शनिवार, नवंबर 16, 2013
छत्तीसगढ़ की सियासत में वोट कटवा गैंग
संजय स्वदेश
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव घोषणा से पूर्व प्रदेश में तीसरे मोर्चे की जोरशोर से कुलबुलाहट थी। कहा जा रहा था कि तीसरा मोर्चा प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस का गणित बिगाड़ेगी। लेकिन मजेदार बात यह है कि दो दिन बाद दूसरे चरण का मतदान होना है और तीसरा मोर्चा का कही कोई बजूद ही नजर नहीं आ रहा है। एक दो विधानसभा क्षेत्र छोड़ दे तो न कही पोस्टर दिखा और कहीं कोई रैली। हालात देख कर तो ऐसे ही लग रहा है जैसे हर क्षेत्र में यह कत्थित तीसरे मोर्चे से जुड़े लोग वोट काटवा बन गए हैं। उनके मैदान में होने से दूसरे किसी एक उम्मीदवार को जीत का गणित सुलझता दिख रहा है। अभिभाजित मध्यप्रदेश के विधानसभा में कभी छत्तीसगढ़ क्षेत्र से 15 विधायक भेजने वाले विधायक में अजीत तरक ही शून्यता दिख रही है। चुनाव आयोग के आंकड़े देखें तो छत्तीसगढ़ में दर्जनभर से ज्यादा क्षेत्रीय दल हैं। इसके बाद भी यहां की राजनीतिक में कोई तीसरा दल मजबूती से नहीं उभरा। चुनाव घोषणा से पहले प्रमुख क्षेत्रीय दलों में छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच से तीसरे विकल्प की जोरशोर से चर्चा थी। आज जब सबको सामने आना चाहिए था तो वे अंधेरे में, परदे के पीछे हैं।
आपातकाल के दौरान छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा का गठन श्रमिक नेता शंकर गुहा नियोगी ने किया था। नियोगी खुद कभी चुनाव नहीं लड़े लेकिन प्रत्याशी खड़े करते रहे। मोर्चे ने पहली जीत 1985 में दर्ज की जब उसके टिकट पर जनकलाल ठाकुर विधायक निर्वाचित हुए। ठाकुर 1993 में भी जीते। नियोगी की हत्या के बाद मोर्चे की कमान उनकी पत्नी आशा नियोगी ने थामी। लेकिन छत्तीसगढ़ के अलग राज्य बनने के बाद मोर्चा अपनी मौजूदगी नहीं दिखा सका। फिलहाल नियोगी की बेटी मुक्तिगुहा नियोगी नगर पंचायत की अध्यक्ष है। लेकिन वह भी कांग्रेस की राजनीतिक करती है। नियोगी के राजनीतिक संघर्ष की विरासत की लौ बुझती दिख रही है।
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी भाजपा के एक बागी हीरासिंह मरकाम ने बनाई थी। मरकाम ने 1993 में चुनाव लड़ा और हार गए। वह 1998 में चुनाव जीत गए। लेकिन पृथक छत्तीसगढ़ बनने के बाद वर्ष 2003 और 2008 के विधानसभा चुनाव में वह हार गए। पार्टी का मत प्रतिशत भी घटता गया। दोनों ही चुनावों में पार्टी ने प्रत्याशी उतारे लेकिन उसका खाता नहीं खुला। इस बार गोंडवाना गणतंत्र पार्टी इसलिए चर्चा में आई क्योंकि उसके टिकट पर सक्ती सीट से सक्ती राजघराने के सुरें्रद बहादुर सिंह चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस ने उनका टिकट का दावा खारिज कर दिया जिससे नाराज हो कर सिंह गोंडवाना गणतंत्र पार्टी में शामिल हो गए और उसके टिकट पर सक्ती सीट से खड़े हो गए।
छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच बिल्कुल नया क्षेत्रीय दल है जिसका गठन भी भाजपा के ही एक बागी ने किया। भाजपा से दो बार विधायक और 4 बार सांसद रहे ताराचंद साहू ने 2008 में छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच का गठन किया। वर्ष 2009 में हुए लोकसभा चुनावों में साहू ने अपने प्रभाव वाले क्षेत्र में भाजपा और कांग्रेस दोनों को कड़ी टक्कर दी थी। इस बार भी उन्होंने करीब 45 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए हैं। लेकिन एक दो विधानसभा क्षेत्रों को छोड़ दे तो कहीं भी यह दल मैदान जंग में कड़ी टक्कर देता नहीं दिख रहा है।
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