शुक्रवार, जनवरी 30, 2009
चाय की तफरी से सृजन की धारा
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चाय की तफरी से सृजन की धारा
महानगरों के फुटपाथ पर न जाने कितने चाय की टपरी वाले बैठते हैं? नई दिल्ली की व्यस्त सड़क विष्णु दिगंबर मार्ग के फुटपाथ पर पान बेचने और चाय की टपरी लगाने वाले लक्ष्मणराव उनसे अलग हैं। इस टपरी से ही साहित्य सृजन की धारा बहाकर न केवल एक मिसाल कायम की है, बल्कि यह भी सिद्ध कर दिया है कि अगर हौसले हों बुलंद तो आंधियों में दीये जलते हैं। साहित्य सृजन का मिसााल कायम करने वाला यह लेखक आज भी समकालीन साहित्यकारों की सूची से बाहर है।
संजय स्वदेश
नई दिल्ली/नागपुर.भारतीय साहित्य के प्रमुख केंद्र दिल्ली में हिंदी भवन और उर्दू भवन के ठीक पड़ोस में चाय की टपरी लगाने वाले लक्ष्मणराव ने 20 पुस्तकें लिखी हैं। यहां के आयोजनों में अनेक साहित्यकारों को चाय पिलाया है। जीवन की विषम परिस्थितियों में भी साहित्य-सृजनशीलता कायम रखने वाले लक्ष्मणराव की 6 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इसके अलावा 3 नाटक, दो आत्मकथा एवं जीवनी, तथा छह अन्य रचनाएं प्रकाशित हुई है। चाय की टपरी चलाकर एक बेटे को चार्टड एकाउंटेंट बनाया है। हाल में प्रकाशित महिला प्रधान औपन्यासिक रचना रेणु के विमोचन कार्यक्रम में नागपुर आए। लक्ष्मणराव ने सिटी भास्कर से बातचीत में बताया कि जब लिखना शुरू किया तो लोगों ने ताने मारे। कहते थे- चाय वाला पागल है। चाय वाला है तो लिखता क्यों है? और जब लिखता है तो चाय क्यों बेचता है? लेकिन इन बातों से सृजनशीलता की इच्छा और प्रबल होती गई। आज 20 पुस्तकें पाठकों के सामने हैं।
एक लड़के की नदी में डूबने से मिली प्रेरणा
53 वर्षीय राव की चाय की टपरी पर आज भी गाहकों को चाय देते हैं। साहित्य सृजन की प्रेरणा के बारे में पूछने पर श्री राव कहना है- एक दिन गांव का रामदास नाम का लड़का अपने मामा के गांव गया। जब वह लौटने लगा तो रास्ते में चमकते हुए नदी के पानी में छलांग लगा दी। वह वापस नहीं लौटा। यह घटना प्रेरणा बन गई और इस पर एक उपन्यास लिख डाला। गांव के पुस्तकालय में हिंदी की अच्छी-अच्छी पुस्तकें पढऩे को मिलीं तो उनके मन में लेखक बनने की इच्छा जागृत हुई।
मील मजदूर से शुरू हुआ जीवन-संघर्ष
22 जुलाई, 1954 को अमरावती जिले के छोटे से गांव तडग़ांव दशासर में जन्म श्री राव ने दसवीं पास करने के बाद अमरावती की सूत मिल में मजदूरी शुरू की। मिल बंद हुई तो बेरोजगारी की मार पड़ी। 1975 में रोजगार पाने दिल्ली आये। दो साल तक ढाबे पर बर्तन साफ करना और कभी भवन निर्माण के कार्य में मजदूरी कर अपनी जीविका चलाते रहे। 1977 में दिल्ली के आई.टी.ओ. के विष्णु दिगंबर मार्ग पर पेड़ के नीचे बैठ कर पान बेचने का काम किया और पढ़ाई शुरू की। उनकी छोटी-सी दुकान दिल्ली नगर निगम व दिल्ली पुलिस अनेक बार उजाड़ती रही। पर लेखक बनने का सपना टूटा नहीं। टपरी पर बैठ कर स्नातक की पढ़ाई पूरी की। कॉलेज की पुस्तकालय से अनेक साहित्यकारों की रचनाएं पढ़ीं। पहली रचना के प्रकाशन के बाद एक अंग्रेजी दैनिक की साप्ताहिक पत्रिका में जब समीक्षा छपी तो मीडिया के दूसरे लोगों की नजर इधर आई। अभी तक करीब दर्जन भर विदेशी मीडिया ने कवरेज दिया। विशेष साक्षात्कार देसी-विदेशी मीडिया ने अपने दर्शक और पाठकों से कई बार रू-ब-रू भी करवाया। अभी तक 11 संस्थाओं ने इनकी साहित्य रचना के लिए इन्हें पुरस्कृत व सम्मानित किया है।
पहली रचना 1979 में
पहली रचना नई दुनिया की नई कहानी। पहली रचना के बारे में जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सुना से इन्हें मिलने का निमंत्रण दिया। श्री राव ने प्रधामंत्री नाटक की रचना की। जब इंदिरा गांधी से मुलाकात हुई तो उनकी जीवनी लिखने की इच्छा जाहिर की। श्री राव का कहना है कि इस प्रस्ताव से श्रीमती गांधी ने कहा- मेरे ऊपर तो बहुत से लोग लिखते हैं। आप वह लिखो जो राजनीति में हो रहा है। इनकी रचना किसी प्रतिष्ठिïत प्रकाशन से प्रकाशित नहीं हुई तो भारतीय साहित्य कला प्रकाशन शुरू किया। यह प्रकाशन जल्दी ही दूसरे लेखकों की पुस्तकें भी प्रकाशित करेगी। श्री राव का कहना है कि उनकी रचना में व्यक्ति के विपरीत परिस्थितियों में जीवन पर विजय पाने की लालसा में संघर्ष की सच्चाई है।
प्रमुख रचना :
नई दुनिया की नई कहानी, नाटक, रामदास, नर्मदा, परंपरा से जुड़ी भारतीय राजनीति, रेणु, पत्तियों की सरसराहट,सर्पदंश, सहील, प्रात:काल, शिव अरुणा, प्रशासन, राष्टï्रपति, संयम, साहित्य व्यासपीठ, दृटिकोण, समकालीन संविधान, अहंकार, अभिव्यक्ति, मौलिक पत्रकारिता। मेला
संकट में संतरा
संतरे पर संकट का साया
संतरे के पेड़ में लगने वाले विभिन्न कीट व सिंचाई की प्रर्याप्त व्यवस्था नहीं होने से देश दुनिया में संतरा उत्पादन में अग्रणी शहर के रूप में प्रसिद्ध नागपुर और आसपास के क्षेत्रों में संतरे का उत्पादन साल-दर-साल घटता जा रहा है। विभिन्न बीमारियों व रासायनिक खादों के उपयोग से न केवल पेड़ की आयु कम हुई है, बल्कि संतरे की मिठास भी कम हो रही है। पहले एक पेड़ चालीस से पचास साल तक फल देता था। यह क्षमता घट कर अधिकतम बीस साल की हो गई है। समय रहते संतरे के पेड़ों की सेहत के लिए किसी कारगर उपाय की जरूरत है।
नागपुर से संजय स्वदेश
किसान आत्महत्या को लेकर विदर्भ हमेशा सुर्खियों में रहा है। इनकी आत्महत्या पर मुआवजे की राजनीति और आंदोलन के चक्कर में विदर्भ के दूसरे किसानों की समस्या राष्टï्रीय स्तर पर नहीं उभर पाई है। फिलहाल विदर्भ के करीब ढाई लाख संतरा उत्पादक किसान अलग ही समस्या से जूझ रहे हैं। संतरा के पेड़ों में कीट लगने और सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने से संतरा उत्पादन में लगातार कमी आ रही है। संतरे के बगीचों में कीटों के प्रकोप से हर साल किसान संतरे के लाखों पेड़ स्वयं काट रहे हैैं। पिछले तीन-चार सालों में करीब एक करोड़ पेड़ कीटों की चपेट में आए। इस साल भी बारिश में देर होने और कीटों के प्रकोप के कारण लाखों पेड़ कटने की आशंका है। विदर्भ में करीब 1.75 लाख हेक्टेयर भूमि में करीब दो लाख संतरे उगाते हैं। अनुमान है कि पिछले दो सालों में पेड़ों की संख्या घट कर करीब तीन लाख तक पहुंच गई है। यहांके संतरे का सालाना व्यवसाय 150-200 करोड़ रुपये का है। संतरे की पनेरी (नर्सरी उद्योग) करीब 10 करोड़ रुपये सलाना का है। संतरे के पेड़ों की संख्या करीब 5.5 से 6 करोड़ है। कीट लगने के कारण साल-दर-साल संतरे के पेड़ कट रहे हैं।
मजेदार बात यह है कि दुनिया भर में संतरा के लिए प्रसिद्ध संतरानगरी नागपुर महाराष्टï्र की उपराजधानी है। विधानमंडल का शीतसत्र यही होता है। राज्य विधानमंडल में कपास उगाने वाले किसानों की आत्महत्या को लेकर तो हमेशा चर्चा हुइ्र। संसद में भी हो-हल्ला होती रही। पर केवल संतरा किसानों से जुड़ी समस्याओं पर राज्य सरकार ही गंभीर नहीं दिखी। पेड़ों में कीट लगने की बीमारी करीब सत्तर की दशक के शुरूआत से हुई थी। पेड़ों में फाइटोफ्थोरा नामक के कीट नुकसान पहुंचा रहे हैं। इन कीटों को पूरी तरह से नष्टï करने में अभी तक सफलता नहीं मिली है। इसके अलावा संतरे के तने में गोंद निकलने की गमोसिक नामक बीमारी है। तीस सालों में बीमारी धीरे-धीरे पूरे विदर्भ के संतरा बगीचों में फैल चुके हैं।
समस्या को गंभीर मानकर विदर्भ के किसान अब निंबू वर्गीय फलों में मौसंबी लगाने पर जोर देने लगे हैं। क्योंकि कम पानी में भी मौसंबी के पेड़ फल देते हैैं। फल भी साल भर आता है। देशभर में मरीजों को मौसंबी का जूस पिलाने के लिए यह फल चाहिए। कम से कम दस रुपये ग्लास की दर से शहर में मौसंबी का जूस पीया जा सकता है। निर्धन वर्ग के लिए यह भी संभव नहीं है। उनके लिए तो घर में मसीन रख कर जूस निकालना तो दूर बात है। दूरस्थ क्षेत्रों में सस्ते फल व जूस उपलब्ध कराने में संतरे की कोई सानी नहीं रही है। संतरानगरी नागपुर में जब भी कोई आता जाता है अपने परिचितों के लिए संतरेकी बर्फी लेना नहीं भूलता। देश में केवल इसी शहर में यह बरफी बनती है।
केवल विदर्भ की समस्या समझ कर इस बात की अनदेखी नहीं की जा सकती है कि सालों से संतरा आम आदमी का फल रहा है। कभी यह अंगूर और सेब की तरह गरीबों की पहुंच से दूर नहीं रहा। सस्ता और सुलभ फल होने के बाद भी संतरा का व्यापारियों में लिए हमेशा मोटी कमाई वाला रहा। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लाखों को रोजगार देने वाला रहा। पर अफसोस की यह सिंचाई की कृत्रिम विकल्प तथा कीटों की रोकथाम के लिए कोई कारगर उपाय करने में सरकार नकाम रही है। जब से पेड़ों में यह बीमारी लगनी शुरू हुई है, न केवल संतरों की गुणवत्ता कम हुई है, बल्कि इसकी आयु भी घट गई है। जहां पहले एक संतरे का पेड़ करीब 40 से पचास सालों तक फलों से किसानों को समृद्ध करता था। आज इसके पेड़ की फल देने की अधिकतम क्षमता 20 साल तक रह गई है। तीस साल में ही पेड़ की आधी उम्र घटने का मतलब है कि आने वाले दो दशकों में संतरे के अस्तित्व पर गंभीर संकट। सालों पहले संतरे खाड़ी देश, बंगालादेश, और सिंगापुर तक निर्यात होते रहे हैं। अच्छी मीठास के कारण इन देशों में यहां के संतरे की अच्छी खासी मांग भी थ। पर कीटों की चपेट पर कम पानी में फल आने से इसकी मीठास कम होती गई है। निर्यातकों ने मुंह फेर लिया है। यदि सरकार चाहती तो निसंदेह इस फल को एक उद्योग के रूप में विकसित कर सकती थी। वर्षों पहले कुछ स्थानीय किसानों ने इसके लिए काफी पहल भी की थी, पर सरकारी उदासीनता और पर्याप्त प्रोत्साहन के अभाव में सफलता नहीं मिली।
सरकार शायद नहीं जानती कि संतरा मूलत: भारतीय है,बाइबल में पूर्वोत्तर के खासी पहाडिय़ों में संतरा होने का उल्लेख मिलता है। विदर्भ में संतरे की खेती का इतिहास करीब 200 साल पुराना है। भोसलेकालीन राजाओं ने इसे पूर्वोत्तर के खासी पहाडिय़ों से यहां लाया था। आम आदमी के लिए सस्ता में बेहतर फल और जूस उपलब्ध कराने के लिए संतरा बेहतर विकलप हो सकता है। यदि सरकार गंभीर हो तो इसकी खेती देश के दूसरे हिस्सों में भी हो सकती है। करीब तीस साल की बात है। राजस्थान के कुछ किसान विदर्भ से ही संतरा ले गए। अपने यहां उगाये। आज उसके फल उत्तरी भारत के प्रमुख बाजारो में उपलब्ध हो रहे हैैं। किसानों की यह अच्छी पहल थी। इस तरह की पहल देश के दूसरे राज्य के किसानों विशेष कर गरीबी वाले क्षेत्रों में सरकारी सहायता से होनी चाहिए। जहां गरीबी है, वहां सस्ते में पौष्टिक जूस संतरे से ही उपलब्ध हो सकता है।
कपास किसानों की आत्महत्या से तो विदर्भ हमेशा केंद्रीय खबरों में सुर्खियों में रहा है। यदि सरकार और उदासिन रही तो वह दिन दूर नहीं जब संतरे के किसान आत्महत्या के मजबूर होंगे। यदि सरकार चाहे तो विदर्भ के प्रमुख फसलों की समस्या को निपटाने के लिए एक संयुक्त कमेटी का गठन कर एक कारगर उपाय करने की पहल करें। संतरे को मरने न दें। यह गरीबों का फल है। इसे उद्योग के रूप में विकसित करने का प्रयास करने तो आने वाले दिनों में संतरे को बचाया जा सकता है। गरीबों को सस्ते में जूस उपलब्ध करा कर उनकी स्वास्थ सुधारा जा सकता है। (लेखक जागो-जगाओ अभियान के संयोजक हैं।)
संपर्क : संजय स्वदेश
बी-2/35, पत्रकार सहनिवास, अमरावती रोड,
सिविल लाइन्स, नागपुर - महाराष्टï्र
पेंशन बनी टेंशन
सरकार को सेवा देने वाले कर्मचारी जब उम्र की ढलान पर पहुंच कर सेवानिवृत्त होते हैं, तो बुढ़ापे में जीविका चलाने के लिए मिलने वाली पेंशन उनके के लिए बड़ा सहारा होती है। स्थिति तब गंभीर हो जाती है जब पेंशन के रूप में लेने के लिए वरिष्ठï नागरिकों को सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटना पड़ता है। दूर-दराज के गांवों में निवास करने वाले बुजुर्ग काफी परेशान होते हंै। पेंशन की आस में हर त्यौहार व उत्सव का रंग फीका पड़ जाता है। फुटबॉल की तरह महीनों विभिन्न दफ्तरों के चक्कर काटते हुए कई लोग तो दुनिया से ही चल बसते हैं।
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पहले से पेंशन पा रहे केंद्र सरकार के पूर्व कर्मचारियों की भूमिका एक बार फिर फुटबॉल की तरह हो गई। छठे वेतन आयोग लागू होने के बाद हजारों कर्मचारियों के बकाया और बढ़ी हुई पेंशन अभी नहीं मिली है। बढ़ी हुई पेंशन की उम्मीद से उनके मन में दीपावली अच्छी मनाने की आस जगी थी। लेकिन अभी तक नये पेंशन का भुगतान से न होने से त्यौहारों का उत्साह फीका हो रहा है।
पेंशन बनी टेंशन
नागपुर से संजय स्वदेश
केंद्र सरकार ने छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू कर दी। केंद्र सरकार के उन कर्मियों की दिवाली अच्छी मनने वाली हैं जिन्हें बढ़ी हुई सैलरी और एरियर्स का एक हिस्सा पहले मिल गया। लेकिन यह दिवाली उनके लिए सूनी होगी, जो केंद्र सरकार के पूर्व कर्मी हैं और पेंशन के आसरे जीविका चल रही है। ऐसे लोगों की शिकायत है कि केंद्र सरकार की घोषणा के बाद भी उन्हें बकाया और बढ़ी हुई पेंशन नहीं मिल पाई है। बैंक में जाते हैं तो टका सा जवाब मिलता है, अभी हमारे पास ऑर्डर नहीं आया। तो कुछ बैंक कह रहे हैं कि ऑर्डर आ गए हैं, लेकिन पेंशन अभी बनी नहीं है। बढ़े हुए वेतन के आधार पर पेंशन की राशि निर्धारित की जा रही है। लिहाजा, विदर्भ में हजारों पेंशनधारियों की पेंशन अभी भी बैंक में ही अटकी पड़ी है। पेंशनभोगियों का कहना है कि नया वेतन आयोग लागू होने के बाद बैंक से बढ़ी हुई पेंशन पाने में उपेक्षापूर्ण व्यवहार कोई नई बात नहीं है। ऐसी स्थिति पिछली बार पांचवा वेतन आयोग लागू होने के बाद भी हुई थी। भारतीय भूतपूर्व सैनिक संघ नागपुर के सचिव सार्जंट मनोहर.आर. भतकूलकर का कहना है कि पिछली बार पांचवा वेतन आयोग लागू होने के एक साल बाद पेंशनकर्मियों को बढ़ी हुई पेंशन मिली थी। इस बार भी बढ़े हुए पेंशन के संबंध में बैंक वैसा ही कुछ जवाब मिल रहा है। सार्जंट भतकूलकर का कहना है कि सबसे ज्यादा समस्या उन पूर्व सैन्यकर्मियों की है जो गांव में रहते हैं और उम्र के आखिरी पड़ाव पर हैं। हर बार बैंक में वे इस आशा से पहुंचते हैं कि उनकी नई पेंशन आई होगी। बकाया मिलेगा। लेकिन बैंक पहुंच कर निराशा हो रही है। इस मामलें में बैंक के शाखा प्रबंधकों का एक ही जवाब है कि नये वेतन के अनुसार सभी पेंशनधारियों की पेंशन तैयार होने की प्रक्रिया जारी है। कई लोगों को पेंशन मिल चुकी है और अन्य लोगों के दीपावली से पूर्व मिलने की संभावना है। ले. कर्नल बी. वाय. बोहरूपी और सार्जंट प्रभाकर प्रांजले की भी कुछ ऐसी ही शिकायतें हैं।
सेवानिवृत्त होने वालों की समस्या कम नहीं
आप मानें या न मानें विदर्भ और मराठवाड़ा के करीब 19 जिलों में हर साल करीब दस से 12 हजार लोग विभिन्न विभागों से सेवानिवृत्त होते हैं। नागपुर सिविल लाइन्स स्थित महा लेखा पेंशन विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक कर्मचारियों के बार-बार स्थानांतर होने से उनके सर्विस बुक में सेवा संबंधी सभी विवरण अपडेट नहीं होने के कारण सेवानिवृत्ति कर्मचारियों की पेंशन तय होने में महीनों देरी हो जाती है। कुछ मामलों में कर्मचारियों के तो पेंशन से संबंधित फार्म पर हस्ताक्षर तक नहीं होते हैं। विभाग का कहना है कि कई लोग सेवा अवधि के दौरान पेंशन संबंधित आवश्यक कागजात नहीं भरते हैं कि पदोन्नति होने के बाद फार्म भरने पर ज्यादा पेंशन मिलेगी। इसी आशा में कई कर्मचारियों के सेवानिवृत्ति का कब समय आ जाता है उन्हें पता नहीं चलता? फिर अंतिम समय में वे फार्म भरते हैं। इस वजह से तमाम विवरणों की जानकारी विभाग से लेखा विभाग तक समय पर नहीं पहुंच पाती है। लेखा विभाग कार्यालय में चक्कर काटने वाले सेवानिवृत्त कर्मचारियों का कहना है कि उनकी स्थिति फुटबॉल की तरह हो गई है। लेखा विभाग के अधिकारी कहते हैं फाइल उनके ऑफिस से त्रुटिपूर्ण आती है। उसमें वे क्या कर सकते हैं? नियमों से हाथ बंधे हैं। ऑफिस के बाहर चक्कर काटने वाले पूर्व कर्मी कहते हैं कि अपने विभाग और लेखा विभाग में बिना रिश्वत के काम नहीं हो रहे हैं। लेखा विभाग के एक अधिकारी ने न छापने की शर्त पर बताया कि पेंशन संबंधित जिन पूर्व कर्मचारियों की कागजों की आवाजाही में देरी होती है, उसमें वन विभाग और राजस्व विभाग के कर्मचारियों की फाइलें ज्यादा है। पूर्व कार्यालय और ऑफिस के चक्कर लगाते-लगाते यदि कर्मी पार पा भी लेता है, तो ट्रेजरी विभाग और बैंक के बीच फाइल अटक जाती है। टे्रजरी विभाग कहता है कि पेमेंट ऑर्डर बैंक को जा चुके हैं। कभी बैंक वालों से यह सुनना पड़ता है कि भुगतान नहीं आया। हालांकि पूछने पर हर विभाग यही कहता हैं कि कागज में कमी होने के कारण ही पेंशन मिलने में देरी होती है। जिनके कागज पूरे होते हैं, उनका तुरंत काम हो हाता है। जानकारों का कहना है कि कई बार अनावश्यक कमियां निकाल कर भी फाइल अटकाई जाती है, जिससे विवश हो कर सेवानिवृत्त कर्मी कुछ रिश्वत आदि देकर अपना काम पूरा करवाते हैं और फाइल आगे बढ़ती है।
बैंक के खिलाफ भूख हड़ताल की धमकी
अनंत नगर निवासी पेंशनभोगी पी.एस.घोडके ने दैनिक भास्कर को एक पत्र लिखकर बैंककर्मियों के खिलाफ शिकायत की है। श्री घोडके का कहना है कि वेतन आयोग लागू होने के बाद खुशी-खुशी जैसे ही बैंक पेंशन लेने गए तो बैंककर्मियों ने कहा कि अभी ऑर्डर नहीं आए हैं। वहीं दूसरी ओर सेवारत कर्मियो को बढ़ा हुआ वेतन मिल गया है। उनका कहना है कि पेंशनकर्मियों के साथ भेदभाव व अन्याय किया जाता है। इसी तरह की स्थिति पांचवे वेतन आयोग लागू होने के समय हुई थी। तब श्री घोडके भूख हड़ताल पर बैठ गए थे। उनका कहना है कि महाराष्टï्र बैंक में वे 15 साल से पेंशन ले रहें। फिर भी बैंक ऐसा व्यवहार कर रहा है। लिहाजा, वे दर-दर भटकने को मजबूर हैं। यदि शीघ्र की उनकी पेंशन नहीं मिली तो वे इस बार फिर बैंक के खिलाफ भूख हड़ताल करेंगे।
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पेंशन महा लेखा के पास नहीं आती अपडेट फाइल
किसी भी सेवानिवृत कर्मचारी को मिलने वाली पेंशन में होने वाली देरी विभाग की लापरवाही से नहीं होती है। यह सारी लापरवाही सेवानिवृत्त व्यक्ति के संबंधित विभाग की हो सकती है। हमारे विभाग का यह दायित्व ही है कि वह संबंधित कर्मचारी से जुड़ी वेतन की स्थिति को तय करके उसे ट्रेजरी कार्यालय भेज दे। इसके लिए संबंधित विभाग से यह अनुरोध किया जाता है कि वे अपने विभाग के कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति से करीब 6 माह पूर्व सारी आवश्यक जानकारी भेजे। जिससे कि विभाग उसे सेवानिवृत्ति के दिन तक उसका पेंशन आदि तय कर दें। हमारे पास आने वाली अधिकांश फाइलें सेवानिवृत्ति के बाद की होती है और उसमें भी अधिकतर व्यक्ति के सेवा-संबंधित विभिन्न विवरण नियमानुसार पूरे नहीं होते हैं। लिहाजा, विभाग को फाइल वापस करनी पड़ती है। अब सब इस बात पर निर्भर है कि संबंधित विभाग संपूर्ण जरूरी विवरणों के साथ वह फाइल कब तक वापस भेजता है? सेवा के दौरान कई बार लोगों का स्थानांतरण बार-बार होते रहता है। जहां-जहां कर्मी जाते हैं, वहां से सर्विस बुक समय-समय पर अपडेट होकर नहीं मिलती है। ऐसी कई फाइल आती है जिसमें पेंशन संबंधित कागजात पर कई महत्वपूर्ण जानकारी नहीं होने के साथ-साथ कर्मचारी के हस्ताक्षर तक नहीं होते हैं। अधूरे कागजों के आधार पर पेंशन कैसे बनाई जा सकती है। नियमों के तहत हमारे हाथ भी बंधे हुए हैं। कुछ केस तो ऐसे भी आ जाते हैं, जिसमें कर्मचारी की मृत्यु सेवाकाल के दौरान हुई होती है और वह पेंशन संबंधित फार्म नहीं भरे रहते हैं। ऐसी ही समस्या वीआरएस के मामले में आती है। गलतफहमी में आकर लोग 15, 18 साल की अवधि में वीआरएस ले लेते हैं। जब उनकी फाइल आती है तो पता चलता है कि पेंशन के लिए आवश्यक सेवा अवधि 20 साल तो पूरी ही नहीं हुई हैं। नागपुर स्थित महा लेखा पेंशन कार्यालय में ऐसी व्यवस्था उपलब्ध कराई गई है, जिससे पेंशन संबंधित समस्या एवं शिकायत को लोग लिखित में डाक, ई-मेल अथवा व्यक्तिगत रूप से दे सकते हैं। हर समस्या का निपटारा विभाग की ओर से की जाती है। पेंशन से जुड़े हर माह करीब एक हजार मामलों का निपटारा किया जाता है। अभी विभाग के पास करीब 72 मामले लंबित हैं। कर्मचारियों में यह व्यर्थ ही गलतफहमी है कि हम उनकी फाइल रोक कर रखते हैं। एस. सत्यनारायणन, उप महानिदेशक , लेखा (पेंशन)
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समय पर दी जा रही है पेंशन
भारतीय स्टेट बैंक की ओर से कभी भी किसी पूर्व कर्मी की पेंशन नहीं रोकी जाती है। हमारे पास जैसे ही ऑर्डर आते हैं, उसे तुरंत पेंशनधारी के खाते में डाल दिया जाता है। जहां तक नये वेतन आयोग के लागू होने के बाद पेंशन की स्थिति और ऐरियर्स की बात है, तो इसकी संपूर्ण स्थिति अभी प्रक्रिया में है। कुछ वर्ष पहले इस मामले में देरी होती थी। लेकिन भारतीय स्टेट बैंक ने पेंशनधारियों के लिए एक अलग से यूनिट चालू कर ली है। मुंबई में स्थित इस कार्यालय में सभी पेंशनधारियों को नये वेतनानुसार पेंशन बनाने की प्रक्रिया जारी है। कई विभाग के लोगों को पेंशन मिल चुके हैं। कुछ लोगों के आने वाले हैं। दीपावली से पूर्व सभी के बढ़े हुए पेंशन मिल जाने की संभावना है। बुजुर्ग नागरिकों के इस धन को बैंक में जमा करने के लिए विशेष योजना के तहत उन्हें प्रोत्साहन भी दिया जा रहा है। ऐसी मियादी जमा पर वरिष्टï नागरिकों आम लोगों की अपेक्षा अतिरिक्त ब्याज भी दी जा रही है। जहां पहले कभी-कभार ही मियादी जमा के लिए ग्राहक आते थे। वहीं हर दिन दो-तीन मियादी जमा करने वाले ग्राहक है। इसमें अधिकतर संख्या उन वरिष्ठï नागरिक ग्राहकों की है जो अपने ऐरियर्स की राशि जमा कर रहे हैं। बस कुछ ही लोगों की राशि अभी नहीं आई है। उम्मीद है उन्हें दो-तीन दिन में भुगतान कर दिया जाएगा। एस.जी.श्रीवास्तव, शाखा प्रबंधक, भारतीय स्टेट बैंक
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भुगतान की प्रकिया जारी
जो भी पेंशन होता है, वह बैंक के प्रमुख लींक कार्यालय में आता है, फिर वहां से दूसरे शाखाओं में आती हैं। नये वेतन आयोग के अनुसार सभी पेंशनभोगियों की पेंशन तय हो रही है। अचानक सबके खाते में एंट्री तो हो नहीं सकती है। कार्य का यह अतिरिक्त बोझ है। फिर भी पेंशनभोगियों की सुविधा के लिए इसे जल्दी निपटाया जा रहा है। जिससे कि जल्द से जल्द उन्हें यह पेंशन मिल सकें। वैसे उम्मीद है कि बढ़ी हुई पेंशन इस माह के दीपावली से पहले ही मिल जाए। हमारी कोशिश होती है कि वरिष्ठï नागरिकों को किसी तरह की परेशानी न हो। 1 से 10 तारीख के बीच पेंशन लेने वालों की सुविधा के लिए दो काउंटर चालू हो जाते हैं। यदि पेंशन की देरी के लिए पेंशनभोगी बैंक पर दोष देते हैं, तो यह गलत है। जैसे ही हमें पेंशन भुगतान के कागजात मिलता है, आगे की कागजी कार्रवाई पूरी करके उसे खाते में डाल देते हैं। एन.एस.चावला, वरिष्ठï शाखा प्रबंधक, पंजाब नेशनल बैंक
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पूर्व सैनिकों के विधवाओं को सबसे ज्यादा परेशानी
हर साल देशभर में सैन्य सेवाओं से करीब 55 हजार लोग सेवानिवृत होते हैं। विदर्भ में यह संख्या हर माह 150 से 200 के करीब है। महाराष्टï्र में करीब 9 लाख पूर्व सैनिक हैं। यदि हर सैनिक के पीछे चार सदस्यों का परिवार जोड़े तो यह आंकड़ा 36 लाख लोगों का होता है। मतलब साफ है कि सैन्य सेवाओं से सेवानिवृत सैनिकों व उनके परिवारों के कुल 36 लाख लोग किसी न किसी तरह पेंशन से आश्रित है। पूरी जवानी देश की रक्षा में सौंपने के बाद जब कोई सेवानिवृत सैनिक अपना पेंशन लेने बैंक जाता है, तो बैंककर्मी एक ही शब्द में यह कहकर टाल जाते हैं कि अभी पेंशन नहीं आया है। जब हमारे पास पेंशन पेय ऑर्डर की कापी होती है। उसे दिखाने के बाद भी कहते हैं कि वह कापी अभी उनके पास नही आई है। यह हमेशा होता है जब भी डीए बढ़ता है, नया वेतन आयोग लागू होता है, पूर्व सैनिकों को नये वेतनमान के अनुसार घोषणा होने के तुंरत बाद पेंशन नहीं मिलती है। पांचवे वेतन आयोग के लागू होने के करीब एक साल बाद बढ़ी हुई पेंशन मिली थी। इस अविध के दौरान कई पूर्व सैनिक बढ़े हुए पेंशन की आस में स्वर्ग सिधार गए। दूसरी समस्या बैंकों में यह होती है कि उन्हें सैन्य सेवाओं के रैंकों के बारे में समुचित जानकारी नहीं होती है। कभी-कभी वायुसेना का सीपीएल कर्नल बन जाता है, तो कभी कर्नल कॉरपोरल बन जाता है। ऐसी कई बार कोशिश की गई कि सभी संबंधित बैंक के उन कर्मचारियों को सैन्य सेवाओं के रैंक संबंधित संक्षिप्त शब्दों के जानकारी के लिए एक कार्यशाला आयोजित की जाए। पर सफलता नहीं मिली। पेंशन संबंधित जो भी नये सरकारी आदेश रहता है, उसके प्रति पूर्व सैनिक सजग रहते हैं। पर बैंक जाते हैं, उन्हें निराशा ही होती है। सबसे कठिन समस्या तब तो पूर्व सैनिकों के विधवाओं की होती है। उन्हें पति के सेवाओं व पेंशन आदि के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती है। वेतन बढऩे के बाद उन्हें तो उसे लागू होने और बढ़ कर मिलने संबंधित जानकारी ही नहीं होती है। एक तरह से कहा जाए पूर्व सैनिकों का पूरा परिवार उनकी पेंशन के भरोसे होता है। बच्चे पढ़ाई कर रहे होते हैं, तो बेटी का विवाह पेंशन की रकम की आस पर टिकी होती है। दूर-दराज के गांव में रहने वाले एसे पेंशनभोगी बार-बार बैंक के चक्कर भी नहीं लगा पाते हैं। लिहाजा, होना तो यह चाहिए कि हर बैंक में पेंशन संबंधित मामले के निपटारे के लिए अलग से प्रशिक्षित कर्मचारी होने चाहिए। इससे न केवल बैंकों का कार्य का भार घटेगा, बल्कि वरिष्ठï पेंशनभोगी नागरिकों को राहत भी मिलेगी। लेफ्टिनेंट कर्नल (सेवानिवृत)जी.एस. जॉली, अध्यक्ष, भारतीय भूतपूर्व सैनिक संघ, नागपुर
संपर्क
संजय स्व्देश,
बी-२/३५, पत्रकार सहनिवास, अमरावती रोड, सिविल लाइन्स,
नागपुर, ४४०००१, महाराष्टï मो ९८२३५५१५८८
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घरेलो हिंसा के दो साल
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Õè-2/35, ˜淤æÚU âãUçÙßæâ,
¥×ÚUæßÌèÚUæðǸU, Ùæ»ÂéÚU, ×ãUæÚUæCïþU- 440001,
×æðÕæ§Ü- 09823551588
तर तर हो गया बुनकरों का ताना बना
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कागजो पर कर्ज की योजनायें.
कृतिदेव फॉण्ट माँ हैं।
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खेती का कर्ज देने में फिछादे बैंक
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कृतिदेव फॉण्ट में हैं।
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