रविवार, अगस्त 08, 2010

गरीबी रेखा पर सरकार की राय स्पष्ट नहीं


'मीट द प्रेसÓ में नागपुर के पत्रकारों से अनौचारिक चर्चा में ए.बी.बर्धन ने कहा

संजय स्वदेश
नागपुर।
गरीबी रेखा पर सरकार की राय स्पष्ट नहीं है। इस मामले में वह स्वयं भ्रम में हैं कि देश में कितने प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं। यह कहना है कि भाकपा के वरिष्ठ नेता ए.बी.बद्र्धन का। वे रविवार की शाम धंतोली स्थित तिलक पत्रकार भवन में पत्रकारों से अनौपचारिकता चर्चा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि योजना आयोग ने पहले कहा कि देश में कुल आबादी के 47 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं, फिर बाद में कहा गया कि 27 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं। इस आंकड़े को भी सरकार ने रिजेक्ट कर दिया। तेंदुलकर आयोग ने बताया कि देश में 37 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं। एन.सी सक्सेना आयोग ने 57 प्रतिशत और कांग्रेस के वर्तमान सांसद अर्जुनसेन गुप्ता आयोग ने बताया कि 77 प्रतिशत लोग गरीब हैं। ये अनाज, तेल, दाल, खरीदने में असमर्थ हैं। ये अपने बच्चों को ठीक से शिक्षा नहीं दे सकते हैं। सभी आकड़ों को सरकार झुठला दिया है। लेकिन अब सरकार यह कोशिश कर रही है कि 37 प्रतिशत की संख्या को मान लिया जाए। महंगाई के खिलाफ वामदल आंदोलन चला रहे हैं। 5 जुलाई को भारत बंद सफल भी रहा। कुछ लोग नुकसान का आंकलन कर रहे हैं लेकिन भूख का आंकलन नहीं हो रहा है। बारिश के बाद महंगाई के विरोध में आंदोलन फिर शुरू होगा।
कहां बह रही है जीडीपी की गंगा?
बर्धन ने कहा कि एपीएल और बीपीएल सिस्टम हटा कर जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) लागू करना चाहिए। यही जनता की जरूरत है। प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि देश का समग्र विकास हो रहा है। जीडीपी बढ़ रहा है। वहीं दूसरी ओर सबसे ज्यादा एनीमिया से ग्रस्त माताएं भारत में हंै। बाल मृत्यु दर में भारत आगे है। फिर यह जीडीपी की ग्रोथ की गंगा कहां बहती है। उन्होंने कहा कि सभी मुद्दों की जननी महंगाई है। सरकार अन्न सुरक्षा कानून बनाने जा रही है। इसकी आजकल बड़ी चर्चा है। महंगाई और अन्न सुरक्षा एक दूसरे से जुड़े हैं। अन्न सुरक्षाकानून में 3 प्रमुख बातें होनी चाहिए। पहली, अन्न सुरक्षा मतलब देश के हर व्यक्ति को यथेष्ठ अन्य मिले। दूसरी, जो अन्न मिले वह पौष्टिक हो और तीसरी, यह सभी के पहुंच की कीमत के अंदर में उपलब्ध हो, जिससे कि हर कोई खरीद सके। यदि अन्न सुरक्षा कानून में इन तीनों चीजों का समावेश हो तभी यह कानून सफल होगा।
सभी तक अन्न पहुंचाने में सरकार को जो खर्च आएगा, वह जीडीपी का कुल 1.9 प्रतिशत होगा। इसका पूरा हिसाब हमने सरकार को दे दिया है। देश में 20 से 25 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जो जनवितरण प्रणाली ठीक कर भी लिया जाए तो भी वे बाहर से खरीदी कर सकते हैं। 75 प्रतिशत लोगों तक जनवितरण प्रणाली पहुंचनी चाहिए।
कश्मीर का बाजार कहां है?
बर्धन ने कहा कि कश्मीर की समस्या कई मायनों में इन दिनों उलझ गई है। एक ओर कश्मीर घाटी में जहां गोलियां बरस रही हंै, वहीं दूसरी ओर लेह में पानी का कहर बरस रहा है। छोटे से शहर लेह में पानी के बहाव के कोई परंपरागत तरीके नहीं हैं। वहां अभी तक बर्फ ही बरसते रहे हैं। इस कहर में छोटे से शहर के चार से पांच सौ लोगों का गायब हो जाना गंभीर बात है। हम कहते हैं कि कश्मीर देश का अभिन्न अंग है। शरीर के एक हिस्से में जब चोट लगती है, तो दूसरे हिस्से में दर्द होता है। लेकिन कश्मीर मामले में ऐसा नहीं है। हम संवदेनशून्य हो रहे हैं। यदि भारत कश्मीर का ही अंग है तो लोग कश्मीर के प्रति संवेदना प्रकट करें। सबसे पहले तो यह जरूरी है कि कश्मीर से सेना को हटायी जाए। सेना के कारण वहां के रास्ते और बाजार बंद हैं। कश्मीर में सबसे ज्यादा उत्पादन सेब का होता है। लेकिन वहां सेब का बाजार कहां है। कश्मीर के सामान्य आर्थिक जीवन को भी बंद कर दिया गया है। इसे खोलना जरूरी है।
कॉमन वेल्थ के लिए पैसा है, गोदाम बनाने के लिए नहीं
कॉमन वेल्थ गेम की तैयारियों में अनियमितताओं से पता चलता है कि भ्रष्टाचार के मामले अब ओलंपिक तक पहुंच गए हैं। इस गेम के माध्यम से भारत की प्रतिष्ठा दांव पर है। इसलिए यह कामयाब होना चाहिए। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि भ्रष्टाचारियों पर कोई रोक-टोक न हो। देश की इज्जत मिट्टी में मिलाने वाले भ्रष्टाचारियों को राजा, महाराजा के पद से हटा दिया जाना चाहिए। सरकार कह रही है कि अनाज का उत्पादन इतना है कि अनाज रखने के लिए गोदाम नहीं है। कॉमन वेल्थ गेम में करोड़ों रुपये भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गये लेकिन सरकार के पास अनाज के गोदाम बनवाने के लिए पैसे नहीं है।
बॉक्स में
बिहार चुनाव वाम के साथ लड़ेंगे
बिहार चुनाव में वाम दल एकजुट होकर मैदान में उतरें, इसके लिए सहमति बन रही है। पूरी संभावना है कि चुनाव में वाम दल एक ही होंगे।
नक्सलबाद पर हो सार्थक बातचीत
सरकार समझती है कि नक्सलवाद को केवल हथियार से ही रोका जा सकता है। यह संभव भी नहीं है। एक ओर तो राज्य का आतंक है, वहीं दूसरी ओर नक्सलियों का आतंक। दोनों के बीच में मासूम मर रहे हैं। इसके लिए बातचीत का रास्ता सबसे ज्यादा बेहतर है।

गडकरी से मुलाकात हुई
नितिन गडकरी मुझझे मिलने आए। लेकिन किसी को इस बात का तनिक भी विश्वास नहीं होगा कि हमलोगों ने राजनीति की बातें नहीं की। वे मेरे पुराने मित्र हैं। मेरे पास आए तो केवल व्यक्तिगत बातें होती रहीं। विशेष रूप से उनके चीनी उद्योग पर चर्चा हुई।

किन नेताओं के पीछे है विदर्भ की जनता
पृथक विदर्भ के मुद्दे पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में बर्धन ने एक टूक में कहा कि -विदर्भ की जनता तथाकथित विदर्भवादी नेताओं के पीछे है।

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