अन्नदाता का ादाता अर्थशास्त्र
खेती-किसानी की दुर्दशा ने छोटे किसानों तक को खेती का अर्थशास्त्र समङाा दिया है। आ वह जमाना नहीं रहा, जा किसानों के दरवाजे पर ौाो की जोड़ी जुगााी करती नजर आती थी। ौा की जोड़ी रखना मताा कुछ महीने के काम के एवज में साा भर उन्हें भरपूर भोजन देना। जुताई का यह सौदा किसानों के ािए भारी पड़ चुका है। ौाजोड़ी साा में सिर्फ ६० दिन भी जुताई के काम में नहीं आ रहे हैं। जाकि उसके भरण-पोषण पर साा भर में हजारों रुपए खर्च हो जाता है। पहो ौागाड़ी का उपयोग ज्यादा था, तो यातायात के साधन या वस्तुओं को ढोने का उपयोग करने में होने वााी आमदनी से ौाों के खिााने का खर्च निकाा आता था। किसानों को भी कुछ रुपये ाच जाते थे। ोकिन आ ौागाड़ी का उपयोग कही-कहीं ही नजर आता है। ािहाजा, अधिकर किसानों ने ौाों से मुंह मोड़ ािया। उन्होंने ौा की जगह गाय, भैंस पााना शुरू कर दिया है। गाय, भैंस किसान को साा में करीा ३०० दिन दूध देती है। इसके ााान-पाान पर होने वाा इसके दूध से पूरा होने के ााद किसानों को कुछ ाचत भी हो जाती है। होशियार छोटे किसानों खेतों में जुताई के समय दो-तीन दिन के ािए ट्रैक्टर किराये से ोते हैं। सााभर ौाजोड़ी को पााने की ाजाय यह दो दिन का ट्रैक्टर किराये पर ोना फायदेमंद सााित हुआ है। इसका एक ााभ यह भी देखने को मिाा है कि कई छोटे किसान तो ऐसे हैं, जो खुद खेती नहीं करते हैं, खेती को किराये (ाीज) पर छोड़ देते हैं और खुद नरेगा में मजदूरी करते हैं। इसके साथ ही जिन किसानों के पास ट्रैक्टर है, वे खुद के खेतों में जुताई करते ही हैं और दूसरों की खेती का भी ऑर्डर ोते हैं। ऐसे किसानों का अर्थशास्त्र ादाने ागा है। फिाहाा किसानों का यह अर्थशास्त्र उत्तर भारत में ज्यादा देखने का मिा सकता है। अनेक संगठन और कार्यकर्ता खेतों में ौाों के उपयोग नहीं करने का विरोध कर रहे हैं। ोकिन किसानों ने ट्रैक्टर और ौाों के उपयोग के ााभ-हानि को समङा ािया है। इस अर्थशास्त्र को देशभर के किसानों को भी समङााने की जरुरत है। महाराष्ट्र में विदर्भ किसान आत्महत्या को ोकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रहा है। ोकिन अभी भी यहां किसानों का ौाों के प्रति मोह नहीं छूटा है। यहीं कारण है कि जा गर्मी के दिनोंं में विदर्भ में सूखा पड़ता है तो चारे का संकट गंभीर हो जाता है। हजारों ौाों को कसाई सस्ते में खरीद ोते हैं। खेती में उपयोग होने वाो ौंा ाूचड़खाने में चो जाते हैं। हााांकि विदर्भ में भी धीरे-धीरे किसान गाय और भैंसों का ााभ समङाने ागे हैं। ोकिन अभी भी ाड़े पैमाने पर गाय का पाान नहीं हो पा रहा है।
महंगाई में ौाों का महत्व
किसानों को तकनीक अधारित खेती कराई जाए। वे ट्रैक्टर का उपयोग करे, ोकिन इसका मताा यह नहीं ौाों उपेक्षा की जाए। गुजरे ज्+ामाने में जा ट्रैक्टर नहीं थे, तो ौाों ने ही अपने खेती का भारी ाोङा उठाने में किसानों का कदम से कदम मिााकर साथ दिया है। भो ही आज यातायात के नये और तेज साधन विकसित हो चुके हों, ोकिन पेट्रोाियम पदार्थों में ागी महंगाई की आग में छोटी दूरी के यातायात में ौागाड़ी के उपयोग को फिर से सुगम किया जा सकता है। इससे न केवा ौा ाूचड़खाने जाने से ाचेंगे, ाकि ोकार हो रहे किसानों की ौा जोड़ी कमाई में ाग जाएगा। वे किसानों को आमदनी कराने के आर्थिक रूप से संाा का कार्य कर सकते हैं। हााांकि उत्तर भारत में किसानों ने ाड़ी तेजी से ट्रैक्टर का उपयोग अपनाया है। ोकिन पेट्रोाियम पदार्थों की ाढ़ी हुई किमतों के कारण आ छोटे किसानों के ािए टै्रक्टर किराये से ोना महंगा पडऩे ागा है। महंगाई की इस मार को देखते हुए आ यह जरूरी हो गया है कि किसान खेती की अर्थशास्त्र में आ गाय-भैंसों के साथ ौाों को फिर से शामिा करें। ोकिन इसके ािए उन ाोगों का सहयोग अपेक्षित है जो छोटी दूरी की समान ढुााई में वाहनों का प्रयोग करते हैं। वे तेज गति की ााचा छोड़ यदि ौागाड़ी को ही तरहजीह देने ागे तो इससे न केवा किसानों के दिन फिरेंगे, ाकि ौा भी ाूचड़खाने में जोन से ाचेंगे।
हर राज्य में स्वतंत्र कृषि अभियांत्रिकी विभाग जरूरी
वर्षों से चाी आ रही है राज्य और केंद्र सरकार की कृषि ईकाइ किसानों को ाहुत ज्यादा भाा नहीं कर पाई। इसािए हर राज्य में आधुनिक और हानि रहीत खेती को प्रोत्सहन के ािए हर राज्य में स्वतंत्र कृषि अभियांत्रिकी विभाग का गठन जरूर हो गया है। जो समय-समय किसानों को खेती से संांधित जानकारी उपाध कराये। मौसम की वैज्ञानिकता को ाताये। जिससे कि किसान मानसून पूर्व ाारिश को मानसून का पानी समङा कर ङाांसे में न आये। उसे सटीम जानकारी मिो। हााांकि तमिानाडु सरकार ने स्वतंत्र रूप से कृषि अभियांत्रिकी विभाग का गठन किया है। इसके परिणाम भी अच्छे आए हैं। इससे किसानों को ााभ मिाा है। मध्यप्रदेश, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश में भी इसे स्वतंत्र विभाग ानाने की कवायद चा रही है। यदि हर राज्य इस तरह का स्वतंत्र विभाग गठित करें, तो किसानों का अर्थशात्र और मजाूत होगा। -संजय स्वदेश
मंगलवार, फ़रवरी 08, 2011
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