शुक्रवार, दिसंबर 03, 2010

43 हजार में दूसरे पति की हुई पिंकी

नाता प्रथा में पंचायत ने सुनाया फैसलाहां तो यह हुआ फैसला 43 हजार रुपये दो और दुल्हन हुई तुम्हारी। कुछ इसी तरह से एक पति से दूसरे पति तक दुल्हन भेजने की नाता प्रथा आज भी राजस्थान में प्रचलित है। राजीमंदी से यह प्रथा समाज को मान्य भी है। इसके लिए बकायदा पंचायत भी बैठती है। पंचायत के निर्णय को मानने के लिए दोनों पक्षों की एक-एक लड़की को बांध कर पंचायत की बैठक के बीच में रखा जाता है। ऐसा ही एक ताजा मामला राज्य के झालावाड़ जिले के भवानीमंडी में शुक्रवार को सामने आया। पहले किसी और के संग ब्याही गई को दूसरे की दुल्हन बनाना तब मंजूर किया गया, जब उसके पिता को 43 हजार रुपया देना मंजूर किया।
शुक्रवार को क्षेत्र के मैला मैदान में नायक समाज करीब ढाई-तीन सौ लोगों की पंचायत हुई। एक महिला अपने पहले पति को छोड़ दूसरे पति के साथ रहना चाहती है। इसको लेकर हो रहे झगड़े की गुत्थी को सुलझाने के लिए पंचायत ने मंथन किया। रास्ता नाता प्रथा से निकला। समस्या सुलझी। कहीं कोई विवाद नहीं हुआ।
पंचायत में उपस्थित पहले पति के पिता भानपुरा थाना के खेरखेड़ी गांव के निवासी प्रभुलाल ने बताया कि उसके पुत्र राजू की शादी उसके ही थानाक्षेत्र के रामनगर निवासी नंदा के बेटी पिंकी के साथ करीब 12-13 वर्ष पूर्व बचपन में हुई थी। विवाह के बाद उसकी बहु दो चार बार उसके घर भी आई थी। आखिरी बार उसकी बहु एक साल पूर्व घर आई थी। उसके बाद उसके पिता ने उसे बहू को उसके यहां नहीं भेजा। पिंकी को हड़मतियां गांव में मुकेश पुत्र पर्वत नायक के घर नाते दे दी।
सरपंच भवानीराम नायक ने बताया कि जब पिंकी की शादी राजू से हुई थी, तब राजू के पिता ने जो रकम चढ़ाई थी, वह रकम पिंकी के पिता के दिये दहेज के बदले आटे साटे यानी बराबर हो गई। अब पिंकी जहां दूसरी जगह नाते गई है, वह पक्ष पहले पति यानी कि राजू को 43 हजार रुपये हर्जाने के रूप में चुकाएगा। इसके लिए दोनों पक्षों की लिखित में समझौता हुआ। दूसरे पति ने 13 हजार रुपये मौके पर दिये तथा 30 हजार रुपये बैशाख महीने में देने का वायदा किया है।
दो लकड़ियां को बंधन कर रखी गईपंचायत के दौरान दो लकड़ियों को आपस में बांध कर उसे एक शाल में लपेट कर बीचों बीच में रखा हुआ था। समाज के लोगों ने बताया कि यह दो लकड़ियों में एक लकड़ी लड़का पक्ष तथा दूसरी लकड़ी लड़की पक्ष की ओर से लेकर बंधन में कर दिया गया है। पंचायत की कार्रवाई के दौरान उन्हें कुछ भी बोलने का अधिकार नहीं होगा। इस बंधन को मानते हुए दोनों ही पक्षों ने पंचायत के निर्णय पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई। पंचों के
फैसले को दोनों पक्षों को राजीमर्जी से स्वीकारा।

नायक समाज की पंचायत के बीच लाल घेरे में पड़ा बंधन

क्यों होता है झगड़ास्थानीय लोगों का कहना है कि आज भी कई समाज में आज भी बाल विवाह हो रहे हैं। नन्ही उम्र में मासूमों को वैवाहिक बंधन में बांध दिया जाता है। नन्हीं उम्र के विवाहित जोड़े जब बड़े होते हैं, तब उनके विचार आपस में मेल नहीं खाते हैं। इससे बचपन के बंधे रिश्ते में खटाश आ जाती है। इस स्थिति से निपटने के लिए समाज में रास्ता भी निकाला है। जब जोड़े एक दूसरे को पसंद नहीं करते हैं तो लड़की का पिता लड़की की सहमती से लड़की को दूसरी जगह यानी कि किसी दूसरे व्यक्ति के घर भेज देता है। इस प्रथा को नाता प्रथा कहते हैं। इसके बाद पहले पति दूसरे पति पर जो हर्जानापूर्ति का दावा करता है, उसे स्थानीय भाषा में झगड़ा कहा जाता है।
समझौते का रास्ता है यह झगड़ाइस प्रथा का नाम जरूर झगड़ा है। यदि इस पर समाज की मौजूदगी में पंच पटेलों ने अपनी सहमती दे दी तो झगड़ा समझौते में बदल जाता है। एक तरह से दोनों पक्षों में सुलह हो जाती है। इसके बाद पहले पति व उसके ससुराल पक्ष तथा नये पति के परिवार में आपस में इस बात को लेकर झगड़ा फसाद नहीं करने के लिए भी पाबंद किया जाता है। लोगों का कहना है कि इस समझौते को थाना-कचहरी भी मान्य करता है।
लड़की खरीदने में बदली प्रथाकई स्थानीय लोगों का कहना है कि एक तरह से दूसरी विवाह के रूप में प्रचालित यह प्रथा अब नई बीवी खरीदने का रूप ले चुकी है। कई बार लोग लड़की का विवाह जल्दी कर देते हैं। कुछ वर्ष गौना रखते है। इस बीच यदि कोई मालदार आदमी मोटी रकम देकर पत्नी बनाने के लिए राजी है, तो लड़की पक्ष विवाहित बेटी को नाते पर भेज देता है। इसे समाज की बैठक में पिछले लड़के को हर्जाना देकर मान्यता ले ली जाती है। जिनके पास पैसा है वे खूबसूरत लड़की को नाते में खरीद कर लाते हैं।

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