सोमवार, जून 03, 2013

हत्याकांड के हत्यारे

By संजय स्वदेश 01/06/2013 16:25:00
छत्तीसगढ़ की दरभा घाटी में हुआ भीषण हत्याकांड सिर्फ वहीं होकर खत्म हो गया हो, ऐसा नहीं हो पाया। भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में अपने तरह से इस सबसे जघन्य और अमानवीय हत्याकांड के बाद जिस तरह से मीडिया, सोशल मीडिया और राजनीतिक दलों द्वारा व्यवहार किया जा रहा है वह बताता है कि दरभा घाटी में हुए नरसंहार के दोषी अकेले माओवादी भर नहीं है। हमारा मीडिया, सोशल मीडिया और राजनीतिक जमात भी हत्याकांड के छिपे हुए हत्यारे की तरह व्यवहार कर रहा है। इस जघन्य हत्याकांड के बाद नक्सलवाद पर बहस चलाकर अगर मीडिया और सोशल मीडिया ने इसे कमजोर करने की साजिश की तो एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाकर राजनीतिक दल इस हत्याकांड की हत्या करने में जुट गये हैं।
रायपुर से संजय स्वदेश की रिपोर्ट- ---- कम से कम छत्तीसगढ़ के नेताओं से किसी ने यह उम्मीद बिल्कुल नहीं की होगी, जैसा वे कर रहे हैं। अभी हत्याकांड के तेरहवीं भी नहीं बीती कि राजनीतिक दल एक दूसरे पर कीचड़ उछालने के लिए मैदान में उतर आये हैं। हादसे के बाद जो आरोप-प्रत्यारोप की राजनीतिक चल रही है, वह राजनीतिक शुचिता को तार-तार करने वाली है। जिस हत्याकांड की जिम्मेदारी खुद हत्यारे ले रहे हैं। लिखित पर्चे भेज रहे हैं। खुले आम फिर से नरसंहार की चेतावनी दे रहे हैं। ऐसी स्थिति में राजनीतिक दल बयानबाजी कर एक दूसरे को दोषी ठहराकर क्या साबित करना चाहते हैं? लेकिन लगता है कि इस हत्याकांड की हत्या करके कम के कम प्रदेश में कांग्रेस के कुछ नेता अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने में जुट गये हैं। छत्तीसगढ़ में अगला विधानसभा चुनाव होने में करीब नौ महीने शेष है। लेकिन लगता यही है कि राजनीतिक दलों का ध्यान इसी ओर केंद्रित है। दुखद सच यही है कि राजनीतिक दलों ने हत्याकांड के असल मुद्दे की ही हत्या कर दी है। कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में फिर से परिर्वतन यात्रा शुरू करने का फैसला ले लिया। दिवंगत नेताओं की तेरवीं के कांग्रेस अब नंदकुमार पटेल और महेंद्र कर्मा की फोटो लेकर परिवर्तन यात्रा लेकन जनता के बीच जाएगी। इसकी रणनीति घटनाक्रम के करीब एक सप्ताह के अंदर ही कांग्रेस बना चुकी है। मतलब कांग्रेस अपने नेताओं की हत्या को सत्ता पाने की कीमत में रूप में भुनाना चाहती है। बयानों की खुल्लम खुल्ला राजनीति इस नक्सली वारदात के बाद ही कांग्रेस का यह आरोप लगाया था कि राज्य के इंटेलिजेंस प्रमुख और मुख्यमंत्री के बीच गहरी सांठगांठ है, जिसके कारण राज्य के गृह मंत्री अधिकारविहीन हो गए हैं। भक्त चरण दास ने पार्टी की सोच का खुलासा करते हुए कहा कि राज्य सरकार के पास इस हमले की पूरी जानकारी थी, बावजूद इसके सरकार मौन और निष्क्रिय बनी रही। इसी गंभीर वातावरण में पड़ोसी प्रदेश मध्यप्रदेश के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया ने भी खूब राजनीतिक चमकाई। साफ-साफ मीडिया को बयान दिया कि पूरा षड्यंत्र भाजपा का है, तो मध्यप्रदेश भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने आरोप लगाया दिया कि हमले के मुख्य षड्यंत्रकारी छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी हैं। आरोप सुन जोगी ने तड़ से प्रेस कान्फ्रेन्स कर नरेंद्र सिंह तोमर के खिलाफ कानूनी नोटिस भेजने की घोषणा की। सर्वदलील बैठक में बन सकती थी बात घटनाक्रम को लेकर प्रदेश की भाजपा सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई। इसमें मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने हिस्सा ही नहीं लिया। प्रदेश कांग्रेस महामंत्री भूपेश बघेल और वरिष्ठ विधायकअकबर ने कह दिया कि मुख्यमंत्री ही आरोप के घेरे में हैं। षडयं9 में सरकार के शामिल रहने का शक है तो ऐसे लोगों को बैठक में बुलाने का अधिकार नहीं। हालांकि मुख्यमंत्री रमन सिंह का कहना है कि सर्वदलीय बैठक की तिथि प्रतिपक्ष नेता वरिष्ठ कांग्रेसी रविंद्र चौबे और केंद्रीय मंत्री चरणदास महंत से चर्चा कर के तय की गई थी। जो भी एक सार्थक उद्देश्य के लिए बुलाई गई बैठक का बहिष्कार कर बयानबाजी कर राजनीति करने के बजाय कांग्रेस नक्सलियों के ढृढ़ सफाये के मुद्दे पर सरकार को झुका ही सकती थी। आंध्र प्रदेश से ले सबक छत्तीसगढ़ के पड़ोसी राज्य आंध्रप्रदेश में एक बार नक्सलियों ने चंद्रबाबू नायडू की हत्या करने की कोशिश की। लेकिन अगले विधानसभा चुनाव में 2004 में कांग्रेस ने यह घोषणा की कि यदि वह जीतती है तो नक्सलियों से बातचीत करेगी। कांग्रेस जीत भी गई। तब कांग्रेस पर यह आरोप लगा कि उसने चुनाव में नक्सलियों से साठगांठ कर सत्ता पाने में कामयाब रही। सत्ता मिलने पर कांग्रेस ने नक्सलियों से बातचीत का रास्ता अख्तियार किया। लेकिन नक्सली अपनी राह छाड़ने को राजी नहीं थे। बातचीत के दौरान नक्सली अपनी ताकत बढ़ाने और संगठन मजबूत करने में लगे रहें। तब राजशेखर रेड्ड़ी ने नक्सलियों को मुंहतोड़ जवाब दिया। विशेष रूप से नक्सलियों से लड़ने के लिए गठित विशेष सुरक्षा बल को आधुनिकीकरण किया। आधुनिक हथियार और तकनीक से लैस इस सुरक्षा बल के लड़ाके नक्सलियों के लिए खौफ के प्रतिक बन गए। इसके परिणामस्वरूप आंध्र प्रदेश में नक्सली घटनाओं में तेजी से कमी आई। आंध्र के नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के जंगलों में शरण ली। यहां के आदिवासियों को अपना मातहत बना कर खूनी खेल खेल रहे हैं। वहीं छत्तीसगढ़ में किसी भी दल में ऐसी कोई बयान नहीं दिया जिससे यह लगे कि उनमें सत्ता पाकर नक्सलियों पर सख्ती से नकेल की दृढ़ता हो। लेकिन यहां तो मुखर्तापूर्ण ढंग से बयानबाजी कर नेता अपने ही गले के छुरी चला रहे हैं। गरमा गया नक्सलबाद इस नक्सली नरसंहार के बाद सोशल मीडिया बहस का एक बहुत बड़ा केंद्र बन गया। लेकिन इस बहसबाजी में भी हत्याकांड की बजाय नक्सलबाद एक गंभीर मुद्दे के रूप में उभार दिया गया। समाचार चैनलों पर भी इस मुद्दे पर हुए बहस में नक्सलबाद का मुद्दा ज्यादा केंद्रीत नजर आया। प्रिंट मीडिया, खासकर छत्तीसगढ़ की प्रिंट मीडिया ने तो हत्याकांड के बड़े-बड़े फोटो प्रकाशित कर मानवता को झकझोरने की कोशिश की। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में विशेष कार्यक्रम चलाए गए या चलाए जा रहे हैं, उससे एक बात तो साफ-साफ नजर आ रही है कि यह बड़ा हादसा, उन तमाम नक्सली हत्याकांडों की तरह हो गया जो पहले हुए। यानी मौत के मातम पर मौत का मजा। मीडिया को मिला शिंदे का मसाला एक प्रमुख समाचार चैनल पर तो यह समाचार प्रसारित कर दी गई कि इस भीषण नक्सली वारदात के बाद केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे विदेश में छुट्यिां मना रहे हैं। चैनल ने यह भी बताया कि शिंदे अमेरिका में 19 से 22 तक आयोजित एक कार्यक्रम में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करने गए हैं। लेकिन हादसे के बाद भी नहीं लौटे। चैनल तो हकीकत की पड़ताल नहीं की। शिंदे कार्यक्रम की समाप्ति के बाद अपनी आंख के इलाज के लिए वे अस्पताल में भर्ती थे। नक्सली हत्याकांड के अगले दिन ही प्रधानमंत्री और यूपीए प्रमुख सोनिया गांधी छत्तीसगढ़ पहुंच गई। केंद्रीय गृहराज्यमंत्री भी आ गए। फिर शिंदे को घेरने की क्या जरूरत पड़ी। मतलब समाचार चैनल ने भी इस नक्सली वारदात में टीआरपी का एक मसाला ही खोजा। क्यों नहीं बताया पीएम के जापान दौरे का लाभ छत्तीसगढ़ में नक्सली वारदात के तीसरे दिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जापान के दौरे पर गए। मीडिया ने यह भी आलोचना की कि ऐसे हालात में पीएम को विदेश नहीं जाना चाहिए था। लेकिन पीएम का जापान जाना कितना जरूरी था। इस पर तो कोई बात ही नहीं हुई। गत दिनों चीन के प्रधानमंत्री भारत दौरे पर आए थे। भारत की पर मनोवैज्ञानिक दवाब के लिए चीनी पीएम भारत दौर के बाद पड़ोसी देश पाकिस्तान गए। जिस दिन चीनी पीएम भारत आए थे, उसी दिन मनमोहन सिंह की जापान यात्रा तय हो गई थी। मनमोहन सिंह का जापान जाना चीन को जवाब देना था। जापान जाकर भारत में बुलेट ट्रेन चलाने के लिए महत्वपूर्ण समझौता हुआ। जबकि भारत में बुलेट ट्रेन चलाने के लिए फांस के साथ डील ुहई थी। फांस की कंपनी ने भारत में सर्वे भी कर लिया था। पहले चरण में पुणे, मुंबई और अहमदाबाद में बुलेट ट्रेन चलाने का ब्लूप्रिंट भी तैयार हो चुका था। इसके बाद भी भारत की इस बदली हुई कूटनीति के बारे में मीडिया ने कुछ ठोस चीज जनता को नहीं बताई। दुनिया जानती है, बुलेट ट्रेन तकनीक में चीन दुनिया में सबसे आगे हैं। भारत ने जापान से करार कर उसे बुलेट ट्रेन का एक बड़ा बाजार दे दिया। यह चीन को ठीक उसी तरह का करारा मनोवैज्ञानिक जवाब है जिस तरह चीन पीए भारत आकर पाकिस्तान गए और वहां उसकी पीठ ठोक आए। आए दिन सीमा विवाद को लेकर भारत को तंग करने वाले चीन को अब उसका पड़ोसी जापान भारत में रह कर बुलेट ट्रेन के बाजार के माध्यम से चीन को चुनौती देता रहेगा। केपीएस गिल ने बहती गंगा में हाथ धोया छत्तीसगढ़ के नक्सली वारदात में बयान देकर एक ओर जहां नेता राजनीतिक की रोटी सेंकने में लगे हैं, वहीं इस बहती गंगा में पूर्व आईपीएस अधिकारी केपीएस गिल ने भी हाथ धो लिया। के.पी.एस. गिल को छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद से लड़ने के लिए सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया था। छत्तीसगढ़ की वर्तमान राजनीतिक सरगर्मी में उन्होंने यह बयान दिया कि नक्सलियों के सफाये के लिए उन्होंने जो रणनीति मुख्यमंत्री रमन सिंह को बताई, उस पर मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया थी कि वेतन लो और मौज करो। यह बात कितनी सच है यह तो केपीएस गिल जाने और रमन सिंह। लेकिन सच यह है जितने दिन गिल साहब छत्तीसगढ़ में रहे सीएम के कथिला सलाह पर खूब अमल किया। खूब मौज मारा। तमाम तरह के एैश सरकारी खर्चे पर। दबी जुबान में पुलिस महकम के लोग यह भी कहते हैं कि दादा के उम्र के गिल साहब बेड पर नई लड़कियों के भी शैकिन थे।

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