आंकड़ों में घटी महंगाई
महीना खत्म होने से पहले खाली होने लगा किचन
पिछले साल सरकार और आम आदमी की कमर तोडऩे वाली महंगाई अब सरकारी आंकड़ों के मुताबिक एक साल के न्यूनतम स्तर 3.92 प्रतिशत के स्तर पर तो आ गई है। पर इसे आम आदमी स्वीकार नहीं कर रहा है। लेकिन आवश्यक खाद्य पदार्थों की खरीदी में आम आदमी का बजट एकदम गड़बड़ हो चुका है। संतरानगरी की गृहिणियां परेशान हैं। महंगाई के घटते आंकड़े और रसोई में कम होती खाद्य पदार्थों पर संजय स्वदेश की रिपोर्ट।
नागपुर. आंकड़े भले ही कहें कि पिछले एक माह में महंगाई की दर में लगातार गिरावट आई है। पर राहत के ये आंकड़ों महिलाओं को रास नहीं आ रहे हैं। रसोईघर में अभी भी महंगाई की आग है। अनाज में कई चीजें नई आने के बाद भी उसकी दर घटी नहीं है। हर सुबह दिन की शुरुआत चाय की चुस्की के साथ होती है। एक माह पहले तक 120 रुपये किलो की दर से घर आने वाली चाय 140 रुपये किलो हो गया है। चीनी 17 रुपये से बढ़कर 24 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रही है। मध्य वर्ग और गरीब वर्ग की गृहिणियां परेशान हैं। कहती हैं कि इसका सबसे अधिक प्रभाव उनकी बचत पर पड़ा है। साप्ताहिक मीनू की कई चीजों में कटौती करनी पड़ी है। पहले से ही दूसरी चीजों की कीमतें आसमान छू रही थी। इसमें और बढ़ोतरी से परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है। सच्चाई है कि है कि फल, सब्जी, दाल, खाद्य तेल और आवश्यक वस्तुओं की कीमतें पिछले एक माह में और बढ़ी है। हर माह के पहले सप्ताह में महीने भर की राशन की खरीदने वाले ने एक निश्चित बजट तय कर रखा था। इस माह उसी बजट में जो सामान आया वह महीने खत्म होने से पहले ही कम हो गया। क्योंकि महंगाई के कारण पहले से तय बजट में दाल, चावल और आटा की खरीदी की मात्रा घटानी पड़ी है। ऐसा लग रहा है जैसे हाथ से रुपये तेजी से फिसल रहा है। बचत नहीं हो रही है।
आवश्यक वस्तुओं के भाव
जनवरी का पहला सप्ताह वर्तमान सप्ताह
चीनी 18 से 20रु. प्रति किलो 22 से 24 रु. प्रति किलो
दाल अरहर 32 से 40 रु. प्रति किलो 45 से 50 रु. प्रति किलो
चाय 110 से 120 रुपये प्रतिकिलो 140 से 160 रु. प्रति किलो
नहीं हो रही बचत
एक शॉपिंग मॉल में खरीदी करने आए अंधारीकर दंपति ने बताया कि पहले जहां महीने में दो-तीन बार सपरिवार बाहर खाना खाने जाते थे। वह पूरी तरह से बंद हो चुका है, तब जाकर रसोईघर का बजट कुछ संतुलित हुआ है। रीना बोस की भी कुछ ऐसी ही शिकायत हैं। कहती हैं कि रसोई का पर्याप्त समान लाने और दूसरी जरूरतों को पूरा करने के लिए महीने की बचत में से 50 प्रतिशत से भी ज्यादा की कटौती करनी पड़ी है। चार से छह सदस्य वाले परिवार को संचालित करने वाली गृहिणियां कहती हैं कि महीने में राशन और सब्जियों का कुल खर्च जहां तीन से साढ़े तीन हजार आता था, अब वह वह 5 हजार में पूरा हो रहा है। वे इस उलझन में हैं कि किसी चीज में कटौती करें कि रसोईघर ठीक से चले और उनकी बचत भी हो।
शाकाहार से सस्ता मांसाहार : सब्जियों के भाव भी आसमान छूने से गृहिणियां परेशान हैं। शोभा गुप्ता ने बताया कि उन्हें सब्जियों की तुलना में मांसाहारी वस्तुएं सस्ती लगती हैं। मटर पनीर बनाने में यदि एक पाव पनीर और उसके अनुपात में तेल, मटर आदि का उपयोग किया जाए तो 60 से 70 रुपये का खर्चा आ जाता है। जबकि इतने में आधा किलो चिकन या मछली बनाई जा सकती है।
कम हुई है पैदावार : अनाज व किराणा व्यापारी प्रताप मोटवानी का कहना है कि कुछ माह पहले जब मुद्रास्र्फीति की दर बढ़ रही थी तो लगातार महंगाई भी बढ़ रही थी। जब अनाज के भाव स्थिर थे या बहुत ही कम बढ़े। हालांकि आज सरकार महंगाई दर में लगातार कम होने की बात कह रही है। पर अनाजों के भाव बढ़ रहे हैं। सरकार ने कभी स्पष्ट नहीं किया कि मुद्रा स्फीति की जो आंकड़े जारी होते हैं, उसमें खाद्यानों की कितनी हिस्सेदारी होती है। पहले नई फसल आने पर अनाज के भाव गिरते थे। इस साल उल्टा हुआ है। उन्होंने बताया कि इस साल तुअर दाल के उत्पादन में करीब 40 प्रतिशत की कमी आई है, वहीं चावल में यह कमी 35 प्रतिशत है।
भोजन की एक थाली कितने की? स्वास्थ्य जिंदगी जीने के लिए कैलोरी, कार्बोहाईड्रेट्स, प्रोटीन और विटामिन की संतुलित मात्रा आवश्यक है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अनुसार इस मानक को पूरा करने के लिए आदमी को प्रतिदिन 50 ग्राम दाल, 200 ग्राम सब्जी, 520 ग्राम अनाज, 45 ग्राम तेल और 200 ग्राम दूध का सेवन आवश्यक है। इसी आधार पर यदि पिछले एक साल में एक थाली के कीमत का विशलेषण करें तो भारी परिवर्तन दिखेगा। उपभोक्ता मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार जून 2008 में 50 ग्राम दाल की 2.10 रूपये थी जो जून 2008 में 2.50 रुपये हो गई। हालांकि इस बीचत 200 ग्राम सब्जी 5.50 रुपये से घटकर 5 रूपये हो गई। पर वहीं 520 ग्राम अनाज की कीमत 6.75 से बढ़कर 9 रुपये गई है। 45 ग्राम तेल 2.85 रुपये से बढ़कर 4 रुपयेा और 200 ग्राम दूध 3.60 रुपया से 4 रुपया को हो गया। इस तरह खाने की जो थाली जून 2007 में 20.75 रुपये की पड़ती थी, वह जून 2008 में 25.4 रुपये की हो गई। यदि इसमें खाना बनाने के ईंधन की कीमत जोड़ दें तो जून 2007 में यह थाली 23.75 रुपये की पड़ती थी। जून 2008 तक रसोई गैस के बढ़े हुए दामों को जोडऩे पर प्रतिदिन के हिसाब से 28.40 रुपये यानी एक साल में न्यूनतम जरूरत वाली मानक भोजन की थाली 4.65 रुपये हो गई। यदि एक दिन में एक व्यक्ति पर औसतन दो थाली की कीमत देखी जाए तो 56.80 रुपये का खर्च बैठता है। यानी मानक मीनू के मुताबिक एक माह में एक व्यक्ति पर करीब 1700 रुपये का खर्च। परिवार में चार लोग हो तो करीब 6800 रुपये का खर्च। उपभोक्ता मंत्रालय के इन आंकड़ों के बाद हाल ही में प्रकाशित राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन की रिपोर्ट के साथ मिलाने पर देश की एक खतरनाक तस्वीर उभरती है। रिपोर्ट के मुताबिक देश की 30 प्रतिशत आबादी एक दिन में सिर्फ 10 रुपये से ज्यादा खर्च करने की स्थिति में नहीं है।
आने वाले साल में खाना और महंगा होगा : संयुक्त राष्ट्र संघ की गत दिनों जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले दस सालों में खाद्यान्नों की कीमतों में 30 से 35 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है। इसके चलते गरीबी रेखा से नीचे के लोगों की कमाई का करीब 90 प्रतिशत हिस्सा पेट की आग बुझाने पर ही खर्च हो जाएगा। रिपोर्ट में चेताया गया है कि ऐसी स्थिति से बचने के लिए खाद्यान्न पैदावार और प्रसंस्करण प्रक्रिया में बड़े बदलाव करने होंगे।
नष्टï हो जाता है उत्पाद का आधा हिस्सा : दुनिया भर में खाद्यान्न पैदावार का करीब आधा हिस्सा नुकसान हो जाता है या फेंक दिया जाता है। इस आहार श्रृंखला के प्रबंधन का तरीका सुधार लिया जाए तो दुनिया की पूरी आबादी का पेट भरा जा सकता है। रिपोर्ट कहती है कि दुनिया में अनाज का एक तिहाई से अधिक हिस्सा पशु आहार में इस्तेमाल किया जा रहा है और वर्ष 2050 तक इसका अनुपात बढ़कर 50 प्रतिशत हो जाएगा।
विश्व पर एक नजर : विश्व को 2,0980 लाख टन खाद्यान्न की जरूरत है, लेकिन उत्पादन 2,0750 लाख टन है। वर्तमान खपत के अनुसार 2030 तक पैदावार डेढ़ गुनी करनी होगी वर्ष 2007 में विश्व स्तर पर गेहूं की कीमत में 92 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई
भारत की स्थिति पर एक नजर : 1961 से 2002 के बीच 2.6 करोड़ हेक्टेयर खेती का क्षेत्र घटा। प्रति किसान के हिस्से की भूमि में 60 प्रतिशत की कमी आई। देश में कुल बुआई क्षेत्र 1210 लाख हेक्टेयर है। इसमें 550 लाख हेक्टेयर ही उपजाऊ जमीन है। इस समय भारत में 47 प्रतिशत बच्चे औसत से कम वजन के होते हैं।
अभी और रुलाएगा प्याज : भारतीय व्यंजन में प्याज का विशेष स्थान है। अधिकतर लोगों को बगैर प्याज की सब्जी पसंद नहीं आती है। साल भर में प्याज की खेती तीन बार होती है। एक माह पहले दस रुपये किलो तक बिकने वाला प्याज इन दिनों 14 से 18 रुपये प्रति किलो है। जानकारों का कहना है कि 2008-09 के दौरान 76.3 लाख टन की रिकार्ड पैदावार के बाद भी घरेलू बाजार में प्याज का भाव आसमान छू रहा है। सप्ताह भर पहले तक मंडी में प्याज का थोक भाव 1,200 रुपये प्रति क्विंटल तक था। गत छह महीने में प्याज के कीमतों में 43 प्रतिशत तक भाव बढ़े हैं।
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