सोमवार, अप्रैल 12, 2010

फिजाओं में बेखौफ जहर घोल रहे हैं वाहन

जहर छोडऩे वाले वाहनों पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का नियंत्रण नहीं
ऑटो में हो रहा है धडल्ले से केरोसिन का उपयोग, प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र रखने में वाहन चालकों की रुचि नहीं

नागपुर।
शहर में चलने वाले पुराने वाहन संतरानगरी की फिजाओं में प्रदूषण का जहर खोल रहे हैं। आरटीओ कार्यालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार फिलहाल शहर में करीब 38 हजार से अधिक 20 साल पुराने वाहन डीजल या पेट्रोल से चलने वाले हैं। इन वाहनों के पुराने से होन से ये ज्यादा प्रदूषित धुआ छोड़ रहे हैं। इसमें सल्फर डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, काब्रन मोनोऑक्साइड की जो मात्रा निकलती है, वह न केवल पर्यावरण के लिए हानिकारण है बल्कि स्वास्थ्य व्यक्ति के लिए भी नुकसानदेय है। वहीं दूसरी ओर प्रदूषण नियंत्रण के लिए बनाया गया बोर्ड केवल कागजों पर ही चल रहा है। नगर में चलने वाले हजारों वाहनों कहीं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का प्रमाणपत्र का स्टीकर लगा हुआ तो दिख जाता है, पर इनकी वैधता कितनी पुरानी होती है, यह वाहन चालक ही जानते हैं। अमूमन अधिकतर वाहन चलाक प्रदूषिण नियंत्रण का प्रमाणपत्र बनवाते ही नहीं है। आरटीओ कार्यालय के सामने दो-तीन पुराने वाहन पर मशीन लगाकर प्रदूषण नियंत्रण के प्रमाणपत्र जारी किया जाता है। पर ये वाहन स्वयं ही बहुत पुराने होते हैं। इनके प्रदूषण का नियंत्रण पर कोई पूछने वाला नहीं है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि ये वाहन किस तरह से दूसरे वाहनों के लिए प्रदूषण नियंत्रण का प्रमाण पत्र जारी करते होंगे।
यहां से पेट्रोल वाले चार पहिये वाहन के लिए 80 रूपये में प्रमाणपत्र जारी होते हैं। वहीं चार पहिया के लिए 100 रूपये के भुगतान पर और एक दुपहिया के लिए 30 रूपया तथा ऑटोरिक्शा के लिए 60 रूपये के भुगतान पर परीक्षण कर प्रदूषण नियंत्रण का प्रमाणपत्र जारी किया जाता है। कई बार तो यहां प्रदूषण जांच के लिए खड़े वाहन भुगतान पर बिना वाहन की जांच के ही प्रमाण पत्र जारी कर देते हैं। इतना ही नहीं लापरवाही का आलम यह है कि जब किसी वाहन में निर्धारित मानक से ज्यादा प्रदूषण होते हैं तो 10-20 रूपये अधिक लेकर निर्धारित मानकों के अनुसार प्रदूषण नियंत्रण का प्रमाणपत्र बना देते हैं। शहर में चलने वाले अधिकतर ऑटो चालक पेट्रोल महंगा होने कारण केरोसिन का उपयोग भी करते हैं। केरोसिन पर चलने वाले ऑटो से निकलने वाला धुआ पर्यावरण हीन हीं मानव स्वस्थ्य के लिए भी बेहद जहरीला होता है। आरटीओ से प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष 2009-10 में आरटीओ के बाहर 10,913 वाहनों की जांच की गई। इसमें प्रदूषण के निर्धारित मानकों का उल्लंघन करने पर मोटर वाहन अधिनियम की धारा 190 (2) के तहत 992 वाहनों का चालान किया गया। विभाग की कार्रवाई देखकर यह महज औपचारिकता भर लगती है।
ज्ञात हो कि शहर में 10 लाख से अधिक वाहन पंजीकृत हैं। नागपुर उत्तर एवं दक्षिण भारत का मिलन का मुख्य केंद्र होने के कारण यहां दूसरे राज्यों के हर दिन करीब 15 हजार भारी वाहनों की भी आवाजाही होती है।
प्रदूषण विभाग की मानें तो हर दिन नागपुर से औसतन 1700 ऐसे वाहन गुजरते हैं, जिन पर मानवीय स्वास्थ्य के लिए हानिकारक घातक रसायन लदे होते हैं। इस वजह से भी शहर की वायु में प्रदूषण का जहर तेजी से घुल रहा है। इसके अलावा नागपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों से भी प्रतिदिन 10 हजार से अधिक वाहन शहर में प्रवेश करते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो 15-20 साल पुराने वाहन अपनी तय उम्र पूरी कर चुके होते हैं एवं इन वाहनों के धुएं मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक होते हैं।
इन वाहनों से धुएं से निकलने वाला सल्फर डाईआक्साइड के कारण आंखों में जलन एवं श्वसन संबंधी बीमारियां होने का खतरा ज्यादा होता है। जानकारों का कहना है कि इससे निकलने वाला कार्बन मोनोआक्साइड के कारण शरीर की ऑक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता कम हो जाती है तथा सिरदर्द एवं उल्टी की शिकायत होती है। सेंट्रल मोटर व्हिकल एक्ट 1989 के अनुसार वाहनों की प्रदूषण जांच अनिवार्य है। इस जांच में अधिक प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों पर रोक लगाई जा सकती है।
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