शुक्रवार, फ़रवरी 26, 2010

बाघ बफर जोन पर भारी पड़े खनन माफिया


forest minister talking with journalist of nagpur

वनमंत्री पतंगराव कदम ने बताया कि बाघ बफर जोन के गांवों के पुनर्वसन की जरूरत ही नहीं
संजय स्वदेश
नागपुर।

आखिर खनन ठेकेदारों की प्रभावशाली लॉबी बाघ बफर जोन पर भारी पड़ गई। चंद्रपुर के ताड़ोबा-अंधारी में टाईगर रिजर्व परियोजना (टीएटीआर) से प्रभावित गांवों के पुनर्वास को लेकर गुरुवार को आयोजित बैठक के बाद नागपुर आए महाराष्ट्र के वनमंत्री पतंगराव कदम ने बताया कि बाघ बफर जोन के गांवों के पुनर्वसन की जरूरत ही नहीं है। मतलब साफ है। बाघ बफर जोन के लिए प्रस्तावित जमीन का अधिग्रहण नहीं किया जाएगा। वनमंत्री ने इस निर्णय के पीछे तर्क दिया कि वन विभाग बाघों की सुरक्षा और प्रभावित गांवों के लिए उनके लिए खुद खास व्यवस्था करने की योजना में है। यहां इंसान और जानवर एक ही क्षेत्र में रहेंगे। उन्होंने कहा कि अभ्यारण्य का निर्माण करते समय गांवों को अभ्यारण्य के क्षेत्र से बाहर बसाना पड़ता है। मगर बफर जोन में ऐसा नहीं करना पड़ता। ताड़ोबा में जानवरों को पीने के पानी की भी व्यवस्था नहीं है, पानी की तलाश में जानवर गांव-बस्ती तक आ जाते हैं। यह एक गंभीर समस्या है। इस विषय पर विभाग के शीर्ष अधिकारियों से चर्चा कर इसका हल निकाला जाएगा। सूत्रों का कहना है कि वनमंत्री ने बाघ बफर जोन के लिए प्रस्तावित जमीनों के अधिग्रहण नहीं करने का निर्णय खन माफियाओं के प्रभाव में आकर लिया है। जब से यह योजना प्रस्तावित थी, तब से खनन क्षेत्र के ठेकेदार वन विभाग के अधिकारियों के साथ मंत्री पर प्रस्तावित क्षेत्र को बाघ बफर जोन के लिए नहीं देने के लिए लॉबिंग कर रहे थे।

अब मारेंगे नहीं पकड़ेंगे बाघ

पिछले दिनों चंद्रपुर जिले में एक तेंदुए के कारण 5 लोगों की मौत हुई। पिछले साल भी वन्य जीवों का ग्रामीणों पर हमला हुआ था। जब लगातार लोग मर रहे थे, तब ग्रामीणों पर हमला करने वाले बाघों को मारने का आदेश दिया गया था। ऐसी घटनाओं के सवाल पर वनमंत्री का कहना है कि अब ग्रामीणों पर बाघ हमला करेंगे तो, पहले उसे पकडऩे का प्रयास किया जाएगा। पकड़ने का विकल्प नहीं मिलने पर ही उसे मारने का आदेश दिया जाएगा।

पुलिस के साथ पहुंचते है वनकर्मी
एक सवाल के जवाब में वनमंत्री ने कहा कि लोगों की शिकायत रहती है कि जब तेंदुएं किसी इंसान पर हमला कर मार दते हैं तो वन अधिकारी तुरंत घटनास्थल पर नहीं पहुंचते। इस शिकायत में आंशिक सच्चाई है, क्योंकि जहां ऐसी घटना होती है, वहां का माहौल अलग होता है। अगर वन अधिकारी अकेला उस जगह पर तुरंत चले जाएं तो आक्रोशित लोग वनकर्मी को भी मार सकते हैं। इसलिए घटनास्थल पर पुलिस पहुंचने के बाद ही वन अधिकारी घटनास्थल पर जाते हैं।

भूखे बाघ-तेदुएं गांव में आते हैं
जंगल में बाघ, तेंदुएं व अन्य जानवरों को खाना-पानी नहीं मिल पाता है, तो वे गांवों कि तरफ आते हैं। कई बार जानवरों की आपसी लड़ाई में भी कई बाघ और तेंदुएं घायल हो जाते हैं, उनको सुरक्षित रखने तथा उनका इलाज करवाने के लिए उन्हें रेस्क्यू सेंटर में रखना आवश्यक होता है। फिलहाल वन विभाग के अलग-अलग रेस्क्यू सेंटर में तकरीबन 60 तेंदुएं हैं। एक इंसान को मारने से किसी तेंदुएं की गिनती नरभक्षकी के रूप में नहीं की जाती, उसके लिए कुछ मानक निश्चित किये गये हैं। कुछ उद्यानों में तेंदुओं को रखा है। वन विभाग तेंदुओं पर ध्यान रखने के लिए विडियो रिकॉर्डिग की योजना में है।

मुआवजा बढ़ाने पर विचार
वन संरक्षित क्षेत्रों में जिन किसानों की खेती का जानवर नुकसान करते हैं, उन्हें वन विभाग की ओर से 2000 रूपये प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मुआवजा दिया जाता है। ज्यादा नुकसान होने पर 15 हजार रूपये प्रति हेक्टेयर की दर से मुआवजा दिया जाता है। वन्य जीवों द्वारा किसानों की फसल नष्ट करने पर दी जाने वाली भरपाई की प्रतिहेक्टेयर दो हजार रूपये की दर से मुआवजा राशि काफी कम है। वनमंत्री का कहना है कि इसे बढ़ाने के लिए जल्द ही मंत्रिमंडल के सामने प्रस्ताव लाया जाएगा।

अभ्यारण्य की जमीन की भरपाई कहीं और
वनमंत्री पतंग राव कदम का कहना है कि राज्य में 6 सेंचुरीज(अभ्यारण्य) के गठन में जितना वन संरक्षित भाग कम होने वाला है, उसकी भरपाई राज्य में कहीं और की जाएगी। इसके लिए वन विभाग राज्य सरकार से जमीन की मांग करेगी। इसके लिए प्रस्ताव पुनर्गठन कमेटी में रखी गई है। लेकिन अभी इसकी मंजूरी नहीं मिली है। मानसिंग को अभ्यारण्य घोषित करने का निर्णय पहले ही हो चुका है।

कोई टिप्पणी नहीं: