रविवार, सितंबर 25, 2011
दवा प्रयोग का अड्डा बना देश भारत
तीन वर्ष में क्लिनिकल ट्रायल में 1,593 की मौत
नई दिल्ली। बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों के लिए भारत क्लिनिकल ट्रायल का प्रमुख अड्डा बन गया है। पिछले तीन वर्षों के दौरान देश में दवाओं के परीक्षण के कारण 1,593 लोगों की मौत हुई है जबकि केवल 22 मामलोें में ही कंपनियों ने मुआवजा दिया, वह भी मामूली।
सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तरह प्राप्त जानकारी के अनुसार भारत में क्लिनिकल ट्रायल के दौरान साल 2008 में 288 लोगों की मौत हुई जबकि 2009 में 637 लोगों और 2010 में 668 लोगों की मौत हुई है । हालांकि इन तीन वर्षों में केवल पिछले साल कंपनियों की ओर से 22 मामलों में ही मुआवजा दिया गया।
सरकार के निगरानी तंत्र की कुशलता का पता इसी से चलता है कि साल 2010 में क्लिनकल ट्रायल के दौरान 668 लोगों की मौत हुई, लेकिन उसके पास 22 मामलों में ही बहुराष्ट्रीय कंपनियों की ओर से दिये गए मुआवजे की जानकारी थी। साल 2010 में बहुराष्टÑीय कंपनियों ने महज 53 लाख 33 हजार रुपये का मुआवजा प्रदान किया। इस तरह से एक जान की औसत कीमत महज ढाई लाख रुपये आंकी गई।
इस अवधि में बहुराष्ट्रीय कंपनी लिली ने सबसे कम एक लाख आठ हजार रुपये का मुआवजा दिया, जबकि पीपीडी कंपनी ने 10 लाख रुपये मुआवजा प्रदान किये। मुआवजा देने वाली कंपनियों में मर्क, क्विनटाइल्स, बेयर, एमजेन, ब्रिस्टल मेयर्स, सानोफी और फाइजर भी शामिल है।
बहरहाल, विश्व स्वास्थ्य संगठन (ंडब्ल्यूएचओ) की ताजा रिपोर्ट में एसोसिएटेड चैम्बर्स आॅफ कामर्स एंड इंडस्ट्री का हवाला देते हुए कहा गया है कि 2010 में भारत में क्लिनिकल ट्रायल का कारोबार करीब एक अरब डालर का हो गया है और साल 2009 की तुलना में इसमें 20 करोड़ डालर की वृद्धि दर्ज की गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि दवा कंपनियों के भारत में क्लिनिकल ट्रायल करने के कई कारण हैं, जिसमें तकनीकी तौर पर दक्ष कार्यबल, मरीजों की उपलब्धता, कम लागत और सहयोगात्मक दवा नियंत्रण प्रणाली शामिल है।
मौत का आंकड़ा
वर्ष मौत2008 288
2009 637
2010 668
करोबार
वर्ष कारोबार2010 1 अरब डॉलर
2009 80 करोड़ डॉलर
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