मंगलवार, अप्रैल 20, 2010

लाल बत्ती पर हाथ पसारते ये नन्हें हाथ



संजय स्वदेश
नागपुर।
नन्हीं आभा (बदला हुआ नाम) सीताबर्डी के मुख्य चौराहे पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पुतले के पास रूकने वाले वाहन चालको से भीख मांगती है। उसे नहीं पता भीख मांगना कितनी बुरी बात है? पूछने पर एक टूक में कहती है- स्कूल नहीं जाती। पंचशील चौक पर भी रिंकी (बदला हुआ नाम) भी यही काम करती है। इस तरह का एक और नजारा हर दिन एलआईसी चौक पर भी नजर आता है। यहां तो एक जोड़े भाई-बहन यह काम करते हैं। इस चौक पर नेहा (बदला हुआ नाम) भी रूकने वाले वाहनों के पीछे भागती है। तीनों की हालत कमोबेश एक-सी है। कोई उन्हें दुत्कार के आगे जाने के लिए कहता है तो कोई उन्हें एक-दो रुपये का सिक्का देते हुए स्कूल जाने की नसीहत देता है। पर इन्हें स्कूल जाने का रास्ता नहीं पता। इन सड़कों से कभी रिक्से में इन्हीं की उम्र के बच्चे स्कूल डे्रस में गुजरते हैं, तो उनकी आंखे उत्सुकता से जरूर ताकती है। शायद इनके मन में भी स्कूल जाने की कसक है। इनसे बातचीत करने पर ये दो-चार शब्दों के अलावा कुछ नहीं बोलती। आश्चर्य से कुछ पूछने वालों को चेहरा देखती हैं? इधर-उधर चली जाती हैं। जैसे उससे क्या पूछ लिया? नागपुर में बस ये तीन लाड़ली ही नहीं हैं, जो स्कूल जाने के रास्तों से अनजान व्यस्त राहों के चौक पर भीख मांगती हैं। नगर के अनेक चौक-चौराहे ऐसे हैं, जहां कोई न कोई नन्हीं बच्ची किसी वाहन चालक के आगे हाथ पसारते एक सिक्के की आस लगाए दिख जाएगी।
दुर्भाय की बात है कि नन्हीं हथेलियों से भीख मांगने वाली इन लाड़लियों पर अपने ही माता-पिता का कहर है। मां कहती है, भीख मांगकर लाने के लिए उन्हें प्रताडि़त करते हैं। दूसरे को देने जैसी धममियां देते हैं। यह बात उसे जरूर समझ में आती है। तभी तो मां से यह बात सुन कर वह मासूम सहम जाती है। कई चौक-चौराहों पर इनकी मां भी आसपास ही भीख मांगती रहती हैं। अधिकतर लड़कियों के पिता का पता नहीं। लेकिन नागपुर के 45 डिगी तापमान में आग बरसाते आसामन के नीचे हर लाल बत्ती पर रूकने वाले वाहनों के पीछे हांफते हुए भागती इन मासूमों के चेहरे मुरझाएं ही दिखते हैं। भीषण गर्मी की तपिस में इनके सूखे चेहरे से सूखते अरमानों को साफ पढ़ा जा सकता है। शाम 7 बजे जब गर्मी से राहत पाने के लिए कई लोग रिहाइसी धरमपेठ इलाके में हल्दीराम में आईसक्रीम का आनंद आते हैं। तो यहां भी एक लाड़की आईसक्रीम खाने वालों के सामने अपनी नन्हीं हाथ इस उम्मीद से पसार देती है कि शायद कोई कुछ दे दे। पर हर बार उम्मीद कहां पूरी होती है। कोई उन्हें दुत्कार देता है, तो कोई थोड़ी-सी आईसक्रीम बचाकर उनके हाथ में पकड़ा देता है। कई सज्जन इस मैली-कुचैली लिबाश वाली गुडिय़ों को अपने सामने आते देख मुंह फेर कर दूसरी ओर खड़े हो जाते हैं। दोपहर के समय यहीं अपने छह माह की बेटी को गोद में लेकर खड़ी लाली आईस्क्रीम खाने वाले एक टुकड़ा अपनी बेटी के लिए मांगता है। भीख मांगने की बजाय काम करने की सलाह देने पर कुछ नहीं कहती है बस, एक दो-दो रूपये देने की जिद करती है। काफी पूछने पर बताया कि उसका पति लंगड़ा है।
ऐसी महिलाओं और नन्हें-मुन्नों का चौक-चौराहो पर भीख मांगना इनकी आदत में शुमार हो गया है। दुकान के सामने खड़े होकर भीख मांगने पर वहां खड़े गार्ड की झिड़की भी सहनी पड़ती है। शासन प्रशासन इन सब बातों से बेखबर है। यदि उन्हें खबर होती तो इन नन्हें हाथों में कलम होती। ये हाथ नगर के चौक-चौराहों पर आने जाने वालों के आगे नहीं पसरते।
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