शनिवार, मई 22, 2010

'लैला खौफ से टूट रहे है आम


फलो के राजा पर 'लैलाÓ का खौफ

संजय स्वदेश
नागपुर।
गत दिनों आंध्रप्रदेश में आया तूफान 'लैलाÓ के कहर का आम जनजीवन पर तो पड़ा ही है। लेकिन तूफान थमने के बाद उसका खौफ अभी कम नहीं हुआ है। लैला से खौफ का असर यहां के आम पर पड़ रहा है। आंध्रप्रदेश में बहुतायत आम उत्पादन होता है। यहां के आम महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, दिल्ली, यूपी, पंजाब, हरियाणा आदि क्षेत्रों तक खपत होते हैं। इस वर्ष भीषण गर्मी से आत्म उत्पादक किसानों पर का मन सूख चुका था। क्योंकि दिसंबर माह के करीब आम के पेड़ों पर जिनते मंजर आए थे, वे भीषण गर्मी से झड़ गए। महज तीस प्रशित मंजर की फल बने। फिर भी किसानों को उम्मीद थी कि बाकी बचे तीस प्रतिशत मंजर में आने वालें आमों से ही उन्हें अच्छी रकम मिल जाएगी। लेकिन अचानक आए लैला ने उनके इस मंसूबों पर भी पानी फेर दिया।
आंध्र प्रदेश के आम उत्पादाकों के लिए सबसे बड़ी थोक नजदकी मंडी नागपुर है। लैला के खौफ का असर नागपुर के कलमना मार्केट स्थित फल बाजार पर साफ दिख रहा है। इस मंडी में सबसे ज्यादा आम आंध्र पदेश से आता है। पर इन दिनों वहां तूफान के कहर से डरे किसानों ने आम के फल समय से पहले ही तोड़ कर नागपुर की मंडी में भेजना शुरू कर दिया है। कलमना मार्केट के फल व्यापारियों की मानें तो लैला आने से नागपुर की मंडी में अचानक आमों की आवक बढ़ गई है। आवक बढऩे से आम के थोक भाव में भी गिरावट आई है। कलमना मार्केट के फल व्यापारी राजेश छाबरानी ने बताया कि आम दिनों जहां हर दिन अभी तक जहां 150 से 200 गाडिय़ों का माल आता था, वहीं लैला के आने के बाद यहां 200 से 250 गाड़ी माल आने लगा है। इससे भाव में एक से तीन हजार रुपये प्रति टन की गिरावट आई है। आश्चर्य की बात है कि थोक बाजार में आम सस्ता होने के बाद भी खुदरा बाजार में बिकने वाले आम के दामों में कोई खास अंतर नहीं आया है। छावरानी ने बताया कि आंध्र प्रदेश के आम उत्पादकों के लिए नागपुर बहुत बड़ी मंडी है। कलमना मार्केट में अमूमन 15 मार्च से 15 जून तक आमों का बहार रहता है। फिलहाल यह अंतिम सिजन चल रहा है। लैला के डर से टूटते आमों को देखकर लगता है कि 15 जून तक चलने वाला जून के शुरू होते ही समाप्त हो जाएगा।
भीषण गर्मी का असर आम पर
इस वर्ष भीषण गर्मी का असर आम उत्पादन पर भी पड़ा है। पिछले वर्ष की तुलना में इस बार आम के मंजर ज्यादा थे। किसानों को पिछले वर्ष की तुलना में दोगुने फल की उम्मीद थी। इस वर्ष वारिश के अभाव और भीषण गर्मी के कारण ज्यादातर मंजर गिर गए। करीब 30 प्रतिशत मंजर ही फल बनें। भीषण गर्मी और घटते भूजल के कारण पहले जितने समय में आम जिस आकार में होते थे, उतने बड़े आकार इस वर्ष नहीं आ पाये। इस वर्ष किसानों को कम वजन के आम होने से उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ रहा था। रही-सही कसर लैला ने पूरी कर दी है। आनन-फानन में वे अपने फलों को जल्दी-जल्दी तोड़ कर मंडी में भेज रहे हैं। उन्हें डर है कि कहीं तूफान से उनके सारे फल नष्ट न हो जाए।
आम पकाना महंगा
कलमना बाजार में ज्यादातर आम कच्चे आते हैं। एक व्यापारी ने बताया कि कारबाइट से एक ट्रक आम को पकाने में करीब 5 हजार रुपये का खर्च आता है। दूर-दराज में कच्चे आम ही जाते हैं। इसलिए अधिकतर व्यापारी कच्चे आम की ही खरीदारी करते हैं और उसे अपने गोदाम में पका कर खुदरा बाजार में बेचते हैं। सरकार ने कारबाइट से आम पकाने पर पाबंदी लगा दी है। व्यापारियों का कहना है कि बिना कारबाइट का आम नहीं पक सकता है। इसके पकाने की तरीके में बदलावा आया है। गोदाम के फर्श पर कारबाइट के पावडर डाल दिया जाता है। उसके उपर पेपर बिछा दिया जाता है या घासफूस डाल दिया जाता है। फिर आम को उस पर रखा जाता है। इस तरह कारबाइट की गर्मी से आम जल्दी पक जाते हैं। शुक्रवार को संबंधित विभाग के अधिकारियों ने कलमाना मार्केट में भ्रमण कर यह जायजा लिया कि कहीं यहां कारबाइट से आम तो नहीं पकाया जा रहा है। लेकिन वे किसी को कारबाइट से आम पकाते हुए नहीं पकड़ पाए, जबकि बाजार में बिकने वाले सभी पके आम कारबाइट से पके होते हैं।

खास बात
आंध्रप्रदेश के वारंगल, विजयवाडा विशेषकर तेलंगाना क्षेत्र में आमों का भारी उत्पादन होता है।
आंध्रप्रदेश के आमों की सबसे बड़ी खपत मंडी नागपुर है।
नागपुर से आम महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, नेपाल तक जाते हैं।
आम की करीब साढ़े तीन सौ प्रजातियां है।
नागपुर मंडी में सबसे ज्यादा आने वाले आम तोतापुरी और बैगनफली है।
इस वर्ष कलमना बाजार में अधिकतम 36 हजार हजार रुपये टन के दर से आम बिके।
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