शुक्रवार, जुलाई 21, 2017
छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति में हरेली
छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति में हरेली को पहला पर्व माना जाता है. ...यह सावन के पहले पखवाडे़ से शुरू होता है. गांवों में कई जगह युवा और बच्चे गेड़ी में दिखते हैं. गेड़ी यानी पांव में डांडा बांध कर चलना, नृत्य करना और लोकगीत को गाना. रायपुर के एक मुख्य सड़क पर उम्र की शतक के करीब वाले एक दादा गेड़ी में नाचते और गाते दिखे तो सहज की ठिठक गया. दो कदम तालमेल की कोशिश नाकाम रही. लोकगीत गाते और नृत्य में जिस उत्साह से चल रहे थे, जैसे अभी-अभी युवा हुए हो. क्या पता कल जब यह कला कितनी रहे या ना रहे, इसे यादगार बनाने के लिए उनके साथ के एक पल को कैमरे में कैद करवा लिया....
बुधवार, जुलाई 19, 2017
अजीत कुमार की भूली-बिसरी यादें
संजय कुमार साह
आज से ठीक बीस बरस पहले जब कॉलेज में एक सीनियर ने पूछा कि अजीत कुमार को जानते हो? हमने कहा-नहीं. तो प्रतिप्रश्न था- फिर क्या पढ़ कर आए हो, बिहार से हो, आठवीं के हिंदी की किताब में उनका यात्रा वृतांत -सफर से वापसी नहीं पढ़े थे क्या?... उन्हें क्या बताते, पास होने लायक ही पढ़े थे. वहीं पता चला कि जिस लेखक कवि की रचना बिहार के आठवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में थी, वह उसी किरोड़ीमल कॉलेज में पढ़ाते हैं, जहां मैंने एडिशन लिया है.. मन गदगद हो गया. लेकिन दो-चार दिन बाद जब टाइम टेबल आया तो मालूम चला कि उन्हें प्रथम वर्ष को पढ़ाने के लिए कक्षाएं नहीं दी गई है. मन मायूस हुआ. सर उसी साल रिटायर भी हो गए. लेकिन प्रथम वर्ष के दौरान स्टॉफरूम में अजीत सर से मेल मुलाकात होती रही. दो-तीन बार उनके घर जाना भी हुआ. मीठी और मुलायम बातों से हमेशा मार्गदर्शन करते रहते. फिर दिल्ली में कॅरियर बनाने के संघर्ष की आपाधापी में अजीत सर से मिलने का मौका नहीं मिला. कई बार मन में ख्याल आया अबकी दिल्ली जाने पर एक बार मुलाकात की जाए. लेकिन दूर से दो दिन के लिए दिल्ली पहंुच कर यह संभव नहीं हो पता...आज सोशल मीडिया से जब उनके निधन का समाचार प्राप्त हुआ तो मन एकाएक स्थित हो गया.
सहज ही उनकी एक पुस्तक ऊसर का ध्यान आया. अजीत सर से ही इसका अर्थ पूछा था-उन्होंने बड़ी ही सहजता से समझाया कि ऊसर वह जमीन होती है, जिस पर कुछ न उगे...अजीत सर हाइकु के भी बेहतरीन रचनाकार थे. हाइकु मूल रूप से जापानी कविता की विधा है. इस पर उनका एक पूरा संग्रह कॉलेज के जमाने में पढ़ा था. उसमें से कोई हाइकु पूरी याद तो नहीं, पर एक हाइकु की अंतिम लाइन आज भी हर संघर्ष में निराशा के अंधेरे से उबरने और आत्मविश्वास की दृढ़ता बनाए रखने की प्रेरणा देती है. वह पंक्ति थी- एक मिनट में एक इंच होती है घोंघे की चाल!
अजीत सर की इन्हीं कुछ भूली-बिसरी स्मृतियों के साथ उन्हें नमन करते हुए विनम्र श्रद्धांजलि....
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