सोमवार, अप्रैल 26, 2010

कुछ मित्रों को पत्र लिखा

डीयर ...
हाईटेक जमाने के कई लाभ हैं। पर इस क्रांति से कई चीजे पीछे छुट गई।
पत्र लिखने का सिलसिला थम गया है। मोबाइल और ई-मेल से झटपट दो-चार शब्द टाईप कर दिये और संदेश चंद लम्हों पर पहुंच जाता है। इस हाईटेक चिट्ठी से जज्बात की कशिश गायब रहती है। कितना अच्छा अच्छा होता कि हाईटेक क्रांति का असर पत्र लिखने की संस्कृति पर नहीं पड़ती। तो आज भी लोग पत्र लिखते। बचपन से ही पत्र लिखने की आदत थी। इस लिए हाईटेक तकनीक का इस्तेमाल करने के बाद भी बार-बार दिल में यह पत्र लिखने की कशिश उफान मारती है। क्योंकि पत्रों के शब्दों में पिरोये गए शब्दों में जज्बातों के अहसास आज की भागमभाग भरी जिंदगी में कितना महत्व रखती है। कभी पत्र लिख कर देखो या किसी का आया पत्र पढ़ कर देखो। आज भी दिल में यह कशीश उठी। सहज ही अंगुलियां टापइ के लिए थिरकने लगी। एक ही सांस में इतना लिख दिया। इसलिए पंरपरागत पत्र की शुरूआती औपचारिकताओं को भूल गया। चलिए परंपरा पर आते हैं।
उम्मीद है आपका स्वास्थ्य अच्छा होगा। जिंदगी भी अच्छी चल रही होगी। मुस्कुराते हुए इस पत्र को पढ़ रहे होगे। मुझे विश्वास है कि जरूर पत्रों की संस्कृति को मिस करेंगे। दो मिनट सोचेंगे और खुद को पत्र लिखने में बेवश पाएंगे।
फिलहाल अब तक निश्चय ही इस पत्र की मीठास आपके दिल में घुल गई होगी। क्योंकि कभी-कभार रोमन में ही दो-चार शब्दों में ई-मेल और एसएमएस भेजने वाले ने आज इतना बड़ा पत्र लिख डाला।
सोच रहा हूं कि काश, आज ईटरनेट से पत्र भेजन की सुविधा नहीं होती तो हाथों से शब्दों की बतकही रचता। कुछ मीठी यादों को शब्दों में पिरोता।
खैर- फिर मौके आएंगे। सफर है। जारी रहेगा। हमने तो कभी सोचा नहीं की पत्र लिखने की संस्कृति समाप्त हो जाएगी। मैंने यह व्रत लिया है कि जब भी मौके मिलेंगे मित्रों को हिंदी में पत्र ई-मेल से भेंजूंगा।
फिलहाल इस बार इतना ही।

शुभकामनाएं
संजय
नागपुर

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