शुक्रवार, फ़रवरी 12, 2010

भाजपा में उमा की वापसी तय, इंदौर में होगी घोषणा

संजय स्वदेश,
www.visfot.com, 12 February, 2010 09:52;00
उमा भारती भाजपा में वापस आ रही हैं. गुरुवार को दिन में नागपुर में भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत से उमा भारती की गुप्त मुलाकात में उनकी वापसी की तिथि भी तय हो गयी है और इंदौर में भाजपा कार्यकारिणी के आखिरी दिन उनकी वापसी की घोषणा करने की तैयारी है.

इंदौर में होगा खुलासा

मोहन भागवत और नितिन गडकरी बुधवार की शाम की शाम नागपुर में थे। दोनों एक कार्यक्रम में साथ थे। गुफ्तगू करते भी दिखे थे। अगले दिन गुरुवार को उमा भारती आईं। दोनों से उमा भारती की संघ मुख्याल में ही मुलाकत हुई। पर संघ और भाजपा ने इसका औपचारिक खुलासा नहीं किया है। उमा भारती के पारिवारिकर सूत्रों की मानें तो भाजपा में उमा की वापसी करीब तय हो चुकी है। संभावना है कि 19 फरवरी तक उमा भाजपा में होगी। इसको लेकर औपचारिक रूप से इंदौर में होने वाली पार्टी के अधिवेशन में आम सहमति बनाई जाएगी। अधिवेशन के अंतिम दिन उमा को पार्टी में वापस लेने की घोषणा हो सकती है।

नितिन गडकरी पहले ही दे चुके हैं संकेत
ज्ञात हो कि भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने अध्यक्ष नियुक्त होने के बाद नागपुर में एक पत्रकार से अनौपचारिक बातचीत में कहा था कि वे पार्टी से बाहर गए जनाधार वाले दिग्गज नेताओं की घर वापसी चाहते हैं। बाद में जब यह मामला सुर्खियों में आया तो गडकरी ने कहा कि यदि पार्टी से निकले नेता पार्टी में दुबारा वापस आना चाहते हैं तो इस पर पार्टी और संबंधित नेता के राज्य स्तर की ईकाई से चर्चा करके ही निर्णय लिया जाएगा।

पहले भी गुपचुप आ चुकी है संघ मुख्यालय
उमा भारती पहले भी गुपचुप तरीके से संघ मुख्यालय आ चुकी हैं। हालांकि तब भी उन्होंने कहा था कि वे वर्धा के एक गांव में पारिवारिक कार्यक्रम में हिस्सा लेने आईं थीं। उसी दिन संसद में लिबरहान आयोग की रपट संसद में पेश हुई थी। उसमें उमा भारती का नाम था। तब उमा ने कहा था कि आयोग की रपट में नाम होने की खबर सुन कर वे नागपुर रूक गईं थी और अपना पक्ष रखने के लिए मीडिया से बातचीत की। तब भी सूत्रों ने कहा था कि वे गुपचुप तरीके से संघ मुख्यालय घुम आईं थीं।

मजबूर हैं उमा
पुरानी कहावत है। मरता क्या न करता? अपनी अलग पार्टी बनाकर उमा कुछ नहीं कर पाईं। भाजपा से अलग होने के बाद उमा को अपने घटते वजूद का अहसास हो चुका है। दूसरे भारतीय जनशक्ति पार्टी को चलाने और मजबूत करने के लिए पार्टी को वित्तिय संकट गंभीर है। पहले प्रह्लाद पटेल का सहारा था। अब उनका साथ भी पूरी तरह से छूट चुका है। लिहाजा, उमा भारती के सामने भाजपा के आलावा दूसरा कोई विकल्प बचा नहीं है।

1 टिप्पणी:

Arun sathi ने कहा…

अच्छा होगा, राजनीति में गालियों की माला भी बर्ड भेरिफिकेशन हटा दें परेशानी होती है।

पहनने का चलन पुरानी है।