अयोध्या प्रकरण। इंंतजार खत्म होने को है। कुछ भी हो सकता है। संभवत देश एक नई करवट ले। इस करवट से शायद किसी समुदाय विशेष को चैन न मिले। पर एक बात तो तय-सी दिखती है, प्रकरण उच्चतम न्यायालय जाएगा जरूर। यदि किसी पक्ष को उच्चम न्यायालय की शरण में जाने से देश को 1992 जैसे हालात नहीं देखने को मिले तो अच्छा होगा।
जमाना गुजर चुका है, नई पीढ़ी को न मंदिर चाहिए और न ही मस्जिद। सुख-चैन से रोटी चाहिए। अच्छी पैकेज की नौकरी। एैस की जिंदगी। ऐसी पीढ़ी की एक पौध और आ जाए फिर कहां कोई पूछेगा अयोध्या को।
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1 टिप्पणी:
सजय बाबू, सही कहा है आपने....अपने देश में सभी को रोटी मिले यही बड़ी बात है.... नहीं चाहिए मंदिर-मस्जिद... 70 प्रतिशत कृषि प्रधान वाले देश में उन्हें तो बस रोटी की ही तलाश है...
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