मंगलवार, सितंबर 22, 2015

बिना विधायक बने भी होती है जनता की सेवा

संजय स्वदेश कहते हैं कि न प्यार और जंग में सब कुछ जायज है। वैसे ही सत्ता की इस जंग में जीत के लिए क्या कुछ नहीं हो रहा है। यह परिपक्व होते लोकतंत्र की पहचान है कि अब कोई भी बड़ा से बड़ा राजनीतिक दल बिहार में अकेले अपने दमखम पर चुनाव मैदान में नहीं उतर सकता है। वोटों के बिखराव के नाम पर सत्ता के लिए गठबंधन सबकी मजबूरी हो चुकी है। जब गठबंधन है तो सीटों के बंटवारे में थोड़ा बहुत समझौता तो करना ही पड़ेगा। पार्टियों ने गठबंधन किया तो बलिदान कार्यकर्ताटों को भी देना पड़ेगा। एनडीए और महागंठबंधन में सीटों के बंटवारे से कई उन कार्यकर्ताओं के सूर बागी हो गए हैं जिनके मनपसंद के दावेदार को टिकट नहीं मिला। एनडीए गठबंधन के टिकट का बंटवारा कार्यकर्ताओं के मनपसंद को दरकिनार कर दिल्ली से हुआ। दावेदारों की जोरअजमाईश आलाकमान के आगे ध्वस्त हो गई। अब तक गठबंधन में अपनी जीत का दावा करने वाले एकाएक अपने सूर बदल कर कहने लगे हैं कि पार्टी हार जाएगी क्योंकि उसके पसंद के उम्मीदवार को टिकट नहीं मिला है। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि गैर चुनावी दिनों में खासकर एक वर्ष पूर्व जब जो टिकट के दावेदार थे, वे क्षेत्र में सक्रिय होकर लोगों को जोड़ रहे थे। लेकिन वे पार्टी के नाम पर लोगों को ज्यादा से ज्यादा जोड़ने के बजाय वे अपने लिए कार्यकर्ता जोड़ रहे थे। लिहाजा वही लोग अब टिकट से मायूस होने पर गठबंधन विशेष को हार का अफवाह फैलाने लगे हैं। पुराने चुनावों के इतिहास गवाह हैं, टिकट किसी को भी मिले, लेकिन मैदान में आकर पार्टी के बगियों ने पार्टी के उम्मीदवारों के लिए परेशानी खड़ा किया है। किसी की जमानत जब्त होती है तो कोई अच्छा खास वोटों में सेंधमारी कर खुद तो हारता ही है दूसरे को भी हराता है। एक साल बाद फिर चुपके से पार्टी में वापसी भी हो जाती है। पांच साल बाद फिर वे टिकट के दावेदारों में शुमार हो जाते हैं। जनता के सेवा के नाम पर राजनीति का अब फैशन पैशन भी हो चुका है। लेकिन जनता की सेवा करने के लिए विधायक बनना जरूरी नहीं है। विधायक बनने के बाद आप कहेंगे अभी फंड नहीं आया है...फिर कहेंगे हमने तो प्रस्ताव दे दिया है कलेक्टेरियट में लटका है। अन्ना हजारे ने बिना विधायक बने की सरकार में हिला कर रख दिया था। आप किसी भी जिले के हो, अपने जिले कि किसी अस्पताल में आप बेहतर इलाज की उम्मीद कर सकते हैं क्या? मामूली बात पर डॉक्टर पटना रेफर कर देंगे....तब आपके विधायक और विधायक बन कर विकास की गंगा बहाने का दावा करने वाले उम्मीदवार गैर चुनावी दिनों को क्या करते रहते थे। क्या वे विधानसभा स्तर पर एक मजबूत विपक्ष की भूमिका का निर्वहन कर जनता के अपनी मजबूत पैठ बनाने का कार्य नहंी कर सकते थे। जनता को बेवकूफ समझने वाले को न केवल पार्टी की बेवकूफ बनाती है, बल्कि जनता भी उन्हें सबक सीखती है।

कोई टिप्पणी नहीं: