सोमवार, मार्च 29, 2010

जनभारत मेल, देहरादून में

हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा में पदों की नीलामी!


5 अप्रैल से होने वाले साक्षात्कार के लिए कई दलाल सक्रिय

संजय स्वदेश
नागपुर से प्रकाशित 'दैनिक 1857Ó ने 29 फरवरी के अंक में अपने प्रथम पृष्ठ पर वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय से संबंधित एक सनसनीखेज खबर प्रकाशित की है। प्रकाशित खबर के मुताबिक आगामी 5 अप्रैल से शैक्षणिक पदों के लिए होने वाले साक्षात्कार आंख में धूल झोंकने की प्रक्रिया साबित हो रहा है। इन पदों की नीलामी होने तथा इसके लिए कई दलाल सक्रिय होने की जानकारी मिली है। दूसरी तरफ कुछ विज्ञापित पदों पर नियमानुसार विश्वविद्यालय के लाइजन ऑफीसर की पूर्व सहमति नहीं होने के कारण कुछ पदों पर होने वाले साक्षात्कार अवैध होने की भी जानकारी मिली है।
सूत्रों के हवाले से खबर में कहा गया है कि देश भर में कुलपति विभूति नारायण राय और प्रति कुलपति नदीम हसनैन के मित्र उम्मीदवारों को आश्वासन दे रहे हैं और अपने-अपने उम्मीदवारों की नियुक्तियां तय बता रहे हैं। खेल दिलचस्प है, जो कि विश्वविद्यालय के कैंपस से लेकर देश की राजधानी दिल्ली और दो हिन्दी भाषी राज्यों की राजधानी तक में खेला जा रहा है। शह और मात के खेल में शामिल है कुलपति और प्रतिकुलपति के मित्र और कैंपस में उपस्थित विशेष कर्तव्याधिकारी तथा विश्वविद्यालय के कुलाधिपति प्रो.नामवर सिंह के करीबी रिश्तेदार। पदों के लिए बोलियां लग रही हैं और विभिन्न पदों पर आपसी बंदरबाट भी हो रही है। मार-पीट की घटनाएं भी घट रही हैं तथा इन पदों के लिए होने वाले साक्षात्कारों में आगामी सफल प्रतिभागियों की सूची भी तय की जा रही है।
बोलियां लगाने वाले एजेंटों में सक्रिय हैं प्रो. नामवर सिंह के एक करीबी रिश्तेदार, बिहार के कवि जो गोली दागने का हक मांगते रहे हैं और इस समय कुलपति के करीबियों में शामिल हैं, दिल्ली स्थित हिन्दी के समीक्षक, आलोचक और विश्वविद्यालय की एक पत्रिका के संपादक तथा लखनऊ स्थित एक चर्चित कथाकार, जो एक महत्वपूर्ण पत्रिका के संपादक हैं। आगामी शैक्षणिक नियुक्तियों के इन सिपहसालारों में आपसी झड़पोंं की खबरें भी आती रहती हैं। पिछले 25 मार्च को कुलाधिपति नामवर सिंह के करीबी रिश्तेदार का वर्धा आगमन हुआ। इन्हें ठहराया भी गया चांसलर के कमरे में। उसी कमरे में रात 9 बजे से रिश्तेदार महोदय, विश्वविद्यालय के 5 शिक्षक, जिनमें एक युवा कथाकार हैं और दूसरे नामचीन पत्रकार रहे हैं, दारू-गोष्ठी में शामिल हुए। साथ में शामिल रहे बिहार के नक्सलवादी कवि। ज्ञातव्य है कि वर्धा गांधी जिला है और यहां शराब बंदी है। वैसे हिंदी विश्वविद्यालय कैंपस, जिसे नए कुलपति ने गांधी हिल नाम दिया है, शिव के त्रिशूल पर स्थित माना जाता है। यहां रात के आठ बजे के बाद कई लोग दारू के नशे में रहते हैं। वैसे नियुक्तियों के मामले में कुलाधिपति के करीबी रिश्तेदार और नक्सलवादी कवि का पड़ला भारी है। करीबी रिश्तेदार की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बुद्धिस्ट स्टडी में अनुसूचित जाति के लिए निर्धारित पद पर नियम-बाह्य तरीके से इस रिश्तेदार का एक राजपूत दोस्त पढ़ा रहा है। गौरतलब है कि कुलाधिपति भी राजपूत हैं और इसलिए माक्र्सवादी होते हुए भी मां भवानी के मंदिर में चढ़ावा चढ़ा आते हैं। खैर उस दारू गोष्ठी मेें नियुक्तियों को लेकर बहस इतनी बढ़ी कि एक शिक्षक दूसरे शिक्षक की गर्दन दबोच बैठा और दोनों एक-दूसरे को अश्लील गालियां देने लगे। बीच-बचाव में उतरे माक्र्सवादी कवि और कोलकाता निवासी प्रसिद्ध पत्रकार।
वैसे नक्सलवादी कवि तुलनात्मक साहित्य विभाग के एक पद पर पंजाबी मूल की विश्वविद्यालय की ही शोधार्थी को नियुक्ति का आश्वासन दे चुके हैं जबकि दारू गोष्ठी में शामिल दूसरे अन्य लोगों के अलग-अलग उम्मीदवार हैं। वैसे पंजाबी मूल की लड़की की नियुक्ति तय मानी जा रही है। उधर 5 अप्रैल को मानवशास्त्र विभाग में होने वाले साक्षात्कार में प्रति-कुलपति नदीम हसनैन का उम्मीदवार तय माना जा रहा है, जो इन दिनों वर्धा स्थित उनके आवास पर पाया जा सकता है। 9 अप्रैल को शांति एवं अहिंसा विभाग में उस विभाग के डीन के करीबी तथा भागलपुर विश्वविद्यालय के शोधार्थी की नियुक्ति तय है। डीन महोदय वैसे तो तुलनात्मक साहित्य में भी हिन्दी विश्वविद्यालय के एक शोधार्थी पर दांव लगा रहे हैं जबकि पंजाबी मूल की शोधार्थी की नियुक्ति होनी तय है। जनसंचार विभाग में विभागाध्यक्ष प्रो.अनिल राय ने अपने दो शिष्यों को आश्वासन दे रखा है और उनकी नियुक्ति तय मानी जा रही है क्योंकि अनिल राय और कुलपति की नजदीकियां जगजाहिर हैं। ये वही छात्र हैं जिन्होंने प्रो. राय की अकादमीक चोरी पर कवरेज के लिए आए सी.एन.ई.वी. के संवाददाता के साथ मार-पीट तक की थी। कुछ तो साक्षात्कार के पूर्व ही शिक्षकों सा व्यवहार करने लगे हैं। डायसपोरा विभाग के लिए होने वाले साक्षात्कार के लिए प्रति-कुलपति नदीम हसनैन के एक उम्मीदवार की नियुक्ति तय है। वैसे फिल्म एवं नाटक स्टडीज का मामला भी कम दिलचस्प नहीं है। इस विभाग के व्याखाता पद के लिए विशेष कर्तव्याधिकारी ने गोरखपुर विश्वविद्यालय में अस्थायी तौर पर पढ़ा रहे शिक्षक को आश्वासन दे रखा है। गोरखपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी में तथा हिन्दी विश्वविद्यालय से शांति-अहिंसा में स्नातकोत्तर इस प्रतिभागी को उक्त पद के लिए शिक्षण अनुभव दिलाने का बीड़ा भी इसी विशेष अधिकारी ने ले रखा था और वह प्रतिभागी आए दिन फिल्म और नाट्य विभाग में अतिथि प्राध्यापक के रूप में पढ़ाया भी करता था। वैसे इसने भोजपुरी फिल्मों के लिए पटकथा भी लिखी है लेकिन अंतिम दिनों में खटका हुआ और शौकिया तौर पर नाट्य कर्मी रह चुके विशेष कर्तव्याधिकारी और उनके मित्र प्रति कुलपति के बीच संभवत: किसी उम्मीदवार पर समझौता हुआ तथा गोरखपुर का वह प्रतिभागी स्क्रीनिंग से ही छाट दिया गया।
उधर भाषा प्रौद्योगिकी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर पद के लिए होने वाला साक्षात्कार वैसे तो रोस्टर के हिसाब से अवैध हैं, परंतु इस पद पर भी विश्वविद्यालय में ही पढ़ा रहे दो व्याख्याता अनिल पांडे या अनिल दुबे की नियुक्ति तय है। अनिल पांडे की पैरवी विश्वविद्यालय का ही एक कथाकार कर रहा है। उधर दूसरे उम्मीदवारों की व्याख्याता पद पर नियुक्ति को राष्ट्रपति ने मान्यता नहीं दी है तथा प्रसिद्ध इतिहासकार विपिन चंद्रा ने इन्हें शिक्षक होने के काबिल नहीं पाया था। वैसे पिछली बार चयन समिति ने इसी पद के लिए नान सुटेबल घोषित किया था।
लखनऊ स्थित कथाकार संपादक अंतिम क्षणों में कुछ गुल खिला सकते हैं। पिछली नियुक्तियों में भी इन्होंने अपने कुछ चहेतों को कुछ पदों पर बैठाया था। दिल्ली के समीक्षक, जो विश्वविद्यालय के दिल्ली स्थित केंद्र पर बैठते हैं, दिल्ली की सभी साहित्यिक गोष्ठियों में कुलपति राय से अपनी नजदीकियां बताते हुए उम्मीदवारों से बायोडाटा मंगवा रहे हैं। गहन जांच के बाद आर्थिक कदाचार भी पाया जा सकता है। सुरा-सुंदरी, भाई-भतीजावाद तो निर्णायक है ही, देखना यह है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और मानव संसाधन विकास मंत्रालय उच्च शिक्षा में होने जा रहे इस निश्चित नियुक्ति को होने से रोक पाता है या नहीं। नियुक्तियों पर रोक का कदम 5 अप्रैल से पूर्व उठाना होगा।
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कृषि भूमि के सहारे बढ़ेगा वन क्षेत्र


photo by me from manipur

संजय स्वदेश
गत कुछ वर्षों में वनों की लगातार कटाई से देश के वन क्षेत्रों में भारी कमी आई है। पर्यावरण के लिए यह निश्चय ही चिंता का विषय है। फिलहाल देश में 12 प्रतिशत वन क्षेत्रों की कमी है। यह कहना है भारतीय वन सर्वेक्षण के महानिदेशक तथा इंदिरा गांधी नैशन फॉरेस्ट अकादमी के निदेशक डा. आर.डी. जर्काता का। नागपुर के मूल निवासी जकार्ता ने नागपुर में एक बातचीत में कहा कि फिलहाल देश में 33 प्रतिशत भू क्षेत्रों में वन क्षेत्र होना चाहिए। लेकिन यह अभी 13 प्रतिशत कम 21 प्रतिशत के करीब है। अब इस कमी को दूर करने का एक ही उपाय- कृषि भूमि पर वृक्षारोपण है। लेकिन यह संभव नहीं दिखता है।
रियल इस्टेट क्षेत्र कृषि भूमि पर अपना जबददस्त कब्जा कर लिया है। फिलहाल वन क्षेत्र में वृद्धि के लिए उठाये जाने वाल सरकारी कदम नाकाफी है। जब केंद्र सरकार के एक जिम्मेदार अधिकारी यह बात कहें तो यह निश्चय ही चिंता की बात है। सरकारी कदम नकाफी होने पर हमेशा जनता को जागरूक होने का आह्वान किया जाता है। देश ही नहीं दुनिया में हो रहे जलवायु परिवर्तन को देखते हुए बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण की आवश्यकता है। भारतीय वन सर्वेक्षण देश के जंगलों पर सेटलाइट के जरिए नजर रखता है। इसी आधार पर होने वाल वनों के अध्ययन रिपोर्ट को केंद्र सरकार को भेजी जाती है।
भारतीय वन सर्वेक्षण पिछले 22 वर्षों से हर साल केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट भेज रहा है। इसके आधार पर ही केंद्र सरकार राज्यों के वन विभागों को आवश्यक दिशा निर्देश जारी करती है। केंद्र सरकार का हमेशा से यह तर्क होता है कि वन क्षेत्रों को बढ़ाने में योजनाओं के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी राज्य सरकार के कंधे पर होती है। वहीं राज्य सरकार हमेशा किसी न किसी बहाने से अपना कंधा झटकती दिखती है। कभी फंड का रोना रोया जाता है, तो कभी केंद्र की ओर से देरी की बात कही जाती है। राज्य और केंद्र सरकार का सारा समय एक दूसरे पर दोषारोपण में ही चला जाता है।
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रविवार, मार्च 28, 2010

बाबा रामदेव को पार्टी नहीं बनाने की सलाह : जावड़ेकर


संजय स्वदेश
नागपुर।
बाबा रामदेव का काम जीवन, स्वास्थ्य के संबंध में है, जिसका सभी सम्मान करते हैं। लेकिन राजनीति में कोई पार्टी आती है तो दूसरी पार्टी को सोचना पड़ता है। रामदेव बाबा से भाजपा को कोई घबराहट नहीं है। यह कहना है भाजपा प्रवक्ता व राज्यसभा सदस्य प्रकाश जावड़ेकर का। श्री जावड़ेकर शनिवार को नागपुर श्रमिक पत्रकार संघ भवन में पत्रकारों से अनौपचारिक चर्चा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि जहां तक राजनीति का सवाल है तो भाजपाध्यक्ष नितिन गडकरी ने उन्हें राजनीति में नहीं आने की सलाह दी है।
अमिताभ और मोदी सोनियाजी के लिए आवंछनीय
मुंबई के एक समारोह में फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन के अतिथि होने से उठे विवाद पर पूछे गए सवाल पर जावड़ेकर ने कहा कि अमिताभ का अपमान कला व संस्कृति का अपमान है। इस तरह का अपमान करना कांग्रेस की संस्कृति को दर्शाता है। नरेन्द्र मोदी और अमिताभ बच्चन दोनों सोनियाजी के अवांछनीय हैं। सोनिया गांधी व अमिताभ बच्चन के परिवार के बीच नहीं पटती। इसलिए उन पर प्रतिबंध लगाने के उद्देश से बिग बी का अपमान किया गया है। यह अलोकतांत्रिक है, हम इसकी भत्र्सना करते हैं। कांग्रेस ने अपनी मर्यादा को तोड़ा है। बच्चन के मामले में मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को हाईकमान के समक्ष सफाई देनी पड़ती है, यह बड़ी शर्मनाक बात है। गुजरात ब्रांड एंबेसडर तो एक बहाना है, सही कारण तो बच्चन और गांधी परिवार का झगड़ा है। आईपीएस अधिकारी अंजू गुप्ता के बयान पर उन्होंने कहा कि मामला कोर्ट में चल रहा है, इस पर कुछ भी बोलना उचित नहीं होगा।
विदर्भ का मुद्दा उठाने के लिए ही खोला गया विभागीय कार्यालय
विदर्भ के संदर्भ में जावड़ेकर ने कहा कि भाजपा पिछले 12 साल से विदर्भ की मांग कर रही है। विदर्भ की आवाज को दिल्ली में उठाने के उद्देश्य ही नागपुर में विदर्भ विभागीय कार्यालय खोला गया है। विदर्भ की सारी शिकायतों की सुनवाई के लिए वे खुद माह में एक तथा सांसद हंसराज अहीर दो बार इस कार्यालय में उपस्थित रहेंगे।

24 घंटे में नौ किसानों ने की आत्महत्या

2010 में अब तक 194 मरें
संजय स्वदेश

विदर्भ में सूखे की मार से त्रस्त किसानों को राहत से किसी तरह से राहत नहीं मिलने के कारण वे खुदकुशी का रास्ता अख्तियार कर रहे हैं। बीते 24 घंटे में विदर्भ के विभिन्न जिलों में कुल नौ किसानों ने मौत का गले लगा लिया है। इस तरह से बीते सप्ताह में कुल 19 किसानों ने बदहाली से तंग आकर अपनी इहलीला समाप्त कर ली है। ज्ञात हो क विदर्भ ही नहीं महाराष्ट्र के 15 हजार गांवों को पहले ही सूखा घोषित किया जा चुका है। पर किसानों को सूखे से राहत दिलाने के लिए किसी तरह की ठोस उपया योजना का क्रियान्वयन नहीं किया जा रहा है। इससे किसानों को न केवल भारी मात्रा में फसलों का नुकसान हो रहा है, बल्कि उनके सामने भूखे मरने की नौबत तक आ गई है। किसान आत्महत्या के मामले में विदर्भ पहले से ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रहा है।
सूखे के कारण विदर्भ के किसानों के फसलों के हुए नुकसान से राहत दिलाने के लिए पिछले साल के फसल ऋण पर वित्तीय राहत और ब्याज छूट देने की सख्त जरूरत है। लेकिन गत दिनों राज्य सरकार ने अपने बजट में सूखे से बदहाल किसानों को किसी तरह की राहत नहीं प्रदान की है। खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य संकट और वित्तीय सहायता के लिए किसान ललचायी भरी नजरों से आस लगाए हुए हैं। कई किसान ऐसे हैं, जो गंभीर रूप से बीमारा है और उनके सामने घर के बेटियों की शादी की चिंता खाये जा रही है।
विदर्भ जनआंदोलन समिति के प्रमुख किशोर तिवारी कहते हैं कि किसान बदहाली में मदद के लिए अभी भी केंद्र सरकार की ओर टकटकी भरी नजरों से देख रहे हैं। किसानों की बदहाली का सबसे बड़ा करण है कि सरकार की वह नीति जिसमें किसानों को बी.टी.कपास उगाने को प्रोत्साहन दिया गया। इस फसल से किसानों को भारी आर्थिक नुकसान हुआ है। दूसरी ओर सिंचाई के लिए पर्याप्त जल नहीं होने से स्थिति ओर गंभीर हो गई है।
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जनभारत मेल, देहरादून में

भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव के सहारे ताकत बढ़ाने की जुगत

संजय स्वदेश
केंद्र और राज्य सरकार के संयुक्त नक्सल विरोधी अभियान ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सली समर्थक ग्रामीण और सरकारीकर्मी की संख्या में तेजी से कमी आई है। इसको लेकर नक्सली नेता खासे परेशान है। सूत्रों की मानें तो संगठन को मजबूत करने और मिशन 2050 के लक्ष्य को हासिल करने के उद्देश्य से वे अब क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के जीवन चरित्र का सहारा ले रहे हैं। बीत 23 जनवरी को विभिन्न नक्सल क्षेत्रों में तीनों क्रांतिकारियों की स्मृति में शहीद दिवस मनाया गया। उनके जीवन चरित्र की कहानी सुनाकर लोगों को प्रभावित करने की कोशिश की गई। जनता को यह समझाकर अपना साथ देने की कोशिश की गई कि तीनों क्रांतिकारियों ने भी अंग्रेजी सरकार के कानूनी व उनकी नीतियों का विरोध किया था। सरकार उन्हें आतंकी कहती थी। लेकिन अजादी की बुनियाद की उनकी विशेष भूमिका रही है। ज्ञात हो कि 23 मार्च, 1931 तीनों क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने फांसी दी थी।
पुलिस विभाग के सूत्रों का कहना है कि 23 मार्च के बाद नक्सल प्रभावित क्षेत्र विशेष कर गड़चिरौली के विभिन्न क्षेत्रों से पुलिस को भारी मात्रा में क्रांतिकारियों के चित्र, साहित्य आदि प्राप्त हो रहे हैं। जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि ग्रामीणों को अपना समर्थन बनाने के लिए आजादी के दिवनों के विचारों को प्रचार प्रसार कर नक्सली अपने लिए जन समर्थन जुटा रहे हैं, जिससे कि सरकारी की ओर से उनके सफाये के लिए चलाये जा रहे अभियान पर विराम लग सके। जानकारों का कहना है कि नक्सलियों की यह गतिविधियां क्षेत्र में तैनात सुरक्षा बलों के मनोबल को प्रभावित करने की सोझी-समझी रणनीति हो सकती है। ज्ञात हो कि नक्सलियों की इस तरह की गतिविधियों की खबरे महाराष्ट्र से सटे जंगल विशेषकर छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित गांवों से पहले भी आ चुकी हैं।
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शनिवार, मार्च 27, 2010

फांसी से झूला रिटायर्ड फौजी के कुल का इकलौता दीपक

जिंदगी पर भारी पड़ा पुलिस भर्ती में फेल होने का भय
नागपुर।
पुलिस भर्ती परीक्षा में फेल होने के डर से सेना के एक रिटायर्ड फौजी के इकलौते बेटे दीपक ने बीती रात फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। गत 25 मार्च को उसने पुलिस भर्ती के लिए लिखित परीक्षा दी थी, उसे डर था कि इस परीक्षा में वह फेल हो जाएगा। पर जब परिणाम आया तो पता चला कि वह अच्छे अंक से पास हो चुका है। उसके पास से पुलिस को एक सुसाइड नोट भी मिला है। जिसमें दीपक ने लिखा है - 'याला कोणी ही जबावदार नाही आहेÓ। मतलब उसके मौत का जिम्मेदार वह स्वयं है। पुलिस मुख्यालय के क्वांटर नं.3/18, बिल्डिंग नं. 3 की तीसरी मंजिल पर रिटायर्ड फौजी अरुण सालवे के इकलौते बेटे दीपक सालवे (23) की लाश नायलोन की रस्सी से लटकती नजर आई। अनुमान है कि दीपक ने बीत रात करीब 1 बजे फांसी लगाई होगी। दीपक के परिचितों ने बताया कि वह कल दोपहर 12 बजे घर से निकला तो देर रात तक घर वापस नहीं लौटा था।
दीपक के पिता सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद लोहमार्ग पुलिस विभाग में हवलदार के पद पर तैनात है। उनकी सेवानिवृत्ति में अभी 5 माह शेष है। उसे डर था कि नौकरी नहीं मिली तो क्या होगा? पिता को क्या मुंह दिखाएंगा? फौजी बाप ने बेटे को पुलिस में भर्ती के लिए जरूरी बातें सिखाई थी। दीपक ने उनक बातों को आत्मसात किया। इस कारण पुलिस में भर्ती के लिए उसने मेहनत कर शरीर को सुडौल बनाया था। उसने गत 25 मार्च को जीआरपी के अजनी स्थित मुख्यालय पर पुलिस भर्ती के लिए लिखित परीक्षा भी दी थी। उसे डर सताने लगा था कि वह इस परीक्षा में कुछ गलती करने के कारण फेल हो जाएगा। इसी डर के वह तनावग्रस्त हो गया। वह घर से करीब 12 बजे निकला। घर वालों को लगा कि वह घूम कर वापस आ जाएगा। लेकिन वह शाम तक नहीं आया। शनिवार को सुबह दीपक के घर वालों ने बेटे को फांसी पर लटकते देखा, तो उनके होश उड़ गए। इसकी जानकारी अजनी थाने को दी गई। घटनास्थल पर अजनी व इमामबाडा पुलिस के अधिकराी कर्मचारी पहुंचे। पुलिस सूत्रों का कहना है कि आत्महत्या से पूर्व लिखे गए सुसाइड नोट में दीपक ने अपनी मां से आत्महत्या के लिए माफी मांगी है। दीपक की बहन शीतल बी.एड. द्वितीय वर्ष की छात्रा है।
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एशियाई देशों में फिर से बढऩे लगी अमेरीकी दखलअंदाजी

अमेरिका-पाकिस्तान के बीच उसका फिर से पनपता मैत्री भाव भारत के लिए खतरे की घंटी है। पाकिस्तान के कलुषित अतीत और वर्तमान की अनदेखी कर उसके प्रति जैसी दरियादिली अमेरिका दिखा रहा है वह अस्वाभाविक भी है और चिंताजनक भी। अमेरिकी उतावलापन से केवल भारत ही नहीं, दक्षिण एशिया और साथ ही विश्व समुदाय को भी चिंतित होना चाहिए। अमेरिका या तो पाकिस्तान का अंध समर्थन करने पर आमादा हो गया है या फिर वह इस अराजक एवं गैर जिम्मेदार राष्ट्र के प्रति किसी आसक्ति का शिकार है। लेकिन यह न तो अचानक हुआ है और न ही उसके दोगलेपन का इकलौता मामला है। दोनों हाथों में लड्डू रखना अमेरिका की पुरानी नीति है। वहां का कोई भी राष्ट्रपति चाहे वह जॉर्ज बुश हों, या ओबामा, इससे अलग नहीं हो सकता। जिस तरह से पाकिस्तान में वही शासन कर सकता है, जिसके होठों पर भारत के नाम पर कोफ्त ही कोफ्त हो, ठीक उसी प्रकार अमेरिकी इतिहास का वही सफल राष्ट्रपति हो सकता है, जिसे एक-दूसरे को लड़ाना जानता हो। फूट-डालो शासन करो की कलात्मकता को उसने आत्मसात कर लिया है। पर हमारे नीति नियंताओं को भी अमेरिका से कोई समझौता सिर्फ राजनीतिक आकांक्षाओं व तात्कालिक जरूरतों की पूर्ति की दृष्टि से नहीं करना चाहिए। अतीत में अनेक मामले रहे हैं जब अमेरिका ने प्रलोभन पैदा कर हमें जाल में फंसाया और बाद में संतुलन बनाने के नाम पर हमारे चिर प्रतिद्वंद्वी को भी अपने कथित न्याय-तराजू के दूसरे पल्ले पर रख दिया। परमाणु सहयोग के मामले में भी अब यही किया जा रहा है। भारत चाहे लाख आपत्तियां करे, हिलेरी कह रही हैं कि वह पाकिस्तान की तात्कालिक और दीर्घकालिक ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए उसकी मदद करने की इच्छुक हैं। इस्लामाबाद ने भारत के साथ बराबरी के लिए अमेरिका से परमाणु सहयोग तथा सैन्य उपकरण चाहा है। भारत ने अमेरिका से परमाणु करार करते वक्त उससे ऐसी कोई वचनबद्धता नहीं हासिल की थी कि वह पाकिस्तान या किसी और देश को ऐसी मदद नहीं करेगा। इस नजरिये से भारत के विरोधों का कोई अर्थ नहीं है बल्कि यह कहा जाना चाहिए कि हमने अपना गला अमेरिकी खूंटे से बंधी रस्सी में खुद डाल दिया है। इसके लिए किसी और को कैसे दोषी ठहराया जा सकता है? अमेरिका की विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने कहा है कि हम उस बलिदान का सम्मान करते हैं, जो पाकिस्तान ने उसकी स्थिरता और विकास के लिए खतरा बने आतंकियों के खिलाफ संघर्ष में दिया है। हम उन सैनिकों और असैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, जो इस संघर्ष में मारे गए अथवा घायल हुए। क्या भारत को याद है कि किसी भी प्रसंग पर अमेरिका ने उसके साथ ऐसी मृदु वाणी का उपयोग किया हो। अगर नहीं तो शर्म न अमेरिका को, न पाकिस्तान को आना चाहिए, चुल्लू भर पानी में हमारे उन सरमाएदारों को मर जाना चाहिए जो हर बार लहूलुहान पीठ लेकर अमेरिका के सामने हाथ बांधे जा खड़े होते हैं। ज्यादा दिन की नहीं हाल की बात। 26/11 आतंकी हमले और हेडली की गिरफ्तारी से लेकर आरोपों को कबूल करने तक अमेरिका की भूमिका का स्पष्ट पता नहीं चल पा रहा है। हेडली ही नहीं बल्कि आतंकवाद के मसले पर भी अमेरिका का रुख स्पष्ट नजर नहीं आता। अपने ताजा बयान में अमेरिका ने कह दिया है कि उसने हेडली से पूछताछ करने के लिए भारत को इजाजत देने के बारे में अभी कुछ भी विचार नहीं किया है। दुनिया के चप्पे-चप्पे पर पैनी नजर रखने वाले इस देश को क्या नहीं पता कि मुंबई हमले में पाकिस्तान के पूर्व मेजर (पाशा) की भूमिका अहम थी, सेवानिवृत्त मेजर अब्दुर रहमान हाशिम सईद, डेविड कोलमैन हेडली और हमले को निर्देशित कर रहे आतंकियों के बीच की कड़ी था। अमेरिका को सब पता है, इसलिए सात समंदर पार की जमीन पर वह लय और ताल में खतरनाक खेल खेल रहा है। लिहाजा इस पर जरा भी आश्चर्य नहीं कि भारत की आपत्तियों के बावजूद हिलेरी ने यह स्पष्ट किया कि असैन्य परमाणु समझौते के पाकिस्तान के अनुरोध पर विचार किया जाएगा, क्योंकि अमेरिका ने खुद को ऐसी स्थिति में ला खड़ा किया है कि पाकिस्तान उसे आसानी से ब्लैकमेल कर सके। यह लगभग तय है कि पाकिस्तान को अमेरिका से सैन्य-असैन्य सहायता की एक नई किश्त मिलने जा रही है। यह भी तय है कि वह इस सहायता का दुरुपयोग करेगा और वह भी भारत के खिलाफ। कम से कम अब तो भारत को यह एहसास हो जाना चाहिए कि अमेरिका अपने संकीर्ण हितों को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। भारत की कहीं कोई सुनवाई नहीं, आगे भी नहीं होने वाली। भारत अपने हितों की रक्षा को लेकर ढिलाई का परिचय देगा तो फिर उसकी कठिनाई और बढऩा तय है।
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जनभारत मेल में प्रकाशित

मंगलवार, मार्च 16, 2010

सफेद सोना से नहीं भर पाई सरकारी झोली


विदर्भ में बी.टी.कॉटन ने विदर्भ के किसानों में आत्महत्या करने की मजबूरी जन्म देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सरकार ने राहत देने के लिए कपास खरीदी के सरकारी केंद्र शुरू कर समर्थन मूल्य देना शुरू किया। फिर भी किसानों को राहत नहीं हुई। इस साल फिर से स्थिति पिछले साल की तरह हुआ। विदर्भ के विभिन्न जिलों से यह खबरें आ रही है कि किसान सरकारी कपास खरीदी केंद्र पर कपास बेचने के बजाय निजी केंद्रों पर ज्यादा गए।

संजय स्वदेश
नागपुर।
विदर्भ के किसानों से अच्छे मूल्य पर कपास खरीदने की दावा करने वाला महाराष्ट्र कपास उत्पादक पणन महासंघ इस बार निराश हो गया है। कपास की खरीदारी नवंबर से शुरू हुई। अच्छी कीमत देने के दावे किये गए। 200 लाख क्विंटल कपास खरीदने का दावा किया गया। लेकिन आधा मार्च निकलने तक महासंघ के दावे खाली रहे। सरकारी झोली में आई महज 13 हजार 923 क्विंटल कपास। मतलब सफेद सोना से सरकारी झोली खाली रही।
जानकारों का कहना है कि इस वर्ष लक्ष्य पूरा नहीं कर पाने की मुख्य वजह
कपास का समर्थन मूल्य कम देना और नाफेड (केंद्र सरकार की नोडल एजेंसी) की कुछ जटिल शर्तें। वहीं दूसरी ओर खुले बाजार में व्यापारियों ने किसानों को समर्थन मूल्य से 300-400 रुपए अधिक का दर दिया। इससे ज्यादातर किसान निजी व्यापारियों के पास गए। लिहाजा, सफेद सोना से व्यापारियों की झोली भरी और सरकारी झोली खाली रही।
महासंघ के निर्धारित लक्ष्य अब पूरा होने की कोई संभावना नहीं है। लिहाजा, महासंघ ने अपनी दुकान बंद करने का निणर्य ले लिया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार महासंघ ने 20 मार्च से कपास खरीरी केंद्र बंद करने का निर्णय कर देगा। पिछले वर्ष कपास उत्पादक पणन महासंघ ने 167 लाख क्विंटल कपास खरीदा था। इस साल राज्य में कपास का 300 से 350 लाख क्विंटल उत्पादन हुआ है। महासंघ ने इसमें से 200 लाख क्विंटल कपास सरकार की झोली में आने की संभावना जताई थी। महासंघ ने इसी लक्ष्य के अनुसार अपनी तैयारी की थी। महासंघ के 90 केंद्र पर उचित भाव नहीं ङ्क्षमलने से किसानों ने यहां तक आने में उदासिनता दिखाई। केंद्रों की संख्या भी बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ी।
महासंघ सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार 15 मार्च तक महासंघ केवल 13 हजार 923 क्विंटल से अधिक कपास नहीं खरीद पाया। सबसे अधिक वणी जोन में 11 हजार 849 क्विंटल कपास खरीदा गया। इसके बाद यवतमाल जोन में 531, अकोला मेें 178, नागपुर में 186, परली में 128, अमरावती मेें 44, खामगंाव में 7, औरंगाबाद में 3, नांदेड में 27 और जलगांव जोन में 30 क्विंटल कपास खरीदा गया। इसके विपरीत व्यापारियों ने 250 लाख क्विंटल कपास खरीदा है। शेख बचा कपास सीसीआई की झोली में गया। पिछले वर्ष 2850 से 3 हजार रुपए प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य घोषित किया गया था।
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रविवार, मार्च 14, 2010

पृथक विदर्भ के लिए गरजे गडकरी


संजय स्वदेश
नागपुर।
पृथक विदर्भ के लिए निकाले गए विदर्भजन जागरण यात्रा का रविवार को नागपुर के यशवंत स्टेडियम में समापन हुआ। इस मौके पर आयोजित जनसभा को संबोधित करने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी उपस्थित हुए। उनके समर्थन देने के लिए लोकसभा में विपक्ष के उपनेता गोपीनाथ मुंडे, छत्तीसगढ़ के मुख्य मंत्री डॉ. रमन सिंह, उत्तरांचल के मुख्यमंत्री रमेश पोखरिया, झारखंड के उपमुख्य मंत्री रघुवरदास, महाराष्ट्र राज्य विधान सभा में विपक्ष के नेता एकनाथ खड़से, सांसद हंसराज अहीर, पूर्व सांसद बनवारी लाल पुरोहित, किसान नेता भाऊसाहब फुंडकर समेत कई स्थानीय नेता मंच पर एकजुट हुए।
भाजपाध्यक्ष नितिन गडकरी ने पृथक विदर्भ राज्य का पुरजोर समर्थन करते हुए कहा कि यह मांग 1956 से की जा रही है यदि विदर्भ का बैकलॉग नहीं बढ़ता, बिजली की समस्या नहीं होती, किसान आत्महत्या नहीं करते सिंचन व्यवस्था बैगलॉग नहीं बढ़ता, रोजगार की समस्या पर ध्यान दिया जाता तो आज पृथक विदर्भ की मांग नहीं उठती। लेकिन ऐसा हो न सका। उन्होंने कहा कि इसी यशवंत स्टेडियम में नागपुर की मिहान परियोजना संबंधित सभा हुई थी। हजारों की संख्या में लोग जमा हुए थे। यहां तक कि लोग स्टेडियम के बाहर खड़े थे, पर क्या हुआ उस मिहान का? आज राज्य के मुख्यमंत्री के पास मिहान के समय नहीं है। उन्होंने कहा है कि लोग विदर्भ का कुप्रचार कर रहे हैं कि विदर्भ आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हो सकता। वे जनता को बहकाने की काशिश कर रहे हैं। विदर्भ के साथ अन्याय बदस्तूर जारी है। यहां तक मंत्री मंडल में भी विदर्भ उपेक्षा की जा रही है। सारे महात्वपूर्ण विभाग मराठवाड़ा और पश्चिम महाराष्ट्र के नेताओं के पास हैं विदर्भ के मंत्रियों के पास कोई महत्वपूर्ण विभाग नहीं है। राज्य बजट के मात्र दो प्रतिशत वाले विभाग विदर्भ के मंत्रियों के पास है। गड़करी ने कहा कि विदर्भ के दो सांसदों ने बताया कि वे विदर्भ का मुद्दा संसद में उठाएंगे। विदर्भ की मांग सिर्फ भाजपा की नहीं बल्कि सभी राजनीतिक पार्टियों की है। विदर्भ के पास वनों की अपार संपदा है। गढ़चिरौली राज्य का सबसे श्रीमंत जिला है। चंद्रपुर गोंदिया, भंडारा, गढ़चिरोली में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। सरकार विदर्भ के साथ भेद-भाव करती आ रही है। 25-30 साल बीत जाने के बाद भी एक भी प्रकल्प सरकार पूरा नहीं कर सकी। जबकि पश्चिम महाराष्ट्र, मराठवाडा और मुंबई का विकास होता चला जा रहा है। उन्होंने इन क्षेत्रों के विकास का विरोध करते हुए कांगे्रस से विदर्भ विकास का आह्वान किया। गडकरी ने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी ने तीन राज्य बनाए जो कि आज विकास की गाथा गा रहे हैं। लेकिन कांग्रेस ने तेलंगाना का क्या हाल किया है यह सबको मालूम है। उन्होंने कहा कि चमत्कार के बिना कोई नमस्कार नहीं करता इस लिए अब विदर्भ की जनता को जात-पात, धर्म-जाती भूलकर एक आंदोलन करना होगा तथी विदर्भ राज्य की स्थापना होगी।
संसद में मुंडे उठाएंगे विदर्भ का मुद्दा
गोपीनाथ मुंडे ने कहा कि वे इसी हफ्ते संसद में विदर्भ का मुद्दा उठाएंगे। आज यहां पर तीन राज्य मुख्यमंत्री उपस्थित हैं यदि विदर्भ बनता है किसी तीसरे सम्मेलन में चार राज्य के मुख्यमंत्री छोटे राज्यों के समर्थन में एकत्रित होंगे। उन्होंने कहा कि वे विदर्भ ही नहीं तेलंगाना के भी पक्ष में हैं। मुंडे ने कहा विदर्भ पर सभी प्रकार के अन्याय के साथ राजनीतिक अन्याय भी हो रहा है। मुर्गीपालन, मछली पालन, जैसे मामूली विभाग विदर्भ के मंत्रियों के पास हैं, जबकि पश्चिम महाराष्ट्र मराठवाडा के पास सभी महत्वपूर्ण विभाग हैं। वन तो विदर्भ का है लेकिन वन मंत्री सांगली का है। उन्होंने विदर्भ पर किए गए खर्च की श्वेत पत्र प्रकाशित करने की मांग की। उन्होंने कहा कि संसद में जब तेलंगाना का प्रस्ताव आएगा तो वे उसे सुधारिक कर विदर्भ के प्रस्ताव की भी मांग करेंगे। और महिला आरक्षण की तर्ज पर उसे पारित करेंगे। मुंडे ने कहा कि हिंदी राज्य के तुकड़ेे होने से हिंदी मुख्य मंत्रियों संख्या बढ़ी है। यदि विदर्भ बनता है तो दो मुख्यमंत्री मराठी भाषी होंगे।
रमेश पोखरिया ने कहा
उत्तरांचल के मुख्यमंत्री रमेश पोखरिया ने कहा 1952 से उत्तरांचल की जनता लगातार अलग राज्य की मांग कर रही थी। लेकिन आखिर अटलजी ने तीनों राज्य के निर्माण को हरी झंडी दिखाई और आज तीनों राज्य न सिर्फ सक्षम हैं बल्कि विकास की परिभाषा भी लिख रहे हैं। यदि विदर्भ से लोगों का पलायान रोकना है तो पृथक राज्य का निर्माण हर हाल मे करना ही होगा। विदर्भ के पास सारे संसाधन है। उन्होंने 'आज दो अभी दो अपना विदर्भ राज्य दोÓ का नारा दिया।
डॉ रमणसिंह ने कहा...
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ रमणसिंह ने कहा कि जो लोग ये कहते हैं कि छोटे राज्यों का विकास नहीं हो सकता, वे गलत है। छत्तीसगढ़ क्षेत्र से पहले पलायन होता था, लेकिन अलग राज्य बनने से न सिर्फ पलायान रूका बल्कि प्रति व्यक्ति आय में वृध्दि हुई है। उन्होंने कहा कि यदि ईमानदारी से पहल की गई होती तो दस साल पहले ही विदर्भ बन जाता। उन्होंने कहा कि आज देश में विदर्भ को किसान आत्महत्या के रूप में जाना जाता है यह विदर्भ की दयनीय पहचान है। अब जनता जाग चुकी है। दुनिया की कोई ताकत अब विदर्भ निर्माण को रोक नहीं सकती।
घुवरदास ने कहा...
झारखंड के उप-मुख्यमंत्री रघुवरदास ने कहा कि वे मुख्यमंत्री शिबू-सोरेन और वहां की जनता की ओर से विदर्भ के लिए शुभकामनाएं लेकर आए हैं। भाजपा छोटे राज्यों की पक्षधर रही है। केंद्र में बैठी कांग्रेस सरकार ने आंदोलन को खरीदने का काम किया है। जनता जाग चुकी है अब विदर्भ को कोई रोक नहीं सकता।
स्थानीय नेता बोले...
राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता एकनाथ खडसे ने कहा कि विदर्भ की मांग बहुत पुरानी है। उन्होंने कहा कि सरकार कहती रही कि विदर्भ पर अन्याय नहीं होने देंगे विकास के लिए भरपूर निधि देेंगे, लेकिन आज दिख रहा है कि विदर्भ पर अन्याय हो रहा है। विदर्भ की जनता ने जिस गर्मजोशी से जनजागरण यात्रा का स्वागत किया वह यह साबित करता है कि अब विदर्भ दूर नहीं।
भाऊ साहब ने यशवंत राव चव्हाण से लेकर आज तक के कांगे्रस नेताओं के विदर्भ के लिए दोषी ठहराया और कहा कि यहां के रास्ते, बिजली सिंचाई सब कांग्रेसी नेता लेगए। भाजपा विदर्भ के आंदोलन को गांव-गांव पहुंचाएगी।
विधायक फडणवीस ने विदर्भ के साथ हुए अन्याय का सविस्तार वर्णन करते हुए कहा कि विदर्भ मेरा अधिकार है मैं उसे लेकर रहूंगा। विधायक सुधीर मुनगट्टीवार ने कहा कि विदर्भ की लड़ाई किसी पार्टी की नहीं बल्कि आम आदमी की लड़ाई है। युवाओं को आवहान करते हुए उन्होंने कहा कि जब युवा इस आंदोलन की जिम्मेदारी अपने कंधो पर लेंगे तब विदर्भ का निर्माण होगा। समारोह में विधायक देवेंद्र फडणवीस और सुधीर मुनगट्टीवार को हल देकर सम्मानित किया गया।

नई दिल्ली टू गडकरी वाडा


भाजपा का मिनी मुख्यालय गडकरी वाडा
संजय स्वदेश

नितिन गडकरी भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष क्या बनें, भाजपा की राजनीति नागपुर से संचालित होने लगी है। स्वाभावित है। गडकरी नागपुर के हैं, संघ कार्यालय नागपुर में है। भाजपा संघ की जन्मदात्री 'मांÓ है। अध्यक्ष होने के नाते पार्टी के 'पतिÓ तो गडकरी ही हुए। इस लिहाज से गडकरी 'सासु मांÓ का दामन भला कैसे छोड़ सकते हैं। वह भी उस मां का जिसने पार्टी के पोस्टर चिपकाने वाले गड़करी जैसे साधारण कार्यकर्ता को पार्टी के शिखर पर पहुंचा देती है। गडकरी के माध्यम से संघ ने पूरी तरह से भाजपा को अपने नियंत्रण में ले लिया है। तभी तो गुजरात के संघी मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के लिए सबसे योग्य बताने में गडकरी थोड़े भी नहीं हिचके। हर जगह संघ कैडर प्रभावी होगा। तभी तो अध्यक्ष बनते ही उन्होंने संघ कैडर के प्रभावी नेताओं को पार्टी में वापस लेने का संकेत दिया। इस कवायद में उमा भारती पहले ही संघ मुख्याल में चक्कर लगा चुकी है। पार्टी में किनारे चल रहे कट्टर संघी संजय जोशी को लेकर चर्चा है। इंदौर में रामराज्य के साथ अंत्योत्दय की भी बात हुई। मतलब राष्ट्रवादी की जो बाते संघ करता है, उसके के अनुसरण में करते हुए गडकरी अपनी नीतियों को कारगर तरीके से प्रभावी करने की जुगत में लगे हुए हैं। गडकरी के संकेत स्पष्ट है। पार्टी में रहना है तो संघ की माननी होगी। स्थिति को पार्टी के कई नेता अभी से ही भांप गए हैं। समझ गए हैं कि बिना नागपुर के पार्टी में बड़े कद की गुंजाइश नहीं है। तभी रविवार, 15 मार्च को नागपुर में आयोजित पृथक विदर्भ राज्य की जनसभा में गडकरी को समर्थन देने दो राज्य के मुख्यमंत्री समेत, एक राज्य के उपमुख्यमंत्री आए। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रणम सिंह, उत्तरांचल के मुख्यमंत्री रमेश पोखारिया और झारखंड के उप-मुख्यमंत्री रघुवरदास। सभी ने गडकरी के सुर से सुर मिलाया। अपने सुर- में दूसरे का सुर मिलता देख किसे अच्छा नहीं लगता है। लोकसभा में विपक्ष के उप नेता गोपीनाथ मुंडे ने भी विदर्भ के मुद्दे को संसद में उठाने की हामी भर दी। यहीं मुड़े कभी गडकरी के घोर विरोधी थे। प्रमोद महाजन के जमाने में मुंडे के पीछे-पीछे गडकरी चलते थे। आज गडकरी के नेतृत्व में विदर्भ में आकर पृथक विदर्भ का समर्थन कर रहे हैं।
कहने के लिए तो नागपुर की यह जनसभा पृथक विदर्भ के लिए थी। लेकिन हकीकत में यह राष्ट्रीय स्तर पर गडकरी की मजबूती दिखाने का एकतरह का 'पीआरÓ का एक नमूना था। भले ही गडकरी अपने गढ़ में हार चुके हों, पर पार्टी में अपने 'गढ़Ó को और मजबूत कर रहे हैं। गडकरी का पीआर बढ़ाने आए दो राज्यों के मुख्यमंत्री और एक राज्य के उपमुख्यमंत्री ने इस जनसभा के माध्यम से गडकरी के संबंध प्रगाढ़ करने की कोशिश की है। उत्तरांचल के मुख्यमंत्री रमेश पोखारिया यह जानते हैं कि उनके राज्य के मुख्यमंत्री का ताज उनके सिर कैसे आया? उत्तरांचल में पार्टी में पोखारियों को न चाहने वालों की कमी नहीं है। छत्तीसगढ़ में भी पार्टी की एक लॉबी 'चावल वाले बाबाÓ की टांग खिंचने की जुगत में है। अब भला कैसे कैसे यह नहीं कहा जा सकता कि एक उप मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री की कुर्सी के सपने देखता है। भविष्य में झारखंड में भाजपा के शासन आने पर रघुवरदास को गडकरी से गहरी आशा है। समय से पहले इन नेताओं ने भविष्य में गडकरी की महत्ता को भांप कर नागुपर आने का मौका ढूढ़ लिया। भविष्य के लिए गडकरी के साथ प्रगाढ़ संबंध बनाने कवायद कर अपने राजनीतिक भविष्य के लिए निवेश कर दिया है। कुछ वर्षों से पार्टी में किनारे चल रहे पार्टी प्रकाश जावड़ेकर पहले भूले-भटके ही नागपुर आते थे। गडकरी के अध्यक्ष बनने ही नागपुर आने की सिलसिला शुरू हो गया है। अब तो वे नागपुर में हर सप्ताह राज्य के संसदीय कार्यालय में आएंगे। इनसे पहले पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रविशंकर प्रसाद भी नागपुर आए। चोरी-छिपे शत्रुघ्न सिन्हा भी नागपुर आए। संकेत है कि आने वाले दिनों में और भी नेता नागपुर की ओर रुख करेंगे। पार्टी का 'मिनी मुख्यालयÓ नागपुर में गडकरी वाडा हो जाए तो आश्चर्य नहीं।

उड़ीसा में 'गड़चिरौली पैटर्नÓ

नक्सली हमलों की दृष्टिï से देश में संवेदनशील माने जाने वाले महाराष्ट्र के गड़चिरौली जिले में अत्याधुनिक हथियारों से लैस नक्सलियों को पूरी क्षमता के साथ मुकाबला करने के लिए केंद्र तथा राज्य सरकार द्वारा संयुत रूप से चलाई गई योजना और नीति सफल होने से इस पैटर्न को अब उड़ीसा में लागू किया जा सकता है। यह नीति सफल हुई है। यह हम नहीं सरकार कह रही है। क्योंकि पिछले कुछ माह से जिस तरह से उड़ीसा में नक्सलियों ने अपनी हिंसक गतिविधियों को अंजाम दिया है, वैसा घटना इस दौरान गड़चिरौली में नहीं हुई है।
पिछले वर्ष फरवरी माह में नक्सलियों ने पुलिसबलों पर भारी धावा बोला था। इसके बाद अक्टूबर माह के करीब खतरनाक घटना को अंजाम दिया था। गृह मंत्रालय सूत्रों की मानें तो 'गड़चिरोली पैटर्नÓ को उड़ीसा में लागू करने का विचार किया जा रहा है।
सरकार का कहना है कि गड़चिरोली के महाराष्टï्र-छत्तीसगढ़ सीमा पर जिस तरह संयुत अभियान चलाकर पुलिस तथा अधसैनिक बलों ने नसलियों के छके छुड़ा दिए। यह पैटर्न अब उड़ीसा में क्रियान्वित किया जाएगा। गड़चिरौली की तरह अब उड़ीसा की राज्य सीमा पर 'असीमित कार्रवाई अभियानÓ चलाये जाने की योजना है। फिलहाल केंद्र सरकार ने इस योजना का खुलासा नहीं किया है। लेकिन संभावना है कि जल्द ही इसकी अधिकारिक घोषणा की जाएगी। योजना के तहत उड़ीसा के मल्कांगिरि जिले में 5 बीएसएफ बटालियन, 5000 सैनिक भेजे जाएंगे। जिस तरह महाराष्टï्र में चेकपोस्ट के माध्यम से सीमा सील कर दी गई, उसी तरह उड़ीसा में भी नक्सलियों से सफल मुठभेड़ के लिए सीमा को चाकचौबंद किया जाएगा।
नक्सलियों के हिंसक गतिविधियों के मामले में छत्तीसगढ़ के बाद गड़चिरोली संवेदनशील क्षेत्र है। यहां नक्सली हमलों में गत वर्ष 52 पुलिसकर्मी शहीद हुए। फिलहाल गडचिरौली में 2 पुलिस अधीक्षकों के नेतृत्व में लगभग 2000 सीआरपीएफ, सी-60, एसआरपी तथा स्थानीय पुलिस की बड़ी फौज गड़चिरौली में नक्सलियों पर नियंत्रण किये हुए है।
गृह मंत्रालय का दावा है कि नक्सलियों से निपटने के लिए स्थानीय लोगों का जवानों को सहयोग मिलने की दिशा में किए गए प्रयास सफल हुए हैं। इससे स्वयं स्थानीय नागरिक स्वप्रेरणा से गुप्त सूचनाएं देने का प्रयास कर रहे हैं।
उड़ीसा में 'गड़चिरौली पैटर्नÓ लागू करने पुलिस के एक शीर्ष अधिकारी का कहना है कि गड़चिरोली में नक्सली धमकियों के बावजूद खुली पुलिस भर्ती में 10 हजार से अधिक युवाओं ने हिस्सा लिया।

शनिवार, मार्च 13, 2010

...तो किसानों के खून से कब लाल होगी काली मिट्टी

विदर्भ की याद आखिरकार आई। महिला आरक्षण विधेयक ने सारे मुद्दे गौण कर दिए थे। किसान आत्महत्या की घटनाओं को तो जैसे भूला ही दिया गया। लेकिन देर आए, दुरुस्त आए। विपक्ष ने शुक्रवार को राज्यसभा में महाराष्ट्र में किसानों द्वारा आत्महत्या किए जाने का मुद्दा उठाया और सरकार से इस संबंध में तुरंत ध्यान देने और प्रभावित क्षेत्र के लिए पैकेज देने की मांग की। इस दौरान एक बात अपने आप में काफी महत्वपूर्ण रही कि दलभगत भावना को मानवता चीरती हुई आगे बढ़ी। शिवसेना के मनोहर जोशी ने शून्यकाल के दौरान विदर्भ में किसानों की आत्महत्याएं जारी रहने का मुद्दा उठाया और कहा कि सरकार को इस ओर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने तो सवाल भी किया कि किसानों की समस्याओं को दूर करने के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं या उन्हें क्या मदद दी जा रही है। एकदम जायज। उनकी बातें दो-टूक रहीं। उन्होंने इस मामले में केन्द्र एवं राज्य सरकार को प्रभावित किसानों को मदद देने के लिए तुरंत उपाय करने की भी सलाह दी। अब बारी भाजपा के प्रकाश जावडेकर की। उन्होंने भी इस समस्या को काफी ज्वलंत बताते हुए कहा कि पिछले कुछ महीनों में एक हजार से अधिक किसानों ने आत्महत्याएं की हैं। प्रधानमंत्री के पैकेज के बावजूद आत्महत्या की घटनाओं पर रोक नहीं लग सकी है। प्रधानमंत्री का पैकेज विफल रहने का आरोप लगाते हुए उन्होंने मांग की कि वहां के किसानों को राहत देने के लिए एक और पैकेज की आवश्यकता है। जावडेकर ने तो बकायदा आरोप लगाया कि बड़ी संख्या में किसान ऊंची ब्याज दर पर निजी क्षेत्र से ऋण लेते हैं। उन्हें किसानों की ऋणमाफी योजना का लाभ नहीं मिला और वे अब भी ऋण के जाल में फंसे हुए हैं। उन्होंने कहा कि जिन किसानों को ऋण माफी योजना का लाभ मिला है, उन्हें दोबारा ऋण नहीं मिल रहा है। इससे उन्हें भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। शिवसेना के भरत कुमार राउत ने यवतमाल जिले में एक महिला किसान द्वारा आत्महत्या किए जाने का जिक्र करते हुए कहा कि पिछले कुछ वर्षों में हजारों किसानों ने वहां आत्महत्याएं की हैं। सरकार के आश्वासन के बावजूद वहां ऐसी घटनाएं रूकी नहीं हैं। राउत ने कहा कि वहां के कई क्षेत्र सूखे की चपेट में हैं और सरकार को इस संबंध में ध्यान देना चाहिए। उन्होंने किसानों की समस्याओं की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति बनाए जाने की मांग की। लोग भूले नहीं हैं। इससे पहेल भी राहत पैकेज से होने वाले राजनीतिक लाभ की फसल काटी जा चुकी है। इसके बावजूद आज भी विदर्भ में औसतन पहले जितनी ही आत्महत्याएं हो रही हैं। प्रधानमंत्री राहत पैकेज में भी तमाम तरह की गड़बडिय़ों और भ्रष्टाचार के मामले देखने को मिले थे। पीडि़त परिवारों का फायदा विधायक और तमाम दूसरे नेता उठा ले गए। सीधे विदर्भ के लिए न सही पर वाम दलों ने आज राज्यसभा में खाद्यान्न सहित आवश्यकत वस्तुओं की बढ़ती कीमतों के कारण आम लोगों को होने वाली भारी परेशानी का मुद्दा उठाकर दिल जीत लिया। कीमतों पर लगाम कसने के लिए तुरंत सुरक्षित खाद्यान्न भंडार से अनाज जारी कर अनाज के वायदा कारोबार पर रोक लगाने की उनकी मांगों पर अगर अमल किया गया तो सच में विदर्भ को भी काफी राहत मिलेगी। यहां कर्ज के कब्रगाह में हजारों किसान दफन हैं। काली मिट्टी तमाम मौतों के बाद भी लाल नहीं हुई। आंकड़ों के अनुसार, विदर्भ में किसानों की मौत मुख्य रूप से बैंकों और सूदखोरों से लिये गये कर्ज को न चुका पाने की असंभव स्थिति के चलते हो रही है। सूदखोरों के यंगुल में फंसे किसान तड़प रहे हैं और सरकार घोषणाओं से काम चला रही है। गरीब किसान अपनी छोटी-मोटी खेती छोड़ कोई नया धंधा शुरू करना चाहते हैं तो पुराने कर्ज जानलेवा साबित हो रहे हैं। आत्महत्या करने वाली महिलाओं की बड़ी संख्या जहां कुंए में कूदकर मरती है, वहीं तीस साल से कम के युवा आमतौर पर गले में फांसी लगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर रहे हैं। मरने के लिए जहर खरीदना नहीं पड़ता बल्कि कपास और सोयाबीन के खेतों में डाला जाने वाला कीटनाशक, खरपतवार नाशक ही मौत का काम आसान कर देता है जो विदर्भ के हर किसान के घर में सहज उपलब्ध है। आत्महत्या रोकने के सरकारी प्रयासों में एक है सब्सिडी का प्रावधान। सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी के बावजूद किसानों को सरकारी खरीद महंगी पड़ रही है, जो कि सरकारी नीतियों की पोल खोलती है। अव्वल तो सारा ध्यान जिन्हें आना चाहिए था, उनका ध्यान पता नहीं किस और हैं। कृषि मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार द्वारा बनाई नई नीतियों के बाद भी यहां के किसानों के हालात नहीं बदले हैं। मानो यहां के किसानों की किस्मत में जिंदगी भर कर्ज में डूबे रहना ही लिखा है। अब जब बात निकल ही आई है तो अच्छा होगा इसे दूर तक ले जाया जाए , ताकि मांग हक में बदल जाए।

2356 करोड़ की हुई 48 करोड़ की परियोजना

यह वर्ष 2008-09 के मंजूर शेडयुल दर पर आधारित हो सकती है। सन 1979-80 के बाजार दर की अपेक्षा सन 2008-09 के बाजार दर 10 गुना ज्यादा होंगे, अगर इससे भी ज्यादा मान लिया जाए तो 15 गुणा ज्यादा तक अनुमान लगाया जा सकता है। इसके आधार पर भी तृतीय प्रशासकीय मान्यता 750 करोड़ तक होनी चाहिए। लेकिन वास्तव में यह 2356.57 करोड़ की है, जो प्रशासकीय मान्यता का 40 गुना से भी ज्यादा है।

वर्धा (महाराष्ट्र)। सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की एक कर्मभूमि महाराष्ट्र का वर्धा जिला भी है। पर महात्मा गांधी के सत्य और ईमानदारी से आदर्श यहां के सरकारी महकम में कम ही देखने को मिलती है। यहां शराब पर पाबंदी है। पर दूसरे जिलों की अपेक्षा यहां शराब सबसे ज्यादा बिकती है। यहां स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में अनियमितता की खबरें आए दिन सुर्खियों में होती है। अब एक नई खबर आई है।
वर्धा जिले में निर्माणाधीन 48 करोड़ रूपए की लागत वाली निम्न वर्धा प्रकल्प 2356 करोड़ रूपये की हो गई है। प्रकल्प से संबंधित राशि की यह बढ़ोतरी संबंधित अधिकारियों के लेटलतीफी से हुई है। 1979-80 के शेडयूल दर पर आधारित यह प्रकल्प 48.08 करोड़ रूपये का था। प्रकल्प के कार्य जिले में धरण, वेस्ट वेअर तथा हेड रेग्युलेटर आदि का है। सन 1998 में नहर के कार्यो की शुरूआत हुई जो लगभग पूर्ण होने की स्थिति में है।
दोनों मुख्य शाखा नहर के कार्य 80 प्रतिशत एवं वितरण प्रणाली के कार्य 40 प्रतिशत पूरे हो चुके हैं। प्रकल्प की तृतीय सुधारित प्रशासकीय मान्यता के अनुसार प्रकल्प की कीमत 2356.57 करोड़ हो चुकी है। पहली प्रशासकीय मान्यता 48.08 करोड़ वर्ष 1979-80 के शेडयूल दर पर आधारित थी, मगर तृतीय प्रशासकीय मान्यता किस वर्ष के शेडयूल दर पर आधारित है यह जानकारी देने में प्रशासन आनाकानी करता है। सूत्रों का कहना है कि यह वर्ष 2008-09 के मंजूर शेडयुल दर पर आधारित हो सकती है। सन 1979-80 के बाजार दर की अपेक्षा सन 2008-09 के बाजार दर 10 गुना ज्यादा होंगे, अगर इससे भी ज्यादा मान लिया जाए तो 15 गुणा ज्यादा तक अनुमान लगाया जा सकता है। इसके आधार पर भी तृतीय प्रशासकीय मान्यता 750 करोड़ तक होनी चाहिए। लेकिन वास्तव में यह 2356.57 करोड़ की है, जो प्रशासकीय मान्यता का 40 गुना से भी ज्यादा है। पिछले अनेक वर्षाे से कछुए की गति से इस प्रकल्प का कार्य शुरू है। प्रशासन द्वारा दी हुई जानकारी के अनुसार, वितरण प्रणाली 40 प्रतिशत पूर्ण हो चुकी है, और मुख्य नहर का कार्य 80 प्रतिशत से ज्यादा हो चुका है। पुलगांव तक का पूर्ण होने के बावजूद, करोड़ो रूपए के इस प्रकल्प के द्वारा अब तक एक एकड़ जमीन को भी पानी का नहीं नसीब है।

2356 करोड़ की हुई 48 करोड़ की परियोजना

यह वर्ष 2008-09 के मंजूर शेडयुल दर पर आधारित हो सकती है। सन 1979-80 के बाजार दर की अपेक्षा सन 2008-09 के बाजार दर 10 गुना ज्यादा होंगे, अगर इससे भी ज्यादा मान लिया जाए तो 15 गुणा ज्यादा तक अनुमान लगाया जा सकता है। इसके आधार पर भी तृतीय प्रशासकीय मान्यता 750 करोड़ तक होनी चाहिए। लेकिन वास्तव में यह 2356.57 करोड़ की है, जो प्रशासकीय मान्यता का 40 गुना से भी ज्यादा है।

वर्धा (महाराष्ट्र)। सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की एक कर्मभूमि महाराष्ट्र का वर्धा जिला भी है। पर महात्मा गांधी के सत्य और ईमानदारी से आदर्श यहां के सरकारी महकम में कम ही देखने को मिलती है। यहां शराब पर पाबंदी है। पर दूसरे जिलों की अपेक्षा यहां शराब सबसे ज्यादा बिकती है। यहां स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में अनियमितता की खबरें आए दिन सुर्खियों में होती है। अब एक नई खबर आई है।
वर्धा जिले में निर्माणाधीन 48 करोड़ रूपए की लागत वाली निम्न वर्धा प्रकल्प 2356 करोड़ रूपये की हो गई है। प्रकल्प से संबंधित राशि की यह बढ़ोतरी संबंधित अधिकारियों के लेटलतीफी से हुई है। 1979-80 के शेडयूल दर पर आधारित यह प्रकल्प 48.08 करोड़ रूपये का था। प्रकल्प के कार्य जिले में धरण, वेस्ट वेअर तथा हेड रेग्युलेटर आदि का है। सन 1998 में नहर के कार्यो की शुरूआत हुई जो लगभग पूर्ण होने की स्थिति में है।
दोनों मुख्य शाखा नहर के कार्य 80 प्रतिशत एवं वितरण प्रणाली के कार्य 40 प्रतिशत पूरे हो चुके हैं। प्रकल्प की तृतीय सुधारित प्रशासकीय मान्यता के अनुसार प्रकल्प की कीमत 2356.57 करोड़ हो चुकी है। पहली प्रशासकीय मान्यता 48.08 करोड़ वर्ष 1979-80 के शेडयूल दर पर आधारित थी, मगर तृतीय प्रशासकीय मान्यता किस वर्ष के शेडयूल दर पर आधारित है यह जानकारी देने में प्रशासन आनाकानी करता है। सूत्रों का कहना है कि यह वर्ष 2008-09 के मंजूर शेडयुल दर पर आधारित हो सकती है। सन 1979-80 के बाजार दर की अपेक्षा सन 2008-09 के बाजार दर 10 गुना ज्यादा होंगे, अगर इससे भी ज्यादा मान लिया जाए तो 15 गुणा ज्यादा तक अनुमान लगाया जा सकता है। इसके आधार पर भी तृतीय प्रशासकीय मान्यता 750 करोड़ तक होनी चाहिए। लेकिन वास्तव में यह 2356.57 करोड़ की है, जो प्रशासकीय मान्यता का 40 गुना से भी ज्यादा है। पिछले अनेक वर्षाे से कछुए की गति से इस प्रकल्प का कार्य शुरू है। प्रशासन द्वारा दी हुई जानकारी के अनुसार, वितरण प्रणाली 40 प्रतिशत पूर्ण हो चुकी है, और मुख्य नहर का कार्य 80 प्रतिशत से ज्यादा हो चुका है। पुलगांव तक का पूर्ण होने के बावजूद, करोड़ो रूपए के इस प्रकल्प के द्वारा अब तक एक एकड़ जमीन को भी पानी का नहीं नसीब है।

इस आरक्षण में क्रीमी लेयर क्यों नहीं!

आरक्षण की पिछले 20 साल में हुई कोई चर्चा क्रीमी लेयर के बगैर पूरी नहीं हुई है। सरकारी नौकरियों में पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण संबंधी मंडल कमीशन लागू होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के दायरे से क्रीमी लेयर को बाहर करने का फैसला सुनाया। इसी आधार पर 2006 में भी केंद्र की यूपीए सरकार के उच्च शिक्षा संस्थानों में ओबीसी आरक्षण लागू करते समय क्रीमी लेयर को कोटे से बाहर रखा गया। हाल ही में जब पश्चिम बंगाल सरकार ने अपनी नौकरियों में मुसलमानों को 10 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया, तो उसमें भी क्रीमी लेयर को आरक्षण नहीं देने की व्यवस्था की गई। यहां तक कि दलितों और आदिवासियों के आरक्षण में, संविधान और कानून में कहीं प्रावधान न होने के बावजूद यह शिगूफा अकसर छेड़ा जाता है कि यहां भी क्रीमी लेयर को बाहर किया जाए। महिला आरक्षण के साथ क्रीमी लेयर की चर्चा क्यों नहीं की गई? इससे ही जुड़ा एक और सवाल कि क्या यह कमजोर के सशक्तिकरण का कानून है? महिला आरक्षण के जरिये सरकार विधायिका में लैंगिक आधार पर विविधता लाना चाहती है। लिहाजा महिला आरक्षण से जुड़ा सबसे बड़ा राजनीतिक प्रश्न है कि क्या यह कानून विधायिका यानी संसद और विधानमंडलों की सामाजिक विविधता को नष्ट करेगा। वैसे संविधान को देखें, तो महिला आरक्षण विधेयक विशेष अवसर के मान्य सिद्धांत के तहत नहीं है। संविधान बनाते समय कई वंचित समूहों का नाम लेकर और कुछ का नाम लिए बगैर शासन को यह अधिकार दिया गया कि उनके लिए विशेष उपबंध लाए जा सकते हैं और उन्हें विशेष अवसर दिए जा सकते हैं। लेकिन विधायिका में महिलाओं के लिए विशेष अवसर की बात संविधान निर्माताओं ने कहीं नहीं की। ठीक उसी तरह, जैसे अल्पसंख्यकों के लिए संसद-विधानसभाओं या नौकरियों में आरक्षण का प्रावधान नहीं किया गया है। ऐसी हालत में अगर महिला आरक्षण को सही मायने में विशेष अवसर का सिद्धांत साबित होना है, तो महिलाओं को सिर्फ महिला के तौर पर देखना अनुचित होगा। इस बात की अनदेखी नहीं की जा सकती कि वह अगड़ी महिला है, वह दलित महिला है, वह ओबीसी महिला है और वह अल्पसंख्यक महिला है। महिला कोटे के अंदर कोटे का वही आधार है, जो आरक्षण का आधार है। यानी जो कमजोर है, उसे विशेष अवसर मिले, ताकि वह भी लोकतंत्र में अपनी हिस्सेदारी निभाए। साथ ही, महिला आरक्षण के अंदर अगर क्रीमी लेयर भी लागू हो, तभी आरक्षण का फायदा उन्हें मिलेगा, जिनको इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। इन उपायों के बगैर लागू किया गया महिला आरक्षण प्रतिगामी कदम साबित हो सकता है, और अगर इसे मौजूदा स्वरूप में लागू किया गया, तो हो सकता है कि अगली संसद की सामाजिक संरचना बदल जाए।

बारिश से करोड़ों की फसल बर्बाद



विदर्भ में दो दिन में बेमौसम हुए बारिश से करोड़ों रूपये की फसल के नुकसान होने का अनुमान लगया जा रहा है। गुरुवार की देर रात और शुक्रवार को सुबह भी हुई बेमौसम बारिश व तेज आंधी से कई जगह बिजली गुल रही। अनुमान है कि इस असमय बारिश से गेंहू, चना, करडई, जवस की फसल बाबर्द बाबार्द होने की कगार पर पहुंच गई है। मौसम विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार नागपुर में 10.9 मि.मी, अकोला, में 7.9 मि.मी, अमरावती में 16.0 मि.मी., ब्रह्मापुरी में 1.0 मि.मी., वर्धा में 12.5 मि.मी, यवतमाल में 2.8 मि.मी, वारिश हुई। दक्षिण महाराष्ट्र में कम दबाव का पट्टा होने से बेमौसम बारिश हो रही है। आगामी 24 घंटों में हल्की बारिश जारी रहेगी। रात में तेज हवाएं चलने की संभावना है।
कृषि विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार दो दिन हुए बेमौसम बारिश से गेहूं व जवस की फसल झुककर जमीन पर सो गई है। वही कई किसानें ने गेहूं व जबस काट कर उसकी गंजियां बनकार रखी है। लेकिन वह भी गीली होने कारण खराब हो गई है। विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार नागपुर जिले में 50 हजार 800 हेक्टेयर में गेंहू की बुआई की गई है। वर्धा जिले में 18 हजार 900, भंडारा में 9 हजार 900, गोंदिया में 2300 चंद्रपुर में 14 हजार 600, गढ़चिरौली में 600 हेक्टेयर में बुआई की गई थी।
वहीं नागपुर में चना की फसल 21 हजार, 400 हेक्टेयर, वर्धा में 33 हजार 400, भंडारा में 8 हजार 200, गोंदिया में 3100, चंद्रपुर में 1640, गढ़चिरौली में 1900 हेक्टेयर में चने की बुआई की गई है। इसमें से 50 प्रतिशत फसल काट कर खेत में रखी गई है। जानकारों का कहना है कि फसल काट कर खेत में रखने के कारण ये गीले हो गए हैं। बेमौसम बारिश से चने के गिले होने के कारण उसमें अंकुर आ जाएंगे और यह नष्ट हो जाएगा। इसके साथ ही इस बारिश से आम के मंजर पर भी कहर बरपा है। विदर्भ जहां कपास उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है, वहीं यहां आम का उत्पादन भी बड़े पैमाने पर होता है। लेकिन इस बार बारिश से आम का बौर व कई स्थानों पर लगे छोटे आम गिर गए है। ऐसे में किसानों को आम के उत्पादन से भी वंचित रहना पड़ सकता है। आम आदमी की पहुचं से आम दूर होने की संभावना है। इस बारिश ने सतरा उत्पादन भी गहरा असर डाला है। पेड़ों में लगे संतरे नीचे गिर गए हैं। हजारो पेड़ पर लटके संतरे बारिश को कारण सडऩे लगे हैं।
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महिला आरक्षण से भाजपा को क्या मिला

जब संसद का बजट सत्र शुरू हुआ तो महंगाई को लेकर काफी हो हल्ला मचा। महंगाई की आग से आहत देश की जनता को महिला आरक्षण का मलहम मिला। पूरे देश का ध्यान इस विधेयक पर केंद्रीत हो गया। महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण कब मिलेगा, यह अभी भी भविष्य के गर्भ की बात है। लेकिन देशभर में विभिन्न संगठन के महिला कार्यकर्ताओं ने ढोल-नगाड़े बजाकर जश्न मनाया। सत्र से पहले महंगाई को लेकर आंदोलन करने वाली भाजपा महिलाओं को आकर्षित करने के लिए इस बिल को समर्थन दे बैठी। पर इससे सबसे नुकसान उसे ही हुआ। सच कहा जाए तो भाजपा को महंगाई को कभी मुद्दा बनाकर सरकार को घेरने का तरीका ही नहीं आया। इंद्रिरा गांधी इसी मुद्दे को उछाल पर फर्श से फिर अर्श पर पहुंच गई थी। महाराष्ट्र चुनाव में भाजपा इस मुद्दे को कारगर तरीके से नहीं उठा पाई। चुनाव हार गई। अब महिला आरक्षण पर अंदरुनी कलह शुरू हो चुकी है। भाजपा में महिला आरक्षण को लेकर एका नहीं है। इसका अंदाजा तब लग गया जब पार्टी के चीफ व्हिप रमेश बैस ने दबी जुबान ही सही ये माना कि सांसदों के बीच बिल को लेकर संशय की स्थिति है। दरअसल, भाजपा के एक बड़े धड़े को ये लगता है कि महिला आरक्षण बिल का समर्थन कर उसे कुछ नहीं मिला और कांग्रेस इस बिल को पास कराने का श्रेय मिल गया। लालू, मुलायम शरद यादव की तिगड़ी के प्रति ओबीसी, दलितों और मुसलमानों को में सहानुभूति मजबूत हो गई।

शुक्रवार, मार्च 12, 2010

200 रूपये में राजहंस!


मंगोलिया से हर वर्ष भारत में आने वाले दुर्लभ राजहंस (बार हेड़ेड़ गीज) को जाल बिछाकर पकड़कर उसे 200 से 300 रुपए में बेचे जाने का सनसनीखेज मामला प्रकाश में आय है। चन्द्रपुर और वर्धा के पक्षी मित्रों ने अपने स्तर का स्टिंग आपरेशन करते हुए दुर्लभ प्रजाति के राजहंस को बेचते हुए रंगे हाथ पकड़ लिया। इस मामले से संबंधित एक दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित खबर के मुताबिक इस खुलासे से राज्य के पक्षीमित्र एवं पक्षी अध्ययनकर्ताओं को गहरा सदमा पहुंचा है। मंगोलियन राजहंस को भारतीय वन्यजीव संरक्षण कानून की अनुसूची-2 के अंतर्गत समिलित किया गया है। चंद्रपुर जिले के वरोरा पास के चारगांव बांध में प्राय: दुर्लभ मंगोलियन राजहंस सैकड़ों की तादाद में आते हैं। पिछले वर्ष चंद्रपुर के पक्षी अध्ययनकर्ता और निरीक्षकों ने चारगांव बांध परिसर में 640 राजहंस को खोजकर उसकी सूची वन विभाग को सांैपी थी। इस बार चारगांव बांध लगभग सूख जाने से यहां बहुत कम राजहंस ही दिखाई दिए, जबकि अधिकतर चंद्रपुर-वर्धा सीमा के खांबाड़ा समीप पोथरा बांध में चले गए। पर्यावरण प्रेमी और पत्रकार मुकेश वालके ने बताया कि कि यहां स्थानीय मछुआरों द्वारा जाल बिछाकर इस दुर्लभ प्रजाति के राजहंस को पकड़ा जाता है। पकड़े वाले इसका महत्व नहीं जाते हैं। वे पोथरा, समुद्रपुर और खांबाडा जैसे गांवों में दलालों को 200-300 प्रति नग में बेचा देते हैं। चन्द्रपुर के पक्षी मित्र प्रविण कडु, एम. एस. आर. शाद , योगेश सूर्यवंशी और धीरज खोंडे ने इस मामले की पोल खोलने की सोची। हकीकत जानने और देखने के लिए पोथरा गांव पहुंचे। तब उन्होंने एक मछुआरे को 300 रुपए में राजहंस बेचते देखा। उन्होंने स्वयं इस पक्षी को मछुआरे से खरीद कर उसे वन विभाग के स्थानीय कार्यालय में सूचित किय और राजहंस को वन अधिकारियों के हवाले किया। मछुआरे द्वारा राजहंस के पकड़े जाने के बाद से राजहंस बीमार था। वन अधिकारियों ने उसे इलाज के बाद सुरक्षित छोड़ देने की जानकारी दी है। पर खुले आसमान में उड़े मंगोलियन राजहंस को क्या पता कि भारतीय जमीन पर उसके कई दुश्मन उसे जाल में फांसने के लिए तैयार बैठे रहते हैं।
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नंगे पांव देश नापने का नशा


लातूर के भीषण भूकंप ने उनसे उनका परिवार छीन लिया. गर्भस्थ स्त्री, बच्चे, माता-पिता, भाई कोई नहीं बचा. अगर कोई बचा तो वे खुद मोहनराव पाटिल. अब चालीस के हो चले पाटिल ने अपने परिवार के असमय काल के गाल में समा जाने के बाद पूरे देश को ही अपना परिवार बना लिया. कंधे पर राष्ट्रीय ध्वज और गले में लटकी संदेश की तख्ती के माध्यम से वे राष्ट्रप्रेम की अलख जगा रहे हैं. लोग भले ही उन्हें कुछ भी कहें, कुछ भी समझें, उनकी अनथक, अविरल देशप्रेम की पदयात्रा जारी है. संजय स्वदेश की रिपोर्ट-

गत दिनों नागपुर में विधानसभा का शीत सत्र चल रहा था, वे एक चौराहे पर खड़े होकर हर आने जाने वाले को देशभक्ति का संदेश दे रहे थे। लोग उन्हें पागल समझ कर उनकी अनदेखी करते चले जा रहे थे। बातचीत से पता चला कि जिन्हें लोग पागल समझ कर देखते हुए जाते वह कितना महान कार्य कर रहा है। लोग सच ही पागल समझ रहे थे, क्योंकि आज के जमाने में देशभक्ति के प्रचार-प्रसार का कार्य करने वाले को लोग पागल नहीं तो क्या कहेंगे?
पाटील बचपन से ही अपनी धुन के पक्के रहे हैं। गांव में 7 वीं कक्षा तक शिक्षा लेने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए मजदूरी की। अपने गांव से दूर दूसरे गांव के हाईस्कूल में पढ़ाई की। पढ़ाई के लिए इस स्कूल में जाने के लिए उन्हें सास्तुर नदी तैर कर पार करना पड़ता रहा। 1987 में भारतीय थल सेना में भर्ती हुए। यहां तक तो मनोहर पाटील का जीवन सरल व सीधा रहा, परंतु उनकी नियति में कुछ और भी था। महाराष्ट्र के लातुर में 1993 में आए विनाशकारी भयानक भूकंप ने इनकी पूरी दुनिया ही उजाड़ दी। पूरा परिवार तबाह व तहस नहस हो गया। गर्भस्थ स्त्री और बच्चे काल के गाल में समा गए एवं इनका पूरा परिवार जिसमें बड़ा भाई, उनकी पत्नी, बच्चे माता-पिता, बहन उनका पूरा परिवार यानी कहने को जो अपने खून के रिश्ते होते है, वे सब इस भूकंप में समाप्त हो गए। बचे तो सिर्फ उनके अपनों के खत्म होने के निशान।
पाटील जब सेना की ड्यूटी से छुट्टी लेकर घर लैटे तो उन्हें देखा कि आपदा में पूरा गांव तबाह हो चुका है। गांव में बर्बादी के मंजर दिखें। अपनों को खोने के बाद भी पाटीन ने अपने मन को टूटने नहीं दिया। जीवन की हकीकत समझी और लग गए भूकंप में बर्बाद हुए लोगों की सेवा में। इस सेवा से उनके जीवन में बहुत बड़ा बदलावा आ गया। वापस जब सेना की ड्यूटी पर गए तो मन नहीं लगा। सन् 2000 में नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और मिले हुए रुपये से गांव में ट्युबवेल, कुएं आदि लगवाकर किसानों की हालत एवं गांव को फिर से व्यवस्थित करने के कार्य में जुट गए। अपनी छह एकड़ की जमीन दूसरे किसानों को गुजर बसर के लिए दे दिया। पाटील जब भी गांव में रहते हैं. जरूरतमंद गरीब किसानों और गांववालों मदद के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। गांव के पुनरुत्थान के लिए इन्होंने गाडगेबाबा ग्राम स्वच्छता अभियान के तहत शौचालय, बाथरूम सफाई के काम, पेड़ लगवाना आदि अनेक कार्यों में अपनी सक्रिय सहभागिता दिखाई। इनकी सक्रियता को देखते हुए लातूर के मंगसर गांव वालों ने इन्हें अपना सरपंच चुन लिया। सरपंच बनते ही पाटील ने गांव में स्कूल की नींव रखवाई। कंप्यूटर शिक्षा की शुरूआत करने का प्रयास किया। व्यायाम के सामान जुटाए। सर्व शिक्षा अभियान के तहत स्कूल खुलवाए और समाजकार्य व देशहित का कार्य इसी तरह आगे बढ़ता गया।
मनोहर आनंदराव पाटील का दिल इतना सब करने के बाद भी बचैन हो रहा था। उनकी चिंता गांव से अलग शहर और राष्ट्रहित के प्रति थी। जब चिंता का सैलाब मन पर भारी पड़ा तो नंगे पांव देशभक्ति, शांति, भाईचारा, परोपकार, प्रेम अहिंसा, पर्यावरण संरक्षण, भ्रष्टाचार उन्नमूलन, नशमुक्ति आदि अनेकानेक कुरितियों और कुप्रथाओं से लडऩे के लिए देशभर में निस्वार्थ भाव से परोपकार की भावना लिए शांति संदेश लेकर भारत भ्रमण पर निकल पड़े। उन्हें मानों नंगे पांव देश नापने का नशा है. रोजाना वे सूर्योदय होने पर निकलते है और सूर्यास्त होने तक गांव-गांव शहर भर में घूमकर लोगों को भाईचारे का पाठ पढ़ाते हुए आगे बढ़ते रहते है। इस दौरान वे दिन भर कुछ भी नहीं खाते और पांव में चप्पल भी नहीं पहनते। इसके लिए उनका तर्क यह है कि जब मेरे भारत देश में हजारों लाखों लोग को दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं है तो मैं कैसे भोजन करू ? रात को जहां शरण मिली वहीं सो लिया। मनोहर पाटील कहते हैं कि अभी तक करीब 27,000 किलोमीटर की पदयात्रा कर चुके हैं। भविष्य में भी उनकी पदयात्रा इसी उत्साह और लगन से जारी रहेगी। जब नागपुर में मिले थे, तब बताया था कि नागपुर से होते हुए उनका अगला पड़ाव मध्यप्रदेश राज्य होगा। जहां से वे समय और मौसम के अनुसार आगे की यात्रा तय करेंगे।
देशभक्त मनोहर पाटिल का कहना हैकि अंग्रेज भले ही भारत को 63 वर्ष पहले ही मुक्त कर चुके है परंतु देशवासी आज भी बुराइयों और कुप्रथा से के गुलाम बने हैं। इसलिए उनका अभियान देश को इन बुराईयों के विरोध जारी रहेगा। क्षेत्रवाद, नक्सलवाद, दहेजप्रथा, बालविवाह आदि से जब तक देश अजाद नहीं होता है, मेरा मानना है कि देश गुलाम है। क्या हिन्दी विरोध के बल पर मराठी राजनीति का दंभ भरनेवाले राज ठाकरे सुन रहे हैं?

बुधवार, मार्च 10, 2010

72 घंटे में 10 किसानों की आत्महत्या


विदर्भ कृषि संकट
संजय स्वदेश
नागपुर।
जब सरकार देश की राजधानी नई दिल्ली में महिला आरक्षण, महिला उत्थान और महिला सशक्तिकरण और महिला आरक्षण विधेयक की चर्चा आदि में व्यस्त थी, तभी किसान आत्महत्या की राजधानी विदर्भ में कृषि संकट से त्रस्त 10 किसानों ने मौत को गले लगा लिया। आत्महत्या करने वाले छह किसान यवतमाल, दो अकोला, एक वाशिम और एक नागपुर जिले के हैं।
जून 2005 से अब तक विदर्भ क्षेत्र में मौत को गले लगाने वाले किसानों की कुल संख्या 7860 हो चुकी है। फिलहाल विदर्भ भीषण जल संकट से जूझ रहा है। सरकारी सर्वे में सूखे से प्रभावित किसान परिवारों की संख्या करीब 2 मिलियन बताई गई है। राज्य सरकार इस वर्ष अनुसार बीस हजार गांवों को पहले ही सूखा ग्रस्त घोषित कर चुकी है।
विदर्भ जन आंदोलन समिति के किशोर तिवारी ने बताया कि प्रशासन की रिपोर्ट के अनुसार सूखा, जल संकट, चारा, भोजन और बेरोजगारी का संकट विदर्भ में 15,460 गांवों तक पहुंच चुकी है। जून 2006 में केंद्र सरकार की ओर से घोषित किसानों के लिए राहत पैकेज भी किसानों के लिए लाभकारी नहीं रहे। महाराष्ट्र सरकार ने जिन गांवों को सूखाग्रस्त घोषित किया है, उनके लिए चलाए जा रहे राहत कार्य कागजों पर ही सीमित हैं। सूखा पडऩे से मवेशियों के लिए चारे का संकट गंभीर हो गया है। लोग अपने पशु कसाइयों के हाथों में बेच रहे हैं। चारा संकट के कारण मवेशी भी असमय काल के गाल में समा रहे हैं।
किशोर तिवारी ने बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया है कि वे विदर्भ के मामले में स्वयं हस्तक्षे कर किसानों को सिंचाई का पर्याप्त पानी, मुफ्त स्वास्थ्य सेवा, खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण रोजगार आदि सुनिश्चित कराये जिससे किसान आत्महत्या रूक सके। ज्ञात हो कि जून, 2005 से अब तक 7860 किसानों ने आत्महत्या कर ली है। वहीं सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 1998 से अब तक करीब 40 हजार किसान आत्महत्या कर चुके हैं।

क्या भाजपा में वापस आ चुकी हैं उमा भारती?


बीते माह में इंदौर में संपन्न भाजपा की राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान उमा भारती को पार्टी में वापसी की घोषणा भले ही नहीं हो पाई हो, पर ऐसा लगता है कि उमा अब भाजपा में वापस आ चुकी हैं और भाजपा के लिए काम करना शुरू भी कर दिया है. वे अब पूरी तरह से भाजपा की हो चुकी हैं.
हां, उमा की भाजपा में वापसी की अधिकारिक घोषणा नहीं हुई है. पर पार्टी अध्यक्ष गडकरी ने उनकी पार्टी में वापसी पर मुहर लगा दी है। इंदौर अधिवेशन के दौरान उमा की पार्टी में वापसी की घोषणा इसलिए नहीं हो पाई, क्योंकि पार्टी अधिवेशन से करीब सप्ताह भर पूर्व नागपुर स्थित संघ मुख्यालय में मोहन भागवत से मुलाकात कर चुकी उमा की खबरे मीडिया में आ गई। पार्टी के अंदर और बाहर तरह-तरह की चर्चाएं हुईं। आखिर निर्णय यह लिया गया कि फिलहाल उमा की पार्टी में वापसी की घोषणा टाल दी जाए। उचित मौका देकर घोषणा की जाएगी। लेकिन उमा तब संघ और भाजपा एजेंडा के मुताबिक सक्रिय होकर कार्य करें।
गडकरी और भागवत के निर्देशानुसार उमा भारती इन दिनों विभिन्न जगहों पर घूम-घूम पर संघ की योजना के अनुसार विविध अभियानों के तहत जमीनी स्तर पर हिंदुत्व की नीति को मजबूत करने के काम में जुटी है। फिलहाल खबर लिखने तक यह सूचना थी कि उमा भारती उज्जैन में हिंदुत्व से संबंधित एक कार्यक्रम में हिस्सा ले रही थीं। नई दिल्ली में नानाजी देशमुख की श्रद्धांजलि सभा में भी उमा भारती को पूरा महत्व मिला और वे पार्टी नेताओं के साथ अगली पंक्ति में बैठी हुई थीं.
ज्ञात हो कि भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने अध्यक्ष नियुक्त होने के बाद नागपुर में एक पत्रकार से अनौपचारिक बातचीत में कहा था कि वे पार्टी से बाहर गए जनाधार वाले दिग्गज नेताओं की घर वापसी चाहते हैं। बाद में जब यह मामला सुर्खियों में आया तो गडकरी ने कहा कि यदि पार्टी से निकले नेता पार्टी में दुबारा वापस आना चाहते हैं तो इस पर पार्टी और संबंधित नेता के राज्य स्तर की ईकाई से चर्चा करके ही निर्णय लिया जाएगा। उसके बाद फरवरी के दूसरे सप्ताह उमा संघ मुख्यालय में आकर मोहन भागवत से मुलाकात कर चुकी थीं। संघ सूत्रों और उमा भारती के नजदीकी लोगों ने भाजपा में उनकी वापसी की पुष्टि पहले ही कर दी है।

सोमवार, मार्च 08, 2010

महिला दिवस है, कुछ मत कहिए, बस यह तश्वीर देखिए

पिछड़ी बहनों को भी साथ लेकर चलने वाला हो महिला आरक्षण बिल

महिला दिवस पर
नागपुर। महिलाओं को लोकसभा तथा विधानसभा में आरक्षण मिलना चाहिए, यह मांग काफी पुरानी है। मगर कुछ राजनीतिक दल इस आरक्षण का विरोध कर रहे हैं, इसलिए अब तक इस बिल को मंजूरी नहीं मिल पाई। आज महिला दिवस पर केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस बिल को संसद में पेश किए जाने की संभावना है। मगर इसका बसपा, राजग, सपा आदि राजनीतिक दल जोरदार विरोध कर रहे हैं। इनकी मांग है कि इस आरक्षण विधेयक में अनुसूचित जाति, जन जाति और अन्य पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए कोटा आरक्षित किया जाए। वहीं अधिकतर लोग इस विधेयक के समर्थन में है। दैनिक 1857 ने नगर के विभिन्न संगठनों की कुछ प्रबुद्ध महिला और पुरुषों से बातचीत कर वर्षों से लंबित महिला आरक्षण विधेयक पर अपनी राय जानी। अधिकर महिलाओं का मनना है कि महिलाओं को आरक्षण तो ठीक है, पर इसमें समाज में पिछड़ी समुदाय की बहनों को भी आगे आने का मौका मिलना चाहिए।
हर वर्ग को मिले प्रतिनिधित्व
महापौर अर्चना देहनकर का कहना है कि महानगरपालिका, ग्रामपंचायत तथा नगरपरिषद में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण है। अगर हर जातिधर्म का प्रतिनिधित्व करनेवाली महिलाएं सत्ता में आएंगी तो संपूर्ण समाज का कल्याण हो सकता है। महिलाओं में सीखने की इच्छा तथा कार्य करने की क्षमता प्रचुर मात्रा में होती है, उन्हें बस एक मौका चाहिए होता है। जब तक पिछड़े समाज की महिलाओं को यह मौका नहीं मिलेगा, तब तक वह आगे नहीं बढ़ पाएंगी और उन्हे मौका देने के लिए महिला आरक्षण के अंतर्गत पिछड़ी समाज की महिलाओं को आरक्षण देना बेहद जरूरी है।
विरोध पर गंभीरता से हो विचार
युगांतर शिक्षण संस्था की कार्याध्यक्ष वनिता तिरपुड़े का कहना है कि मेरे विचार से महिला आरक्षण में अनसूचित जाति जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए कोटा आरक्षित करने की मांग जायज है। क्योंकि पिछड़े वर्ग की महिलाओं को राजनिति में सीधे मार्ग से प्रवेश मिलना असंभव है। इसका प्रमाण आज की संदद में देखा जा सकता है। इसएि इस बिल में इस वर्ग के साथ अल्पसंख्यक समाज की महिलाओं के लिए कुछ निश्चत प्रतिशत तय करना आवश्यक है। जिन-जिन क्षेत्रों में महिलाओं को जाति व समाज के आधार पर आरक्षण दिया गया है, वहां महिलाओं ने अपनी कार्यकुशलता दिखाते हुए सफलता प्राप्त की है। इसलिए विरोधियों के मांगों पर गंभीरता से विचार करके इसे संशोधित रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो देश की सभी पिछड़े तथा दलित समाज की महिलाओं को अपना अस्तित्व बचाये रखने के लिए आंदोलन खड़ा करना पड़ेगा। महिला महाविद्यालय की समाजशास्त्र विभाग प्रमुख डा. सरोज आगलावे का कहना है कि 63वें संविधान सुधार के अनुसार स्थानीय शासन संस्थाओं को राजनीतिक आरक्षण लागू किया गया था। विशेष तौर पर ग्रामीण विभाग की स्त्रियां राजकीय दृष्टी से जागरूक होने लगी तथा गांवो के विकास के लिए कार्य करने लगी हंै। 1993 में संसद तथा घटक राज्य विधानमंडल में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिलवाने वाला महिला आरक्षण विधेयक आज मंजूर होने की कगार पर है और शायद आज वह मंजूर भी हो जाए।
डा. सरोज का कहना है कि पहले लोकसभा चुनाव से लेकर तेरहवे लोकसभा चुनाव परिणाम पर गौर करना चाहिए। इसमें महिलाओं का प्रतिशत 8 से उपर कभी नहीं गया। ये आठ प्रतिशत महिलाएं भी ऐसी है जिनकी पृष्ठभूमि पहले से ही राजनीतिक रही है। इतना ही नहीं इनमें से ज्यादातर उच्च जाति की महिलाएं हैं। देश की राजनीति में परिवारशाही चलती है। अगर ऐसी ही परिवारशाही चलती रही तो पिछडे समाज की महिलाएं कभी सामने नहीं आ पाएंगी। समाज में महिलाओं की मजबूती के लिए हर समाज की महिलाओं का प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। लोकतंत्र में अपने बलबूते पर चुनाव जीता जा सकता हैं, ऐसा कहकर छोड़ दिया जाय तो कोई भी पिछड़े समाज की महिला कभी जीत नही पाएगी, क्योंकि चुनाव में खर्च करने की उनकी क्षमता नहीं होती। महिला तथा देशहित का विचार किया जाय तो महिला आरक्षण को होनेवाला विरोध उचित है तथा इस आरक्षण के अंतर्गत पिछड़े समाज को आरक्षण मिलना चाहिए।

सभी को मिले आगे बढऩे का मौका
पूर्व महापौर माया इवनाते की राय है कि महिला आरक्षण के अंतर्गत एसी, एसटी ओबीसी तथा अल्पसंख्यांक महिलाओं के लिए विशेष आरक्षण जरूरी है, जिससे कि पिछड़े समाज की महिलाओं को आगे बढऩे का मौका मिल सके। भारत में अनेक जाति-धर्म के लोग रहते हैं, मगर राजनीति में सभी वर्ग-समुदाय के प्रतिनिधि रहते हैं। मगर राजनीति में सभी धर्मों के प्रतिनिधि कहां है? हर धर्म की नारी का प्रतिनिधित्व करने वाला नेता हो, इसके लिए महिला आरक्षण में पिछडे, दलित तथा अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण आवश्यक है। समाजिक कार्यकर्ता रूपा कुलकर्णी भी महिला आरक्षण के विरोध में समर्थन देती है। उनका कहना है कि विरोध जायज है। जब तक एसी. एसटी, ओबीसी तथा अल्पसंख्यक महिलाओं को आरक्षण नहीं दिया जाता, तब तक राजनीति तथा अन्य क्षेत्रों में भी उनका आगे बढऩा मुश्किल है। महिलाएं समाज का प्रतिनिधित्व करती हैं, अगर हर समाज की स्त्री सत्ता में आती है तो अपने समाज की तथा अपने समाज की महिलाओं की समस्याओं को वह अच्छी तरह से सुलझाने की दिशा में काम कर सकती है। से पेश कर सकती है, जिससे उन समस्याओं का समाधान ढूंढना भी आसान हो जाएगा। महिला आरक्षण बिल को पास करने से पूर्व उसमें पिछड़े समाज की महिलाओं के लिए विशेष आरक्षण होना ही चाहिए।
गलत है विरोध
मेमोरी लैब के चेयरमैन सुदेश मानकर की राय है कि महिला आरक्षण का विरोध गलत है। यह विधेयक उसके वर्तमान रुप में ही पारित होना चाहिए। महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है, जो मेेरे हिसाब से काफी है। इसके अंतर्गत भी एससी, एसटी, ओबीसी तथा अल्पसंख्यक समाज की महिलाओं को अलग आरक्षण की जरूरत है, ऐसा मुझे नहीं लगता। भारत एक लोकतांत्रिक देश है, किसी भी समाज का पुरुष अथवा महिला चुनाव में खड़ी रह सकती है, अगर वह काबिल है तो लोग उन्हें जरूर चुनकर संसद में भेजेंगे। इसके लिए आरक्षण की क्या जरूरत है। 33 प्रतिशत आरक्षण पूरी महिला जाति को दिया जा रहा है। मेरे विचार से इसमें अलग से आरक्षण की आवश्यकता नहीं है।
संशोधित होकर लागू हो महिला आरक्षण
समाजिक कार्यकर्ता नंदा तायवाडे की राय भी विधेयक के वर्तमान स्वरूप के विरोध में है। उनकी राय है कि अगर महिला विधेयक जैसे का तैसा लागू कर दिया गया तो देश में बहुजनों की सत्ता आने में बहुत बड़ी बाधा निर्माण हो जाएगा। उच्च वर्ग ने हमेशा ही लोगों को गुलाम बनाये रखने के लिए महिलाओं का उपयोग किया है। आज भी अल्पसंख्यक तथा पिछड़े समाज को गुलाम बनाये रखने के लिए महिला विधेयक में विशेष आरक्षण देने से इनकार किया जा रहा है। महिला आरक्षण विधेयक को जस का तस पारित करने के पीछे एक सोची-समझी रणनीति है। एक तो पिछड़े समाज की महिलाओं को आगे आने से रोकना तथा दूसर संसद में उच्चवर्ग के लोगों की संख्या बढ़ाना, जिससे बहुजन समाज का सत्ता में आने का सपना कभी पूरा न हो सके। कांग्रेस और भाजपा आज जहा हर मुद्दे पर एक दूसरे के विरोध में खड़े रहते हैं, महिला आरक्षण के मुद्दे पर वह एक साथ खड़े हैं। इससे स्पष्ट है कि ये दोनों दल पिछले वर्ग को उपर नहीं आने देना चाहते। समाजिक कार्यकर्ता हनुमान राठी का मत है कि महिला आरक्षण विधेयक में अगर पिछडे समाज की महिलाओं के लिए विशेष आरक्षण नहीं दिया गया, तो इससे समाज की महिलाएं पिछड़ी ही रह जाएगी। एक महिला की प्रगती से एक परिवार और फिर पूरे एक समाज की उन्नति कि जा सकती है। आज भी देश में लोगों को किसी न किसी तरह से गुलाम बनाकर रखने की परंपरा चली आ रही है। उच्चवर्ग के लोगों को इसकी आदत-सी हो गई है, इसलिए भाजपा तथा कांग्रेस पिछड़ी समाज की महिलाओं को विशेष आरक्षण के बारे में नहीं सोच पा रही है।
यह विरोध मानवाधिकारों की अवहेलना है : डा. रमेश राव, मानव
मानवाधिकार कानून के अधिवक्ता डा. रमेश राव का मनना है कि वर्तमान महिला आरक्षण विधेयक का विरोध एक तरह से मानवाधिकार का विरोध है। उनका कहना है कि जब भी महिलाओं ने उनके मानवअधिकारो की बात की उसकी हमेशा अवहेलना ही हुई है। इसका मुख्य कारण पुरुषप्रधान व्यवस्था है। पुरुषों ने हमेशा महिलाओं की आवाज को दबाया है। महिला विधेयक कानून को चौदह वर्ष पहले ही संसद में मंजूरी मिल जानी चाहिए थी, लेकिन राजनितीक दबाव के तहत यह अपनी मंजील तक नहीं पहुच पाया। महिला-पुरुष समानता की बात केवल कागजों पर ही है। दुनिया की आधी संख्या महिलाओं की है। फिर भी आज 33 प्रतिशत आरक्षण देने की बात से हम मुकर जाते है। क्या यह महिलाओं के राजकीय अधिकारो का हनन नहीं है?
राष्ट्रीय महिला आयोग बनाकर महिलाओं के अधिकारी का संरक्षण हो गया यह बात अधुरी सी है। यदि स्त्री पुरुष समानता को एक धुरी पर लाना हो तो महिलाओं का संसद व राज्य विधान सभा में 33 प्रतिशत आरक्षण ही एकमेव विकल्प है। आज संसद में बैठे जनता के नुमाइंदे को उनकी आत्मा की आवाज से इस आरक्षण विधेयक को मंजूरी देने की जरूरत है। नहीं तो फिर एक बार महिलाओं पर सांसदों द्वारा एक राजकीय अत्याचार दोहराया जाएगा।
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कहां लापता हो रही हैं नबालिग लड़कियां

महिला दिवस पर
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पुलिस का मिसिंग रजिस्टर में दर्ज मामले महज खानापूर्ति के लिए
नागपुर
। शहर पुलिस की वेबसाइट पर गुमशुदा लोगों की सूची पर अगर ध्यान दिया जाए तो पता चलता है वर्ष 2008 से अब तक पुरुष, बच्चे समेत कुल 61 महिलाएं शहर से गायब हुईं, लेकिन अब भी इनका कोई सुराग नहीं लग पाया। लापता सूची में सबसे ज्यादा स्कूली छात्र-छात्राओं का समावेश है। इसमें नबालिग लड़कियों की संख्या ज्यादा है। पुलिस विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार गत तीन वर्षों में लापता हुए करीब 61 लोगों का अब तक कोई पता नहीं लग पाया है। नागपुर पुलिस की अधिकृत बेवसाइट में अभी भी इनका नाम गुमशुदगी की सूची में दिखाई दे रहा है। हालांकि लापता होने वालों की संख्या इससे ज्यादा है। लेकिन पुलिस ने इसे बेवसाइट पर अपडेट नहीं किया है। यह हालत हर नागपुर की ही नहीं है। गांव देहात से नगर महानगरों तक नवालिग ही के गायब होने की घटना नई बात नहीं रही।
जानकारों की माने तो बीते वर्ष 1 जनवरी से 31 अगस्त तक, मात्र 8 माह की अवधि में, उपराजधानी नागपुर की स्लम बस्तियों से 447 महिलाओं और 276 नाबालिग लड़कियां लापता हुई, जिसमें से 429 महिलाएं एवं 214 नाबालिग लड़कियां मिल गई किंतु 18 महिलाओं और 62 नाबालिग लड़कियां के लापता होने के रहस्य से परदा नहीं उठ पाया। इसका जवाब भी पुलिस के पास नहीं है। लापता महिलाएं व नाबालिग गई कहां? यह प्रश्न पुलिस के साथ-साथ लापताओं के परिवार वालों के सामने यक्ष प्रश्न बनकर खड़ा है।
महज दो से सोलह वर्ष की आयु के बच्चों के गायब होने से ऐसा लगता है कि बच्चों को गायब करने वाला कोई न कोई गिरोह सक्रिय है। गुमशुदा हुये बच्चों में छात्राओ की संख्या ज्यादा है। जब भी कोई बच्चा गुम होता है तो अभिभावक उसका मामला दर्ज करने थाना पहुंचते हैं। थाने के लापता रजिस्टर केवल गुमशुदा लोगों की रिपोर्ट दर्ज करने भर के लिए है। लापता होने की जब भी कोई रिपोर्ट दर्ज होती है उसे उसे वायरलेस पर हर थाने में सूचना भेजकर अपना काम खत्म समझती है। गायब बच्चों की खोज-खबर भगवान भरोसे रहती है। गायब मासूम आज किस हालात में कहां और कैसा जीवन व्यतीत कर रहे होंगे, इसकी इन्हें चिंता तक नहीं होती। ज्ञात हो कि लापता बच्चे और बड़ों को खोजने के लिए पुलिस की अपराध शाखा में एक सामाजिक सुरक्षा विभाग खोला गया है। मगर इस विभाग में कार्य कर रहे अधिकारी तथा कर्मचारी आराम फरमाते नजर आते हैं।
नागपुर शहर की बदनाम गली गंगा-जमुना में आये दिन इसी तरह अगवा कर लाई गई लड़कियों को बेचा जाता है। संभावना है कि यहां से गायब की गई लड़कियां दूसरे प्रदेश में ऐसे ही रेडलाइट इलाकों में बेची जाती हों। सबसे ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि गायब होने वाली लड़कियों में अधिकतर 10 से 18 साल की आयु वर्ग के बीच में है। देह बाजार में इस उम्र की लड़कियों की अच्छी मांग है। उपराजधानी की स्लम बस्तियों में रहने वाली गरीब, बेबस व परिस्थितियों के हाथों विवश युवतियों व नाबालिग लड़कियों को बहला-फुसला कर व प्रलोभन देकर, अन्य राज्यों में ले जाकर बेच देने का सनसनीखेज मामला कुछ महीनों के अंतराल पर प्रकाश में आता रहता है। सूत्र कहते हैं कि लापता होने की बढ़ती घटनाओं के कारण, अंतरराज्यीय स्तर पर बिक्री करने वाले गिरोह सक्रिय है। इसकी पुष्टिï पिछले साल ही दो महिलाओं को बेचे जाने की घटना प्रकाश में आने से होती है।
ज्ञात हो कि पिछले वर्ष ही इस तरह का एक मामला प्रकाश में आया था, जिसमें टेका के म्हाडा क्वार्टर में रहने वाले मोटर मैकेनिक राजेंद्र जैस्वाल की तीस वर्षीय पत्नी अचानक लापता हुई थी। खोजबीन से मालूम हुआ कि उसे उसे गुजरात के टिक्कस गांव में 55 वर्षीय प्रवीण शाह को बेच दिया था। इसी गांव में ही रहने वाली प्रभा माचनवार ने अपनी दो सहेलियों के साथ मिलकर इस कांड को अंजाम दिया और 40 हजार रुपयों में एक प्रौढ़ को बेच दिया। जानकारी मिलते ही नागपुर पुलिस ने गुजरात जाकर इस महिला को वापस लाई और इस कांड की मुख्य तीनों आरोपी महिलाओं को गिरफ्तार किया। गिरफ्तार महिलाओं से ऐसे और प्रकरणों की जानकारी प्रकाश में आई। इसी तरह एक अन्य घटनाक्रम में कलमना थाना क्षेत्र से एक 14 वर्षीय किशोरी को 15 हजार रुपयों में बेचने का काला कारनामा करने वाली भी तीन महिलाएं थीं। कलमना पुलिस ने राजस्थान के कोटा से जाकर उस लड़की को नागपुर लाई और तीनों आरोपी महिलाओं को गिरफ्तार किया।
जानकार कहते हैं कि गरीब और परिस्थितियों के हाथों विवश युवतियों व नाबालिग लड़कियों को नौकरी और विवाह का झांसा देकर बहला-फुसलाकर मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात और छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में ले जाकर और मोटी रकम देकर उनका बेमेल विवाह करा दिया जाता है या फिर गलत व अनैतिक कार्यों में लिप्त कर रुपया कमाया जाता है।
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रविवार, मार्च 07, 2010

विदर्भ भीषण जल संकट की ओर


पशुओं को कसाई के हाथों बेचने के लिए मजबूर हुए किसान
रबी फसल संकट में, पशुचारे का भी संकट

नागपुर। आगामी गर्मी के मौसम में भीषण जल संकट पैदा होने के आसार अभी से दिखाई दे रहे हैं। चारे के अभाव में पशुओं पर गंभीर संकट आ पड़ा है। किसान पशुओं को खंूटे से बांधकर मारने की बजाय उसे कसाईयों हवाल कर कुछ पैसे पाना उचित समझ रहे हैं। विदर्भ के अकोला, यवतमाल, नागपुर, वर्धा, वाशिम जिलों में जलसंकट की स्थिति गंभीर होती जा रही है। आए दिन खबरों से पता चलता है कि लोग पानी के लिए मारपीट पर उतारू हो रहे हैं। अप्रैल-मई-जून में स्थिति कितनी भयानक होगी, इसकी कल्पना से ही सिहरन होने लगी है। पिछले वर्ष बारिश के दिनों में बेहद कम बारिश का झटका किसानों को लगा है। सफेद सोना कहे जाने वाले कपास की फसल ने इस बार भी धोखा दिया। व्यापारियों द्वारा की जा रही लूटपाट के कारण किसानों ने कपास से मुंह मोड़कर सोयाबीन को अपनाया। विदर्भ में सोयाबीन की बुआई में इजाफा हो गया लेकिन सोयाबीन को बारिश ने धोखा दे दिया। बारिश के अभाव में सोयाबीन पर लष्करी इल्लियों का प्रकोप हो गया। चंद्रपुर-वर्धा जिलों में इन इल्लियों के कारण हाहाकार मच गया। जिस क्षेत्र में लष्करी इल्लियों का प्रकोप नहीं था, वहां अज्ञात बीमारियों ने सोयाबीन को झटका दे दिया। सोयाबीन का उत्पादन घटकर प्रति एकड़ 2क्विंटल पर आ गया। इससे पूर्व यही उत्पादन प्रति एकड़ 5 क्विंटल से ज्यादा था। बाजार में भी सोयाबीन के भाव कम हो गए। धान का कटोरा कहे जाने वाले गड़चिरौली, चंद्रपुर, भंडारा, गोंदिया जिले के किसान भी परेशानी में फंस गए। भारी मेहनत के बाद उनके हाथ में आया अनाज किसानों की आंखों में आंसू लाने वाला रहा। पशुओं के लिए तो महज तनस हा हाथ लग पाया।
कमजोर बारिश के कारण विदर्भ में जलस्तर भी घट गया है। रबी का फसल के लिए पानी मिलना मुश्किल हो गया है। तालाब से फसल के लिए दिया जाने वाला पानी पीने के लिए सुरक्षित रखा जा रहा है। फसल को 4-5 पानी की जरूरत वाले किसान चिंतित नजर आ रहे हैं। सरकार जब अभी से जलसंग्रह को नियंत्रित करने में लगी है, तो गर्मी के दिनों में जलसमस्या कितनी भीषण होगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। इस वर्ष विदर्भ का कोई भी जलाशय पूरी तरह नहीं भरा। अधिकतर जलाशय तो 40 प्रतिशत भी नहीं भर पाए।
कमजोर बारिश के कारण जलसमस्या के साथ-साथ पशुओं के लिए चारे का संकट किसानों के सामने है। जानकार कहते हैं कि इसी संकट के कारण सैकड़ों गायों को कसाइयों के हवाले किया जा चुका है। खेती के लिए किसानों को अच्छे बैलों की जोड़ी मिलना मुश्किल हो गया है। 5 वर्ष पूर्व 10 से 12,000 रूपये मे मिलने वाली बैलजोड़ी की कीमत आज 30 हजार रूपये से ऊपर पहुंच गई है। खेती के लिए निरूपयोगी, कमजोर पशु ही पहले कसाइयों को बेचे जाते थे, लेकिन इन दिनों चारे के अभाव के कारण मजबूत व उपयोगी पशु भी कसाइयों के हाथों बेचे जा रहे हैं। 30 हजार वाले पशु महज 5 से 7 हजार रु. में भी बेचकर किसान अपना घर चलाने का मजबूर हो रहे हैं।

अब 100 रूपये में होंगा साईं बाबा के दर्शन

शिर्डी से एक खबर मिली है। गरीब जनता की सेवा में संपूर्ण जीवन बिता देने वाले शिर्डी के साईंबाबा के दर्शन छुट्टियों के दिन अब गरीब नहीं कर पाएंगे। यदि छुट्टियों के दिन दर्शन करना भी होगा तो उसके लिए जेब ढीली करनी होगी। संस्थान ट्रस्ट मंडल ने शनिवार को बैठक में यह निर्णय लिया कि सप्ताह में 2 दिन शनिवार और रविवार के अलावा दशहरा-दीपावली, गुरुपूर्णिमा, रामनवमी जैसे त्यौहारों की छुट्टïी के दिन भक्तों से 100 रूपया दर्शन शुल्क के रूप में वसूला जाएगा। इसके अलावा काकड़ आरती के लिए 500 रु. तथा दिनभर में होने वाली 3 आरतियों में से प्रत्येक आरती के लिए 300 रु. जमा करने होंगे। इस पेड दर्शन से मंत्री, सांसद, विधायक, संपादक, पत्रकार, सुप्रीम व हाईकोर्ट के न्यायाधीश, वैज्ञानिक आदि को छूट दी जाने वाली थी, लेकिन भीड़ के कारण इन्हें छुट देने पर सहमति नहीं बन सकी।
इस निर्णय को साईं के गरीब भक्तों पर अन्याय के रूप में देखी जा सकती है। इस निर्णय के पीछे मंडल के अध्यक्ष जयंत ससाणे ने तर्क दिया है कि छुट्टïी के दिन शिर्डी में होने वाली भारी भीड़ को देखते हुए यह जरूरी था। 13 मार्च से इस निर्णय पर अमल भी किया जाएगा।
संभावना है कि इससे होने वाली आय से ट्रस्ट श्रद्धालुओं के हीत में खर्च करेगा।

शनिवार, मार्च 06, 2010

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