रविवार, अप्रैल 18, 2010

चढ़ता परा, घटती बिजली

जर्जर ट्रॉसमिशन लाइन के फॉल्ट, चोरी और लोडशेडिंग के बीच नागपुर समेत पूरे विदर्भ में बिजली को लेकर हाहाकार मची हुई है। चढ़ते पारे के साथ कम होती बिजली की आपूर्ति आम नागरिक परेशान है। वहीं विद्युत विभाग के अधिकारी तरह-तरह का रोना रोकर जनता के दर्द से मुख मोड़ रहे हैं।

भीषण गर्मी में बिजली हब क्षेत्र में बिजली की कटौती से परेशान नागरिक
संजय
नागपुर।
संतरानगरी में चढ़ते पारे के साथ बिजली कटौती की समस्या बेहद गंभीर हो गई है। गर्मी के शबाब चढ़ते ही मांग बढ़ गई है। पर विद्युत विभाग इस मांग को पूरी करने में लाचार हो चुका है। राजनीतिक लाभ के लिए नागपुर में दो बार जीरो लोडशेडिंग की घोषणा के बाद भी खुलेआम वादा खिलाफी हो रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो हालत और भी गंभीर है। आश्चर्य की बात यह है कि बिजली उत्पादन की दृष्टि से विदर्भ बिजली हब क्षेत्र है।
यहां की बिजली राज्य के दूसरे शहर के अलावा पड़ोसी राज्यों के शहर को रौशन करती है। लेकिन अपने ही उपराजधानी को अंधरे में रखती है। शहर में तो फिर भी स्थिति कुछ हद तक नियंत्रण में है, पर गांवों के तो हाल यह है कि लोग कई बार दिन में बिजली के दर्शन के लिए तरस जाते हैं।
गत दिनों में नागपुर में एक कार्यक्रम में शिरकत करने आए बिजली केंद्रीय ऊर्जा मंत्री ने तो विदर्भ में बिजली की और परियोजनाओं को शुरू कराने की घोषणा के साथ ही इस क्षेत्र को देश का सबसे बड़ा बिजली हब बनाने का घोषणा कर दी थी। लेकिन पहले से ही महत्वपूर्ण बिजली उत्पदन के सयंत्र नागपुर समेत बिजली में बिजली की मांग की आपूर्ति करने में अक्षम साबित हो रहे हैं। ऊपर से बिजली की दरों में बढ़ोतरी और तेज भागते मीटर से घर मालिकों को तनाव में डाल दिया है।
आंकड़ों कहते हैैं कि गत 15 वर्ष से राज की हर सरकार ने बिजली की सुचारु आपूर्ति के लिए गंभीरता दिखाई है, लेकिन यह गंभीरता केवल घोषणाओं तक ही सीमित रही।
विद्युत विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि नागपुर और आसपास के विद्युत संयंत्रों के भरोसे भरपूर बिजली की अपेक्षा की जा रही है। यह स्थिति ठीक वैसी ही है जैसे उम्रदराजों से जवानी की उम्मीद की जाती है।
महाराष्ट्र राज्य विद्युत निर्मिती कंपनी के प्रदेश में 7 ताप बिजलीघर, 1 जल विद्युत संयंत्र तथा 1 गैस आधारित संयंत्र यानी कुल 9 विद्युत संयंत्र हैं। इनकी 61 इकाइयों में 35 इकाइयां अपनी पूरी आयु जी चुकीं हैं जबकि 11 इकाइयां जीवन के अंतिम पड़ाव पर हैं, शेष में से नई बनी परली व पारस की एक-एक इकाई का शैशवकाल मान लें तो बाकि 11 यूनिटें अपनी जवानी बिता कर प्रौढ़ अवस्था को पा चुकीं हैं। नई इकाइयां भी 'टीथिंग प्राब्लमÓ से जूझ रही हैं।
इसके अलावा विद्युत कटौती के पीछे विद्युत ह्रïास का हाथ मानने वाली वितरण कंपनी व्यवसायिक हानी को रोकने इतनी परेशान है कि वह तकनीकी हानि को भूल ही चुकी है। जानकार कहते हैं कि विद्युत ह्रïास के लिए जितनी जिम्मेदार व्यवसायिक हानि है, करीब उतनी ही तकनीकी हानि भी। आज यदि प्रदेश की कुल हानि 24 प्रतिशत है तो इसमें से करीब 10 प्रतिशत विद्युत सिस्टम के पुराने व रखरखाव में होने वाली लापरवाही के कारण है। मतलब बिजली चोरी को पकडऩे के अपेक्षा सबसे ज्यादा जरूरी है, असंतुलित विद्युत वितरण को सुधारने की है। पर कंपनी के आला अधिकारी पूरा जोर बिजली की चोरी पर लगा रखा है। फिर चाहे अधीक्षक अभियंता हो या लाइनमैन, सभी विद्युत चोरी पकडऩे के लिए गली-गली घूम रहे हैं। कभी-कभी तो कंपनी के आला अधिकारी भी मैदान में उतर जाते हैं जिससे कि विद्युत चोरी पकडऩे में कर्मचारियों का हौसला बढ़े। इस कारण विभाग का पूरा ध्यान तकनीकी खराबियों से हटा हुआ है। लिहाजा, आए दिन किसी न किसी बड़ी तकनीकी खराबी के कारण घंटे बिजली गुल होने की शिकायत आती है।
सरकार व बिजली कंपनियां विद्युत की कमी का रोना रो-रो कर जनता को लोडशेडिंग में मार रही है, वहीं दूसरी ओर सरकारी महकमों में बगैर आवश्यकता कूलर एसी व बत्तियों का जलना, विज्ञापन होर्डिंग्स पर नियोन हाई मास्ट लाइट, स्ट्रीट लाइटों का बे-समय जलना आदि अनेक लापरवाहियों के चलते कम से कम 500 मेगावाट बिजली बर्बाद हो रही है। अनुमान है कि अकेले सरकारी कार्यालयों में ही 150 मेगावाट बिजली की फिजूलखर्ची हो रही है। यदि सरकारी दफ्तर में एक एयर कंडीशनर की जगह कूलर चले तो एक गरीब किसान अपने खेत को सूखने से बचा सकता है।
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