रविवार, जुलाई 10, 2016
विकास की कुल्हाड़ी से कटेगा बदहाली का पेड़
संजय स्वदेश
ऐसे कई छोटे व बदहाल देश हैं, जहां गरीबी-कुपोषण और बदहाली को दूर कर विकास की बयार बहाने के लिए भारत कर्ज देती है। लेकिन अपने ही देश में कई ऐसे राज्य हैं जो अपने यहां की बदहाली दूर कर विकास की गंगा बहाने के लिए केंद्र सरकार से फंड के लिए तरसते रहते हैं। बीते सप्ताह बिहार सरकार ने गरीबी से लड़ने के लिए विश्व बैंक से 1937 करोड़ का कर्ज लेने का कारार किया। हमेशा केंद्र सरकार पर निशाना साधने वाली बिहार सरकार के इस कर्ज के लिए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार गारंट बनी। जब विकास की बात एकल व्यक्ति का हो अथवा परिवार या समाज या राज्य या राष्टÑ की हो तो बिना धन के योजनाओं का क्रियान्वयन महज कोरी कल्पना कहलाएगी। यह अच्छी बात है कि विकास के मुद्दे पर कभी-कभी केंद्र और राज्य की सरकारें एक हो जाती हैं। कितना अच्छा होता कि ऐसा हमेशा होता। विश्व बैंक का कर्ज जल्द मिलता है और उसका क्रियान्वयन बिना भ्रष्टाचार के होता है तो निश्चय ही बिहार के विकास की एक नई क्रांति का आगाज होगा। विश्व बैंक के मुताबिक यह रुपएा ग्रामीणों को स्वयं सहायता समूह बनाने, बाजार व सार्वजनिक सेवाओं तथा वित्तीय सेवाओं तक पहुंच उपलब्ध कराने में खर्च होगा। उन्हें बैंकों तथा अन्य प्रतिष्ठानों के जरिए वित्तीय सहायता मुहैया कराई जाएगी। हमेशा परदे में महिलाओं को सहेजने वाल राज्य के समाज में इन परियोजनाओं में महिलाओं को तबज्जों मिलेगी, यह और भी सराहनीय है। महिला सशक्तिकरण की दिशा ओर यह एक मजबूत कदम होगा। ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी कृषि कार्यों में महिलाओं की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है। लेकिन उस पर मालिकाना हक से वे वंचित हैं। योजना में महिलाओं की स्वामित्व वाली कृषि उत्पाद कंपनियों की स्थापना के लिए मदद मिलेगी, यह सराहनीय है। उम्मीद है कि इससे बिहार की 18 लाख महिलाओं को लाभ मिलेगा। पंचायती चुनाव में महिलाओं की सशक्त भागीदारी के बाद शराबबंदी ने बिहार में महिला जमात के हौसलें बुलंद हैं। घर के मर्दों के सहारे ही सही वे दहलीज से बाहर निकल रही हैं। साइकिल या छात्रवृत्ति का लालच ही सही, बेटियां घर से बाहर निकलीं और पढ़ने लगी। अभी भी उच्च शिक्षा में लड़कियां पिछड़ी हैं, लेकिन हालत देखकर लगत हैं कि स्थिति देर की हैं अंधेर की नहीं। हालात एक दिन में नहीं बदलते हैं। धीरे-धरे ही बिहार में बदहाली और महिला शोषण की मानसिकता की गहरी पैठ बनी है। इसी जड़ें मजबूत हैं। जिस तरह कोई मजबूत और पुराना पेड़ कुल्हाड़ी के धीरे-धीरे के बार से कटता है, वैसे ही बिहार में विकास की कुल्हाड़ी से ही धीरे-धीरे बदहाली के जड़ों पर पड़ने वाले प्रहार इसे काट फेंकेंगे।
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