चाय बेचने वाले लक्ष्मणराव ने लिखी 20 पुस्तक
महानगरों के फुटपाथ पर न जाने कितने चाय की टपरी वाले बैठते हैं? नई दिल्ली की व्यस्त सड़क विष्णु दिगंबर मार्ग के फुटपाथ पर पान बेचने और चाय की टपरी लगाने वाले लक्ष्मणराव उनसे अलग हैं। इस टपरी से ही साहित्य सृजन की धारा बहाकर न केवल एक मिसाल कायम की है, बल्कि यह भी सिद्ध कर दिया है कि अगर हौसले हों बुलंद तो आंधियों में दीये जलते हैं। साहित्य सृजन का मिसााल कायम करने वाला यह लेखक आज भी समकालीन साहित्यकारों की सूची से बाहर है।
संजय स्वदेश
नई दिल्ली/नागपुर.भारतीय साहित्य के प्रमुख केंद्र दिल्ली में हिंदी भवन और उर्दू भवन के ठीक पड़ोस में चाय की टपरी लगाने वाले लक्ष्मणराव ने 20 पुस्तकें लिखी हैं। यहां के आयोजनों में अनेक साहित्यकारों को चाय पिलाया है। जीवन की विषम परिस्थितियों में भी साहित्य-सृजनशीलता कायम रखने वाले लक्ष्मणराव की 6 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इसके अलावा 3 नाटक, दो आत्मकथा एवं जीवनी, तथा छह अन्य रचनाएं प्रकाशित हुई है। चाय की टपरी चलाकर एक बेटे को चार्टड एकाउंटेंट बनाया है। हाल में प्रकाशित महिला प्रधान औपन्यासिक रचना रेणु के विमोचन कार्यक्रम में नागपुर आए। लक्ष्मणराव ने सिटी भास्कर से बातचीत में बताया कि जब लिखना शुरू किया तो लोगों ने ताने मारे। कहते थे- चाय वाला पागल है। चाय वाला है तो लिखता क्यों है? और जब लिखता है तो चाय क्यों बेचता है? लेकिन इन बातों से सृजनशीलता की इच्छा और प्रबल होती गई। आज 20 पुस्तकें पाठकों के सामने हैं।
एक लड़के की नदी में डूबने से मिली प्रेरणा
53 वर्षीय राव की चाय की टपरी पर आज भी गाहकों को चाय देते हैं। साहित्य सृजन की प्रेरणा के बारे में पूछने पर श्री राव कहना है- एक दिन गांव का रामदास नाम का लड़का अपने मामा के गांव गया। जब वह लौटने लगा तो रास्ते में चमकते हुए नदी के पानी में छलांग लगा दी। वह वापस नहीं लौटा। यह घटना प्रेरणा बन गई और इस पर एक उपन्यास लिख डाला। गांव के पुस्तकालय में हिंदी की अच्छी-अच्छी पुस्तकें पढऩे को मिलीं तो उनके मन में लेखक बनने की इच्छा जागृत हुई।
मील मजदूर से शुरू हुआ जीवन-संघर्ष
22 जुलाई, 1954 को अमरावती जिले के छोटे से गांव तडग़ांव दशासर में जन्म श्री राव ने दसवीं पास करने के बाद अमरावती की सूत मिल में मजदूरी शुरू की। मिल बंद हुई तो बेरोजगारी की मार पड़ी। 1975 में रोजगार पाने दिल्ली आये। दो साल तक ढाबे पर बर्तन साफ करना और कभी भवन निर्माण के कार्य में मजदूरी कर अपनी जीविका चलाते रहे। 1977 में दिल्ली के आई.टी.ओ. के विष्णु दिगंबर मार्ग पर पेड़ के नीचे बैठ कर पान बेचने का काम किया और पढ़ाई शुरू की। उनकी छोटी-सी दुकान दिल्ली नगर निगम व दिल्ली पुलिस अनेक बार उजाड़ती रही। पर लेखक बनने का सपना टूटा नहीं। टपरी पर बैठ कर स्नातक की पढ़ाई पूरी की। कॉलेज की पुस्तकालय से अनेक साहित्यकारों की रचनाएं पढ़ीं। पहली रचना के प्रकाशन के बाद एक अंग्रेजी दैनिक की साप्ताहिक पत्रिका में जब समीक्षा छपी तो मीडिया के दूसरे लोगों की नजर इधर आई। अभी तक करीब दर्जन भर विदेशी मीडिया ने कवरेज दिया। विशेष साक्षात्कार देसी-विदेशी मीडिया ने अपने दर्शक और पाठकों से कई बार रू-ब-रू भी करवाया। अभी तक 11 संस्थाओं ने इनकी साहित्य रचना के लिए इन्हें पुरस्कृत व सम्मानित किया है।
पहली रचना 1979 में
पहली रचना नई दुनिया की नई कहानी। पहली रचना के बारे में जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सुना से इन्हें मिलने का निमंत्रण दिया। श्री राव ने प्रधामंत्री नाटक की रचना की। जब इंदिरा गांधी से मुलाकात हुई तो उनकी जीवनी लिखने की इच्छा जाहिर की। श्री राव का कहना है कि इस प्रस्ताव से श्रीमती गांधी ने कहा- मेरे ऊपर तो बहुत से लोग लिखते हैं। आप वह लिखो जो राजनीति में हो रहा है। इनकी रचना किसी प्रतिष्ठिïत प्रकाशन से प्रकाशित नहीं हुई तो भारतीय साहित्य कला प्रकाशन शुरू किया। यह प्रकाशन जल्दी ही दूसरे लेखकों की पुस्तकें भी प्रकाशित करेगी। श्री राव का कहना है कि उनकी रचना में व्यक्ति के विपरीत परिस्थितियों में जीवन पर विजय पाने की लालसा में संघर्ष की सच्चाई है।
प्रमुख रचना :
नई दुनिया की नई कहानी, नाटक, रामदास, नर्मदा, परंपरा से जुड़ी भारतीय राजनीति, रेणु, पत्तियों की सरसराहट,सर्पदंश, सहील, प्रात:काल, शिव अरुणा, प्रशासन, राष्टï्रपति, संयम, साहित्य व्यासपीठ, दृटिकोण, समकालीन संविधान, अहंकार, अभिव्यक्ति, मौलिक पत्रकारिता। मेला
शुक्रवार, जनवरी 30, 2009
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