गुरुवार, अगस्त 13, 2015
दंगा कराने वाले, बचाने वाले और दंड दिलाने वाले सब एक
संजय स्वदेश
चुनाव नजदीक है, हर दल अपना वोट बैंक बढ़ाने में लगे हैं। चुनाव की तारीख घोषणा होने के पहले ही नीतीश सरकार द्वारा गठित एक सदस्यीय भागलपुर सांप्रदायिक दंगा न्यायायिक जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट दे दी। रिपोर्ट जारी भी हो गई। रिपोर्ट के अनुसार सारा दोष कांग्रेस पर मढ़ा गया है। 25 साल पहले 1989-90 में हुए भागलपुर दंगे के लिए तब के कांग्रेस सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया गया है। शीलवर्द्धन सिंह अब अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (प्रशिक्षण) हैं। खुफिया ब्यूरों में वरिष्ठ पद पर आसीन हैं इसके साथ ही। रिपोर्ट में कहा गया है कि उस समय सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार और मुख्य रूप से एसपी (ग्रामीण) शीलवर्द्धन सिंह को दोषी दंगे के लिए दोषी है। रिपोर्ट में तत्कालीन एसपी पर कार्रवाई के लिए अनुशंसा भी की गई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भागलपुर शहर और तत्कालीन भागलपुर जिÞले के 18 प्रखंडों के 194 गांवों में दंगों में 1100 से ज्यादा लोग मारे गए थे। लोग बताते हैं कि यह सांप्रदायिक दंगा करीब छह महीने तक चला। मजेदार बात यह है कि नीतीश सरकार की गठित इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट इसी साल फरवरी में सरकार को सौंप दी थी। लेकिन तब सरकार ने इस रिपोर्ट को जारी नहीं किया। इसे अभी जारी करना इस बात का संकेत है कि सरकार इस जांच रिपोर्ट को चुनाव में भुनाना चाहती है।
जानकार बातते हैं कि बिहार में ग्रमाीण एसपी के लिए कोई पद बिहार में नहीं है। लेकिन जब दंगा भड़का तो उसे कथित नियंत्रण के नाम पर यह पद सृजित किया गया। लेकिन जिस अफसर को दंगे रोकने की जिम्मेदारी दी गई, रिपोर्ट के अनुसार सैकड़ों कत्ल ए आम का वहीं हत्यारा निकला।
इस देश में दंगे की आग पर राजनीति की रोटी खूब सेंकी जाती रही है, लेकिन अब वक्त बदल चुका है। सांप्रदायिक भीड़ यदि आक्रोशित होती है, तो उसी भीड़ में आज एक ऐसा वर्ग भी है तो सही हालात को जानता है और उसे संयम करने की कवायद करता है। चुनाव घोषणा से कुछ ही सप्ताह पहले भले ही नीतीश सरकार ने राजनीतिक लाभ लेने के लिए रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी हो, लेकिन इस बात की संभावना बहुत कम है कि इसका फायदा वोट बैंक बढ़ाने में मिलेगा। इतने कम समय में सरकार रिपोर्ट में दोषियों पर त्वरित कार्रवाई करें, इसकी संभावना बहुत कम है। इस रिपोर्ट में जिस कामेश्वर यादव नाम के एक व्यक्ति को दोषी ठहराया गया था, उसी कामेश्वर को जब लालू यादव की जनता दल सरकार सत्ता में आई थी तो बरी कर दिया गया था। लेकिन नीतीश कुमार की सरकार आई तो फाइलें दोबारा खुलीं और फिर से मामला दर्ज हुआ और उन्हें सजा हुई। वह आज भी जेल में है। आज लालू, नीतीश और कांग्रेस एक खेमे हैं। दंगा कराने वाले, दंगाई को बचाने वाले और और सजा की बात करने वाले एकजुट है, फिर जनता न्याय की क्या उम्मीद करेगी।
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