शनिवार, अगस्त 21, 2010

नक्सलियों ने पुलिस कैम्प फूंका

2 निरपराध लोगों का गला काट डाला
गढ़चिरोली जिले की भामरागढ़ तहसील के मेड़पल्ली स्थित सीआरपीएफ के अस्थायी पुलिस कैम्प को नक्सलियों ने शुक्रवार की देर रात आग के हवाले कर दिया। कुछ दिनों पूर्व ही पुलिस दल ने इस कैम्प को छोड़ दिया था। जबकि भामरागढ़ तहसील के ही 2 निष्पाप ग्रामीणों की भी नक्सलियों ने गला रेतकर निर्मम हत्या कर दी जिससे क्षेत्र के गांवों में दहशत का माहौल बना हुआ है।
पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जिले में नक्सल खोज मुहिम के लिए सीआरपीएफ पुलिस की सहायता ली जा रहीं है। विभिन्न स्थानों पर सीआरपीएफ पुलिस के कैम्प बनाए गए है। पुलिस ने मेड़पल्ली गांव में भी एक कैम्प बनवाया था, लेकिन यह कैम्प कुछ ही दिनों पूर्व पुलिस ने छोड़ दिया था। बीती देर रात 20 से 25 की संख्या में आये बंदूकधारी नक्सलियों ने मेड़पल्ली के पुलिस कैम्प में आकर पूरे कैम्प को आग के हवाले कर दिया। जिसमें पूरा पुलिस कैम्प जलकर ध्वस्त को गया है। वहीं दूसरी एक घटना में पुलिस को बम खोजने के कार्य में मदद करने वाले भामरागढ़ तहसील के ही दो ग्रामीणों की नक्सलियों ने गला रेतकर हत्या कर दी। समाचार के लिखे जाने तक मृत ग्रामीणों के नाम पता नहीं चल पाये है। जबकि क्षेत्र में पुलिस की चौकसी बढ़ा दी गई है।
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शुक्रवार, अगस्त 20, 2010

नक्सलियों ने आदिवासियों के कल्याण के लिए एजेंडा नहीं बनाया : राजकिशोर

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विवि में नक्सलवाद के औचित्य पर संगोष्ठी
नक्सल आंदोलन कभी आदिवासी आंदोलन नहीं रहा क्योंकि नक्सलियों ने कभी भी आदिवासियों के कल्याण के लिए कोई एजेंडा प्रस्तुत नहीं किया। यह कहना है कि वरिष्ठ पत्रकार व राइटर इन रेजीडेंट राजकिशोर का। वे महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विवि परिसर के गांधी हिल पर आयोजित एक संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। राजकिशोर ने कहा कि नक्सलियों ने आदिवासियों को सरकार के खिलाफ भड़काना ही सहज एवं सुलभ समझा है। जबकि माओवादी कोलकाता, अहमदाबाद, मुंबई, मद्रास आदि प्रमुख शहरों के मजदूरों को एकजुट नहीं कर पाये। क्योंकि शहरी मजदूरों को इकट्ठा करना उन्हें मुश्किल लगा। उन्होंने कहा कि जो लोग ऐसा मानते हैं कि जहां विकास नहीं हुआ है, वहां नक्सलवाद पनपता है, वे गलत हैं। क्योंकि उत्तराखंड के कई दुर्गम इलाके, अंडमान निकोबार दीप समूह और बिहार के कई अंचल तथा उड़ीसा के कई क्षेत्रों में विल्कुल भी विकास नहीं हुआ है। फिर भी वहां नक्सलवाद नहीं पनपा है।
लक्ष्य से भटके हैं कम्युनिष्ट
राजकिशोर ने कहा कि जहां अन्याय होगा, वहां हथियार उठेगा। नक्सलवाद कोई नई बात नहीं कह रहा है। इसका उद्गम तब हुआ, जब कम्युनिष्टों ने अपना लक्ष्य छोड़ दिया। 1947 में जब देश आजाद हुआ था, तब कम्युनिस्ट यह नारा लगाते थे- 'यह आजादी झूठी है, देश की जनता भूखी हैÓ। इसी नारे के साथ कम्युनिस्ट इस आजादी को भ्रम माने बैठे रहे। लेकिन जब उन्होंने देखा कि देश का आम आदमी इसी आजादी से खुश है और यही असली आजादी है, तो उन्होंने हिंसा की राह पकड़ ली। नक्सलियों ने सबसे पहले हिंसा की शुरुआत तेलंगाना से की। लेकिन तब की जवाहर लाल नेहरू सरकार ने इस हिंसा का दमन कर दिया। तब कम्युनिस्टों को लगा कि वे अब क्रांति के बिना नहीं रह सकते हैं। लेकिन नेहरू के दमन चक्र से ही कुछ कम्युनिस्ट लोकतांत्रिक रास्ता अपनाने लगे। तब तक सोवियत संघ और चीन के माक्र्सवादी किले की चूले हिलने लगी थीं। इसके बाद कम्युनिस्ट टूट गए।
हिंसा क्रांति की दासी
राजकिशोर ने कहा कि ङ्क्षहसा और प्रतिहिंसा स्वत: स्फूर्त है। इसीलिए कम्युनिष्टों के एक समूह ने चारु मजमूदार के नेतृत्व में हिंसा का रास्ता अपनाया। क्योंकि अतीत में जितनी भी सत्ता की लड़ाई लड़ी गई है, उनका माध्यम हिंसा ही रहा है। क्योंकि हिंसा सत्ता परिवर्तन का पर्याय रहा है। लेकिन इसके बाद भी माक्र्सवाद हिंसा का दर्शन नहीं है। उसका मानना है कि हिंसा क्रांति की दासी है। हिंसा उसका एक छोटा सा हिस्सा है।
बिगड़ चुका है नक्सलवाद का स्वरूप
संगोष्ठी की शुरुआत में प्रास्ताविक वक्तव्य में विवि के जनसंचार विभाग के अध्यक्ष प्रो. अनिल अंकित राय ने कहा कि सामाजिक मुद्दे ज्वलंत मुद्दे की तरह की समस्या हैं। इसके कारण पहचानने की जरूरत है। आजकल नक्सलवाद राजनीतिक एजेंडा बन गया है। यह समस्या अपने विविध रूप में है और आम व्यक्ति नक्सलवाद के खिलाफ चलाई जा रही सत्ता की गतिविधियों को और नक्सलवादी हिंसा आधारित गतिविधियों को ठीक नहीं मानता है। नक्सलवाद का स्वरूप जो शुरू में था, वह आज के समय में कही न कहीं बिगड़ चुका है। नक्सलवादी नेताओं ने भी इस बात को स्वीकारा है कि उनका नेतृत्व गलत हाथों में है। आदिवासी आदिवासी ही रह गए हैं, जबकि आज सन् 2010 चल रहा है। यह आधुनिकता का दौर है। आज भी आदिवासियों की स्थिति वैसी ही है, जैसे प्राचीन काल में थी। संगोष्ठी में मानव विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. पी.के वैष्णव, नाट्य कला विभाग के अध्यक्ष प्रो. रवि चतुर्वेदी, बौद्ध अध्यनन विभाग के सहायक प्रोफेसर सुरजीत कुमार सिंह और रवि शंकर सिंह, मानव विज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर वीरेन्द्र यादव, निशिथ राय, विवि के जनसंपर्क अधिकारी बी.एस मिर्गे, अमित विश्वास समेत अन्य कई प्राध्यापक व विद्यार्थी उपस्थित थे।

बुधवार, अगस्त 11, 2010

बाजार की गर्मी से शांत होगी कश्मीर की आग

कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग करने वाला पूरे भारत की ओर से कश्मीर को क्या मिला है। वहां कश्मीर घाटी की हिंसा में मरने स्थानीय लोगों की खबरों हमें नहीं झकझोरती हैं। देश ने केवल यह दावा किया की कश्मीर हमारा है। लेकिन इस दावे के बाद भी पूरा कश्मीर उपेक्षित हो गया। भूख तो पशु भी बर्दाश्त कर सकते हैं, लेकिन उपेक्षा नहीं। फिर भला एक पूरी समुदाय उपेक्षित हो तो उसे अहिंसक होने की अपेक्षा कैसे की जा सकती है।




संजय स्वदेश
कश्मीर में हिंसा की आग धधक पड़ी है। तरह-तरह की चर्चाओं का दौरा जारी है। कोई राजनीतिक असफलता की बात कह रहा है तो कोई पड़ोसी देश पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की प्रायोजित रणनीति। हालत जो भी हो, पर इस हिंसा से साबित हो गया है कि कश्मीर की वर्तमान लाकतांत्रित सरकार वहां की जनता की आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाई। अलगाववाद की स्थिति पर काबू पाने के लिए केंद्र सरकार भी विफल रही। इन तमाम चर्चाओं के बीच एक महत्वपूर्ण बात छूट रही है। आईएसआई की गतिविधियों से सभी वाकिफ है। सरकार ने सेना की तैनाती कर इस पर अंकुश लगाने का भी कार्य किया। दूसरी ओर गत एक दशक में कश्मीर की चिंगारी भड़कने की मुख्य वजह क्या थी। अभी तक काबुल से पत्थर फेंकने की घटनाएं आ रही थी। अब भारत में भी हो गई। कहने वाले कह रहे है कि पड़ोसी राज्यों ने जनता को पत्थरबाजी के लिए उकसाया। उसके लिए जनता को पैसे भी उपलब्ध कराये गए। पर इसमें संदेह है। पैसे के लालच में एक व्यक्ति जान जोखिम में डालने की सोच सकता है, लेकिन अमन की चाह रखने वाला पूरा समाज ऐसा नहीं कर सकता है। ईमानदारी से सोच और विचार करने की जरूरत है। कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग करने वाला पूरे भारत की ओर से कश्मीर को क्या मिला है। वहां कश्मीर घाटी की हिंसा में मरने स्थानीय लोगों की खबरों हमें नहीं झकझोरती हैं।
गत दो दशक के समय पर विचार करें। उदारदवाद की हवा जहां-जहां गई, स्थिर समाज सचेत हुआ। सरकार ने इस दौरान ढेरों तरक्की के दावे किये। पर विचार करने वाली बात यह है कि उदारवाद की यह हवा कश्मीर की घाटी में विकास की संतोषजनक गर्माहट पैदा नहीं कर सकी। कश्मीर को केंद्र सरकार ने सेना के अलावा क्या दिया है? जिनती स्थिति सेना के माध्यम से कश्मीर को अपने नियंत्रण में लेने की रही, उतनी ही दृढ़ता वहां बाजार को पहुंचाने में नहीं रही। आप माने या न माने। आज हर समाज में बाजार जीने की बुनियादी जरूरत बन गई है। भले ही इस के रूप अलग-अलग क्यों न हो। लेकिन देश के पिछड़े इलाकों में जहां-जहां बाजार पहुंचा, वहां थोड़ी-बहुत समृद्धि जरूर आई है। विदर्भ में किसानों ने आत्महत्या की। खबरे राष्ट्रीय स्तर पर आईं। पर किसानों की उपज को अच्छा मूल्य देने वाला बाजार वहां भी नहीं पहुंच पाया। ठीक इसी तरह से कश्मीर के होने वाले उत्पादन को हाथों हाथ लेने के लिए बाजार बनाने में सरकार असफल दिख रही है। पर्यटन का व्यवसाय एक सीजन में चलता है। लेकिन इससे उन्हीं लोगों को ज्यादा लाभ है जो झील के आसपास हैं और उनकी अपनी नाव हैं या फिर पर्यटक स्थलों पर जिनकी दुकानें हैं।
बेहतरीन सेव उत्पादन के मामले में कश्मीर अव्वल रहा है। पर वहां के सेव को वहीं बेचने के लिए बाजार उपलब्ध नहीं है। बिचौलिये उनका मुनाफा खाते रहे हैं। कश्मीर के गर्म कपड़ों के क्या कहने, पर जब वे देश के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शनी के लिए जाते हैं, तो तिब्बती शरणार्थियों के गर्म कपड़े उन पर भारी पड़ जाते हैं। ऐसी बात नहीं है कि इन चीजों के उत्पादों को प्रोत्साहन के लिए कोई सरकारी पहल नहीं हुआ है। लेकिन जो पहल हुआ है, वह औपचारिक रूप से। उसकी गति बेहद सुस्त है। इसका लाभ भी एक खास वर्ग तक सीमित हो कर रह गया है।
करीब तीन-चार साल पूर्व पाकिस्तान और भारत के बीच साफ्टा नाम की एक संधि हुई। इस संधि के माध्यम से 773 ऐसी वस्तुओं को सूचीबद्ध किया गया है जिसे पाकिस्तान भारत से निर्यात करेगा। इसमें कई ऐसी चीजे शामिल थीं, जिनका उत्पादन कश्मीर में होता है और उसकी पाकिस्तान में बेहद मांग है। पर कश्मीर की आग में यह संधि जल गई। यह व्यापार दोनों देशों की आपसी राजनीति की ऊपर था। कारण चाहे जो भी हो, समाज की मांग के दवाब में कश्मीर में बाजार ने पांव पसारने की कोशिश भी की, तो सरकारी संरक्षण के कारण उसे प्रोत्साहन नहीं मिला।
गत एक दशक में कश्मीर में बेरोजगारों की एक बड़ी फौज खड़ी हो गई है। पारंपरागत बंदिशों से कश्मीरी समाज की बहुसंख्यक महिलाएं उच्च शिक्षित नहीं हो पाई। महिलाएं भी बेकार हैं। सरकार इनके हाथों में उनके हुनर लायक संतोषजनक काम देने में नाकाम रही। लेकिन इसके लिए केवल राज्य सरकार को ही दोष नहीं दिया जा सकता है। स्थिति की नाजुकता को देखते हुए कश्मीर की जनता में अपना विश्वास बहाल करने के लिए केंद्र सरकार को भी समय-समय पर ताक-झांक करते रहना चाहिए था। लेकिन
लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। लिहाजा, सत्ता की राजनीति को बनाये रखने में कश्मीर के युवा, युवति व महिलाएं आक्रोशित होकर हाथ में पत्थर नहीं उठाते तो क्या करते। दरअसल इस मामले को पूरी तरह से संवेदनशील होकर सोचने की जरूरत है। क्या हम अपने ही घर में पुलिस या सैन्य बलों के साये में रहना पसंद करेंगे? यदि हम ऐसा पंसद नहीं कर सकते हैं तो कश्मीरी भला कैसे करेंगे। यदि यह सुरक्षा साया जरूरी भी था तो जनता की की बदहाली दूर करने और उनमें विश्वास बहाल करने के लिए सैन्य बलों को संरक्षण में ही विकास और रोजगार के ढेरों कार्य हो सकते थे। पर ऐसा हुआ नहीं। सरकार चाहे राज्य की रही हो या केंद्र की। सभी ने केवल इसे भारत का अभिन्न अंग होने का दावा किया। देश के दूसरे राज्यों की जनता ने भी ऐसा ही दावा किया। लेकिन इस दावे के बाद भी पूरा कश्मीर उपेक्षित हो गया। भूख तो पशु भी बर्दाश्त कर सकते हैं, लेकिन उपेक्षा नहीं। फिर भला एक पूरी समुदाय उपेक्षित हो तो उसे अहिंसक होने की अपेक्षा कैसे की जा सकती

मंगलवार, अगस्त 10, 2010

अंधेरे में हो रहा रेती का उत्खनन

2 निरीक्षकों के भरोसे है 38 घाटों की निगरानी
संजय
नागपुर।
गत वर्ष की तुलना में इस वर्ष नागपुर में निर्माण कार्य ज्यादा होने के कारण रेत की भारी मांग है। इस मांग की पूर्ति के लिए रेत माफिया अवैध तरीके से रेतघाटों से रेती का उत्खनन कर रहे हैं। इनके ये काले कारनामे किसी की नजर में न आए, इसके लिए वे रात के अंधेरे का सहारा ले नियमों की धज्जिया उड़ा रहे हैं। इससे उनकी कमाई भी मोटी हो रही है जबकि माइन्स एवं मिनरल एक्ट 1957 के अनुसार रात के समय रेत का उत्खनन नहीं किया जा सकता है, लेकिन अवैध उत्खनन के लिए रात्रिकाल ही बेहतर समय हो रहा है। रेत घाट के माफिये नियम व कानून को ताख पर रख कर यह कार्य कर रहे हैं। रेतमाफियाओं के इस अवैध कार्य में ट्रक वाले भी खूब कमा रहे हैं। जानकारों की मानें तो हर दिन, दिन में 150 से 200 ट्रक रेत का उत्खनन होता है। हर ट्रक ओवरलोड होता है। दिन में जहां रेत ढोने वाले ट्रकों का किराया 2500 से 3000 रुपया है, तो वहीं रात में अवैध उत्खनन के रेत को ढोने के लिए करीब 4000 रुपये किराया वसूला जाता है। अनुमान है कि रात के समय भी हर दिन कम से कम 100 ट्रक रेतों की ढुलाई होती है। ओवरलोडेड ट्रक का नकारात्मक असर सड़कों पर भी पड़ रहा है। रेतीघाट के पास से गुजरने वाली सड़क की जर्जर हालत को देखकर स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है।
हस्तांतरित हो गए निरीक्षक
प्रशासन सब कुछ जानते हुए भी निष्क्रिय है। निष्क्रियता उसकी मजबूरी भी है। नागपुर की 8 तहसीलों में 38 रेती घाटों के उत्खनन कार्यों की निगरानी महज 2 निरीक्षकों के भरोसे है। विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हमारी मजबूरी है। हम क्या करें, महज 2 निरीक्षक जिले के इतने घाटों पर सही तरीके से निगरानी नहीं रख सकते हैं। ज्ञात हो कि वर्ष 2008 तक विभाग में 10 निरीक्षक थे लेकिन धीरे-धीरे सभी निरीक्षकों का स्थानांतरण हो गया। सूत्रों का यकीन मानें तो निरीक्षकों के हस्तांतरण में रेत उत्खनन माफियाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
96 घाट हुए थे चिन्हित
ज्ञात हो कि खनन विभाग ने वर्ष 2009-10 के लिए रेत उत्खनन के 62 घाटों को मंजूरी दी है। इसमें से महज 22 घाटों की ही नीलामी हुई। इस वर्ष 1 अगस्त 2010 से जुलाई 2011 तक 38 घाटों की नीलामी होनी थी। सूत्रों की मानें तो खान विभाग ने इस वर्ष नागपुर की 8 तहसीलों में 96 घाटों को रेत उत्खनन के लिए चिन्हित किया था। इसका प्रस्ताव भूजल सर्वेक्षण एजेंसी (जीएसडीए) के पास भेजा गया लेकिन जीएसडीए ने महज 62 घाटों से ही रेत उत्खनन कार्य के लिए अनुमति दी। वहीं ग्राम सभा ने केवल 38 घाटों से ही उत्खनन पर अंतिम रूप से सहमति दी लेकिन जिले के दूरवर्ती क्षेत्रों में अवैध उत्खनन कार्य धड़ल्ले से जारी है।
ठेका लेना महंगा, अवैध काम सस्ता
जानकारों का कहना है कि गत वर्ष की तुलना में नागपुर में निर्माण कार्यों की संख्या तेजी से बढऩे से रेत की मांग बढ़ गई है। इस कारण भी रेत के अवैध उत्खनन को प्रोत्साहन मिल रहा है। वहीं दूसरी ओर रेती घाटों की नीलामी के लिए आमंत्रित निविदाओं को भरने वालों की संख्या कम हो रही है। सूत्रों का कहना कि प्रभावशाली ठेकेदार निविदा में लाखों की बोली लगाने के बजाय विभाग के कर्मचारियों व अधिकारियों के साथ साठगांठ कर रेत उत्खनन करना बेहतर समझ रहे हैं। इससे रेतमाफियाओं को मोटा मुनाफा हो रहा है। वहीं दूसरी ओर जो ठेकेदार उत्खनन का ठेका ले रहे हैं, वह एक वैध ठेका की आड़ में दूसरे घाटों में अवैध उत्खनन कर रहे हैं।
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सेक्स क्षमता बढ़ाने की गलतफहमी से गधों पर संकट



'दो बैलों की कथाÓ प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी है। कहानी की शुरुआत में प्रेमचंद गधा पुराण से करते हुए बताते हैं कि कैसे गधा चुपचाप मेहनत करता है और मालिक की मार खाता है। सच कहें तो गधे जैसा मेहनती कोई अन्य पशु नहीं। लेकिन समाज में गधों को लेकर नकारात्मक लोकोक्ति का प्रसार हो गया। खैर बदले दौर में गदहों की उपयोगिता कम हो गई थी। लेकिन आधुनिक जमाने में गधों के प्रति फिर से एक नया समाजिक गलतफहली फैलने से इसकी उपयोगिता बढ़ गई है।
नागपुर। आप माने या न मानें, पर महाराष्ट्र के कुछ स्थानीय खबरों पर यकीन करें तो इन दिनों राज्य के गधों पर भारी संकट मंडरा रहा है। इनकी तस्करी होने लगी है। तस्करी से गधे महाराष्ट्र से पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश में जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि गधों के खून और मांस का उपयोग लैंगिक क्षमता बढ़ाने के लिए होने की गलतफहमी समूचे आंध्रप्रदेश में फैल गई है। इस कारण महाराष्ट्र के गधों पर संकट के बादल मंडरा रहा है। पिछले कुछ महीनों में करीब 50000 हजार गधों को महाराष्ट्र से आंध्रप्रदेश भेजे गए हैं। गधों की तस्करी के लिए कई एजेंट भी सक्रिय हो गए हैं। ये दूर-दराज के गांवों के गधों की चोरी भी करने लगे हैं। परभणी जिले के शहर गंगाखेड़ से पिछले 3 माह में ही करीब 350 गधों की चेारी होने की सूचना है। गंगाखेड़ पुलिस थाने में गधों के लगभग 29 मालिकों ने अपने गधों की चोरी की शिकायत दर्ज कराई है। पुलिस की जांच में गधों की तस्करी का सनसनीखेज मामला उजागर हो चुका है।
स्थानीय लोग कहते हैं कि गुंटूर जिले के बापटला क्षेत्र में गधों का बड़ा बाजार लगता है। आंध्र के लोगों में यह गलतफहमी फैल गई है कि गधों के खून तथा मांस से लैंगिक क्षमता में तेजी से वृद्धि होती है। इसी कारण गधों की मांग बाजार में अचानक बढ़ गई है। आंध्रप्रदेश के बाजारों में गधों का खून 200 रुपये प्रति लिटर तथा मांस 300 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रहा है। गधों के खून और मांस की मांग बढऩे के कारण आंध्र में गधों की कमी हो गई है, जिसके कारण अब महाराष्ट्र के गधों पर संकट आ गया है। परभणी जिले की तरह की विदर्भ के यवतमाल जिले से भी गधों की बड़े पैमाने पर आंध्रप्रदेश में तस्करी होने की जानकारी मिली है। यवतमाल के आदिवासी इलाकों के कई नागरिकों के गधे चोरी हो गए हैं। इसके अलावा विदर्भ के अमरावती, पांढरकवड़ा के आंध्रप्रदेश की सीमावर्ती गांवों से भी हालफिलहाल में अनेक गधे चोरी हुए हैं। इसी तरह की खबर परभणी, जालना, औरंगाबाद, किनवट से भी आ रही है। आंध्र में फैले इस समाजिक गलतफहमी से गधों के मालिक परेशान है। गधे चोरी होने से उनकी आर्थिक स्थिति डगमगा गई है।
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सोमवार, अगस्त 09, 2010

लाखों खर्च के बाद भी नहीं घटी आवारा कुत्तों की संख्या

नागपुर। शहर में आवारा कुत्तों की भरमार है। मनपा की मानें तो नागपुर में 54 हजार आवारा कुत्ते हैं। इनकी बढ़ती संख्या रोकने के लिए मनपा की ओर से चलाये जा रहे नसबंदी कार्यक्रम पर करोड़ों रुपये खर्च होने के बाद भी नतीजा कुछ खास नहीं निकला है। नगर में इन दिनों आवारा कुत्तों की भरमार हो गई है। रात के समय दोपहिया वाहनचलाकों के लिए यह सबसे बड़े मुश्किल बने हुए हैं। जैसे ही कोई वाहन चालक गुजरता है इनका झुंड उनकी ओर तेजी से दौड़ता है।
कुत्तों की बढ़ती संख्या पर अंकुश लगाने के लिए मनपा और मनपा की ओर से नियुक्त एनजीओ के दावों की पोल खुल चुकी है। बांबे उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने वर्ष 2006 में मनपा को पशु जन्म नियंत्रण कार्यक्रम चलाने का निर्देश दिया था। इसके बाद मनपा ने अवारा कुत्तों की नसबंदी पर लाखों खर्च कर उनकी संख्या कम होने का दावा किया है। लेकिन इसके बाद भी नगर के अनेक चौक-चौराहे और गली-मुहल्लों में सैकड़ों आवारा कुत्ते घूमते हुए दिखते हैं। इन अवारा कुत्तो पर नसबंदी होने के कोई निशान भी नहीं हंै। इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि इस कार्य में कितना भ्रष्टाचार है।
हालांकि मनपा ने कोर्ट में दिये अपने शपथपत्र में कहा था कि पहले शहर में 8300 आवारा कुत्ते थे। बाद में यह संख्या 33000 बताई गई। अब मनपा कह रही है कि वर्ष 2006 से 2008 के बीच इनकी संख्या बढ़कर 53000 के करीब हो चुकी है। ज्ञात हो कि शहर में आवारा कुत्तों की संख्या को नियंत्रण में रखने के लिए उनकी नसबंदी का ठेका पांच गैर सरकारी संगठन आईएसएडब्ल्यू, वाईएमसीए, एसपीसीए और रॉयल वेटनरी सोसाइटी को दिये गये थे। वर्ष 2008 के बाद एनएमसी ने वाईएमसीए और रॉयल वेटरनी सोसाइटी को ही यह ठेका वर्ष 2008 में मिला। आईएसएडब्लयू लक्ष्मीनगर, नेहरू नगर, हनुमान नगर, लकडग़ंज और संतरंजीपुरा जोन के आवारा कुत्तों के नसबंदी की जिम्मेदारी है। बाकी जोन की जिजमेदारी एसपीसीए को है, जिसमें धंतोली, धरमपेठ, मंगलवारी और आसीनगर जोन का समावेश है।
ज्ञात हो कि एक कुत्ते की नसबंदी के लिए मनपा 370 रुपये का टीका लगाती है, इन्हें पकडऩे के एवज में 75 रुपया खर्च किया जाता है। पकडऩे के लिए वाहन और उसमें लगने वाले डीजल भी मनपा की ओर से उपलब्ध कराया जाता है। मनपा के वर्तमान आंकड़े कहते हैं, नगर में 53,928 अवारा कुत्तों की नसबंदी हो चुकी है। इसमें ने से 28720 नर और 25208 मादा कुत्ते हैं। इनके नसबंदी के लिए अब तक करीब 19.95 करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके हैं। वाईएमसीए और रॉयल वेटरनी सोसाइटी के सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार अभी हर दिन औसतन 10 से 12 आवारा कुत्तोंं के नसबंदी का कार्य जारी है।

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रविवार, अगस्त 08, 2010

आईएसआई को आतंकवादी संगठन घोषित करें : राजनाथ

घोटालों पर परदा डालना कांग्रेस की पुरानी नीति
कश्मीर समस्या के लिए कांग्रेस ही जिम्मेदार
नागपुर।
पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का आतंकवादी घटनाओं में हाथ होने की बात कई बार उजागर हो चुकी है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को विश्वास में लेकर आईएसआई को आतंकवादी संगठन घोषित करने की मांग भाजपा के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने की।
राजनाथ सिंह ने कहा कि आतंकवाद के पीछे आईएसआई होने की बात विश्व समुदाय के ध्यान में भी आई है। कश्मीर समस्या कांग्रेस की ही देन है। वोट बैंक की राजनीति तथा रचनात्मक नीति नहीं बनाए जाने से कश्मीर समस्या अधिकाधिक उग्र हो रही है। इसका झटका आम आदमी को लग रहा है। इस पर सर्वमान्य हल निकालना जरूरी है लेकिन केंद्र सरकार इसमें असफल साबित हुई है। इन दिनों देशभर में चर्चित कॉमनवेल्थ घोटाले की जांच करने की मांग करते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि कॉमनवेल्थ को हमारा विरोध नहीं है। घोटाला साबित हो चुका है लेकिन जिस ढंग से यह घोटाला उजागर हो रहा है, वह उचित नहीं है। इस संबंध में प्राथमिक जांच कर संबंधित पर कार्रवाई की जानी चाहिए, फिर वह कितना भी बड़ा व्यक्ति क्यों न हो। कांग्रेस इस घोटाले पर परदा डालने का प्रयास कर रही है। कांग्रेस की यह पुरानी नीति है। देश का सम्मान रखते हुए यह स्पर्धा होनी चाहिए, उसके लिए हमारा 100 प्रतिशत सहयोग रहेगा। राजनाथ ने कहा कि देश की एकात्मता व अखंडता कायम रखकर जातिनिहाय जनगणना हो। देशवासियों को डरा रही महंगाई की समस्या को भाजपा ने संसद के दोनों सदनों में उठाकर रखा। देश के गरीबों को न्याय देने के लिए कोई राजनीति न करते हुए चर्चा होनी चाहिए। इस पर अगर मतदान लिया होता तो सरकार की पराजय तय थी। 1970 के बाद पहली बार विपक्ष महंगाई को लेकर इतना आक्रामक था।
रामजन्मभूमि के मुद्दे पर राजनाथ सिंह ने कहा कि प्रभु रामचंद्र इस देश की पहचान हैं। राम मंदिर निर्माण के लिए भाजपा भी प्रतिबद्ध है। भाजपा ने कभी भी इसका राजनीतिक लाभ नहीं उठाया। लेकिन कांग्रेस ने इसका लाभ अच्छी तरह उठाया। राम मंदिर का मुद्दा राजनीतिक नहीं बल्कि राष्ट्रीय मुद्दा है। इसी कारण सभी धर्मियों ने इसकी ओर राष्ट्रीय दृष्टिकोण से देखना चाहिए। स्वतंत्र विदर्भ राज्य के बारे में राजनाथ सिंह ने कहा कि भाजपा ने विदर्भ राज्य का समर्थन किया है। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने भी यह प्रस्ताव मंजूर किया है। इसका जवाब सत्तारूढ़ कांग्रेस से ही पूछा जाना चाहिए।

गडकरी की तारीफ
राजनाथ सिंह ने भाजपाध्यक्ष नितिन गडकरी की जी भरकर तारीफ करते हुए कहा कि जबर्दस्त कल्पनाशक्ति, निर्माणशीलता, कृतिशीलता तथा किसी समस्या का हल निकालने की कुशलता आदि तमाम गुण गडकरी में मौजूद हैं। उनके यह गुण मुझे तथा कई लोगों को बहुत कम समय में देखने मिले। राजनाथ ने विश्वास जताया कि 'बेस्ट परफार्मंसÓ वाले इस नेता के कारण भाजपा को जल्द ही अच्छे दिन देखने मिलेंगे।

गरीबी रेखा पर सरकार की राय स्पष्ट नहीं


'मीट द प्रेसÓ में नागपुर के पत्रकारों से अनौचारिक चर्चा में ए.बी.बर्धन ने कहा

संजय स्वदेश
नागपुर।
गरीबी रेखा पर सरकार की राय स्पष्ट नहीं है। इस मामले में वह स्वयं भ्रम में हैं कि देश में कितने प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं। यह कहना है कि भाकपा के वरिष्ठ नेता ए.बी.बद्र्धन का। वे रविवार की शाम धंतोली स्थित तिलक पत्रकार भवन में पत्रकारों से अनौपचारिकता चर्चा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि योजना आयोग ने पहले कहा कि देश में कुल आबादी के 47 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं, फिर बाद में कहा गया कि 27 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं। इस आंकड़े को भी सरकार ने रिजेक्ट कर दिया। तेंदुलकर आयोग ने बताया कि देश में 37 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं। एन.सी सक्सेना आयोग ने 57 प्रतिशत और कांग्रेस के वर्तमान सांसद अर्जुनसेन गुप्ता आयोग ने बताया कि 77 प्रतिशत लोग गरीब हैं। ये अनाज, तेल, दाल, खरीदने में असमर्थ हैं। ये अपने बच्चों को ठीक से शिक्षा नहीं दे सकते हैं। सभी आकड़ों को सरकार झुठला दिया है। लेकिन अब सरकार यह कोशिश कर रही है कि 37 प्रतिशत की संख्या को मान लिया जाए। महंगाई के खिलाफ वामदल आंदोलन चला रहे हैं। 5 जुलाई को भारत बंद सफल भी रहा। कुछ लोग नुकसान का आंकलन कर रहे हैं लेकिन भूख का आंकलन नहीं हो रहा है। बारिश के बाद महंगाई के विरोध में आंदोलन फिर शुरू होगा।
कहां बह रही है जीडीपी की गंगा?
बर्धन ने कहा कि एपीएल और बीपीएल सिस्टम हटा कर जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) लागू करना चाहिए। यही जनता की जरूरत है। प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि देश का समग्र विकास हो रहा है। जीडीपी बढ़ रहा है। वहीं दूसरी ओर सबसे ज्यादा एनीमिया से ग्रस्त माताएं भारत में हंै। बाल मृत्यु दर में भारत आगे है। फिर यह जीडीपी की ग्रोथ की गंगा कहां बहती है। उन्होंने कहा कि सभी मुद्दों की जननी महंगाई है। सरकार अन्न सुरक्षा कानून बनाने जा रही है। इसकी आजकल बड़ी चर्चा है। महंगाई और अन्न सुरक्षा एक दूसरे से जुड़े हैं। अन्न सुरक्षाकानून में 3 प्रमुख बातें होनी चाहिए। पहली, अन्न सुरक्षा मतलब देश के हर व्यक्ति को यथेष्ठ अन्य मिले। दूसरी, जो अन्न मिले वह पौष्टिक हो और तीसरी, यह सभी के पहुंच की कीमत के अंदर में उपलब्ध हो, जिससे कि हर कोई खरीद सके। यदि अन्न सुरक्षा कानून में इन तीनों चीजों का समावेश हो तभी यह कानून सफल होगा।
सभी तक अन्न पहुंचाने में सरकार को जो खर्च आएगा, वह जीडीपी का कुल 1.9 प्रतिशत होगा। इसका पूरा हिसाब हमने सरकार को दे दिया है। देश में 20 से 25 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जो जनवितरण प्रणाली ठीक कर भी लिया जाए तो भी वे बाहर से खरीदी कर सकते हैं। 75 प्रतिशत लोगों तक जनवितरण प्रणाली पहुंचनी चाहिए।
कश्मीर का बाजार कहां है?
बर्धन ने कहा कि कश्मीर की समस्या कई मायनों में इन दिनों उलझ गई है। एक ओर कश्मीर घाटी में जहां गोलियां बरस रही हंै, वहीं दूसरी ओर लेह में पानी का कहर बरस रहा है। छोटे से शहर लेह में पानी के बहाव के कोई परंपरागत तरीके नहीं हैं। वहां अभी तक बर्फ ही बरसते रहे हैं। इस कहर में छोटे से शहर के चार से पांच सौ लोगों का गायब हो जाना गंभीर बात है। हम कहते हैं कि कश्मीर देश का अभिन्न अंग है। शरीर के एक हिस्से में जब चोट लगती है, तो दूसरे हिस्से में दर्द होता है। लेकिन कश्मीर मामले में ऐसा नहीं है। हम संवदेनशून्य हो रहे हैं। यदि भारत कश्मीर का ही अंग है तो लोग कश्मीर के प्रति संवेदना प्रकट करें। सबसे पहले तो यह जरूरी है कि कश्मीर से सेना को हटायी जाए। सेना के कारण वहां के रास्ते और बाजार बंद हैं। कश्मीर में सबसे ज्यादा उत्पादन सेब का होता है। लेकिन वहां सेब का बाजार कहां है। कश्मीर के सामान्य आर्थिक जीवन को भी बंद कर दिया गया है। इसे खोलना जरूरी है।
कॉमन वेल्थ के लिए पैसा है, गोदाम बनाने के लिए नहीं
कॉमन वेल्थ गेम की तैयारियों में अनियमितताओं से पता चलता है कि भ्रष्टाचार के मामले अब ओलंपिक तक पहुंच गए हैं। इस गेम के माध्यम से भारत की प्रतिष्ठा दांव पर है। इसलिए यह कामयाब होना चाहिए। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि भ्रष्टाचारियों पर कोई रोक-टोक न हो। देश की इज्जत मिट्टी में मिलाने वाले भ्रष्टाचारियों को राजा, महाराजा के पद से हटा दिया जाना चाहिए। सरकार कह रही है कि अनाज का उत्पादन इतना है कि अनाज रखने के लिए गोदाम नहीं है। कॉमन वेल्थ गेम में करोड़ों रुपये भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गये लेकिन सरकार के पास अनाज के गोदाम बनवाने के लिए पैसे नहीं है।
बॉक्स में
बिहार चुनाव वाम के साथ लड़ेंगे
बिहार चुनाव में वाम दल एकजुट होकर मैदान में उतरें, इसके लिए सहमति बन रही है। पूरी संभावना है कि चुनाव में वाम दल एक ही होंगे।
नक्सलबाद पर हो सार्थक बातचीत
सरकार समझती है कि नक्सलवाद को केवल हथियार से ही रोका जा सकता है। यह संभव भी नहीं है। एक ओर तो राज्य का आतंक है, वहीं दूसरी ओर नक्सलियों का आतंक। दोनों के बीच में मासूम मर रहे हैं। इसके लिए बातचीत का रास्ता सबसे ज्यादा बेहतर है।

गडकरी से मुलाकात हुई
नितिन गडकरी मुझझे मिलने आए। लेकिन किसी को इस बात का तनिक भी विश्वास नहीं होगा कि हमलोगों ने राजनीति की बातें नहीं की। वे मेरे पुराने मित्र हैं। मेरे पास आए तो केवल व्यक्तिगत बातें होती रहीं। विशेष रूप से उनके चीनी उद्योग पर चर्चा हुई।

किन नेताओं के पीछे है विदर्भ की जनता
पृथक विदर्भ के मुद्दे पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में बर्धन ने एक टूक में कहा कि -विदर्भ की जनता तथाकथित विदर्भवादी नेताओं के पीछे है।

शनिवार, अगस्त 07, 2010

मीडिया जरूरत से ज्यादा अहंकार से ग्रस्त


जनसंवाद माध्यम स्वयं तैयार करे 'कोड ऑफ कंडक्टÓ : मृणाल पांडे
राजेंद्र माथुर स्मृति व्याख्यान आयोजित

संजय स्वदेश
नागपुर।
वर्तमान दौर में बदलती स्थितियों में जनसंवाद माध्यम को स्वयं आगे आकर अपना 'कोड ऑफ कंडक्टÓ तैयार करना होगा। यह कहना है वरिष्ठ पत्रकार व प्रसार भारती की अध्यक्ष सुश्री मृणाल पांडे का। वे धंतोली स्थित तिलक पत्रकार भवन में आयोजित राजेंद्र माथुर स्मृति व्याख्यान कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता बोल रही थीं। महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा एवं दैनिक भास्कर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम का मुख्य विषय राज, समाज और आज का मीडिया था। सुश्री पांडे ने कहा कि गत एक दशक में सबसे बड़ा बदलाव यह हुआ है कि देश में शिखर और तलहटी के बीच की खाई कम हुई है। इसके कई रोचक परिणाम आए हैं। इस दौरान यह पहली बार हुआ है कि चुनाव में जाति का मंथन हुआ। ऐसे जनप्रतिनिधि चुन कर आए, जिन्हें नेहरू के जमाने में चुना जाना संभव नहीं था। माथुर साहब मानते थे कि एक समय के बाद अलग-अलग राजनेता की आवश्यकता होती है। संवाद माध्यम अब पहले से ज्यादा शक्तिशाली भाषायी माध्यम है। पहले अंग्रेजी के पत्रकारों की पूछ थी, लेकिन जैसे-जैसे लोकतंत्र तलहटी तक गया, भाषायी अखबार महत्वपूर्ण हो गए। हिंदी अखबारों की प्रतिष्ठा बढ़ी है, लेकिन इसके साथ ही कुछ गलतफहमी भी हो रही है। मीडिया जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास और अहंकार की भावना से ग्रस्त है, इसे दूर करना आवश्यक है, नहीं तो सरकार नियामक बनाएगी। उन्होंने कहा कि आज जितनी तेजी से जितनी मात्रा में खबरें आती हैं, उस दृष्टि से सभी खबरों पर संपादक की गिद्ध दृष्टि रखना मुश्किल हो गया है।
सुश्री पांडे ने कहा कि अखबार के मार्केटिंग मैनेजर और यूनिट मैनेजर पर भी विज्ञापन की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। उनका नाम भी प्रिंट लाइन में जाना चाहिए, जिससे पाठक भ्रमित विज्ञापनों के बारे में संपादक को दोष न दें। उन्होंने कहा कि हर अखबार में दो खेमे हैं। एक पाठक के हित की बात करने वाला तो दूसरा अखबार के शेयरधारकों का खेमा। दोनों में टकराव है। इसे अखबार को अपने स्तर पर ही निपटना होगा। उन्होंने कहा कि इतना बड़ा त्वरित परिवर्तन अपने जीवन काल में नहीं देखा। इसलिए मीडिया में परिवर्तन आवश्यक हो जाता है।
चैनलों की जल्दीबाजी के विषय पर चर्चा करते हुए सुश्री पांडे ने कहा कि भीड़ में दर्शक और पाठक यह खोज ही लेता है कि कौन का चैनल या अखबार उसके लिए है। उन्होंने कहा कि पाठक और दर्शकों का हित सर्वोपरि है। इसे कानूनी रूप से भी मान्य करना चाहिए। नियामक बनाकर पाठकों को यह बताना चाहिए कि अमुक अखबार किसी पार्टी विशेष का है। उन्होंने कहा कि माध्यम तो बहुत फलफूल रहा है, लेकिन हार्ड न्यूज की उपेक्षा हो रही है। इस न्यूज को लाने वाले की भी उपेक्षा हो रही है। इससे भारी नुकसान हो रहा है। खबरों का पीछा कर, उनकी श्रृंखला चलाने वाले कम हो गए हैं। बहुत ज्यादा सूचना का जखीरा होने से पत्रकारों में आलस आ गया है। नया माध्यम इंटरनेट तो अच्छा है,लेकिन इसकी स्थिति ऐसी है जैसे यह बंदर के हाथ लग गया हो। पहले हम लोग पढ़े थे कि पत्रकारिता हड़बड़ी में रखा गया साहित्य है। इसी तरह से ब्लॉग हड़बड़ी में रचा गया पत्रकारिता है।
तथाकथित 'ऑनर किलिंगÓ की चर्चा करते हुए सुश्री पांडे ने कहा कि यदि ऐसी हत्याओं पर गौर करें तो पाएंगे कि सबसे ज्यादा हत्याएं उस मामले में हुई हैं, जिसमें ऊंची जाति की लड़की ने अपने से छोटी जाति के लड़के के साथ प्रेम विवाह किया। ये घटनाएं साबित कर रही हैं कि इससे समाज बिचलित हो रहा है। इस विषय पर ब्लॉग जगत में खूब चर्चाएं हुईं। अधिकतर ब्लॉग लिखने वालों ने माना कि हत्याएं गलत थीं, लेकिन उनमें लड़की के विचलन पर रोष था। इस तरह के विचलन को सांस्कृति सहमति नहीं मिल रही है। ऐसी घटनाएं बताती हैं कि जो कुछ हो रहा है, उसका एक छोर लोकतांत्रिक राज्य से जुड़ा है। लोकतंत्र अपनी गति को मथ रहा है। लेकिन अनिवार्य चीजों को सहमति देने में देरी कर रहा है। उन्होंने दिल्ली का उदाहरण देते हुए कहा कि राजधानी के आसपास के चार गांव ऐसे हैं जिनमें चालीस मसर्डीज कारें हैं। गांव के जाट समुदाय के लोग अपनी संपत्ति बेच कर अमीर हो गए। लेकिन इससे गांाव के बुजुर्गों को लगा कि उनके साथ से सत्ता निकल गई। पैसे से वे अमीर हो गए, लेकिन उनके पास से वह गौरव निकल गया जिस गौरव का अनुभव जमीन का स्वामी होने से होता था। यह गौर पैसे से नहीं खरीदा जा सकता है। उन्होंने फैशन और जीवनशौली पर खर्च किया, लेकिन पढ़ाई-लिखाई नहीं की। वहीं दूसरी ओर दलित और पिछड़ी जातियों में बदलाव आया है। इस समाज के युवा पढ़ लिख कर सरकारी नौकरियों ने लगे। इससे गांव में उनकी प्रतिष्ठा बढ़ी है। लड़कियां ऐसे ही लड़कों की ओर आकर्षित हो रही हैं। क्योंकि वे जानती हैं कि ये लड़के लंबे रेस के घोड़े हैं। खाप पंचायतों पर कोर्ट के निर्णय लागू नहीं हो पाते हैं। पर इनके निर्णय मान्य हो रहे हैं। दरअसल दंड विधान भी वहीं से निकलता है। स्वागत भाषण वनराई के विस्वस्त व पूर्व विधायक गिरीश गांधी ने दिया। संचालन डा. प्रमोद शर्मा ने किया। कार्यक्रम में नगर के हर वर्ग के गणमान्य लोग उपस्थित थे।

राजधानी एक्सप्रेस के यात्रियों को मिलती है गंदी चादर

अच्छी सेवा नहीं देने के बाद भी कोच अटेंडेंट मांगते हैं टिप
संजय
नागपुर।
नागपुर से गुजरने वाली नई दिल्ली-बिलासपुर राजधानी एक्सपे्रस में सफर करने वाले यात्री खिन्न हंै। उन्हें उपलब्ध सुविधाएं ठीक से नहीं प्रदान की जा रही हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार नई दिल्ली से बिलासपुर जाने वाली राजधानी एक्सप्रेस में यात्रियों को मिलने वाली बिछाने की चादर इन दिनों गंदी मिल रही है। कई यात्रियों को तो बिना इस्तरी किए हुए ही चादरें दी जा रही हैं। कुछ चादरों पर सब्जी के दाग भी नजर आते हैं। वहीं नई दिल्ली से चेन्नई तक जाने वाली राजधानी एक्सप्रेस की सुविधा थोड़ी-सी ठीक है।
नई दिल्ली-बिलासपुर राजधानी एक्सप्रेस में सफर कर आए डा. सुरजीत के. सिंह ने बताया इस टे्रन के वेंडर, यात्रियों से टिप भी मांगते हैं। डा. सिंह ने बताया कि वे नई दिल्ली से नागपुर तक बुधवार को नई दिल्ली -बिलासपुर राजधानी एक्सप्रेस से आए। उन्हें बिछाने और ओढऩे के लिए जो भी चीजें उपलब्ध कराई गईं, वे गंदी थीं। इतना ही नहीं तकिये के खोल धुले हुए नहीं थे। उस पर यात्रियों के बाल लगे थे। इस तरह की शिकायत कुछ अन्य यात्रियों की भी थी। जब कोच अटेंडेंट से इसे बदलने के लिए कहा गया तो वे आनाकानी करने लगे। शिकायत पुस्तिका मांगने पर वे नहीं दे रहे थे। काफी हो-हल्ला करने पर टीटीई शिकायत पुस्तिका लेकर आया तब शिकायत लिखी। शिकायत पुस्तिका के आधे पेज भरे हुए थे। इससे लगता है कि राजधानी एक्सप्रेस में अव्यवस्था का कितना आलम है। इतनी शिकायत होने के बाद भी व्यवस्था नहीं सुधरी है। महंगे टिकट खरीद कर सफर करने वाले यात्रियों के साथ जब ऐसा व्यवहार है तो सामान्य ट्रेनों के वातानुकूलित डिब्बे में सफर करने वाले यात्रियों का क्या हाल होगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है।

शुक्रवार, अगस्त 06, 2010

इस बार खूब चमकेगा 'सफेद सोनाÓ

-विशेषज्ञों ने लगाया 400 लाख क्विंटल कपास होने का अनुमान
-मानसून फेर सकता है उम्मीदों पर पानी
संजय स्वदेश
नागपुर।
कपास फसल के भारी नुकसान के लिए प्रसिद्ध विदर्भ में कपास की खेती से किसानों को इस बार उम्मीद की नई किरण जगी है। विशेषज्ञ अनुमान लगा रहे हैं कि इस बार विदर्भ में करीब 400 लाख क्विंटल कपास का उत्पादन हो सकता है। यदि विशेषज्ञों का अनुमान सही निकला तो एक दशक में यह पहला ऐसा मौका होगा, जब कपास उत्पादन करने वाले किसानों के चहरे पर एक मुस्कान आएगी। अभी तक विदर्भ में सबसे ज्यादा कपास उत्पादक किसानों ने ही आत्महत्या की है। ज्ञात हो कि पूरे विदर्भ में करीब 3 लाख हेक्टेयर भूमि में में कपास की खेती होती है।
्रमहाराष्ट्र राज्य को-ऑपरेटिव कॉटन-ग्वार मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड के चेयरमैन एन.पी. हिरानी ने बताया कि इस बार खरीफ की फसल की प्रारंभिक रिपोर्ट काफी सकारात्मक है। ऐसा लगता है कि इस बार पिछले वर्ष की तुलना में करीब 20 से 25 प्रतिशत ज्यादा कपास की उपज होगी। हालांकि बीते वर्ष में भी कपास की उपज कम हुई थी। पिछले वर्ष जहां 325 लाख क्विंटल कपास की उपज हुई थी, वहीं इस वर्ष करीब 400 लाख क्विंटल कपास होने की संभावना दिख रही है। हिरानी ने राष्ट्रीय स्तर पर इस वर्ष कपास की उपज करीब 10 से 15 प्रतिशत तक बढऩे की संभावना जतायी है। देश भर में करीब 400 लाख हेक्टेयर में कपास की खेेती होती है, इसमें सबसे ज्यादा विदर्भ में उपज होती है। लेकिन प्रति हेक्टेयर कपास उत्पादन में फिलहाल गुजरात और पंजाब आगे है।
फेडरेशन सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक राज्य सरकार बाजार में कपास के मूल्य को संतुलित रखने के लिए निर्यात नहीं करने का निर्णय लिया है। हालांकि वायदा करोबार में कपास पहले से ही तीन हजार रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिक रहा है। लिहाजा, इस बार के खारीफ के मौसम में कपास के उत्पादन से किसानों की आय बढऩे की संभावना बढ़ती दिख रही है। वहीं अंतरराष्ट्रीय संकेत भी सकारात्मक हैं। अगले माह चीन और यूएस के बाजार में कपास की बिक्री की शुरुआत होते ही स्थिति और स्पष्ट हो जाएगी।
यदि दोनों बाजार में मूल्य अच्छे रहे तो भारतीय बाजार में भी कपास की मजबूती दिखेगी। लेकिन थोड़ी-सी परेशानी मानसून को लेकर है। फिलहाल अगस्त माह तक मानसून ठीक रहा है। अगले माह में भी मानसून के ठीक रहने की संभावना है। करीब 102 प्रतिशत वर्षा होने की उम्मीद जताई जा रही है। यदि आगामी दिनों में मानसून उम्मीदों पर पानी फेरता है तो उपज पर असर पड़ सकता है। इसके अलावा इस बार बीज और खाद के मूल्यों में भी बढ़ोतरी हुई है। इस कारण फेडरेशन ने इस बार कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य 3500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से रखने का प्रस्ताव सरकार के पास भेजा है। बीते वर्ष न्यूनतम समर्थन मूल्य 3000 रुपये प्रति क्विंटल था।
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मंगलवार, अगस्त 03, 2010

गुटबाजी का सामना करना पड़ेगा पर्यवेक्षक हुसैन को

बीआरओ की घोषणा नहीं हो पाई, कागजी चुनाव प्रक्रिया होने की संभावना
नगर संवाददाता
नागपुर।
आगामी 4 अगस्त को नागपुर शहर में कांग्रेस पार्टी का संगठन चुनाव होने जा रहा है। चुनाव में जोरदार हंगामा होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।
यूं तो शहर में कांग्रेस पार्टी का अस्तित्व जड़ से हिल चुका है। कार्यकर्ताओं की संख्या उंगलियों गिनने लायक है. कार्यकर्ताओं ने खुद को गुटों मेंं बांट लिया है। यह भी सत्य है कि इस बंटवारे में कट्टर कांग्रेसी शामिल होने की बजाय घर बैठे चुके हैं।
उक्त वस्तुस्थिति के मध्य कांग्रेस पार्टी ने संगठन चुनाव के लिए जनजागरण अभियान की शुरुआत की। इस अभियान को अब तक कागजों पर सफल दर्शाया जा चुका है। वहीं दूसरी ओर नागपुर शहर के कांग्रेसियों की गुटबाजी व झगड़े दिल्ली वालों को भी सुलझाने के लिए नाको चने चबाने पड़ते हैं। इसके बावजूद आज तक शहर मेें कांग्रेसियों को एक छत के नीचे लाने मेें पार्टी शत-प्रतिशत असफल रही है।
4 अगस्त को संगठन चुनाव करवाने की घोषणा की गई है लेकिन शहर के पर्यवेक्षक मुज्जफर हुसैन शहर के ब्लाक रिटर्निंग ऑफीसरों की घोषणा करने की समाचार लिखे जाने तक हिम्मत नहीं जुटा पाए। जब चुनाव करवाने वाले अधिकारी की घोषणा नहीं है तो मुमकिन नहीं कि चुनाव हो पाएगा। ऐसे में चुनाव की चाहत लिए महीनों से सक्रिय कांग्रेसी कार्यकर्ता व नेताओं द्वारा बनाई गई प्राथमिक सदस्यता सूची व मेहनत की मिट्टीपलीत होना तय है।
सूत्रों की मानें तो पर्यवेक्षक मुज्जफर हुसैन 4 अगस्त को सुबह नागपुर पहुंचेंगे और तय रणनीति के अनुसार संगठन चुनाव के नाम पर खानापूर्ति कर शाम को लौट जाएंगे,ऐसी ही योजना बनाई है।
उल्लेखनीय है कि शहर में कांग्रेसियों के मध्य इतनी शह-मात का खेल जारी है कि 18 ब्लाक अध्यक्ष, शहर प्रतिनिधि, प्रदेश प्रतिनिधि का चयन घमासान ही मचाएगा और यह पूरी प्रक्रिया पर्यवेक्षक मुज्जफर हुसैन को नागपुर के सीमित दौरे में कर पाना मुमकिन नहीं है। संगठन चुनाव के नाम पर खानापूर्ति की कार्रवाई मुंबई में ही पूरी होगी और नागपुर के कांग्रेसियों को सूचित कर नये-नये नेता थोपे जा सकते हैं। पुन: एक बार कांग्रेसी कार्यकर्ताओं व मेहनत कशों की फजीहत होने वाली है।
००० fraom daini1857

सोमवार, अगस्त 02, 2010

गैस सिलेंडर वितरण में मनमानी वसूली

अधिकारी की मिलीभगत से हो रही लूट
नागपुर।
रसोईगैस की किल्लत से सिलेंडर वितरकोंं ने नया कनेक्शन और एक सिलेंडरधारक ग्राहक को दूसरा सिलेंडर देना बंद कर दिया था। नया कनेक्शन और दूसरा सिलेंडर देने का सिलसिला कई महीने पहले से शुरू हो गया है। लेकिन नये कनेक्शन और दूसरे सिलेडर देने में गैस सिलेंडर वितरक ग्राहकों को जम कर लूट रहे हैं। वे ग्राहकों से निर्धारित रकम से करीब दोगुनी, तीनगुनी रकम लेकर नया कनेक्शन या दूसरा सिलेंडर दे रहे हैं।
सबसे ज्यादा परेशानी उन ग्राहकों को है, जिनके पास एक सिलेंडर है। जब सिलेंडर खत्म होने पर वे गैस के लिए नंबर लगाते हैं, तब उन्हें यह कहा जाता है कि आप खाली सिलेंडर लेकर आ जाओ और यहां से दूसरा ले जाओ। मजबूर उपभोक्ता ऐसा ही कर रहे हैं। जो खाली सिलेंडर लेकर गैस एजेंसी के यहां नहीं आते हैं, उनके यहां सात दिन तक भी भरे हुए गैस सिलेंडर की डिलिवरी नहीं होती है। वहीं खाद्य एवं आपूर्ति विभाग का कहना है कि एकल सिलेंडरधारकों को नंबर लगाने के तीन दिन के अंदर सिलेंडर देने का निर्देश है। पर इस निर्देश की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। सुबह गैस सिलेंडर के एजेंसी का दफ्तर खुलने से पहले ही वहां दर्जनों लोग खाली सिलेंडर लेकर खड़े दिखते हैं। जैसे ही गैस की गाड़ी आती है, लोग सिलेंडर बदल लेते हैं। इससे घर पर सिलेंडर का इंतजार कर रहे ग्राहक इंतजार में ही रह जाते हैं। बार-बार फोन करने के बाद उन्हें 7 से 15 दिन के बीच सिलेंडर की डिलिवरी होती है। तब तक बाहर का खाना-खाते खाते ऐसे परिवार वालों का बजट गड़बड़ा जाता है। कुछ लोग पड़ोसी से सिलेंडर उधार मांग कर काम चला लेते हैं। लेकिन हर बार इस तरह करने से लोगों को हिचक होती है।
धंतोली स्थित भारत गैस एजेंसी के यहां सुबह-सुबह सिलेंडर लेने आए अभिजीत ने बताया कि एक सिलेंडर होने से मजबूरी में यहां आना पड़ता है। एजेंसी के भरोसे रहें तो 7 दिन में भी सिलेंडर घर में नहीं पहुंचेगा। दूसरा सिलेंडर क्यों नहीं लेते-पूछने पर अभिजीत कहते हैं कि दूसरा सिलेंडर लेने के लिए एजेंसी वाले 2000 रुपये मांग रहे हैं, जबकि दूसरा सिलेंडर सरकारी रेट के अनुसार हजार रुपये तक में आ जाना चाहिए। पर इस सरकारी रेट के अनुसार एजेंसी वाले साफ इनकार करते हैं। शिकायत की बात करने पर एजेंसी वालों का कहना है कि ग्राहक चाहे तो शिकायत संबंधी अधिकारी का नंबर वे स्वयं उपलब्ध करा सकते हैं।

रविवार, अगस्त 01, 2010

सम दृष्टि से होगा समाज का विकास : डा. भागवत


सक्षम संस्था की ओर से दृष्टिवाधितों के लिए निर्मित उपकरण अब्रार का लोकार्पण

नागपुर। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक डा. मोहन भागवन ने कहा कि सम दृष्टि से समाज का विकास होता है और संवदेना के धागे से जुड़ा समाज समय के झंझावातों को झेलते हुए आगे बढ़ता है। वे रविवार को दक्षिण अंबाझरी रोड स्थित बी.आर.मुंडले सभागृह में सक्षम संस्था की ओर आयोजित दृष्टिबाधितों के लिए निर्मित उपकरण अब्रार के लोकापर्ण के बाद सभा को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि समाजिक जागृति और ईश्वर की भक्ति एक समान है। क्योंकि दोनों में निष्काम भाव की जरूरत होती है। डा. भागवत ने कहा कि दुनिया भर में पांच करोड़ दृष्टिबाधित लोग हैं, अगर समाज का सहयोग मिले तो इनके जीवन की दिशा बदल सकती है। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से सक्षम संस्था के संरक्षक दामोदर बापट, राष्ट्रीय अध्यक्ष मिलिंद कसबेकर, महामंत्री अविनाश चंद्र अग्निहोत्री, दिलीप कानाडे, प्रमोद क्षीरसागर उपस्थित थे।

हिरण के मांस के साथ 4 गिरफ्तार

नागपुर। वन विभाग ने दिघोरी नाके पर 4 लोगों को हिरण के मांस के साथ पकड़ा है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक वन विभाग के अधिकारियों को गुप्त सूचना मिली थी कि 4 लोग हिरण के मांस को लेकर दिघोरी नाके से गुजरने वाले हैं। विभाग के अधिकारी व कर्मचारियों की टीम पहले से यहां मुस्तैद थी। गिरफ्तार चारों आरोपियों के पास से पांच किलो हिरण का मांस बरामद हुआ। उन पर वन्य जीव संरक्षण कानून 1972 की धारा के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। चारों आरोपी बुद्देश्वर नगर गंगाबाईघाट के रहने वाले हैं। इनमें दशरथ शेट्टीवार, सेलुराज शेट्टी, मुगम शेट्टीवार, सुब्रमन्यम शेट्टी का समोवश है। वन विभाग की इस कार्रवाई में आरएसओ टेकाड़े, डीएस टेकाड़े, डी.ज.े लुटे, मोहिते आदि ने भाग लिया।
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