दो पेंटिंग भेजी गई है।
चंचल मुखर्जी की पेंटिग्स कुछ कहती है। जरा आप इनकी मौन भाषा समझिये।
- संजय स्वदेश

रेल बजट भाषण के दौरान एक ट्रेन पटरी से उतरी



संजय स्वदेश
नागपुर.

जिस समय रेलमंत्री ममता बनर्जी ने लोकसभा में लोकलुभावनी रेल बजट प्रस्तुत करना शुरू किया। उसके ठीक कुछ दे बाद करीब 12:15 बजे हवाड़ा से कुर्ला जाने वाली ट्रेन नंबर 8030 शालिमार एक्सप्रेस गोंदिया जिले के सालेकसा तहसील के पास नवाटोला रेलवे गेट के नजदीक पटरी से उतर गई। खबर है कि इंजन के तीन पहीये ही पटरी से उतरे। इसलिए कोई यात्री अकाल काल के गाल में नहीं समा पाया। हर चैनल पर रेल बजट ही छाया रहा। खबर कहीं नहीं आई। esh kai train ghanto let huwee. मंडल रेलवे मंडल से प्राप्त जानकारी के अनुसार घटना की सूचना पाकर रेलवे के वरिष्ठकर्मी घटना स्थल पर पहुंच गए। संयोग अच्छा रहा कि केवल इंजन ही पटरी के तीन पहीये ही पटरी से उतरे, नहीं तो दुर्घटना बड़ी हो जाती। लोग हताहत होते। रेलवे बजट पूरी तरह से इस घटना पर केंद्रीत हो जाता। जो भी हो। रेलवे की अनेक बड़ी दुर्घटनाओं की तुलना में यह घटना छोटी है। पर है गंभीर। रेलमंत्री ने बजट भाषण में ट्रेनों के दौरान महिलाओं की सुरक्षा के लिए अतिरिक्त बटालियन बनाने की बात कर प्रसंसा तो बटोरी। पर आदि दिन होने वाली ट्रेनेां में लूटपाट को रोकने और सबसे महत्वूपर्ण रेलवे दुर्घटनाओं को रोकने के लिए किसी तरह की कारगर नीति की बात नहीं की। हालांकि यह उल्लेख जरूर किया कि रेलवे में उन्नत तकनीक उपयोग करने के लिए आईआईटी के साथ करार किया गया है।
पहले ही रेल दुर्घटनाओं के मामलों में रेलमंत्री यह कहकर हाथ खड़ी करती दिखी कि दुर्घटनाओं पर अपना नियंत्रण नहीं है। संभवत: यहीं कारण हो कि रेलमंत्री ने दुर्घटनाओं को रोकने के लिए किस तरह की कारगर नीति के लिए चिंतन मनन करने की कोशिश नहीं की। लेटलतीफी और अनेक अव्यवस्थाओं की शिकार रेलयात्री अभी भी अपनी सुरक्षा राम भरोसे छोड़ कर चल रहे हैं।
0000000000000000000000000000000000

तीन दिन में दो नक्सली गिरफ्तार

गड़चिरोली जिले के नक्शे व महत्वपूर्ण दस्तावेज बरामद
संजय स्वदेश
नागपुर।
महाराष्ट्र के नक्सल प्रभावित चंद्रपुर जिले के रामनगर थाने की पुलिस के एक दस्ते ने मंगलवार को नागपुर में एक नक्सली को दबोचा है। पुलिस ने नागपुर के जोगीनगर रामेश्वरी रिंग रोड इलाके में एक घर में दबिश देकर वहां रह रहे कथित नक्सल समर्थक राजकुमार मेश्राम उर्फ राजकुमार शंकर आकापल्ली को गिरफ्तार किया है। चंद्रपुर पुलिस की इस कार्रवाई में नागपुर सीआईडी का भी सहयोग मिला। पुलिस की इसी टीम ने तीन दिन पहले नागपुर से ही एक और नक्सली गिरफ्तार किया था।
पुलिस का कहना है कि राजकुमार मेश्राम उर्फ राजकुमार शंकर आकापल्ली नक्सलियों का कट्टर समर्थक है। पुलिस को उसके घर से गड़चिरोली, भामरागढ, सिरोंचा आदि इलाके के अलावा भारत के कुछ राज्यों के नक्शे (मैप) बरामद किये हैं। इसके साथ ही उसके घर से कुछ ऐसे भी दस्तावेज बरामद किए गए हैं, जिससे राजकुमार के नक्सली होने की पुष्टी होती है। उसके खिलाफ पहले से ही चंद्रपुर जिले के रामनगर थाना में अपराध क्रमांक 3013/2008 के तहत मामला दर्ज है।
गौरतलब है कि तीन दिन पूर्व ही रामनगर पुलिस नागपुर शहर के नागपुर के गड्डीगोदाम इलाके से बंडू मेश्राम नामक कथित व्यक्ति को नक्सलियों का समर्थक होने के आरोप में गिरफ्तार कर चंद्रपुर ले गई थी। सूचना है कि रामनगर पुलिस ने उक्त अपराध के अंतर्गत नक्सलियों का समर्थन करने के आरोप में सबसे पहले चंद्रपुर के ही मनोज सोनुले को गिरफ्तार किया। मनोज सोनुले ने ही बताया था कि बंडू मेश्राम नागपुर के गड्डीगोदाम इलाके में रहता है। बंडू मेश्राम ने ही पुलिस को बताया कि नागपुर के जोगीनगर गली नम्बर 12 में कथित नक्सल समर्थक राजकुमार मेश्राम रहता है। पुलिस ने मंगलवार को यहां जाल बिछाया तो पुलिस को पता चला कि राजकुमार गली नम्बर 12 में विजय वैरागडे के मकान में किराए से रहता है। वह तकरीबन 2 वर्ष पहले यह मकान किराए पर लिया था। वह मूलत: आंध्रप्रदेश का रहने वाला बताया गया है। सूत्रों की मानें तो राजकुमार मेश्राम की पत्नी चंद्रपुर में नौकरी करती है। इसका चंद्रपुर अक्सर आना-जाना लगे रहता था। राजकुमार से नागपुर सीआईडी और चंद्रपुर जिले की रामनगर पुलिस पूछताछ कर रही है। इसकी पुलिस को काफी दिनों से तलाश थी। रामनगर थाने में जिस तरह से मनोज सोनुले और बंडू मेश्राम पर वर्ष 2008 में मामला दर्ज है, उसी मामले में इसका भी नाम शामिल है।
०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००

बुधवार, फ़रवरी 24, 2010

रेल बजट : विदर्भ की झोली में झुनझुना

किसान मर रहे हैं विदर्भ में परियोजना गई नासिक में
नागपुर।
पृथक विदर्भ आंदोलन को गति पकड़े देख यह उम्मीद जताई गई थी कि रेलवे बजट में विदर्भ के लिए कुछ खास दिया जाएगा। लेकिन केंद्रीय रेल बजट में लोकलुभावन योजनाओं के बौछार से विदर्भ गिला नहीं हो सका। हर बार की तरह इस बार भी विदर्भ के झोली में झुनझुना आया है।

संजय स्वदेश आश्चर्य की बात है कि किसान आत्महत्या की समस्या पर तैयार प्रस्ताव किसान विजन परियोजना में विदर्भ का नाम नहीं है। बजट प्रस्तुत करते हुए रेलमंत्री ममता बनर्जी ने देश में किसान आत्महत्या पर चिंता जताते हुए इस प्रस्ताव पर जोर दिया। अपने भाषाण में कहा कि देश में 35 हजार करोड़ रूपये की किसानों की उपज नष्ट हो रही है। किसानों के हीत में कंधे से कंधा मिला कर चलने के उद्देश्य से ही इस योजना को शुरू किया गया है। पर जरा संयोग देखिये। देश में सबसे ज्यादा आत्महत्या ग्रस्त क्षेत्र विदर्भ के बजाय इस परियोजना के लिए नासिक को चुना गया है। विदर्भ के नेता पहले से ही आरोप लगा रहे हैं कि विदर्भ के लिए आवश्यक योजनाओं को विदर्भ से बाहर क्रियान्वयन के लिए चुन लिया जाता है। किसान समस्याओं के नाम पर नासिक में किसान विजन परियोजना से पृथक विदर्भ समर्थक नेताओं को एक और मुद्दा मिल गया है।
93 मल्टी फंक्शनल परिसर वाले रेलवे स्टेशन में विदर्भ से केवल वर्धा स्टेशन को शामिल किया गया है। इसके अलावा बडनेरा में माल डब्बा के मरम्मत के लिए कारखाना और ओपीडी एवं डायग्नोस्टिक सेंटर खोलने के लिए अकोला स्टेशन को चुना गया है। नागपुर से किसी भी नये ट्रेन को चालने की योजना नहीं। दूर-दराज के दूसरे स्टेशनों से चलने वाली कई गाडिय़ों में से दो-तीन ही नागपुर से होकर गुजरेगी। वर्धा-काटोल और वरोरा-उमरेड के लिए नई रेलवे मार्ग के लिए प्रस्ताव है। पर नई संपर्कलाइन की सूची में विदर्भ के स्टेशन गायब है। नई रेल लाईन की 11 परियोजना में भी विदर्भ विदर्भ की झोली में कुछ नहीं आया। रेल मार्ग को दोहरी लाइन करने के प्रस्ताव में गोधनी-कलमना की छोटी दूरी का ही नाम है।
गोंदिया-बिलारशाह वाया नागभीड़ के लिए 250 किलोमीटर के मार्ग का विद्युतिकरण की घोषणा की गई है। तीन सप्ताहिक कर्मभूमि गाडिय़ों में एक गुवहाटी-मुंबई वाया टाटानगर नागपुर हो चलेगी। नई जन्मभूमि गाडियों में एक भी नागपुर से नहीं है। भारत तीर्थ गाडिय़ों में भी एक भी नागपुर या विदर्भ से नहीं है। इनमें दो-तीन का ही रूट नागपुर से है। नई दुरंतों में से एक भी विदर्भ से नहीं है। इसमें से एक पुरी हावडा के बीच प्रस्तावित नई दुरंतों ही नागपुर से होकर गुजरेगी। नागपुर से गुजरने वाली पटना बैंगलुरु एक्सप्रेस अभी तक सप्ताह में छह दिन चलती थी। अब उसे हर दिन के कर दिया गया है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर के 10 नये स्टेशनों में विदर्भ से कोई नहीं है। माल डब्बा निर्माण कारखाना में महाराष्ट्र का नाम नहीं। पतन संपर्कता में विदर्भ का एक भी स्टेशन शामिल नहीं है। इसमें महाराष्ट्र के रेवास, धारमतार और दिघी का नाम है। लंबी दूरी की सेवाओं के लिए प्रस्तावित 42 ट्रेंनों में से नागपुर से एक भी नहीं। 28 नई पैसेंजर गाडिय़ों में से भी विदर्भ की झोली में कुछ नहीं मिला।
जनता आहार योजना नागपुर स्टेशन पर भी शुरू होगी। स्टेशन पर अंडरपाास व सीमित ऊंचाई वाले सबवे बनाने के लिए चिन्हीत स्टेशनों में नाम की की भावना बहुत कम। 50 शिशु सदनों और 20 हॉस्टलों में से कोई नागपुर में होगा यह नहीं अभी इसका खुलासा नहीं हुआ है।

मंगलवार, फ़रवरी 23, 2010

सिखों ने जलाया पाकिस्तान का झंडा

नागपुर में फिर जला पाक का झंडा
संजय स्वदेश
नागपुर।
पुणे में हुए आतंकी घटना में विरोध में गत 14 फरवरी को नागपुर में भागवा बिग्रेड ने पाकिस्तान का झंडा जलाया गया था। इस घटना के दस दिन के अंदर एक बार फिर पाकिस्तानी झंडा जलया गया है। इस बार झंडा जलाने वाले सिख समुदाय के लोग है। गत दिनों पाकिस्तान में सिख समुदाय के दो लोगों की नृसंस हत्या और वहां सिखों पर हो रहे अत्याचार अत्याचार के विरोध में झंडा जलाया गया। नागपुर के कामठी स्थित दस नंबर पुलिया के पास सिख समुदाय के लोग एकजुट हुए। पाकिस्तान के विरोध में नारेबाजी करते हुए झंडा जलाया । इसके बाद श्री गुरु तेगबहादुर साहिब गुरुद्वारा की ओर से जिलाधिकारी को एक ज्ञापन भी दिया गया, जिसमें पाकिस्तान में हुई इस घटना को शर्मनाक बताते हुए कड़े शब्दों में निंदा की गई है। उसमें कहा गया है कि पाकिस्तान में तालिबानी आतंकवादी संगठन की ओर से सिख समुदाय के लोगों का अपहरण कर जजिया कर की मांग की गई। इस कुप्रथा की निंदा करने ओर विरोध करने पर उनकी कू्ररता से हत्या कर दी गई। सनद रहे गुरु गोविंद सिंह महाराज एवं शिवाजी ने जजिया कर का पुरजोर विरोध किया था। हिंदुस्तान में यह कर औरंजेब ने लगाया था और अकबर ने हटाया था। अब तालिबानी इस टैक्स को वसूलकर इतिहास को दोहराना चाहते हैं। तालिबानियों की इस हरकत से यह सिद्ध होने लगा है कि सिख और मुस्लिम समुदाय के बीच नफरत फैलाने का षडय़ंत्र रख जा रहा है। लेकिन तालिबान के ये मंसूबे कभी पूरे नहीं होंगे। पाकिस्तान का झंडा जलाने के लिए जमा हुई भीड़ में शहर में सिख समुदाय के प्रतिष्ठित लोग उपस्थित थे। इसमें प्रमुख रूप से कुक्कू मारवाह, नवनीत सिंह तुली, मलकित सिंह बल, टोनी जग्गी, बबी बावा, गुरुविंदर सिंह गुल्लू, तरसेम सिंह, इकबाल, खान, राजा द्रोणकर, बबली, मेश्राम, मुन्ना दीक्षित परमजीत सिंह पम्मपा, गुरुमित ङ्क्षसह सैनी, कनैल सिंह, राजेंद्र सिंह सैनी, सतविंदर सिंह घोतरा, अजमेरा सिंह, वीरबहादुर सिंह पोल्ला, हरताज सिंह कालरा, , हरदीप सिंह बाजवा, कल्लू मुलतानी, कुलदीप सिंह सैनी , सतपाल सिंह, संदीप सिंह, प्रिन्स मारवाह, सोनू कालरा, सुखविंदर सिंह तुली, गुरुमित सिंह सोढी, अजीत सिंह भाटिया, जसपाल सिंह हुंजन, हरदीप सिंह सौनी, निर्मल सिंह, प्रीतम सिंह सैनी, शाहिद शरीफ समेत अनेक लोग शामिल थे।

सोची समझी साजिश : शरीफ
एलाइट्स मुस्लिम आफ इंडिया (ईएमआई,नागपुर) ने पाकिस्तान में सिखों की हत्या पर कड़ा रोष जताते हुए कड़ी निंदा की है। ईएमआई के अध्यक्ष शाहिद शरीफ ने कहा है कि यह लड़ाई सोची समझी साजिश है। तालिबान अपनी मंशा में कभी सफल नहीं हो सकते हैं। भारत समेत अन्य देशों में सदियों पुरानी परंपरा के साथ आज भी मुस्लिम और सिख समुदाय के बीच भाईचारा बना हुआ है। तालिबानी संगठन इसी भाईचारे को तोड़ कर अपनी हीत साधना चाहते हैं।

सरकारी अस्पतालों से सरकी चुकी सेवा भावना

संजय स्वदेश
सोमवार को कुछे-एक खबरियां चैनलों पर ऐसा ही वाक्या फिर दिखा। नागपुर के सरकारी अस्पताल में पांच दिन का एक मासूम नवजात अस्पतकालकर्मियों की लापरवाही से जिंदा जला और मर गया। दुर्गा काडे नाम की महिला ने 17 फरवरी को एक निजी अस्पताल में जुड़वा बच्चे को जन्म दिया था। दोनों बच्चों का समान्य औसत वजन कम व अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण विशेष उपचार के लिए ऑक्सीजन पर रखा गया था। दो दिन में जुड़वे नवजात की स्थिति काफी अच्छी हो गई थी। लेकिन निजी अस्पताल में प्रतिदिन का इलाज शुल्क ज्यादा होने से उसे दो दिन बाद ही शासकीय मेडिकल अस्पताल में भर्ती कराया गया। अस्पताल में नवजात के शरीर को सामान्य रखने के लिए वर्मर में रखा गया। लेकिन चिकित्साकर्मियों की लापरवाही से तापमान ज्यादा हो गया। वर्मर में लगे वल्ब की ताप से एक नवजात का एक तरफ का हाथ, पैर और छाती बुरी तरह से जल गई। नवजात के परिजनों का अरोप है कि जब नवजात जल रहा था, तभी उन्होंने अस्पताकर्मियों को बताया। लेकिन उन्होंने इसे गंभीरता से नहीं लिया। पांच दिन का नवजात तड़कर मर गया। मामले पर जब हंगामा हुआ तो राज्य के स्वास्थ्य मंत्री में मामले की जांच का आदेश देकर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का आश्वासन दे दिया। यह घटना मंगलवार तक शायद ही किसी को याद रहे। शायद अस्पताल प्रशासन बाद में मामले को दबा भी तो भी किसी को फर्क नहीं पड़ता है।
लेकिन इस घटना को आधार पर यह आवश्यक सोचना चाहिए कि आखिर देश में चिकित्सा विज्ञान किस ओर तरक्की कर रहा है। एक निजी अस्पताल में अस्वस्थ्य जन्मा बच्चा स्वास्थ हो रहा है। लेकिन पैसे के अभाव में उसे मजबूरन सरकारी अस्पताल का आसरा खोजना पड़ता है। पर इस अश्रय में लापरवाही का आलम इतना है कि मौत हर किसी को सहज लगती है। कहने के लिए तो देश में मेडिकल का क्षेत्र तेजी से तरक्की कर रहा है। यहां इलाज इतना सस्ता है कि विदेशी लोट पर्यटक के साथ इलाज के लिए भारत को चुन रहे हैं। निजी क्षेत्र के भी विदेशी मरीजों को आकर्षिक करने के लिए कई तरह की व्यवस्था कर रखी है। मुंबई समेत प्रमुख शहरों के पांच सितारा सुविधा वाले होटलों में तो विदेशी मरीजों के लिए विशेष व्यवस्था की गई है। विदेशी मरीजों को किसी तरह की तकलीफ न हो, उसके लिए उनकी बोलने वाली और अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रशिक्षण प्राप्त नर्सों को नियुक्त गया है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में इस तरह की उन्नति को उपलब्धि बताकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय हमेशा ही अपना पीठ थपथपाता है। पर एक बात गौर करने वाली है। जितनी तेजी से देश में मेडिकल टूरिज्म का दायरा बढ़ा है, उससे कहीं ज्यादा तेजी से देश के सरकारी अस्पतालों की हालत लचर हो गई है। तभी तो आए दिन देश के किसी न किसी अस्पताल में लापरवाही के कारण होने वाली मौत की खबर समाचारों में आती है। ऐसी खबर इतनी आम हो गई है कि अब इससे लोग नहीं सिहरते हैं। देश के प्रतिष्ठित अस्पताल एम्स में चिकित्सकिय लापरवाही की कई घटनाएं हो चुकी है। पूर्वी दिल्ली में गुरुतेग बहादुर अस्पताल तो इस मामले में कुख्यात हो चुका है। मीडिया की सक्रियता से अब छोटे शहरों में अस्पतलों की लापरवाहीं की घटनाएं प्रकाश में आने लगी है।
यह समस्या केवल भारत की नहीं है। इस मामले में एशिया के अधिकर देशों की स्थिति कमोबेश यही है। पर इसके साथ ही मेडिकल जगत की एक दूसरी चमकती तस्वीर है। एशियन मेडिकल टूरिज्म विश्लेषण 2008-12 की रिपोर्ट के मुताबिक मेडिकल टूरिज्जम के कुल बाजार का 90 प्रतिशत हिस्सा में थाईलैंड, सिंगापुर और भारत का है। अनुमान है कि अगले दो वर्षों में देश में मेडिकल टूरिज्ज का बाजार 25 प्रतिशत की गति से बढ़ेगी।
सवाल है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध होती भारत की मेडिकल व्यवस्था घरेलू स्तर पर फिसड्डी क्यों साबित हो जाती है? सीधा और सरल जवाब है? जनसंख्या के अनुपात में पर्याप्त संख्या में न डॉक्टर हैं और न ही अस्पताल। इसका लाभ निजी अस्पताल वाले खूब उठा रहे हैं। मोटी कमाई कर रहे हैं। कई गरीबों के हक के हिस्से के खर्च पर पढ़ कर विदेश चले जाते हैं। और जब सरकार डॉक्टरों को ग्रामीण क्षेत्र में सेवा देने की बात करती है तो काफी हो हल्ला मचाया जाता है। पर जिस मूल भावना से डॉक्टरी पढ़ाई जा रही है, वह भावना ही खत्म हो चुकी है। मानवी सेवा भावना से भागने के लिए यह यह संकेत काफी है। जिस-जिस क्षेत्र में बाजार घुसा है, वहां से मनवी भावना धीरे-धीरे नष्ट हो गई है। उपचार के बाजार की आग में मानवी सेवा भावना पूरी तरह से नष्ट हो गई है। सरकार कछुए गति से स्वास्थ्य सेवा के प्रसार में लगी है। पर यह प्रसार उपरी स्तर पर ज्यादा है। जमीनी हकीकत पर कभी बात नहीं होती है। सरकारी अस्पताल से मिलने वाली महंगी दवाएं हमेशा गायब रहती है। कई बार तो डॉक्टर स्वयं यह सलाह देते हैं कि यह दवा बाहर मिलेगी। तीन-चार साल पहले ही केंद्र सरकार ने देश के हर जिले में जनाऔषधि केंद्र खोलने की बात कही थी। पर यह जिला तो दूर हर राज्य में नहीं खुला। गांव-गांव तक चिकित्सा सुविधा अभी तक नहीं पहुंची। यूपीए सरकार के पिछले कार्यकाल में भारत निर्माण की आबोहवा नहीं सुनाई दे रही है। फिलहाल महंगाई की गूंज है। इस गूंज में दूसरे महत्वपूर्ण मुद्दे गौण हो गए है। आने वाले बजट के अपेक्षाओं पर चर्चा हो रही है। पर घरेलू चिकित्सा सुविधा की लचर हालत को सुधारने की अपेक्षा का चिंतन का आभास कहीं नहीं दिख रहा है।

सोमवार, फ़रवरी 22, 2010

सेक्स सर्वे के निहितार्थ

संजय स्वदेश
यौन संबंधों से से जुड़े विषय को खूब पढ़े जाते हैं। ऐसे पढ़ाकुओं के लिए एक नई खबर प्रकाशित हुई है। शादी से पहले यौन संबंधों के मामले में ग्रामीण युवा शहरी युवाओं से कहीं ज्यादा आगे हैं। यह बात प्रमाणिक इसलिए माना जाएगा, क्योंकि इसे कहने वाला कोई ऐरा-गैरा नहीं, बल्कि भारत सरकार है। केंद्रीय स्वास्थ मंत्री गुलाब नबी आजाद ने एक सर्वे जारी किया है। सर्वे में कहा गया है कि देश में 15 प्रतिशत पुरुष और 4 प्रतिशत महिलाएं शादी से पहले यौन संबंध बनाती हैं। जबकि शहरों में यह प्रतिशत महज 10 और 2 प्रतिशत है। यौन संबंध बनाने के मामले में गांव शहरों से आगे है। सर्वे में यह पाया गया है कि शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों के नौजवान असुरक्षित यौन संबंध बनाते हैं। अध्ययन पांच राज्य-आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, राजस्थान और तमिलनाडु में किया गया है।

कैसे पूछा लिया सवाल?
फिलहाल इस रिपोर्ट को पढ़ कर मन में एक संदेह उत्पन्न होता है। सबसे पहली बात यह कि जिन राज्यों यह सर्वे कराया गया, वहां की अधिकांश जनता इन दिनों बदहाली में है। दूसरी, पांचों राज्यों में ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं पराये लोगों से ऐसे विषयों पर बात नहीं करती हैं, तो फिर सर्वे में गुप्त संबंधों से जुड़े सवाल ग्रामीण महिलाएं विशेषकर किशोरियों से कैसे और किसने पूछ लिया? सर्वे से संबंधित प्रकाशित खबरों में इस बात पर जोर दिया गया है कि यौन संबंधों के मामले में कांडोम का इस्तेमाल न के बराबर होता है। सर्वे रिपोर्ट जारी करने के मौके पर नोबेल पुरस्कार विजेता अमतर््य सेन ने कहा कि लोगों यौन संबंधों में मामले में सुरक्षा की जानकारी रखते तो है, लेकिन इस्तेमाल बहुत कम करते हैं। कुछ मिलाकर कर कहें तो देश में सुरक्षित यौन संबंध नहीं बनाये जाते हैं।
संकेत साफ है
संकेत साफ है। यौन संबंध तो बनायें, पर कंडोम का उपयोग करें। गत दो दशकों में देश में कंडोम कंपनियों ने मजबूती से पांव पसारा है। पर गांव इनके दायरे से फिसलता रहा। गांवों में सुरक्षित सेक्स की इच्छा रखने वाले को साधारण कंडोम से आंनद नहीं मिल सकता। शायद साधारण कंडोम दो रूपये में मिलता है। ग्रामीण इतना खर्च कर सकते हैं। 20 रूपये से ज्यादा कीमत में डॉक्ट्स और प्लेवर का उपयोग उनके लिए बहुत महंगा है।
गुजर गया डिलक्स निरोध का जमाना
एक जमाना हुआ। जब छोटे परदे पर प्यार हुआ इकरार हुआ गाने के साथ डिलक्स निरोध का प्रचार जनसंख्या नियंत्रण के लिए किया जाता था। बाद में यौन रोगों का भय दिखाने के लिए इसका उपयोग आवश्यक बताया जाने लगा। एक दशक पूर्व तक कंपनियों ने डॉट वाले कंडोम के सहारे ज्यादा यौन आनंद के लिए लोगों को आकर्षित किया। अब फलो के प्लेवर वाले कंडोम से यौन आनंद को दोगुना करने का दावा किया जा रहा है। कभी इसके साथ परफ्यूम की खूशबू भी जोड़ कर लुभाया जाता है।
फिर बोलेंगे - सेक्स शिक्षा अनिवार्य करों
इसमें कोई शक नहीं कि शहरी जीवन की आपाधापी में जनसंपर्क माध्यमों के सहारे यौन संबंधों को जीवन के लिए बेहद बेहद जरूरी बना दिया गया है। कोई शक नहीं, यह एक किश्म का भूख है। यह ज्यादा होने जाए तो हबस बन जाता है। भारतीय परंपरा और जीवन शौली में यौन-संबंधों को पूरी तरह से गुप्त रखा गया है। लेकिन आधुनिक युग में यह विषय सहज हो चला है। लेकिन इसकी सहजता अभी भी गांवों से दूर थी। संस्कारों के परदे में छिपी थी। केंद्र सरकार का यह सर्वे इस परदे में छेद करने का राह प्रशस्त करता दिख रहा है। इससे सेक्स शिक्षा की हिमाकत करने वालों को ताकत मिलेगी। अब वे फिर बोलेंगे कि सेक्स शिक्षा अनिवार्य करों। संपूर्ण सेक्स शिक्षा में सुरक्षा पर ही जोर है और सुरक्षा का प्रहरी कंडोम है। पर कामियों को यौन संबंधों के आनंद में साधारण कंडोम आड़े आ रहा था। लिहाजा, कंपनियां डॉट्स और प्लेवर लेकर बाजार में आ गईं।
दायरे से निकली नारी को आईपील का सहारा
इन कंपनियों का ग्राहक वर्ग नर रहा। बाजार के दायरे से नारी अलग-थलग पड़ गई थी। असुरक्षित संबंधों से बार-बार गर्भवति होने के भय का बाजार में फायदा उठाया। कंपनियां बाजार बाजार में गर्भनिरोधक गोलिया लेकर आ गईं। इन कंपनियों ने मीडिया माध्यमों के सहारे बच्चे-बच्चे तक को बता दिया कि असुरक्षा के भय से यौन आंनद का मजा किरकिरा मत करो। आईपील की गोली खाओं ओर टेंशन मुक्त हो जोआ। वह भी लापरवाही के 24 घंटे के अंदर। शहरी क्षेत्र में पर्स में कंडोम रखने के बोझ से पिपाशुओं को मुक्ति मिल गई। एक खबर आई कि अब हाईप्रोफाइल लड़कियों पर्स आईपील की गोली रखती है। अभी तक ऐसी कंपनियां प्रचार माध्यमों के बूते अपने बाजार का दायरा बढ़ा रही थी। अब इस काम में सरकार को भी जोड़ लिया है। किसी न किसी बहाने भोले भाले लोगों की चुनी हुई होशियार सरकार को कंपनियां अपने हीत में कुछ न कुछ करने के लिए मजबूर कर ही लेती है। इससे समाज का संस्कार कितनी तेजी से गल रहा है, इसकी सुध किसी को नहीं।
देशी नहीं है असुरक्षित संबंधों की अवधारणा
असुरक्षित यौन संबंध की अवधारणा देशी नहीं है। यह विदेशी कंपनियों का भ्रम जाल है। इसके विरोध में हर तरह के प्रचार लाभ कंडोम निर्माता कंपिनयों को ही मिला है। हर साल असुरक्षित यौन संबंधों से मरने वालों की संख्या मुश्किल से हजारों में होती है, जबकि इलाज के अभाव में दूसरी गंभीर बीमारियों से मरने वालों की संख्या लाखों में होती है। स्वास्थ्य मंत्रालय का सर्वे ऐसे बीमारियों की तलाश में होता तो सार्थक कार्य कहा जाता। ऐसी अनदेखी कर जब सरकार देश में विशेषकर गांवों में यौन-संबंधों पर सर्वे करा रही है, तो निश्चय ही उसके नियत में कहीं न कहीं खोट होने का संदेह आभास होता है।

आईसीआईसीआई बैंक पर 1.10 करोड़ का जुर्माना

नागपुर। महानगर पालिका नागपुर ने निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी प्रतिष्ठित बैंक आईसीआईसीआई पर 1.10 करोड़ रूपये का जुर्माना लगाया है। यह जुर्माना बैंक की ओर से बेचे जाने वाले सोने के सिक्कों के बदले चुंगी नहीं भरने के कारण लगाया गया है। सोने के सिक्के बेचने वाले अन्य बैंक एक्सिस बैंक, एचडीएफसी बैंक, बैंक ऑफ बढ़ौदा, पंजाब नेशनल बैंक, कारपोरेशन बैंक, इंडियन बैंक और कोटक एंड महिन्द्र बैंक को भी शामिल है। चुंगी विभाग के सूत्रों की माने तो इन बैंकों ने भी मनपा को चुंगी कर नहीं चुकाया है। लिहाजा, इन्हें भी नोटिस थमा दिया गया है। नोटिस के खिलाफ कोटक एंड महिंन्द्रा बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, कॉरपोरेशन बैंक ने मनपा के इस कार्रवाई के खिलाफ अपील की है। चुंगी विभाग के सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार आईसीआईसीआई बैंक ने वर्ष 2003 से अपनी शाखाओं में सोने के सिक्के बेचने की शुरूआत की थी। बैंक के मुंबई शाखा से नागपुर लाए गए सोने के सिक्के के बदलने नागपुर में चुंगी कर नहीं भरा गया था। इसके लिए मनपा ने बैंक को पहले ही नोटिस दिया था। बैंक को सोने के सिक्के के मूल्य के एक प्रतिशत की दर से चुंगी कर भरना था। समय पर चुंगी कर नहीं भरने के कारण बैंक पर एनएमसी एक्ट के तहत निर्धारित दर से दस गुने दर के हिसाब से चुंगी कर का जुर्माना लगाया गया है। हालांकि मनापा की कार्रवाई के बाद बैंक ने शनिवार को मनपा चुंगी विभाग को जुर्माने की आधी रकम 55 लाख रुपया जमा कर दिया है। बाकी की रकम 15 दिनों के अंदर भरने का वायदा किया है।

रविवार, फ़रवरी 21, 2010

चीन में बन रहा है प्रजातांत्रिक माहौल

17वें कर्माप्पा लामा ग्यालवांग से अनौचारिक चर्चा

संजय स्वदेश
नागपुर।
चीन में धीरे-धीरे बढऩे वाली आर्थिक उदारीकरण का सबसे बड़ा लाभ यह हो रहा है कि वहां के लोग दूसरे देशों के लोगों के संपर्क में आ रहे हैं। इससे उनमें प्रजातंात्रिक मूल्यों के प्रति आस्था बढ़ रही है। धीरे-धीरे मनवाधिकार की मांग भी जोर पकडऩे लगी है। यह कहना है कि तिब्बत धर्म गुरु 17वें कर्माप्पा लामा ग्यालवांग का। कर्माप्पा नागपुर के धंतोली स्थित तिलक पत्रकार भवन में पत्रकारों से अनौपचारिक चर्चा कर रहे थे। वे तिब्बती भाषा में बातचीत कर रहे थे। उनके साथ दुभाषिये की जिम्मेदारी रौशनलाल निभा रहे थे। कर्माप्पा ने कहा कि चीन में आर्थिक उदारीकरण की नीतियों के कारण ही वहां धीरे-धीरे प्रजातांत्रिक माहौल तैयार हो रहा है। एक सवाल का जवाब देते हुए कर्माप्पा ने कहा कि भले ही दुनिया के सभी बैद्ध देश तिब्बत की स्वतंत्रता चाहते हों, लेकिन इसके लिए वे चीन पर दवाब नहीं बना सकते हैं। आज चीन दुनिया में तेजी से उभरता हुआ मजबूत देश है। हर देश इसके साथ साकारात्मक संबंध बना कर रखना चाहता है।
मेरे प्रवास को राजनीतिक रंग न दें
उन्होंने कहा कि यह कहना गलत होगा कि बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा और मेरे कारण भारत और चीन के आपसी संबंधों पर गलत असर पड़ा है। भारत और तिब्बत का संबंध गुरु और शिष्य की तरह है। गंगा, सतलुज मानसरोवर तिब्बत से जुड़ी हैं। यह भारतीय अस्था के प्रतीक है। करीब 7वीं, 8वीं शताब्दी में तिब्बत में बौद्ध धर्म का महायान सिद्धांत गया। तब तिब्बत के तत्कालीन राजाओं ने इन सिद्धांतों को तिब्बती भाषा में अनुवाद कराया। यह करीब 100 बंडल की सामग्री होगी। तिब्बत में अलग-अलग बौद्ध गुरु आए, जिससे सिद्धांतों में अंतर आया। बौद्ध धर्म के सभी धाराओं का मूल दर्शन, भावना और चिंतन एक ही है। नालंदा और विक्रमशिला के बौद्ध आचार्यों ने तिब्बत में जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया। मुझे लगता है कि दलाई लामा के भारत आने से तिब्बत के साथ भारत का संबंध और गहरा हुआ है। उनके और हमारे कारण भारत को न हीत हुआ है और न ही अहित हुआ है। कर्माप्पा ने कहा कि वे भारत में अध्ययन और बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए आए हैं। भारत के प्रति पूरी आस्था और श्रद्धा है। इसलिए मेरे भारतीय प्रवास को राजनीतिक रंग नहीं देना चाहिए। भारत में तिब्बत शरणार्थियों के पुर्नवास के सवाल पर उन्होंने कहा कि व्यक्ति की इच्छाएं अनंत है। इसलिए तिब्बतियों पुर्नवास के मामले में संतुष्ठी के आधार पर मैं कुछ भी नहीं कह सकता हू। लेकिन भारत ने तिब्बत के लिए जो भी किया, उसके कर्ज से हम उबर नहीं सकते हैं।
असली सुख मन से धार्मिक होने में
ईसाई मिशनरियों द्वारा विदर्भ में नवबौद्धों के धर्मांतरण के मुद्दे पर कर्माप्पा ने कहा कि मैं जन्म और प्रकृति से बौद्ध हूं। पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही बौद्ध परंपरा से जुड़ा हूं। यदि इसी तरह से जुड़ा व्यक्ति धर्मातरण करता है, तो वह पुश्तैनी धर्म से अलग हो जाता है। उसे नये धर्म में सहज कष्टाकारण होगा। भगवान बुद्ध ने कहा है कि किसी भी व्यक्ति के लिए धर्म उसकी रुचि और आस्था के अनुरूप होना चाहिए। व्यक्ति किसी भी धर्म को अपनाने के लिए स्वतंत्र है। इसलिए धर्मांतरित होने के इच्छुक लोगों को देखना चाहिए कि कौन-सा धर्म उनके अनुरूप है। असली सुख मन से धार्मिक होने में है। मन से धार्मिक हर व्यक्ति समाज और राष्ट्र की सेवा करता है।
राग द्वेष का समूल नष्ट संभव नहीं
एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि बौद्ध धर्म में जितनी भी भोग्य वस्तुएं हैं, उससे दूर रहने की सलाह दी गई है। लेकिन आज की सूचना और संपर्क क्रांति के युग में एकांत संभव नहीं है। एकांत के लिए लोगों से दूर भागने पर वे कहीं न कहीं से खोज लेंगे। भगवान बुद्ध ने मानसिक रूप से एकांत आवश्यक बताया है। अच्छे गुरु के संपर्क में मन से एकाग्र होने का प्रयास करना चाहिए। इसी से व्यक्ति खुशहाल रह सकता है। जहां तक मेरी बात है तो हम मैं निश्चय ही एकांत पर हूं। मगर हम सबमें राग द्वेष का समूल नष्ट हो यह संभव नहीं है। यह जीवन में कम से कम आए, यह एकांत से ही संभव है।
अहिंसा का प्रचार कर रहे हैं दलाई लामा
चीन के विरोध के बाद भी दलाई लामा के अमेरिका यात्रा पर कर्माप्पा ने कहा कि अमेरिका के लोग भी शांति चाहते हैं। इसी संदर्भ में धर्मगुरु दलाई लामा अमेरिका गए। तिब्बत ओर अमेरिका का संबंधा तिब्बत के गुलामी से पहले का है। दलाई लामा के अमेरिकी यात्रा पर मैं क्या कहूं? मेरी निजी राय यह है कि वे दुनिया भर में अहिंसा के सिद्धांत का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।

कृषि कर्ज से मर्ज की तरह बच रहे हैं बैंक

संजय स्वदेश
भारतीय स्टेट बैंक समेत सभी अर्धसरकारी बैंक और अनेक सहकारी बैंक के वेबसाइट देखिएं। सभी किसी न किसी तरह की योजनाओं के साथ किसान का मित्र होने का दावा करते दिखेंगे पर हकीकत कुछ और है। किसानों का हितैषी होने का दावा करने वाला हर बैंक किसानों को कर्ज देते वक्त वैसे ही भागता है, जैसे किसान को कोई संक्रमण की बीमारी हो। यकीन मानिए, यह सच है। विश्वास न हो, कभी किसी बैंक की बेवबसाइट खोल कर देखिए। वेबसाइट पर दिखाई जाने वाली कृषि कर्ज की योजनाओं का लाभ लेने के संबंध में बैंक जाकर देखें। बैंककर्मी कैसे टाल-मटोल करेंगे। पहले पूछेंगे कि जमीन कितनी है? कर्ज वापसी की गारंटी में अचल संपत्ति कितनी और कैसी है? आप सोचते होंगे अन्नदाता किसान के पास जितनी जमीन है, उसकी गारंटी के एवज में बैंक कर्ज देंगे। नहीं। बैंक तभी भी कर्ज नहीं देंगे। कर्ज देने से पहले ही जमीन की कीमत का मूल्यांकन कराया जाएगा। ताकि किसान कर्ज वापस नहीं कर सके तो उसे निलाम कर वसूली हो सके। पर सरकारी बाबू से जमीन की कीमत का प्रमाणपत्र निकालना आसान बात नहीं है? कितना कठिन है, यह वे किसान बेहतर जानते हैं। सरकार की ओर से निर्धारित मूल्य और बाजार के मूल्य में काफी अंतर होता है? अनेक झमेले हैं। फिर भला किसान क्यों इन झमेले में पड़ समय नष्ट करें। साहूकार बेहतर हैं। भले ही वे ज्यादा ब्याज लेते हो, पर मौके पर धन देते हैं। गिरवी नहीं दिया तो भी कर्ज मिलता है। कर्ज माफी की घोषणाओं के बारे तो आने खूब सूना होगा। पर इसका राहत किसानों को सुनने में ज्यादा मिलता है। हकीकत कुछ होती है। कर्जमाफी में ऐसे-ऐसे पेचों के खांचे होते हैं, जिसमें अधिकतर किसान अयोग्य हो जाते हैं। आत्महत्या के लिए सबसे चर्चित महाराष्ट्र का विदर्भ क्षेत्र में हजारों किसानों को कर्जमाफी की योजना का कोई लाभ नहीं मिला है। बड़े और संपन्न किसानों ने लाभ प्राप्त किया है। कृषि कर्ज के मामले में यह हालत देश के हर राज्यों में हैं। राष्ट्रपति से लेकर दूसरे अनेक प्रभावशाली बुद्धिजीवी भले की कृषि में निवेश की बात करते हों, पर लाभ देने वाली सरकारी मशीनरी की दुरुस्ती में उनका ध्यान नहीं जाता है। बैंक जानते हैं। कृषि कर्ज घाटे का सौदा है। इस उस तरह से नहीं बांटा जा सकता है, जिस तरह से दूसरे कर्ज बांटे जाते हैं। लिहाजा, बैंक कृषि कर्ज को अपने गले का फांस मानते हैं। किस न किसी बहाने से बैंक किसानों को ऋण देने में अपात्र घोषित कर देते हैं। इसके अलावा उन्हें जितना कर्ज चाहिए, उतना वे देते नहीं हैं। जैसे सरकार कहती है कि प्रति एकड़ 20 हजार रुपये का कर्ज दिया जा सकता है। पर तमाम कागजी औचारिकताएं पूरी करने पर बैंक बड़ी मुश्किल से 10 से 12 हजार रुपया ही कर्ज तय करते हैं। कम ब्याज की लालच में किसान इतनी ही राशि बैंक से स्वीकार कर लेते हैं। बाकी जरूरत के रुपये साहुकार से उंचे ब्याज पर ले लेते हैं। प्रकृति आधारित खेती से जो भी आय होती है, किसान पहले साहुकार का कर्ज देते हैं। बैंक का पूरा कर्ज भी नहीं उतरता है, कि तब तक दूसरी फसल का समय आ जाता है। नौबत फिर कर्ज लेने की आ जाती है। कृषि विशेषज्ञों की मानें तो इस फेरिहस्त में कर्ज लेने वाले देश के करीब 60 प्रतिशत से भी ज्यादा किसानों को बैंकों ने किसी न किसी तरह से अयोग्य घोषित कर रखा है। वे दूसरे बैंक के पास भी कर्ज लेने नहीं जा सकते हैं। सरकार लाख कोशिश करे ले, बैंक किसानों को कर्ज देना ही नहीं चाहती है। बैंक की किसानों के लिए कल्याणकारी योजनाएं कागजों पर ही चलती है।

कृषि कर्ज से जुड़ी एक हालिया प्रकाशित खबरों के मुताबिक बैंक ऑफ बड़ौदा और कॉर्पोरेशन बैंक ने दिसंबर 2009 में समाप्त हुई तिमाही के दौरान कर्ज की प्रावधान योजनाओं के तहत कर्ज लेने वाले संभावित किसानों को लाभ नहीं मिला। सरकार ने किसानों को इस बात की अनुमति दी थी कि वे बकाया राशि के 75 फीसदी का भुगतान 3 किस्तों में करें और 25 प्रतिशत की राहत का लाभ उठाएं। इस योजना की अवधि दिसंबर 2009 तक बढ़ाई गई, लेकिन किसानों की तरफ से अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिलने से कुछ बैंकों ने वित्त मंत्रालय से कहा है कि किसानों को अपनी बकाया राशि के भुगतान के लिए जून तक का समय दिया जाए। साल 2009 में मॉनसून की स्थिति अच्छी नहीं होने से कारण ऋण की योजनाओं की समयावधि बढ़ाने का प्रस्ताव दिया गया था। इसे किसानों के प्रति बैंकों की सहानुभूति न समझे। यह बैंकों के चतुराई का प्रस्ताव था। बैंकों ने समयावधि बढ़ाए जाने की बात इसलिए की थी, क्योंकि उन्हें प्रावधान के तौर पर अतिरिक्त राशि अलग रखने की जरूरत होगी। चालू तिमाही के दौरान ही प्रावधान किए जाने की उम्मीद है। आंकड़े कहते हैं कि बैंक ऑफ बड़ौदा का कर्ज राहत योजना के तहत 211 करोड़ रुपये बकाया है। वहीं कॉरपोरेशन बैंक ने पिछली तिमाही में किसान कर्ज के लिए 12 करोड़ रुपये किसान कर्ज के लिए प्रावधान किया था। ऐसी हालत कमोबेश हर सरकारी बैंक की है। बैंक अधिकारी अधिकारिक रूप से कुछ भी बताने से बचते हैं। उनका कहना है कि कृषि कर्ज राहत योजना के बाद अधिकांश किसानों ने अपने बकाया राशि की किस्त नहीं चुकाई। ऐसा करने वाले बड़े किसान थे। उन्हें उम्मीद थी कि सरकार ऐसा ही कोई पैकेज फिर से लेकर आएगी। पर ऐसा हुआ नहीं। ज्यादा एकड़ की भूमि वाले बड़े किसान किसी न किसी तरह से कृषि कर्ज की कल्याणी योजनाओं का लाभ ले लेते हैं। कम जमीन वाला दीनहीन किसान हमेशा ही ठगा जाता है।

शुक्रवार, फ़रवरी 19, 2010

बाघ बफर जोन पर खनन माफिओं का खतरा

संजय स्वदेश
नागपुर।
खनन ठेकेदारों की एक लॉबी वन विभाग के अधिकारियों के साथ साठगांठ कर ताड़ोबा-अंधारी में टाईगर रिजर्व परियोजना (टीएटीआर) को प्रभावित करने के लिए विशेष लॉबिंग कर रही है। इनके लॉबिंग के प्रभाव का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य के वनमंत्री ने इस विषय पर चंद्रपुर में 25 फरवरी को चंद्रपुर में एक जनसुनवाई आयोजित की है। इसमें उठने वाले मुद्दे पर की रिपोर्ट के लिए एक समिति भी गठित की गई है। जबकि जानकारों का कहना है कि बाघों के संरक्षण के लिए केंद्र सरकार की इस महत्वकांक्षी योजना के लिए इस तरह की जनसुनवाई की अवश्यकता ही नहीं है। हालांकि टाईगर रिजर्व क्षेत्र से बाहर 625 वर्ग किमी की जमीन अधिग्रहित करने का प्रस्ताव है। इससे 75 गांव विस्थापित होंगे। पिछले दिनों नागपुर आए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने इस योजना में विस्थापितों के पुर्नवास के लिए राज्य सरकार को 1000 करोड़ रुपया देने की घोषणा की थी। वरिष्ठ पर्यावरणविद् व सतपुडा फाऊंडेशन के प्रमुख किशोर रिठे का कहना है कि जनसुनवाई की रिपोर्ट के आधार पर टाईगर रिजर्व के बफर जोन का मामला नहीं टाला जा सकता है। पर्यावरण संरक्षण कानून 1986 के अनुसार कुछ परियोजनाओं
में ही जन सुनवाई की बात कही गई है, जबकि टीएटीआर बफर जोन इन परियोजनाओं से बाहर आता है। लिहाजा, इस पर किसी तरह की जनसुनवाई की जरूरत नहीं बनती है। जबकि राज्य वनविभाग स्वयं जनसुनवाई के लिए उत्सुक है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि यह जनसुनवाई खनन क्षेत्र के ठेकेदारों और उनके प्रभाव में आए भ्रष्ट अधिकारियों की साठगांठ से प्रभावित है। वन विभाग के सूत्रों का कहना है कि यदि ताड़ोबा-अंधारी क्षेत्र के टाईगर बफर जोन को अंतिम रूप से मंजूरी मिल जाती है, तो खनन क्षेत्र में सक्रिय ठेकेदार व वनविभाग के कुछ आला अधिकारियों की अच्छी-खासी कमाई बंद हो सकती है। लिहाजा, इसी डर से एक योजनाबद्ध तरीके से लॉबिंग की जा रही है। सूत्रों की मानें तो खनन विभागों के ठेकेदरों की लॉबी ने राज्य के वन मंत्री पतंगराव कदम को बफर जोन की मंजूरी देेने से मना करने के लिए करीब-करीब तैयार कर लिया है। विरोध के लिए रिजर्व क्षेत्र से प्रभावि होने वाले ग्रामीणों को भी उकसाया जा रहा है। जिससे कि वे सरकार के इस योजना का विरोध करें और यह बफर जोन प्रभावित हो। बफर जोन से विस्थापित होने वाले लोगों की शिकायत सुनने के लिए वनममंत्री ने चंद्रपुर में एक जनसुनवाई का निर्णय लिया। खानन विभाग और वन अधिकारियों की एक लॉबी इस बैठक में जनप्रतिनिधियों के माध्यम से बफर जोन की प्रस्तावित योजना को प्रभावित करना चाहते हैं। जनसुनवाई में ग्रामीणों को जबरदस्त रूप से विरोध करने के लिए अभी तैयार किया जाने लगा है।
ज्ञात हो कि कि वर्ष 2006 के वन्यजीव संरक्षण कानून (1972) के अनुसार टाईगर रिजर्व क्षेत्र के आसपास के इलाकों को वन क्षेत्रों से जोड़ कर बफर जोन बनाने की मंजूरी दी गई थी। जिससे कि बाघ वन क्षेत्रों तक ही सीमित रहें। मनुष्यों पर हमला न करे और कोई बाघों का अवैध शिकार नहीं कर सके।

मंगलवार, फ़रवरी 16, 2010

गडकरी राज में आएगा भाजपा में रामराज

आज से इंदौर में होने वाली पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में रामराज की नीतियों का खुलासा करेंगे भाजपा अध्यक्ष
नागपुर।
भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष नितिन गडकरी ने पार्टी को रामराज, सुशासन और अंत्योदय का नया मंत्र दिया है। संभावना है कि अपनी इसी नीतियों का खुलासा वे आज से इंदौर में शुरू होने वाली भाजपा की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में कर सकते हैं। भाजपा अध्यक्ष के ये नए मंत्र पार्टी में लंबे समय में चर्चा में रहे संगठन, संरचना और संघर्ष के मंत्रों का विस्तार माना जा रहा है। संभावना है कि विकास प्रक्रिया को गति देने के लिए सबसे अहम 22 क्षेत्रों पर पार्टी के दृष्टिकोण को गडकरी इंदौर अधिवेशन के भाषण में विस्तार से बताएंगे। ये प्रमुख 22 क्षेत्रों का संकेत पिछले दिनों गड़करी ने नागपुर में प्रेस से मिलिए कार्यक्रम में पत्रकारों से बातचीत में दिया था।

प्रस्तावों की पोटली में नीतियों का भंडार

गडकरी का मानना है कि भारत में अपनाए गए सोवियत संघ के मॉडल के बुरे परिणाम अब स्पष्ट नजर आने लगे हैं। इसी मॉडल का नतीजा है कि देश में गरीबी 12 प्रतिशत तक बढ़ गई है। इसलिए भाजपा सुशासन और अंत्योदय के लिए काम करेगी जिससे कि गरीबी में कमी आए और रोजगार के अवसर बढ़ें। ऐसा होने पर विकास का लाभ देश के अंतिम व्यक्ति तक पहुंच पाएगा। यह सुशासन के जरिए ही संभव हो सकता है। संभावना है कि इंदौर की बैठक में गड़करी निजी-सार्वजनिक भागीदारी के प्रभावी तरीके पर लागू करने पर जोर देने के अलावा खेती और कृषि प्रसंस्करण, उद्योगों का विकेंद्रीकरण, बढ़ती मांग की पूर्ति के लिए अक्षय ऊर्जा स्रोतों का दोहन, सिंचाई और जल प्रबंधन परियोजनाओं को युद्ध स्तर पर लागू करने, रोजगार की संभावना वाले राज्य स्तरीय उन परियोजनाओं पर भी निश्चित अवधि में पूरा करने आदि का प्रस्ताव रखेंगे।
तय कर सकते हैं नेताओं की जिम्मेदारी
राष्ट्रीय परिषद की बैठक में पारित होने वाले राजनीतिक प्रस्ताव के संबंध में यह उम्मीद है कि नितिन गडकरी पार्टी नेताओं के लिए पुरस्कार और दंड के मामले में पार्टी की रणनीति स्पष्ट करेंगे। इसके अलावा अनुशासनहीनता को भी किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करने की चर्चा राजनीतिक प्रस्ताव में होने की संभावना है। गडकरी पार्टी नेताओं के लिए जिम्मेदारी तय करने की बात भी उठा सकते हैं। हालांकि पार्टी नेताओं को जिम्मेदारी तय करने की गडकरी की यह आसान नहीं होगी। क्योंकि गड़करी ने ऐसे समय में पार्टी का नेतृत्व थामा है जब पार्टी में आंंतरिक कलह और गुटबाजी चरम पर रही। जानकारों का कहना है कि कुछ इसी नीतियों के साथ ही इंदौर की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में गडकरी सुशासन की रणनीति और पार्टी अनुशासन की नीति स्पष्ट कर सकते हैं।
०००००००००००००००००००

सोमवार, फ़रवरी 15, 2010

प्यार के दिन पांच किसानों ने की आत्महत्या

पांच दिन में विदर्भ में 16 किसानों ने मौत को गले लगाया
संजय स्वदेश
नागपुर। विदर्भ में किसानों की आत्महत्या का सिलसिला जारी है।
रविवार 14 फरवरी को विदर्भ के अलग-अलग इलाकों में पांच किसानों ने आत्महत्या कर ली। वेलन्टाइन डे और पुणे में हुई आतंकी हमले के विरोध के शोर में यह खबर सुर्खियों में नहीं आ पाई। विदर्भ जन आंदोलन समिति के अध्यक्ष किशोर तिवारी ने बताया कि 14 फरवरी को पांच किसानों ने आत्महत्या की। इन किसानों के नाम हैं- सुनील देशमुख, नेर (यवतमाल), सचिन लोखंडे, केवलत (अमरावती), बालकृष्ण वाखोडे, दानापीर (अकोला), मनकारा बाई, अंटारी (अकोला) और गुलाबराव, बुलढाणा। किशोर तिवारी ने इन किसानों की आत्महत्या के कारणों के बारे में बताया कि पूरा विदर्भ सूखे की चपेट में है और मजबूर किसान आत्महत्या की ओर उन्मुख हो रहे हैं। उन्होंने बताया कि पिछले पांच दिन में अमरावती, बुलढाणा, अकोला और वर्धा में कुल 16 किसान आत्महत्या कर चुके हैं।
ज्ञात हो कि विदर्भ के 14000 गांव सूखे की चपेट में हैं। फिलहाल सूखे से राहत के लिए सरकार किसी किस्म की तत्कालीन राहत भी नहीं दे रही है। विदर्भ जन आंदोलन समिति का कहना है कि इस सूखे से किसानों की खेती चौपट हो गयी है और उनके लिए खाने पीने का कोई इंतजाम नहीं है। न तो पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था हो पा रही है और न ही इंसानों के लिए भोजन की। किशोर तिवारी का कहना है कि वर्ष 2006 में विदर्भ ही भयावह स्थिति को देखते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने क्षेत्र का दौरा किया था। लेकिन इस साल की स्थितियां वर्ष 2006 से भी भयावह है। इतनी विषम परिस्थिति होने के बावजूद सरकार का इस समस्या की ओर कोई ध्यान नहीं है।
विदर्भ में सूखे की चपेट में अब तक 40 हजार से अधिक किसान आत्महत्या कर चुके हैं। समिति का कहना है कि यह आंकड़ा तो सरकारी है, वास्तविकता इससे और अधिक भयानक है।

रविवार, फ़रवरी 14, 2010

14 फरवरी-23 मार्च

युवा कवि श्री उमेश यादव की कविता

14 फरवरी-23 मार्च

इस बार वैलेंटाइन डे में,
तुम्हें नहीं दे पाऊंगा फूल,
नहीं मिलने आ सकूंगा तुमसे
किसी बाग या रेस्तरां में,
नहीं जा सकेंगे हम
साथ साथ कोई रूमानी फिल्म,
नहीं थिरक सकेंगे डिस्को में।

इसलिए नहीं कि
डर गया हूं मैं
वैलेंटाइन डे विरोधी गुंडों से,
इसलिए भी नहीं कि
वैलेंटाइन डे का विरोध कर
कहलाना चाहता हूं देशभक्त
और भारतीय संस्कृति का रक्षक,
केवल इसीलिए कि
आज के बाद नहीं रहेगी
पल भर की फुरसत,
इसलिए वैलेंटाइन डे ही नहीं,
आगे और कई बार
तुम नहीं करना मेरा इंतजार।

सुनो,
आज से अस्सी बरस पहले
वैलेंटाइन डे से ठीक 37 दिन बाद
शहीद हो गया था एक देशभक्त,
उम्र थी उसकी
मुझसे भी 5-6 बरस कम।
मेरी पीढ़ी जानती है
उसके बारे में सिर्फ इतना
कि असेम्बली में बम फेंककर
उसने उड़ा दी थी
ब्रिटिश हुकूमत की नींद
और हंसते हंसते
फांसी पर झूल गया था वह।
मेरी पीढ़ी नहीं जानती
उसका सपना,
चाहता था वह कि
देश में कोई भूखा न सोए,
सबके तन पर वस्त्र
और सिर पर छत रहे।

70 एमएम के परदे पर
बदहवास चेहरे देखकर
बड़ी हुई है मेरी पीढ़ी,
ईडियट बॉक्स में
कैद है उसका सोच।

दोष नहीं है मेरी पीढ़ी का भी,
आजादी मिली तो मेरे बुजुर्ग
खेलने लगे कुर्सीदौड़,
आगे जाकर दौड़ में
शामिल हो गए हम।

केवल अंगरेजमुक्त आजादी में
न रुका बाजार, न भ्रष्टïाचार
बिकने लगा इंसान
गली से लेकर संसद तक।
स्कूल बने सिर्फ साक्षरता के केन्द्र
नैतिकता की ऊंचाइयां
हासिल नहीं कर सके हम!

गिरवी हैं जीवनमूल्य!
कठिन है लड़ाई!
इस बार अंगरेज नहीं,
अपने हैं ठीक सामने!
लंबी चलेगी जंग
इसलिए इंतजार मत करना
मैं भगत सिंह का सपना
पूरा कर ही लौटूंगा।

-उमेश यादव

(पेशे से पत्रकार उमेश यादव पद्य विधा का ताजा झोंका माने जा रहे हैं।)

भगवा बिग्रेड ने पाक का नापाक झंडा फूंका

आज जनता को जगाने आतंक के विरोध में नागपुर में हुई सभा
संजय स्वदेश
नागपुर।
पुणे में हुए आतंकी हमले को लेकर देशभर में आतंकवाद विरोधी तीखी प्रतिक्रिया शुरू हो गई है। नागपुर के गोलीबारी चौक पर भगवा बिग्रेड के प्रमुख संगठन बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद, शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं ने संयुक्त रूप से एक सभा की। आतंकी घटना में मारे गए लोगों को श्रद्धाजलि देने के लिए दो मिनट का मौन रखा गया। आतंक की भत्र्सना की गई। इसके बाद आक्रोशित कार्यकर्ताओं ने आतंक विरोधी और पाकिस्तान विरोधी नारे लगाते हुए पाकिस्तान का झंडा जलाया। किसी तरह की अनहोनी रोकने के लिए पुलिस मुस्तैद थी। झंडा जलाने वाले कार्यकर्ताओं का कहना था कि देश में होने वाली हर आतंकवादी हमले के पीछे किसी न किसी तरह से पाकिस्तान का हाथ होता है। इसलिए पाकिस्तान और आतंकवाद के विरोध में पाकिस्तान का झंडा जलाया गया। सभा में नागपुर महानगर पालिका की महापौर वीजेपी नेता अर्चना डेहनकर और विश्व हिंदू परिषद के प्रदेश महासचिव हेमंत जांबेकर प्रमुख रूप से उपस्थित थे।
हेमंत जांबेकर ने कहा कि सरकार आम लोगों को सुरक्षा देने में पूरी तरह से असफल रही है। शनिवार को पुणे में आतंकी घटना करीब सवा सात बजे हुई। मीडिया के माध्यम से इस घटना के बारे में पूरे देश को मालूम चल गया। लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री को शाम आठ बजे तक यह नहीं मालूम की इस घटना को किसने अंजाम दिया। उन्होंने कहा कि सरकार माइ नेम इज खान के विरोध में सुरक्षा देती है। वेलन्टाइन डे पर अश्लीलता फैलाने वालों को संरक्षण देने की बात करती है। लेकिन आम आदमी की सुरक्षा की थोड़ी-सी भी चिंता नहीं है। 26/11 की घटना हो या पुणे की। पूरा देश यह जानता है कि देश में हर आतंकी हमले के पीछे पाकिस्तान का हाथ होता है। फिर मुख्यमंत्री पाकिस्तान को आड़े हाथ लेने में पीछे क्यों हट रहे है। देश का हर नागरिक जनता है कि इस तरह की घटनाएं पाकिस्तान की प्रॉक्सी वार का हिस्सा है। इस सभा और सभा में पाकिस्तान का झंडा जलाने का उद्देश्य है आम जनता को आतंकवादी के विरोध और आतंकवाद से लडऩे में नकाम सरकार को उखाड़ फेकने के लिए जागृत करना है।
महापौर अर्चना डेहनकर ने कहा कि नागपुर में मुंबई और पुणे की तरह आतंकी हमले न हो, इसके लिए उन्हें मिलजुल कर कार्य करना चाहिए और सर्तक रहना चाहिए।
इस मौके पर भाजपा के संजय भेंडे, बजरंग दल के प्रांत प्रमुख अमोल ठाकरे, युवा मोर्चा के अध्यक्ष प्रवीण दटके, शिवसेना के पुरुषोत्तम शेलोकर, विधायक विकास कुंभारे, विहिप के नागपुर शहर मंत्री श्रीकांत आगलावे, बंटी कुकड़े, जितेंद्र सिहं ठाकुर, परशु ठाकुर, शक्ति हिंगनेकर, राजेश अत्राम, प्रवीण सांदेकर, धीरज फरतोड़े समेत अनेक लोग उपस्थित थे।
०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००

शुक्रवार, फ़रवरी 12, 2010

भाजपा में उमा की वापसी तय, इंदौर में होगी घोषणा

संजय स्वदेश,
www.visfot.com, 12 February, 2010 09:52;00
उमा भारती भाजपा में वापस आ रही हैं. गुरुवार को दिन में नागपुर में भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत से उमा भारती की गुप्त मुलाकात में उनकी वापसी की तिथि भी तय हो गयी है और इंदौर में भाजपा कार्यकारिणी के आखिरी दिन उनकी वापसी की घोषणा करने की तैयारी है.

इंदौर में होगा खुलासा

मोहन भागवत और नितिन गडकरी बुधवार की शाम की शाम नागपुर में थे। दोनों एक कार्यक्रम में साथ थे। गुफ्तगू करते भी दिखे थे। अगले दिन गुरुवार को उमा भारती आईं। दोनों से उमा भारती की संघ मुख्याल में ही मुलाकत हुई। पर संघ और भाजपा ने इसका औपचारिक खुलासा नहीं किया है। उमा भारती के पारिवारिकर सूत्रों की मानें तो भाजपा में उमा की वापसी करीब तय हो चुकी है। संभावना है कि 19 फरवरी तक उमा भाजपा में होगी। इसको लेकर औपचारिक रूप से इंदौर में होने वाली पार्टी के अधिवेशन में आम सहमति बनाई जाएगी। अधिवेशन के अंतिम दिन उमा को पार्टी में वापस लेने की घोषणा हो सकती है।

नितिन गडकरी पहले ही दे चुके हैं संकेत
ज्ञात हो कि भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने अध्यक्ष नियुक्त होने के बाद नागपुर में एक पत्रकार से अनौपचारिक बातचीत में कहा था कि वे पार्टी से बाहर गए जनाधार वाले दिग्गज नेताओं की घर वापसी चाहते हैं। बाद में जब यह मामला सुर्खियों में आया तो गडकरी ने कहा कि यदि पार्टी से निकले नेता पार्टी में दुबारा वापस आना चाहते हैं तो इस पर पार्टी और संबंधित नेता के राज्य स्तर की ईकाई से चर्चा करके ही निर्णय लिया जाएगा।

पहले भी गुपचुप आ चुकी है संघ मुख्यालय
उमा भारती पहले भी गुपचुप तरीके से संघ मुख्यालय आ चुकी हैं। हालांकि तब भी उन्होंने कहा था कि वे वर्धा के एक गांव में पारिवारिक कार्यक्रम में हिस्सा लेने आईं थीं। उसी दिन संसद में लिबरहान आयोग की रपट संसद में पेश हुई थी। उसमें उमा भारती का नाम था। तब उमा ने कहा था कि आयोग की रपट में नाम होने की खबर सुन कर वे नागपुर रूक गईं थी और अपना पक्ष रखने के लिए मीडिया से बातचीत की। तब भी सूत्रों ने कहा था कि वे गुपचुप तरीके से संघ मुख्यालय घुम आईं थीं।

मजबूर हैं उमा
पुरानी कहावत है। मरता क्या न करता? अपनी अलग पार्टी बनाकर उमा कुछ नहीं कर पाईं। भाजपा से अलग होने के बाद उमा को अपने घटते वजूद का अहसास हो चुका है। दूसरे भारतीय जनशक्ति पार्टी को चलाने और मजबूत करने के लिए पार्टी को वित्तिय संकट गंभीर है। पहले प्रह्लाद पटेल का सहारा था। अब उनका साथ भी पूरी तरह से छूट चुका है। लिहाजा, उमा भारती के सामने भाजपा के आलावा दूसरा कोई विकल्प बचा नहीं है।

गुरुवार, फ़रवरी 11, 2010

खान के 'रण में कूदी उमा भारती

उमा ने कहा :- बाल ठाकरे-राज देश छोड़ें

संजय स्वदेश

नागपुर।

शिवसेना बनाम अभिनेता शाहरुख खान के 'रणÓ में भारतीय जनशक्ति पार्टी की फायरब्रांड नेता उमा भारती ने भी छलांग लगा दी है। उन्होंने शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे पर उन्हीं की आक्रामक शैली में हमला बोलते हुए कहा है कि हिन्दी का विरोध करने वाले बाल ठाकरे और उनके भतीजे राज ठाकरे लंदन जाकर बस जाएं और वहीं मराठी का प्रचार-प्रसार करें। संतरानगरी में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने आईं उमा भारती ने रेलवे स्टेशन पर कुछ पत्रकारों से बातचीत में कहा कि ये दोनों नेता हिन्दी का विरोध कर रहे हैं, जबकि अंग्रेजी भाषा के बढ़ते प्रभाव पर किसी तरह की आपत्ति नहीं कर रहे हैं। सुश्री भारती ने अभिनेता शाहरुख खान की फिल्म 'माई नेम इज खानÓ का विरोध न करने की सलाह देते हुए कहा कि ऐसे आंदोलनों से फ्लॉप होने वाली फिल्म कई बार हिट हो जाती है।
उमा ने कहा कि उम्र के लिहाज से शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे को अब लिखना बंद कर देना चाहिये। उन्होंने पिछले दिनो क्या लिखा, क्या कहा यह भी याद नहीं? उनके लिखने बोलने में अब पहले जैसी धार या ललकार भी नहीं रही। दोनों चाचा-भतीजे बेवजह लोगो को भड़काने का कार्य कर रहे हैं। और दोनों की आपसी लड़ाई का कांग्रेस न केवल लाभ ले रही है, बल्कि उन्हें संरक्षण देने का भी कार्य कर रही है।

... tab होता विरोध तो ठीक था
उन्होंने कहा की शाहरूख खान पर पहले भी संदिग्ध लोगों के साथ संबंध होने का आरोप लग चुका है। जब शाहरूख को अमेरिका हवाई अड्डे पर रोका गया था तो उसने इस बात को लेकर नाराजी व्यक्त कर लोगों की सहानुभूति पाना चाहा था। मगर बाद में जब उस पर और गंभीर आरोप लगे तब खान खामोश हो गया। उन्होंने कहा कि इस खान में दम नहीं है। इसका विरोध करने से इस फिल्म को अब फिल्म काफी लोकप्रिय हो चुकी है। शिवसेना के विरोध प्रदर्शन का लाभ फिल्म निर्माता तथा शाहरूख खान को मिलेगा।
शाहरुख की देशभक्ति पर शक नहीं
उमा ने कहा कि मैं शाहरुख खान की देशभक्ति पर शक नहीं करती। मगर शाहरूख का नाम भी कुछ उन संदिग्ध लोगों के साथ जुड़ चुका है जो आतंाकवादी संगठनों से संपर्क रखते हैं। यदि शिवसेना इस बात का विरोध करती तो जायज था। मगर फिल्म के विरोध में कोई तुक नहीं दिखाई दे रहा है।
चाता-भतीजे को चुनौति
उन्होंने कहा कि उत्तर भारतियों का विरोध जायज नही है। मैं तो दोनों चाचा-भतीजे को चैलेंज करती हंू की जब मैं मुंबई जब जाऊं तो मेरा विरोध करके दिखाये। मैं उनसे बिलकुल नहीं डऱती।

बुधवार, फ़रवरी 10, 2010

‘मोरा गोरा अंग लेई ले....’।

जय भगवान गुप्त ‘राकेश’

भारत के लोग भी अजीब हैं। बैठे-ठाले चलती गाड़ी में अड़ंगा लगाने का अजीब शौक पाले हुए हैं और इसी के चलते दूसरों की उन्नति, प्रगति और नेक-नामी से कुढ़ते हुए कुछ न कुछ नया शोशा खड़ा करते रहते हैं। ‘स्लमडाॅग मिलेनियर’ फिल्म में जब रहमान और गुलजार को दो आॅस्कर अवार्डों से नवाजा गया तो पहले तो यह कहा गया कि गायक सुखविंदर को कुछ नहीं मिला और उसके लिए जिम्मेवारी रहमान पर डाली गई, बाद में एक और गीत को लेकर हमारी फिल्मों के सुनहरे युग के संगीतकार रवि जी ने अपनी पुरानी फिल्म ‘नरसी भगत’ का नाम लेकर एक गीत ‘दर्शन दो घनश्याम नाथ मेरी अंखियां प्यासी रे’ के लिए दो करोड़ रुपए का दावा ठोक दिया।
अब देखिये बैठे-बिठाये ना आजकल रवि जी कहीं सक्रिय दिखाई देते हैं और न ही किसी चोपड़ा की फिल्म में संगीत संयोजन कर रहे हैं फिर भी उनकी आदतें नहीं जाती और 50 साल पुरानी फिल्म के लिए अपने गीत को सीने से लगाए हुए हैं और उसका मुआवजा मांग रहे हैं, वो भी दो करोड़ रुपए। अब कौन समझाये कि भई जब फिल्म बनी थी और आप ने संगीत दिया था तो उसका महेनताना तो ले चुके। अब एक तो रहमान साहब ने आपके गीत को पुनः लोकप्रिय बनाया, लोगों को याद दिलाया कि हमारे यहां ऐसे-ऐसे महान संगीतकार थे जिनके गीत पचास साल बाद भी दोहराए जा रहे हैं और आप हैं कि एहसान मानने की बजाय मुआवजा मांगने लग गए।
अब एक और नया किस्सा शुरू हो गया है। अब जनाब अपनी शायरी में नए-नए प्रयोग करने के लिए मशहूर जनाब गुलजार साहब पर ही निशाना साध दिया गया है, वह भी एक हिन्दी स्थापित एवं प्रतिष्ठित कवि स्व. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की पुत्री उभा सक्सेना द्वारा कि गुलजार द्वारा फिल्म ‘इश्किया’ का अपना बताया जा रहा गीत ‘इब्न-ए-बतूता’ वास्तव में उनके पिताश्री द्वारा रचित कविता है।
अब बताइये यह भी कोई बात हुई। अब गुलजार साहब इतने बड़े साहित्यकार हैं और किताबों के लगातार अध्ययन में व्यस्त रहते हैं। कहीं पढ़ ली होंगी सक्सेना जी की लाइनें और संगीतकार के साथ गीत लिखते वक्त ‘इब्न-ए-बतूता’ फिट बैठ गया होगा तो हो गया गीत तैयार और गाया गया। अब बताइये इसमें चोरी कहां से आ गई। अभी तक सबसे ज्यादा इस तरह के आरोपों को झेल रहे जनाब संगीतकार अनु मलिक जी अक्सर कहते हैं कि सुर तो सात ही हैं, मुझे अगर आप चोर मानते हैं तो पहले वालों ने भी तो कहीं से लिए ही होंगे इसी तरह के तर्क के आधार पर कहा जा सकता है कि हिन्दी में वर्ण तो 46 ही हैं, आखिर सक्सेना जी ने भी कभी तो कविता को जोड़ा ही होगा। और अब पचास साल होने को आए तो कभी तो रायल्टी का हक खत्म होता होगा बड़ी ज्यादती है कि फिल्म वालों पर जब जो चाहे ले-दे कर इल्जाम लगा देते हैं, यह नहीं देखते कि कितनी मुश्किल से फिल्म तैयार होती है और बड़ी किस्मत वालों की फिल्में चल पाती हैं और वही कलाकार जब फिल्म चल पड़ती है तो सिंग इज किंग हो जाता है नहीं तो चांदनी चैक का गायक भी नहीं बन पाता और सिंगापुर से भी बैरंग आ जाता है।
असल में हमें समझना चाहिए कि चोरी-चकारी छोटे लोगों का काम होता है बड़े लोग कभी भी चोरी नहीं करते, वे तो दूसरे की हल्की चीजों को प्रमोट करते हैं और उनकी शान बढ़ाते हैं। संत शिरोमणि तुलसीदास आज से साढ़े पांच सौ साल पहले ही लिख गए - ‘‘समरथ को नहीं दोष गोसाईं’’ को वैसे ही थोड़ा कह गए, उनके रामचरित मानस को भी तत्कालीन साहित्यकारों ने हर तरह से दर-किनार करने का काम किया था, इसलिए सक्सेना की बेटी को समझना चाहिए कि इतने बड़े समर्थ गीतकार, निर्माता-निर्देशक पर उंगुली उठाने से पहले अगर उन्हें कुछ एतराज था तो ऐसे व्यक्ति को पहले विश्वास में लेना चाहिए था वे अब तक उन्हें कई फिल्मों के करार इत्यादि दिलवा देते और दोनों का काम बखूबी चलता रहता और अभी तक जिस फिल्म जगत में संगीतकार अनु मलिक और रहमान पर ही गीत-संगीत चुराने के लिए ले-दे हो रही थी उसमें उन्होंने इतने बड़े नाम को खामहखाह ही जोड़ दिया। अब यह तो स्वर्गीय शैलेंद्र के बेटों की शराफत है कि उन्होंने जावेद अख्तर पर ‘‘फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी’ जोकि शैलेंद्र जी द्वारा ‘श्री 420’ फिल्म का गीत है के लिए कोई आरोप नहीं लगाया और इसी आधार पर जब वहीं की वहीं एक प्रमाणित गीत के लिए कोई चोरी का इल्जाम नहीं बनता तो एक हिन्दी कविता के आधार पर तो फिल्मी गीत के चुराए जाने का मामला बनना ही नहीं चाहिए क्योंकि दोनों की दुनिया ही अलग है। और सब जानते हैं कि फिल्मी गीतों को साहित्य नहीं माना जाता और साहित्यिक गीतों को गाने लायक नहीं समझा जाता वर्ना तो फिल्म जगत में आज पंत, निराला और बच्चन का ही राज होता वहां साहिर, हसरत और मजरुह और गुलजार का क्या काम फिल्मी गीत तो बनते ही परिस्थिति के अनुसार संगीत निर्देशक द्वारा तैयार की गई धुनों पर हैं अब वहां जो शब्द सूझ गए वे कुछ भी हो सकते हैं मगर बकौल गुलजार साहब चोरी के नहीं हो सकते। और जब इतना बड़ा शायर यह बात कह रहा है तो हमें उनकी बात का एतबार करना चाहिए आखिर वे आॅस्कर अवार्ड विजेता हैं और उनके गीत तो शुरू से ही दूसरों को देने की बात प्रेरणा देते हैं जैसे ‘मोरा गोरा अंग लेई ले....’।

सोमवार, फ़रवरी 08, 2010

आतंकवाद शोले के गब्बर से भी क्रूर था असली गब्बर

याहू! मेरा याहू! मेल जागरण मुख्य पृष्ठ Font help खोज


dainik_jagran/Jan 19, 09:56 pm
आगरा। 'बेटा रो मत चुप हो जा, नहीं तो गब्बर आ जायेगा' 'शोले' के गब्बर सिंह का यह डॉयलॉग केवल कल्पना आधारित नहीं था, बल्कि वास्तविकता में एक समय चंबल घाटी में गब्बर की हुकूमत चलती थी। यही नहीं, वास्तविक गब्बर फिल्मी गब्बर से कहीं अधिक क्रूर था। उसकी क्रूरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 'शोले' में जहां फिल्मी गब्बर ने सिर्फ ठाकुर बलदेव सिंह के परिवार को बरबाद किया था, चंबल के कुख्यात ने दो दर्जन परिवारों के कुलदीपक बुझाकर निर्ममता की हद पार कर दी थी।

अमजद खान ने 'शोले' फिल्म में जिस गब्बर का किरदार जिया, वह मूल रूप से मध्यप्रदेश राज्य के भिंड का रहने वाला था। 1957 में 22 बच्चों को लाइन में खड़ा करके गोली भून डाला था। ऐसा उसने तांत्रिक के कहने पर इष्ट देवी को प्रसन्न करने के मकसद से किया था। तांत्रिक का कहना था कि अगर वह 116 बच्चों की बलि दे तो उसके बल और साम‌र्थ्य में वृद्धि होगी। वैसे कुछ ग्रामीणों के मुताबिक उनके गांव के किसी व्यक्ति के गब्बर की मौजूदगी की खबर पुलिस को देने से बौखलाकर उसने बच्चों की हत्याएं की थीं। इस कांड के बाद उ.प्र. और म.प्र. सरकार ने उस पर 20-20 हजार, जबकि राजस्थान सरकार ने 10 हजार का इनाम घोषित किया था।

गब्बर उर्फ गबबरा गुर्जर 1926 में मप्र के भिंड जिले के एक मजरे में पैदा हुआ था। 13 नवम्बर 1959 को मप्र पुलिस के तत्कालीन युवा आईपीएस आरपी मोदी ने उसे 'गम का पुरा' नामक गांव में मुठभेड़ में ढेर कर दिया था। पूर्व आईपीएस और पुलिस एकेडमी हैदराबाद के पूर्व निदेशक पीवी राजगोपाल द्वारा संपादित और हाल में प्रकाशित पुस्तक 'द ब्रिटिश, द बैंडिट्स एंड द बॉर्डर मैन' में इसका ब्यौरा है। यह पुस्तक मध्यप्रदेश के पूर्व आईजी केएफ रुस्तम जी की पुलिस डायरी और रिकार्डो पर आधारित है।

नेहरू जी को था बर्थडे गिफ्ट

आगरा : गब्बर सिंह को धराशाई किये जाने की खबर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को उनके 59वें जन्म दिवस पर उपहार स्वरूप खुद रुस्तम जी ने सुनाई थी। राजगोपाल की पुस्तक में उल्लेख है कि नेहरू जी इस क्रूर दस्यु का जल्द से जल्द खात्मा चाहते थे।

गब्बर गुर्जर को ही जिया था अमजद ने

आगरा : सांसद जया बच्चन के पिता तरुण कुमार भादुड़ी ने अपनी रिपोर्टो पर आधारित एक पुस्तक 'अभिशप्त चंबल' भी लिखी। इसमें गब्बर गुर्जर का विवरण भी है। तरुण ने पत्रकार के नाते चंबल के बारे में रिपोर्टिग की थी। जब अमजद खान को गब्बर सिंह के रोल के लिए चुन लिया गया तो उसने सबसे पहले इसी किताब को मंगवाया था और शूटिंग के दौरान लगातार इसे साथ रखता था। तम्बाकू चबाने और 'कितने आदमी थे' डॉयलॉग भी इसी किताब में दिये विवरण पर आधारित माना जाता है।

नौकरी मांगने की बजाय निर्माण करें मराठी माणुस : मनोहर जोशी

संजय स्वदेश
नागपुर। मराठी लोगों को नौकरी मांगने की बजाय नौकरी निर्माण करनी चाहिए। मराठी आदमी व्यापार उद्योग में सामने आए और सिर्फ पैसा कमाने का उद्देश्य उसके सामने हो और इसी उद्देश्य को सामने रखकर 24 घंटे मेहनत करे। यह आह्वान शिवसेना के वरिष्ठ नेता मनोहर जोशी ने किया है। वे नागपुर के हिंगणना स्थित जे.एम.सी.सी.आई.के सत्कार समारोह में बोल रहे थे।

मनोहन जोशी ने कहा कि मैं यह बात इसलिए बोल रहा हूं, क्योंकि मैं भी एक व्यवसायी व्यापारी और उद्योजक हूं। समारोह में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी का सत्कार होने वाला था, लेकिन स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के कारण नितिन गडकरी समारोह में नहीं आ सके। समारोह में मराठी उद्योजकों व्यवसायिकों को उल्लेखनीय कार्य के लिए सम्मानित किया गया। समारोह मेें सांसद शिवाजीराव अढालराव पाटिल प्रमुख अतिथि तथा उपमहापौर शेखर सावरबांधे, सुधीर सावंत, मनोहर सालवे, विकास देवधर, मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे।

जोशी ने कहा कि नागपुर में यह सत्कार समारोह आयोजित करने की वजह यह है कि यहां के मराठी उद्योजक अपने उद्योगधंधों को और तेज गति प्रदान करें और चेम्बर के सदस्य बने। इसी दिशा में चेम्बर काम कर रहा है और नागपुर के मराठी उद्यमी भी इस कार्य को आगे बढ़ाएंगे। मराठी व्यक्ति व्यवसाय और धंधा कर पैसा कमाए। यही है अमीर बनने का एकमात्र रास्ता। उन्होंने कहा कि जिद करो, स्पर्धा करो। कष्ट उठाओ और खूब पैसा कमाओ। मैंने अपना व्यवसाय कोचिंग क्लास से शुरू किया, फिर तकनीक के क्षेत्र में गया। आज राज्य में 52 और देश के अन्य शहरों में 12 मेरी तकनीकी संस्थाएं हैं। होटल, बांधकाम आदि व्यवसाय भी मैं कर रहा है। इस देश में ऐसा कोई नियम नही है। जिसे 'मोड़ा' न जा सके इसलिए नियमों का हवाला मत दो। बल्कि पैसे कमाने के नियम बताओं उन्हें ढूंढने की कोशिश करो। श्री. जोशी ने नागपुर विभाग के चेम्बर के अध्यक्षपद के मंगेश काशीकर, सचिव के लिए प्रदीप नगरारे तथा कोषाध्यक्ष के लिए विवेक पाठक के नामों की चेम्बर के कार्याध्यक्ष शिवाजी घोषणा की।

राव पाटिल ने कहा कि मराठी व्यक्ति का विकास हो इसी उद्देश्य से 1994-95 में चेम्बर की स्थापना की गई थी। कला साहित्य के क्षेत्र में मराठी भाषी है। लेकिन उद्योग धंधों में नहीं मराठी लोगों को एक प्लेट फॉर्म पर लाने के उद्देश्य से चेम्बर की स्थापना की गई। देश-विदेश के बड़े-बड़े उद्योगपति जो प्रकाश में नही आना चाहते थे। चेम्बर ने उन्हे सामने लाया ताकि उनसे प्रेरणा और मार्गदर्शन लेकर मराठी व्यक्ति व्यवसाय में आगे बढ़ सके। इस अवसर पर गोपालराव सिराड़कर, अजीत दिवालकर, अतुल यमसवार, सुनील सिर्सीकर और डॉ. चंद्रशेखर देशपांडे का शाल श्रीफल व सम्मान चिन्ह देकर सत्कार किया गया। कार्यक्रम की शुरूआत दीप प्रज्ज्वलन से हुई। मंच संचालन स्मिता खनगई तथा आभार प्रदर्शन प्रदीप नगरारे ने किया। कार्यक्रम बड़ी संख्या में मराठी उद्योजक उपस्थित थे।

शनिवार, फ़रवरी 06, 2010

मृत्यु पूर्व किसी एक बयान के आधार पर सजा नहीं

बांबे उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने कहा है कि यदि मृतक ने मरने के पूर्व एक से ज्यादा बयान दिए हो और सभी बयामों में घटना की वजह अलग-अलग बताई गई हो तो किसी एक बयान को स्वीकार कर आरोपियों को सजा देना, आरोपी के साथ अन्याय होंगा। न्यायाधीश ए.पी.लावांदे व पी.डी.कोदे की संयुक्तपीठ ने ऐसे ही एक मामले में मरने के पूर्व दिए गए 4 बयानों को दर-किनार कर आरोपियों को निर्दोष घोषित कर बरी कर दिया हैं। अदालत ने यह फैसला दहेज बली के मामले में देते हुए आरोपी बालू पोरेड्डीवपार एवं श्रीमती कलाबाई संतोषवार को रिहा किया हैं।
अभियोजन पक्ष के अनुसार आरोपी बालू उसकी मां पार्वताबाई व बहन कलाबाई के साथ मिलकर उसकी पत्नी राजेश्वरी को दहेज के लिए प्रताडि़त करता था। दहेज की मांग पूरी नहीं होने पर इन्होंने राजेश्वरी पर केरोसिन ड़ालकर उसे आग के हवाले कर दिया था, जिसके बाद मौत हो गई। पुलिस द्वारा दर्ज किए गए मामले की सुनवाई कर जिला अदालत ने बालू व कलाबाई को दोषी करार देते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई थी। जिला अदालत द्वारा दी गई सजा को चुनौती देते हुए अधिवक्ता राजेन्द्र डागा ने हाईकोर्ट को बताया मृतक ने मरने के पूर्व 4 बयान दिए थे। इन सभी बयानों में अलग- अलग लोगों पर केरोसिन छिड़कने, पकड़कर रखने एवं आग लगाने के आरोप लगाए गए हैं। ऐसे हालात में जिला अदालत ने 4 में से एक बयान को स्वीकार कर आरोपियों को सजा देकर गलती की है। अधिवक्ता डागा ने जिला अदालत के फैसले को खारिज कर आरोपियों को बरी करने के आदेश देने की प्रार्थना हाईकोर्ट से की थी।

अगले चुनाव में उम्मीदवारों की सूची जारी करेंगे बाबा रामदेव

तीन साल में 150 लाख करोड़ की हो सकती है देश की जीड़ीपी : बाबा रामदेव
संजय स्वदेश
नागपुर।

देश की राजनीति की दशा और दिशा बदलने के लिए योग गुरु बाबा रामदेव अगले चुनाव में अपने उम्मीदवरों की सूची जारी करेंगे। बाबा रामदेव नागपुर के धंतोली स्थित तिलक पत्रकार भवन में पत्रकारों से अनौचारिक चर्चा कर रहे थे। उन्होंन कहा कि उन्हें राजनीति नहीं करनी है, बल्कि देश की राजनीति बदलनी है। आज राजनीति का अर्थ घटिया कार्यों से लगाया जाता है। जब भी कोई गलत कार्य करता है, लोग कहते हैं क्यों राजनीति करते हो। इसी घटिया राजनीति को बदलनी है। योग के साथ राजनीति बदलने की बात करना देशद्रोह नहीं। उन्होंने बताया कि यह सब कुछ उनके राष्ट्रीय स्वाभिमान अभियान का हिस्सा होगा। सत्ता भ्रष्टाचारी, बेईमान लोगों के लिए नहीं है। इनकी राजनीति को उखाड़ फेंकने के लिए योग के साथ नई भूमिका में आया हूं। इसके लिए गांव-गांव में ईमानदार कार्यकर्ताओं को जोड़ रहे हैं। ये कार्यकर्ता हर गांव में नि:शुल्क योग विद्यालय संचालित करेंगे। हर जिले में कम से कम 500 कार्यकर्ता बनाने का लक्ष्य है। यदि हर जिले के सौ कार्यकर्ता ईमानदारी से हर दिन 11 नये लोगों को जोड़े तो एक जिले में एक माह में 30 हजार से भी ज्यादा स्वाभिमानी कार्यकर्ता बनेंगे और यही कार्यकर्ता लोकसभा में अपने ईमानदार प्रतिनिधि भेजेंगे, विधानसभा की राजनीति तय करेंगे। उन्होंने कहा कि हर गांव में योग गुरु लोगों को बीमारी से मुक्त करेंगे। योग से स्वस्थ्य हुआ व्यक्ति बुराई से मुक्त होगा। हजारों ऐसे उदाहरण है कि योग करने वाले व्यसनों से मुक्त हुए हैं।
ये है बाबा बजट
बाबा रामदेव ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित होनी चाहिए। देश में ग्रामीण उद्योग पर जोर देना चाहिए। विलेज हाउसिंग स्कीम चलानी चाहिए, हर गांव में स्कूल और चिकित्सालय होना चाहिए। कचरा का बेहतर प्रबंधन हो, कृषि में निवेश हो। इस तरह से उन्होंने 12 सेक्टर में विशेष कार्य करने की बात कही। इससे देश का जीडीपी अपने आप बढ़ जाएगा। यदि सरकार इन क्षेत्रों में ध्यान दे तो अगले तीन साल में देश का जीड़ीपी 150 लाख करोड़ का हो सकता है। अब आप कहेंगे कि इसके लिए पैसे कहां से आएंगे। स्वीस बैंक में पड़े काले धन को मंगाने में क्या बुराई है?
बड़े नोट करों बंद, रूक जाएगा भ्रष्टाचार

बाबा रामदेव ने कहा कि अब जनता बहुत जल्द केंद्र सरकार की बेवकूफाना बजट देखेगी। यह बजट ग्राम अधारित नहीं होती है। उन्होंने कहा कि यदि देश को भ्रष्टाचार मुक्त करना है, तो बड़े नोटों की छपाई बंद कर देनी चाहिए और बड़े नोटों को तीन-चार माह की सूचना देकर रद्द कर देनी चाहिए। जब कोई किसी को करोड़ों का का रिश्वत देगा तो उसे ट्रक में भर कर ले जाएगा।
रखने वालों को गोदाम बनाने पड़ेंगे। इससे भ्रष्टाचार पर स्वत: लगाम लगेगा। एक सवाल के जवाब में बाबा रामदेव नक कहा कि अब जो लोग रिश्वत के रूप में दूसरी चीज जैसे सोने का बिस्कुट आदि मांगते हैं, यह रास्ता भी बंद हो सकता है। रिश्वत देने वाला नोटों भरा ट्रक लेकर तो खरीदारी करने जाएगा नहीं। वह चेक से भुगतान करेगा। इससे बेहतर होगा कि वह ईमानदारी से कार्य करंे और करायें।
ब्यूरोक्रेट्स के आगे झुक गए थे मनमोहन सिंह

उन्होंने बताया कि बड़े नोटों को छापना बंद करने की बात उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी की थी। मनमोहन सिंह बहुत बड़े अर्थशास्त्री हैं। मनमोहन सिंह ने भी स्वीकार किया कि बड़े नोट बंद होने से भ्रष्टाचार रूकेगा। तब मनमोहन सिंह ने बताया कि जब वे रिजर्ब बैंक के अपने गर्वनर के कार्यकाल में थे, तब बड़े नोट बंद करने की पहल भी की थी। लेकिन देश के ब्यूरोक्रेट्स ने ऐसा नहीं होने दिया। लेकिन अब मनमोहन सिंह स्वयं प्रधानमंत्री हैं, तो बड़े नोट बंद करने में क्या परेशानी है।
वैदिक चिकत्सा में हो शोध
बाबा रामदेव ने कहा कि 50 लाख करोड़ रूपये के हेल्थ सेक्टर में पारंपरिक वैदिक चिकित्सा पद्धति का योगदान नगण्य है। पारंपरिक शिक्षा पर शोध होनी चाहिए। जिससे की सस्ते में गरीबों को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध हो सके। 99 प्रतिशत बीमारियों का समाधान योग में है।
कोई मराठी या बंगाली में न्याय क्यों नहीं मांगता
मराठी मुद्दे पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में योग गुरु ने कहा कि भाषावाद की समस्या की जड़ निर्धनता और भ्रष्टाचार है। महाराष्ट्र के लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है। दूसरे राज्यों के लोग वहां रोजगार नहीं होने से यहां आ रहे हैं। सभी को समझना चाहिए कि यह भारत है और भारत सबका है। राज्य के रोजगार में स्थानीय लोगों की प्राथमिकता तक बात ठीक है, लेकिन लेकिन भाषा के नाम पर मारपीट करना निश्चय ही गलत है। उन्होंने कहा कि अदालत की भाषा अंग्रेजी है। कोई क्यों नहीं कहता है कि उसे बंगाली या मराठी भाषा में न्याय चाहिए। मराठी महाराष्ट्र की भाषा नहीं है। यह भारतीय भाषा है। इसे भारतीय भाषा के रूप में सम्मान होना चाहिए।
कानून अंग्रेजों के जमाने का
बाबा रामेदव ने कहा कि देश में कानून व्यवस्था अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे हैं। ये कानून अंग्रेजों ने भारतीयों का दबाने और लुटने के लिए बनाये हुए थे। आजादी के इतने बर्ष बाद अंग्रेजों के जमाने का कानून चल रहा है। इसे बदलना चाहिए।

००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००

गुरुवार, फ़रवरी 04, 2010

लड़कियों के चरित्र पर लांछन लगाने वाले पत्रकार

संजय स्वदेश

इन दिनों में एक-दो पत्रकार महोदय दो-चार बेव-ब्लॉग पर मीडिया के उन लोगों पर नाम और संस्थान के नाम लिए बगौर संकेतों से चर्चा कर रहे हैं, जो महिलाओं का यौन-शोषण करते हैं। चर्चा में उन महिलाओं मीडियाकर्मियों की ओर भी संकेत हैं, जो इस पेशे में आगे बढऩे के लिए प्रभावशाली सहकर्मी के साथ हमबिस्तर होती है। ऐर्सी चर्चाओं पर तरह-तरह की प्रतिक्रिया आईं। पर प्रतिक्रिया देने वाले अधिकतर मर्द निकलें। एक दो बहनों ने हिम्मत दिखा कर प्रतिरोध किया। कहने की कोशिश की कि लड़कियां उतना समझौता नहीं करती, जितना कि लिखा जा रहा है?
जो भी हो, मामला जब भी सैक्स से जुड़ा होता है, उसे चटकारे लेकर लिखे-पढ़े और सुने जाते हैं। पर इन चर्चाओं ने किसी मर्द ने प्रतिभाशाली महिला मीडियाकर्मी का उदाहरण नहीं दिया। आज बेहतरीन कार्य करने वाली किसी भी महिला मीडियाकर्मी के सहकर्मी से चर्चा करें। उनमें से दो-चार उनके चरित्र पर लांछन लगाने वाले जरूर मिल जाएंगे। चर्चा करने वाले मीडिया के दूसरे हाउस तक भी पहुंचती है। पत्रकारों की आपसी चर्चाओं में चटकारे लेकर संबंधित महिला पत्रकार के इज्जत पर संदेह आम हो चुकी है।
सफलता की राह पर आगे बढ़ रही महिलाओं के मनोबल को गिराने का सबसे मजबूत हथियार है, उनके चरित्र पर लांछन लगाना। यह सबसे आसान काम हैं। झट से उसके साथ किसी का संबंध जोड़़ दो। शब्दों से उसकी इज्जत को तार-तार कर दो। मैंने भी सुना है, टी.वी. पर कई दिग्गज महिला मीडियाकर्मियों के बारें में कि उनका यौन संबंध फलां-फलां के साथ है। इन्हीं संबंधों पर वे आगे बढ़ी है। पर कभी भरोसा नहीं किया। जब व्यक्ति का चरित्र पतित होता है, तो उसका आत्मबल कमजोर हो जाता है। और मीडिया में कमजोर आत्मबल वाले भला कहां टिकते या टिकती हैं? चलिए कुछ देर के लिए मान भी लेते हैं, कि ऐसे संबंधों पर कुछ महिलाएं आगे निकल गई। लेकिन जो आगे निकली हैं, जरा उनके कार्यों को तो देखें। सफलता की शिखर पर बैठी महिला मीडियाकर्मी क्या पुरुषों से कम काम करती हैं?
मजेदार बात यह है कि महिला पत्रकारों के चरित्र पर लांछन लगाने वाले ऐसे लोग हैं जो पत्रकारिता में किसी न किसी कारणवश पिछड़ कर कुंठित हो चुके हैं। निराश होकर प्रतिभाशाली पत्रकारों की सफलता की आग से जल रहे हैं। मैं प्रिंट मीडिया के कई हाउस में काम कर चुका हूं। महिलाएं सहकर्मी रहीं। हमारे पुरुष सहकर्मियों ने भी महिला सहकर्मियों के बारे में चरित्र हनन को लेकर चर्चाएं की। लेकिन मुझे कभी उन पर संदेह नहीं हुआ। उनके कार्य प्रखर और तेवर भरे रहे।
पेशें में तेवर दिखाने वाली महिलाओं ने जब भी किसी पुरुष के साथ हंस कर बात क्या कर ली, झट से चर्चा होने लगी-कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर हैं।
फिलहाल अभी ब्लॉग और बेव पर जितनी चर्चाएं हो रही हैं और जिस तरह से महिला पत्रकारों की आबरू उछाली जा रही है, वास्तव में उतना होता नहीं है। किसी भी महिला के साथ यौन-संबंध स्थापित करना आसान काम नहीं है। और मीडिया में आने वाली हर लड़की इतनी गिरी हुई नहीं रहती है, कि झट से वे किसी के साथ हमबिस्तर हो जाएं। बॉय-फ्रेंड के मामलों में अगर कुछ होता है तो बाल अलग है।
जो लड़कियां बेवाकी से पत्रकारिता कर रही हैं, उन पर चरित्र पर संदेह करने वाले जरा एक बार जरूर सोचे कि जिस उम्र और अनुभव में वह जो कर रही है, उसके मुकाबले वे कितना बेहतर कर रहे हैं। लड़कियों की प्रतिभा के सामने पिछड़ते पुरुष पत्रकार यह नहीं भुले कि वे भी किसी के भाई या पति हैं। चाहे महिला हो या पुरुष, चरित्र गिराकर पत्रकारिता करने वालों में बेवाकी की पत्रकारिता की साहस कहा?

संपर्क
मोबाइल ०९८२३५५१५८८८

बुधवार, फ़रवरी 03, 2010

ग्लोबल वार्मिंग से दुनिया को बचाने रचा गया इतिहास

नागपुर। मंगलवार 2 फरवरी का दिन संतरानगरी के लिए ऐतिहासिक गवाह का दिन बन गया। इतिहास रचने का यह कार्य हुआ है, ग्लोबल वार्मिंग से दुनिया को बचाने के नाम पर। धंतोली स्थित यशवंत स्टेडिम में सुबह 9 बजे से शुरू हुआ म्यूजिकल चेयर शो संभवत: दुनिया का अपने प्रकार का अब तक का सबसे बड़ा कार्यक्रम रहा। कार्यक्रम को गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड में दर्ज करने के लिए आवेदन किया जाएगा। यशवंत स्टेडियम में जेसीआई ऑरेंज सिटी की ओर से आयोजित म्यूजिकल चेयर शो में 45 स्कूलों के 10129 बच्चों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम के माध्यम से उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए दुनिया को संदेश दिया।
ढाई दशक पहले हुआ था ऐसा आयोजन
जानकारों का कहना है कि करीब 25 साल पहले इस तरह के म्यूजिक चेयर का आयोजन सिंगापुर में हुआ था। उस आयोजन में 8238 लोगों ने हिस्सा लिया था। भारत में इस तरह का यह सबसे बड़ा और पहला म्यूजिकल चेयर शो हैं जिसमें 10129 विद्यार्थियों ने भाग लिया। कार्यक्रम में गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड का कोई पदाधिकारी इस कार्यक्रम में हिस्सा नहीं ले पाया, क्योंकि इसके लिए 7 लाख रूपये की राशि का अतिरिक्त खर्च आता। इसलिए कार्यक्रम की पूरी रिकॉडिंग की जा चुकी है। रिकॉडिंग गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड समिति के पास भेजा जाएगा। एक माह बाद यह पता चलेगा कि कार्यक्रम को गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड में शामिल किया गया की नहीं?
कार्यक्रम के उद्घाटन मौके पर शहर पुलिस आयुक्त प्रवीण दीक्षित, जेसीआई आरेंज सिटी के अध्यक्ष हेमंत नाडियाना राष्ट्रीय अध्यक्ष संतोष कुमार, जेसी अमर खंडेलवाल, सीनेटर महेश राठी, अशोक राठी आदि प्रमुख रूप से उपस्थित थे। म्यूजिकल चेयर शो में संगीत की धुनों पर एक साथ हजारों विद्यार्थियों ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए खेल का आनंद लिया। कार्यक्रम में 5वीं से 9वीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को शामिल गया। म्यूजिकल शो में कुल 95 राउंड रखे गए थे। हर राउंड में करीब एक हजार से अधिक बच्चे संगीत की धुन पर अपनी कुर्सी बचाने की कवायद करते नजर आए। उन्होंने बताया कि कार्यक्रम गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड की चयन समिति के दिशा-निर्देश में आयोजित किया गया था। कार्यक्रम की व्यवस्था के लिए जेसीआई के 500 से अधिक अधिकारी व सदस्यों ने सहयोग किया। उन्होंने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग से पृथ्वी पर बहुत बड़ा खतरा मंडरा रहा है। यदि पर्यावरण प्रदूषण को समय रहते नहीं रोका गया तो निकट भविष्य में पृथ्वी के विनाश की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। कार्यक्रम का मंच संचालन जेसी मुकेश आसर ने किया।

मंगलवार, फ़रवरी 02, 2010

बाघ सुरक्षा पर भारी पड़े खान माफिया


forest minister patang rao kadam talking with junallist of nagpur


बाघ बफर जोन के गांवों के पुनर्वसन की जरूरत नहीं : कदम
संजय स्वदेश
नागपुर।
आखिर खनन ठेकेदारों की प्रभावशाली लॉबी ने बाघ बफर जोन पर भारी पड़ गई। चंद्रपुर के ताड़ोबा-अंधारी में टाईगर रिजर्व परियोजना (टीएटीआर) से प्रभावित गांवों के पुनर्वास को लेकर गुरुवार को आयोजित बैठक के बाद नागपुर आए महाराष्ट्र के वनमंत्री पतंगराव कदम ने बताया कि बाघ बफर जोन के गांवों के पुनर्वसन की जरूरत ही नहीं है। मतलब साफ है। बाघ बफर जोन के लिए प्रस्तावित जमीन का अधिग्रहण नहीं किया जाएगा। वनमंत्री ने इस निर्णय के पीछे तर्क दिया कि वन विभाग बाघों की सुरक्षा और प्रभावित गांवों के लिए उनके लिए खुद खास व्यवस्था करने की योजना में है। यहां इंसान और जानवर एक ही क्षेत्र में रहेंगे। उन्होंने कहा कि अभ्यारण्य का निर्माण करते समय गांवों को अभ्यारण्य के क्षेत्र से बाहर बसाना पड़ता है। मगर बफर जोन में ऐसा नहीं करना पड़ता। ताड़ोबा में जानवरों को पीने के पानी की भी व्यवस्था नहीं है, पानी की तलाश में जानवर गांव-बस्ती तक आ जाते हैं। यह एक गंभीर समस्या है। इस विषय पर विभाग के शीर्ष अधिकारियों से चर्चा कर इसका हल निकाला जाएगा। सूत्रों का कहना है कि वनमंत्री ने बाघ बफर जोन के लिए प्रस्तावित जमीनों के अधिग्रहण नहीं करने का निर्णय खन माफियाओं के प्रभाव में आकर लिया है। जब से यह योजना प्रस्तावित थी, तब से खनन क्षेत्र के ठेकेदार वन विभाग के अधिकारियों के साथ मंत्री पर प्रस्तावित क्षेत्र को बाघ बफर जोन के लिए नहीं देने के लिए लॉबिंग कर रहे थे।
अब मारेंगे नहीं पकड़ेंगे बाघ

पिछले दिनों चंद्रपुर जिले में एक तेंदुए के कारण 5 लोगों की मौत हुई। पिछले साल भी वन्य जीवों का ग्रामीणों पर हमला हुआ था। जब लगातार लोग मर रहे थे, तब ग्रामीणों पर हमला करने वाले बाघों को मारने का आदेश दिया गया था। ऐसी घटनाओं के सवाल पर वनमंत्री का कहना है कि अब ग्रामीणों पर बाघ हमला करेंगे तो, पहले उसे पकडऩे का प्रयास किया जाएगा। पकडऩे का विकल्प नहीं मिलने पर ही उसे मारने का आदेश दिया जाएगा।
पुलिस के साथ पहुंचते है वनकर्मी
एक सवाल के जवाब में वनमंत्री ने कहा कि लोगों की शिकायत रहती है कि जब तेंदुएं किसी इंसान पर हमला कर मार दते हैं तो वन अधिकारी तुरंत घटनास्थल पर नहीं पहुंचते। इस शिकायत में आंशिक सच्चाई है, क्योंकि जहां ऐसी घटना होती है, वहां का माहौल अलग होता है। अगर वन अधिकारी अकेला उस जगह पर तुरंत चले जाएं तो आक्रोशित लोग वनकर्मी को भी मार सकते हैं। इसलिए घटनास्थल पर पुलिस पहुंचने के बाद ही वन अधिकारी घटनास्थल पर जाते हैं।
भूखे बाघ-तेदुएं गांव में आते हैं
जंगल में बाघ, तेंदुएं व अन्य जानवरों को खाना-पानी नहीं मिल पाता है, तो वे गांवों कि तरफ आते हैं। कई बार जानवरों की आपसी लड़ाई में भी कई बाघ और तेंदुएं घायल हो जाते हैं, उनको सुरक्षित रखने तथा उनका इलाज करवाने के लिए उन्हें रेस्क्यू सेंटर में रखना आवश्यक होता है। फिलहाल वन विभाग के अलग-अलग रेस्क्यू सेंटर में तकरीबन 60 तेंदुएं हैं। एक इंसान को मारने से किसी तेंदुएं की गिनती नरभक्षकी के रूप में नहीं की जाती, उसके लिए कुछ मानक निश्चित किये गये हैं। कुछ उद्यानों में तेंदुओं को रखा है। वन विभाग तेंदुओं पर ध्यान रखने के लिए विडियो रिकॉर्डिग की योजना में है।
मुआवजा बढ़ाने पर विचार
वन संरक्षित क्षेत्रों में जिन किसानों की खेती का जानवर नुकसान करते हैं, उन्हें वन विभाग की ओर से 2000 रूपये प्रति हेक्टर के हिसाब से मुआवजा दिया जाता है। ज्यादा नुकसान होने पर 15 हजार रूपये प्रतिहेक्टेयर की दर से मुआवजा दिया जाता है। वन्य जीवों द्वारा किसानों की फसल नष्ट करने पर दी जाने वाली भरपाई की प्रतिहेक्टेयर दो हजार रूपये की दर से मुआवजा राशि काफी कम है। वनमंत्री का कहना है कि इसे बढ़ाने के लिए जल्द ही मंत्रिमंडल के सामने प्रस्ताव लाया जाएगा।
अभ्यारण्य की जमीन की भरपाई कहीं और
वनमंत्री पतंग राव कदम का कहना है कि राज्य में 6 सेंचुरीज(अभ्यारण्य) के गठन में जितना वन संरक्षित भाग कम होने वाला है, उसकी भरपाई राज्य में कहीं और की जाएगी। इसके लिए वन विभाग राज्य सरकार से जमीन की मांग करेगी। इसके लिए प्रस्ताव पुनर्गठन कमेटी में रखी गई है। लेकिन अभी इसकी मंजूरी नहीं मिली है। मानसिंग को अभ्यारण्य घोषित करने का निर्णय पहले ही हो चुका है।


००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००

सोमवार, फ़रवरी 01, 2010

शांति, अहिंसा के लिए दौड़े हजारों पग

नागपुर। रविवार की सुबह नागपुर के कस्तूरचंद पार्क मैदान से अंतरराष्ट्रीय मैराथन में हजारों पग शांति, अंहिसा के लिए दौड़े। रविवार की सुबह धुंधली बेला में जब पक्षी भी क्लब नहीं कर रहे थे, तभी से यहां चहल-पहल शुरू हो गई थी। सुबह करीब 5 बजे के पहले से ही मैराथन में हिस्सा लेने वाले अपने घर से निकल पड़े। नगर के विभिन्न इलाकों से धावक कस्तूरचंद पार्क की ओर मैराथन की खास टी-शर्ट पहने जा रहे थे। हर दिन इस मार्ग से गुजरने वाला यातायात बदला हुआ था। हालांकि इस मैराथन में हिस्सा लेने विदेश समेत महाराष्ट्र से करीब 90 हजार से ज्यादा लोगों ने पंजीयन कराया था। लेकिन दौड़ते वक्त इससे कुछ कम संख्या में ही धावक दिखे। स्पर्धा की भावना से दौडऩे वाले कुछ लोग ही थे। अधिकतर धावक मैराथन को एक मस्ती और सुबह-सुबह मनोरंजन का माध्यम मानकर उत्साहपूर्वक यहां आए थे। कस्तूरचंद पार्क की व्यवस्था बेहतरीन थी। रिजर्ब बैंक चौक पर मंच बना था। यहीं से विभिन्न वर्गों की मैराथन दौड़ हर दस मिनट के अंतराल पर शुरू हुई। रिजर्व बैंक चौक पर ही बूटीबोरी के दत्त विद्या मंदिर के विद्यार्थियों का एक समूह बैंड की ध्वनि से धावकों का उत्साहवर्धन कर रहा था।

पारंपरिक पोशाक में आकर्षण

कस्तूरचंद पार्क में हजारों की संख्या में पीले टी. शर्ट में लोग उपस्थित थे। कई लोगों का समूह किसी संस्था विशेष के नेतृत्व में आया था। हाथ में विभिन्न सामाजिक संदेश देने वाली तख्ती लिए हुए थे। महात्मा गांधी की जयघोष हो रही थी। मैदान के बीचोंबीच बने मंच पर न्यू इंग्लिश हाईस्कूल के विद्यार्थी नृत्य और गीत की मनमोहक प्रस्तुति दे रहे थे। तेज आवाज में बजने वाले डीजे की धुन पर मैराथन में आए लोग स्वयं को थिरकने से नहीं रोक पा रहे थे। मेरे देश की धरती सोना उगले-उगले हीरा मोती... की धुन पर छात्राओं के एक समूह ने मनमोहक लेझिम की प्रस्तुति दी। कुछ विद्यार्थी कृत्रिम जटा लगाए गेरुये वस्त्र में दौड़ रहे थे तो छात्राएं पारंपरिक मराठी और अदिवासी वेशभूषा में दौड़ते हुए शांति और अहिंसा का संदेश दे रहे थे। इन स्कूली विद्यार्थियों का एक समूह लेझिम करता हुआ भी मैराथन में शामिल हुआ।

शांति और अहिंसा के अलावा भी संदेश

युवाओं की अनेक टोली अलग-अलग अंदाज में मैराथन में दौड़ी पर इनमें कई युवा समूहों ने लोगों का आकर्षण अपनी ओर खींचने के लिए विभिन्न तरीके अपनाये। धावक नं. 2731 ने तो माथे और कमर पर पेड़ की टहनियां बांध कर दौड़ते हुए पेड़ बचाने का संदेश दिया। जरीपटका की बी.जे.एस. गल्र्स हाई स्कूल की करीब 55 छात्राएं अपने हाथ में महात्मा गांधी के अलग-अलग सद्वाक्यों की तख्ती लेकर चलते दिखे।
पृथक विदर्भ के लिए दौड़

वहीं युवा संघ के एक कार्यकर्ता पृथक विदर्भ का संदेश दे रहा था। लोगों को भीड़ में अलग दिखने के लिए हाथ में जो तख्ती पकड़े था, उस पर लिखा हुआ था- रोज जगता था लड़की के लिए, आज जगा हूं पृथक विदर्भ के लिए। इसके अतिरिक्त मैराथन की भीड़ में कुछ विद्यार्थियों का समूह पढ़ाई की बोझ से विद्यार्थियों को आत्महत्या नहीं करने की सलाह देने वाली प्रेरणा देने के लिए हाथ में तख्ती लिए चल रहे थे। इसके अलावा एक धावक महात्मा गांधी की वेशभूषा में सबसे अलग दिख रहा थे।
'थ्री इडियट्सÓ भी थे....

विद्यार्थियों के एक समूह ने हालिया रिलीज फिल्म 3 इडियट्स की तर्ज पर मैराथन में हिस्सा लिया। फिल्म में जहां ऑल इज वेल... गाना है, इसी गाने की तर्ज पर उन्होंने पृथक विदर्भ से जोड़ते हुए कहा कि ऑल इज नॉट वेल। उन्होंने बताया कि वे इसीलिए इडियट्स हैं, क्योंकि विदर्भ पिछड़ रहा है। यदि पृथक विदर्भ राज्य का गठन हो जाता है, तो नो इडियट्स हो जाएंगे। थ्री इडिट्स की भूमिका में एक विद्यार्थी किसान आत्महत्या, दूसरा गांधी और तीसरा पुलिस की भूमिका में था।