शनिवार, दिसंबर 04, 2010

कवि के साथ न्याय, कविता का सम्मान

कविताओं पर आने वाले अधिकत्तर कॉमेंट अच्छी लगी, आज की यार्थात है...आदि होती है। लेकिन जिम्मेदार पाठक होने के नाते हमारा फर्ज बनता है कि हम लेखक को वही बताये जो कविता की हकीकत है। आश्चर्य की बात है कि जिस दर्द को जीते हुए कवि उसे शब्दों में पिरोता है, उसे अधिकतर पाठक सहजता से औपचारिक टिप्पणी कर देते हैं। मुझे लगता है न न तो कवि के साथ न्याया है और नहीं कविता का सही सम्मान।

कोई टिप्पणी नहीं: