शनिवार, अक्तूबर 05, 2013

छत्तीसगढ़ में विकास बनाम भ्रष्टाचार पर जंग

विधानसभा चुनाव : संजय स्वदेश/रायपुर देश की राजधानी दिल्ली में जैसे ही चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनाव की घोषणा की, छत्तीसगढ़ की की राजधानी रायपुर की सियासी गलियारे में हलचल बढ़ गई। आचार संहिता को लागू करने के लिए प्रशासन पहले से मुस्तैद बैठा था। सड़कों के किनारे चमकते दमकते आकर्षक पोस्टर फटने लगे। सरकार व मंत्रियों से संबंधित होर्डिंग उतरने लगे। सरकारी गैरेज में मंत्रियों की गाड़ियां पहुंचे लगी। मंत्रियों का रूतबा उतर गया। शहर नेताओं से आजाद हो गया। छोटे से राज्य के दो बड़े दल भाजपा और कांग्रेस खुल कर मैदान में उतर गए। उनके तरकश से मुद्दे के तीर छूटने लगे। दशक भर से राज्य की सत्ता से महरूम कांग्रेस ने हुंकार भरी। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश के कद्दवार कांग्रेस रविंद्र चौबे ने ललकारते हुए कहा कि चुनावी मैदान में उतरने तैयार हैं। भाजपा सरकार का भ्रष्टाचार और वादाखिलाफी जैसे कई मुद्दों पर आक्रोशित जनता सरकार को उखाड़ फेंकने तैयार है। आचार संहिता प्रभावी होने के साथ इस सरकार के ताबूत में अंतिम कील ठुक चुका है। अक्सर मौन और सौम्य दिखने वाले चाउर वाले बाबा डा. रमन सिंह भी मुखर हो गए। आचार संहिता लागू होते ही पहली प्रतिक्रिया दी- हम तो तैयार ही बैठे हैं। विकास के मुद्दे के साथ यह चुनाव लड़ा जाएगा। जनता के बीच सरकार अपनी उपलब्धियों को लेकर जाएगी। कांग्रेस के पास कोई मुद्दा नहीं है। विकास यात्रा में जनता का जो उत्साह छलका, उसके बेहतर परिणाम नजर आएंगे। भाजपा सरकार ने अपने वादे के अलावा अतिरिक्त कार्य भी किए हैं। इसका भी फायदा मिलेगा। डा. रमन के मुताबिक छत्तीसगढ़ में इस बार 5 से 7 फीसदी अधिक वोट पड़ेंगे। बीते चुनाव की तुलना में इस बार भाजपा की अधिक सीटें जीतकर आएगी। इसके साथ ही मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि वे राजनांदगांव से ही चुनाव लड़ेंगे। बीच में यह चर्चा सुर्खियों में थी कि डा. रमन सिंह अपना चुनावी मैदान बदल सकते हैं या फिर दो जगह से मैदान में उतर सकते हैँ। विकास बनाम भ्रष्टाचार मतलब साफ है, निर्वतमान सरकार के मुखिया डा. रमन सिंह अपने विकास कार्यों का हिसाब किताब छत्तीसगढ़ की जनता को बताएंगे और फिर से सत्ता का मौका पाएंगे। रमन के विकास में भ्रष्टाचार देखने वाली कांग्रेस भ्रष्टचार के मुद्दे को ही जनता में भुनाने की आस में बैठी है। फिलहाल कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी की ऊंट किस करवट बैठेगा यह ठोस कुछ कहा नहीं जा सकता है। पूरे के पूरे चुनावी समीकरण इसी पर निर्भर है। हालांकि तीसरे मोर्चे को लेकर जो चर्चाएं थी, उसका असर कुछ खास पड़े ऐसी कोई गुंजाइश नहीं दिख रही है। तीसरे मोर्चे का असर स्थानीय स्तर पर उम्मीदवारों के अनुसार भाजपा और कांग्रेस के वोटों पर असर करेगा। पर लड़ाई भाजपा और कांग्रेस के बीच ही रहेगी। तू डाल-डाल मैं पात पात चुनाव में मुद्दे को लेकर कांग्रेस ओर भाजपा के बीच तू डाल डाल मैं पात पात की स्थिति की संभावना बनती दिख रही है। चुनाव की घोषणा होने से से पहले ही भाजपा और विपक्ष कांग्रेस ने अपनी रणनीतियों को मूर्त रूप देना शुरू कर दिया था। भाजपा के चाणक्यों को रमन सरकार के दस वर्ष के कार्यकाल एवं विकास के मुद्दों का ही ब्रहत्र है। वहीं कांग्रेस रमन सरकार के भ्रष्टाचार को लेकर जनता दरबार में जमेगी। लिहाजा, भाजपा के धुरंधरों को विकास के दांव के साथ कांग्रेस के भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जवाब देना थोड़ा मुश्किल कर सकता है। भ्रष्टाचार सहित जीरम घाटी नक्सल हादसा समेत नक्सली हिंसा में मारे गए आदिवासियों का मुद्दे कांग्रेस के तरकस के कुछ ऐसे तीर हैं जो भाजपा को निरूत्तर कर सकते हैं। इन मुद्दों को भुनाएगी भाजपा -दस वर्ष में छत्तीसगढ़ का विकास -उपलब्धियां और योजनाओं का ब्योरा -खाद्यान्न सुरक्षा और सार्वजनिक वितरण प्रणाली -विभिन्न वर्गों को सौगातें -इस कुशासन को गिनाएगी कांग्रेस - दस वर्ष के कुशासन और भ्रष्टाचार - जीरम नक्सल हादसे में चूक - नक्सली हिंसा और लचर कानून व्यवस्था - सरकार की वादाखिलाफी - प्रशासनिक आतंकवाद - मंत्रियों की खींचतान - घोटालेबाजों को संरक्षण - किसानों की आत्महत्या - आदिवासियों और दलितों पर अत्याचार - कांकेर के कन्या आश्रम में सरकारी संरक्षण में दुष्कर्म

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