बुधवार, फ़रवरी 10, 2010

‘मोरा गोरा अंग लेई ले....’।

जय भगवान गुप्त ‘राकेश’

भारत के लोग भी अजीब हैं। बैठे-ठाले चलती गाड़ी में अड़ंगा लगाने का अजीब शौक पाले हुए हैं और इसी के चलते दूसरों की उन्नति, प्रगति और नेक-नामी से कुढ़ते हुए कुछ न कुछ नया शोशा खड़ा करते रहते हैं। ‘स्लमडाॅग मिलेनियर’ फिल्म में जब रहमान और गुलजार को दो आॅस्कर अवार्डों से नवाजा गया तो पहले तो यह कहा गया कि गायक सुखविंदर को कुछ नहीं मिला और उसके लिए जिम्मेवारी रहमान पर डाली गई, बाद में एक और गीत को लेकर हमारी फिल्मों के सुनहरे युग के संगीतकार रवि जी ने अपनी पुरानी फिल्म ‘नरसी भगत’ का नाम लेकर एक गीत ‘दर्शन दो घनश्याम नाथ मेरी अंखियां प्यासी रे’ के लिए दो करोड़ रुपए का दावा ठोक दिया।
अब देखिये बैठे-बिठाये ना आजकल रवि जी कहीं सक्रिय दिखाई देते हैं और न ही किसी चोपड़ा की फिल्म में संगीत संयोजन कर रहे हैं फिर भी उनकी आदतें नहीं जाती और 50 साल पुरानी फिल्म के लिए अपने गीत को सीने से लगाए हुए हैं और उसका मुआवजा मांग रहे हैं, वो भी दो करोड़ रुपए। अब कौन समझाये कि भई जब फिल्म बनी थी और आप ने संगीत दिया था तो उसका महेनताना तो ले चुके। अब एक तो रहमान साहब ने आपके गीत को पुनः लोकप्रिय बनाया, लोगों को याद दिलाया कि हमारे यहां ऐसे-ऐसे महान संगीतकार थे जिनके गीत पचास साल बाद भी दोहराए जा रहे हैं और आप हैं कि एहसान मानने की बजाय मुआवजा मांगने लग गए।
अब एक और नया किस्सा शुरू हो गया है। अब जनाब अपनी शायरी में नए-नए प्रयोग करने के लिए मशहूर जनाब गुलजार साहब पर ही निशाना साध दिया गया है, वह भी एक हिन्दी स्थापित एवं प्रतिष्ठित कवि स्व. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की पुत्री उभा सक्सेना द्वारा कि गुलजार द्वारा फिल्म ‘इश्किया’ का अपना बताया जा रहा गीत ‘इब्न-ए-बतूता’ वास्तव में उनके पिताश्री द्वारा रचित कविता है।
अब बताइये यह भी कोई बात हुई। अब गुलजार साहब इतने बड़े साहित्यकार हैं और किताबों के लगातार अध्ययन में व्यस्त रहते हैं। कहीं पढ़ ली होंगी सक्सेना जी की लाइनें और संगीतकार के साथ गीत लिखते वक्त ‘इब्न-ए-बतूता’ फिट बैठ गया होगा तो हो गया गीत तैयार और गाया गया। अब बताइये इसमें चोरी कहां से आ गई। अभी तक सबसे ज्यादा इस तरह के आरोपों को झेल रहे जनाब संगीतकार अनु मलिक जी अक्सर कहते हैं कि सुर तो सात ही हैं, मुझे अगर आप चोर मानते हैं तो पहले वालों ने भी तो कहीं से लिए ही होंगे इसी तरह के तर्क के आधार पर कहा जा सकता है कि हिन्दी में वर्ण तो 46 ही हैं, आखिर सक्सेना जी ने भी कभी तो कविता को जोड़ा ही होगा। और अब पचास साल होने को आए तो कभी तो रायल्टी का हक खत्म होता होगा बड़ी ज्यादती है कि फिल्म वालों पर जब जो चाहे ले-दे कर इल्जाम लगा देते हैं, यह नहीं देखते कि कितनी मुश्किल से फिल्म तैयार होती है और बड़ी किस्मत वालों की फिल्में चल पाती हैं और वही कलाकार जब फिल्म चल पड़ती है तो सिंग इज किंग हो जाता है नहीं तो चांदनी चैक का गायक भी नहीं बन पाता और सिंगापुर से भी बैरंग आ जाता है।
असल में हमें समझना चाहिए कि चोरी-चकारी छोटे लोगों का काम होता है बड़े लोग कभी भी चोरी नहीं करते, वे तो दूसरे की हल्की चीजों को प्रमोट करते हैं और उनकी शान बढ़ाते हैं। संत शिरोमणि तुलसीदास आज से साढ़े पांच सौ साल पहले ही लिख गए - ‘‘समरथ को नहीं दोष गोसाईं’’ को वैसे ही थोड़ा कह गए, उनके रामचरित मानस को भी तत्कालीन साहित्यकारों ने हर तरह से दर-किनार करने का काम किया था, इसलिए सक्सेना की बेटी को समझना चाहिए कि इतने बड़े समर्थ गीतकार, निर्माता-निर्देशक पर उंगुली उठाने से पहले अगर उन्हें कुछ एतराज था तो ऐसे व्यक्ति को पहले विश्वास में लेना चाहिए था वे अब तक उन्हें कई फिल्मों के करार इत्यादि दिलवा देते और दोनों का काम बखूबी चलता रहता और अभी तक जिस फिल्म जगत में संगीतकार अनु मलिक और रहमान पर ही गीत-संगीत चुराने के लिए ले-दे हो रही थी उसमें उन्होंने इतने बड़े नाम को खामहखाह ही जोड़ दिया। अब यह तो स्वर्गीय शैलेंद्र के बेटों की शराफत है कि उन्होंने जावेद अख्तर पर ‘‘फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी’ जोकि शैलेंद्र जी द्वारा ‘श्री 420’ फिल्म का गीत है के लिए कोई आरोप नहीं लगाया और इसी आधार पर जब वहीं की वहीं एक प्रमाणित गीत के लिए कोई चोरी का इल्जाम नहीं बनता तो एक हिन्दी कविता के आधार पर तो फिल्मी गीत के चुराए जाने का मामला बनना ही नहीं चाहिए क्योंकि दोनों की दुनिया ही अलग है। और सब जानते हैं कि फिल्मी गीतों को साहित्य नहीं माना जाता और साहित्यिक गीतों को गाने लायक नहीं समझा जाता वर्ना तो फिल्म जगत में आज पंत, निराला और बच्चन का ही राज होता वहां साहिर, हसरत और मजरुह और गुलजार का क्या काम फिल्मी गीत तो बनते ही परिस्थिति के अनुसार संगीत निर्देशक द्वारा तैयार की गई धुनों पर हैं अब वहां जो शब्द सूझ गए वे कुछ भी हो सकते हैं मगर बकौल गुलजार साहब चोरी के नहीं हो सकते। और जब इतना बड़ा शायर यह बात कह रहा है तो हमें उनकी बात का एतबार करना चाहिए आखिर वे आॅस्कर अवार्ड विजेता हैं और उनके गीत तो शुरू से ही दूसरों को देने की बात प्रेरणा देते हैं जैसे ‘मोरा गोरा अंग लेई ले....’।

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

बेह्तरीन आलेख.