संजय स्वदेश
अन्ना के आंदोलन के समय मणिपुर में एक दशक से ज्यादा समय से अनशनरत इरोम की याद आ रही है।
सबसे पहले तो हमें मणिपुर की हकीकत समझनी चाहिए। इस प्रांत की भारी उपेक्षा के बाद वहां के निवासियों में अलगाव की जो ग्रंथी अब बैठ चुकी है, उसे न सेना हटाकर खत्म किया जा सकता है, और ना ही वहां सेना लगाकर। इरोम को मुद्दा गंभीर है। इरोम के साथ होना या न होना लंबी चर्चा का विषय है।
मणिपुर की स्थानीय राजनीति में अलगाववादी तत्व पूरी तरह से हावी है। सरकार की कोई भी विकासात्मक योजना यहां सफल नहीं होने देते हैं। केंद्र सरकार के भारी-भरकम पैकेज के बाद भी वहां के लोग केंद्र सरकार पर उपेक्षा का दोष मढ़ते हैं। वहां की मीडिया पर भी अलगावादी तत्व ज्यादा हावी है। बदहाली की व्यस्था वहां के आम लोगों की नियति बन गई है।
देश-के दूसरे प्रांतों के लोगों केवल खबरों को पढ़ कर अलगाववादियों के सुर में सुर न मिलाना कर
हमदर्दी जताने वाले छुट्टियों में मणिपुर के सुरुरक्षेत्रों में भ्रमण करने जाये तो हकीकत से रू-ब-रू होंगे।
वहां तैनात सैन्य बलों पर कई बार महिला उत्पीड़न का आरोप लगाया जाता है, लेकिन वहां के महिला संगठनों का वहां के अलगाववादी तत्व कैसे उपयोग करते हैं, इसे समझना जरुरी है। करीब हर सामाजिक व अन्य संगठन अलगावादियों के प्रभाव में है। मणिपुर में पुरुषों में शराब की लत को रोकने के मीरा पाइजी नाम का महिलाओं का एक संगठन बनाया गया। कुछ समय तक तो यह संगठन अपने उद्देश्यों के लेकर जोर-शोर से सक्रिय रहा। पर धीरे-धीरे संगठन का जोश-खरोश शांत हो चुका है। अब मीरा पाइजी भी अलगावादियों से मिलकर काम करती है। एक तरह से कहें तो महिलाओं का यह संगठन पूरी तरह से उनके ही नियंत्रण में है। कई महिलाएं अब अलगावादियों के लिए मुखबीर का काम करती है। जब भी कोई अलगावादी सेना के चंगुल में फंसता है। मीरा पाइजी पूरी तरह से विरोध में उतर जाती है। सेना के वाहन के सामने लेट जाती है। कहती हैं कि वह निर्दोष और आम आदमी है।
मणिपुर के सेनापति जिले के मफाऊ में भी अंसल कंपनी एक बड़ी बांध परियोजना पर कार्य कर रही है। बांध थोबल नदी से जोड़ कर बनाया जा रहा है। इसमें राज्य की सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग डैम बनाने में सहयोग कर रहा है। इस परियोजना को शुरू हुए बीस साल हो चुके हैं। अभी तक बांध का 25 प्रतिशत कार्य भी पूरा नहीं हो पाया। सरकार की तमाम सुरक्षा के बाद भी यह परियोजना अधर में है। नगा और कुकी समुदाय के संगठन बार-बार परियोजना में वसूली के लिए टांग अड़ा देते हैं। पैसे नहीं देने पर यहां काम करने वाल कमर्चारियों का अपहरण कर लिया जाता है। बीच-बीच में जैसे ही ठेके की रकम ठेकेदार को मिलती है, अलगावादी उससे रुपये देने की मांग कर देते हैं। ठेके की मंजूरी की आधी रकम तो वसूली में ही चली जाती है।
पूर्वी इंफाल जिले में पेयजल की समस्या गंभीर है। पेयजल की स्थिति को देखते हुए मणिपुर सरकार ने 1996 में इस क्षेत्र में 90 करोड़ रुपये की लागत से एक बांध बनाने की परियोजना शुरू की थी। तेरह साल में बांध का दस प्रतिशत कार्य भी पूरा नहीं हो पाया। इसका बजट 90 करोड़ से बढ़ कर 2200 करोड़ रुपये का हो गया। कब पूरा होगा कुछ कहा नहीं जा सकता है। जैसे-जैसे ठेकेदार यूजी को अनुदान देते है कार्य की गति बढ़ती जाती है।
कहते हैं कि देशभर में हिंदी संपर्क भाषा है, लेकिन मणिपुर में हिंदी की हालत खराब है। ऐसी बात नहीं है कि वहां हिंदी बोलने-समझने वाले नहीं है, लेकिन को प्रभावशाली नहीं होने यिा जा रहा है। भले ही अलगावादी हिंदी सिनेमा के दिवाने हों, लेकिन सिनेमा हॉल में बॉलीवुड की फिल्में नहीं चलती हैं। वहां काम व व्यवसाय करने वालों से लेकर नौकरी पेशा वालों को अलगावादी संगठनों को वार्षिक चंदा देना पड़ता है। क्या शर्मिला के समर्थन की बात करने वालों इसे पर बहस करेंगे कि केंद्र सरकार के युद्ध विराम के बाद भी ऐसा क्यों हो रहा है।
शायद ही आपने मीडिया में कहीं खबर पढ़ी होगी कि वर्ष 2009 में एक मुद्दे को लेकर अलगावादी तत्वों ने वहां के स्कूलों को बंद करा दिया। तीन महीने तक स्कूल बंद रहे। पर बेवश सरकार इनके सामने कमजोर पड़ी रही। बच्चों की पढ़ाई चौपट हो हुई। एक निजी स्कूल ने चोरी-छिपे स्कूल खोल कर बच्चों को पढ़ाने की कोशिश की तो स्कूल को जला दिया गया। मणिपुर के गरीब वर्ग के बच्चों को बड़े होकर भी गरीबी देखते हुए अलगावाद से जुड़ना नियति हो चुकी है। दिल्ली और अन्न शहरों में चमक-दमक से दिखने वाले और पढ़ने वाले अधिकतर विद्यार्थी किसी न किसी अलगावादी संगठन से जुड़े सदस्य के परिवार के ही होते हैं। तभी तो हिंसा उनके चरित्र में होती है। दिल्ली में उन्हें हिंदी भाषी चिंकी बोलते हैं। चिंकी मतलब छोटें आंखों वाला। पर कभी चिंकी बोलने वालों ने यह नहीं सोचा होगा कि वे हिंदी भाषियों को क्या बोलते होंगे। अपनी भाषा में वे हिंदी भाषियों को म्यांग बोलते हैं। म्यांग मतलब-ऊंची नाक वाला।
इरोम शर्मिला के अनशन का उद्देश्य भले ही पाक साफ हो, पर इरोम अनशन में अपने राज्य की एक दशक में बदल चुकी हकीकत नहीं समझ रही है। यदि समझती तो सबसे पहले वह राज्य सरकार के खिलाफ ही धरना पर बैठ जाती, अनशनरत इरोम को क्या पता कि हर राज्य की लोकतांत्रिक सरकार है, पर मणिपुर की लोकतांत्रिक सरकार वहां की अलगाववादी तत्वों के साथ जियो और जीने दो की नीति के साथ चल रही है। युद्ध विराम के बाद भी अलगाववादियों की समानांतर सरकार चल रही है।
संजय स्वदेश
कार्यकारी संपादक
समाचार विस्फोट
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मंगलवार, अगस्त 30, 2011
मंगलवार, अगस्त 09, 2011
शुक्रवार, अगस्त 05, 2011
मन में न करो भ्रष्टाचार को नमन
संजय स्वदेश
सरकार के चतुर मंत्री पहले से ही किसी न किसी तरह से लोकपाल को कमजोर करने जुगत में थे। प्रधानमंत्री और जजों के इसके दायरे में नहीं आने के बाद भी यदि यह ईमानदारी से लागू हो तो कई बड़ी मछलियां पकड़ी जाएंगी। पर महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या लोकपाल की व्यवस्था से देश से भ्रष्टाचार मिट जाएगा। देश में और भी कई एजेंसियां इस कार्य के लिए सक्रिय हैं। एक इकाई पुलिस की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा भी है। जरा इसकी कार्यप्रणाली पर गौर करें।
महीने में तीस कार्रवाई भी नहीं होती। इस विभाग में आने वाले अधिकारी आराम फरमाते हैं। यदि कोई शिकायत लेकर आ भी जाए तो पहले उससे पुलिसिया अंदाज में पूछताछ की जाती है। पूरे ठोस प्रमाण प्रार्थी के पास हो तो कार्रवाई होती है। नहीं तो शिकायत पर, यह विभाग कई बार भ्रष्टाचारी से मिल जाता है। उससे कुछ ले-देकर मामला रफा-दफा कर देता है। ऐसी शिकायतें लेकर इक्के-दुक्के लोग ही आते हैं। कई मामलों में ऐसा पाया गया है कि जब कोई कोई भ्रष्टाचार पीड़ित दुखिया एसीबी के द्वार पर जाता है तो उसकी शिकायत ले कर चुपके-चुपके संबंधित विभाग से सांठगांठ कर ली गई। कई प्रकरणों में रंगे हाथ पकड़े जाने के महीनों बाद तक भी कोर्ट में चालान पेश नहीं किया गया। इसी तरह भ्रष्टाचार पर नकेल के लिए सतर्कता आयोग भी है। पर थॉमन प्रकरण ने जाहिर कर दिया कि इस आयोग के मुखिया भ्रष्टाचार के आरोपी भी हो सकते हैं। तक क्या खाक ईमानदारी से कार्य होने की अपेक्षा होगी।
एक और बात सुनिये। आम जनता जिस सीबीआई को सबसे विश्वसनीय जांच एजेंसी मानती है, उसी सीबीआई के 55 अधिकारी भ्रष्टाचार और आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति के व अन्य आरोपों का सामना कर रहे हैं। यह कहने वाला कोई विपक्षी या सामाजिक कार्यकर्ता नहीं है। इसकी जानकारी कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मामलों के राज्य मंत्री वी नारायणसामी ने 4 अगस्त को संसद में थी। इन अधिकारियों में 20 के खिलाफ रिश्वत और आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति के आरोप हैं। जब जांच एजेंसियों की अंदरुनी हकीकत भ्रष्टाचार है, तो फिर ईमानरी के कायास कहां लगाये जायें।
भ्रष्टाचार के मामले में रंगे हाथ पकड़े जाने के बाद भी लंबी न्यायिक प्रक्रिया और उसमें से बच निकलने की संभावना भ्रष्टाचारियों के इरादे को नहीं डगमगा पाती है। यदि ऐसे मामले में एक साल के अंदर ही दोषी को सजा दे दी जाए तो जनता में विश्वास भी जगे। पर एक दूसरी हकीकत यह है कि जनता बैठे-बिठाये यह चाहती है कि देश से भ्रष्टाचार खत्म हो जाए, जो संभव नहीं है। लोकतंत्र के नस-नस में भ्रष्टाचार घुलमिल गया है। सरकारी महकमे में जिनका भी काम पड़ता है, वे भ्रष्टाचार से संघर्ष के बिना सीधे घुटने टेक देते हैं। इस हार को जनता बुद्धिमानी कहती है। यह व्यवहारिक है। कौन बाबू से लड़ने झगड़ने जाए। इस सोच ने भ्रष्टाचार की जड़ें मजबूत कर दिया है। यदि कोई लड़ने भी जाए तो उसके कागजों में तरह-तरह के नुस्क निकाल कर इतना प्रताड़ित किया जाता है कि वह घुटने टेकना मजबूरी हो जाती है। लिहाजा, जनता के लिए भ्रष्टाचार के सामने नतमस्तक की बेहतर विकल्प अच्छा लगता है। इस सोच के रहते भ्रष्टाचार के खत्म और सुशासन की कल्पना, कल्पना भर है।
हकीकत में भ्रष्टाचार मिटाना है तो जनता के मन से भ्रष्टाचार को नमन की प्रवृत्ति मिटानी ही पड़ेगी। भ्रष्टाचार के विरूद्ध क्रांति की बात करने वालों को पहले जनता के मन से इस सोच को मिटाने के लिए आंदोलन चलाना चाहिए। जब तक यह सोच खत्म नहीं होगी, भ्रष्टाचार की जड़ कमजोर नहीं होगी। यदि यह बात गलत होती तो देश में भ्रष्टाचार के विरुद्ध क्रांति के तमाम कारण होने के बावजूद भी किसी क्रांति की सुगबुगाहट नहीं है।
सरकार के चतुर मंत्री पहले से ही किसी न किसी तरह से लोकपाल को कमजोर करने जुगत में थे। प्रधानमंत्री और जजों के इसके दायरे में नहीं आने के बाद भी यदि यह ईमानदारी से लागू हो तो कई बड़ी मछलियां पकड़ी जाएंगी। पर महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या लोकपाल की व्यवस्था से देश से भ्रष्टाचार मिट जाएगा। देश में और भी कई एजेंसियां इस कार्य के लिए सक्रिय हैं। एक इकाई पुलिस की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा भी है। जरा इसकी कार्यप्रणाली पर गौर करें।
महीने में तीस कार्रवाई भी नहीं होती। इस विभाग में आने वाले अधिकारी आराम फरमाते हैं। यदि कोई शिकायत लेकर आ भी जाए तो पहले उससे पुलिसिया अंदाज में पूछताछ की जाती है। पूरे ठोस प्रमाण प्रार्थी के पास हो तो कार्रवाई होती है। नहीं तो शिकायत पर, यह विभाग कई बार भ्रष्टाचारी से मिल जाता है। उससे कुछ ले-देकर मामला रफा-दफा कर देता है। ऐसी शिकायतें लेकर इक्के-दुक्के लोग ही आते हैं। कई मामलों में ऐसा पाया गया है कि जब कोई कोई भ्रष्टाचार पीड़ित दुखिया एसीबी के द्वार पर जाता है तो उसकी शिकायत ले कर चुपके-चुपके संबंधित विभाग से सांठगांठ कर ली गई। कई प्रकरणों में रंगे हाथ पकड़े जाने के महीनों बाद तक भी कोर्ट में चालान पेश नहीं किया गया। इसी तरह भ्रष्टाचार पर नकेल के लिए सतर्कता आयोग भी है। पर थॉमन प्रकरण ने जाहिर कर दिया कि इस आयोग के मुखिया भ्रष्टाचार के आरोपी भी हो सकते हैं। तक क्या खाक ईमानदारी से कार्य होने की अपेक्षा होगी।
एक और बात सुनिये। आम जनता जिस सीबीआई को सबसे विश्वसनीय जांच एजेंसी मानती है, उसी सीबीआई के 55 अधिकारी भ्रष्टाचार और आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति के व अन्य आरोपों का सामना कर रहे हैं। यह कहने वाला कोई विपक्षी या सामाजिक कार्यकर्ता नहीं है। इसकी जानकारी कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मामलों के राज्य मंत्री वी नारायणसामी ने 4 अगस्त को संसद में थी। इन अधिकारियों में 20 के खिलाफ रिश्वत और आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति के आरोप हैं। जब जांच एजेंसियों की अंदरुनी हकीकत भ्रष्टाचार है, तो फिर ईमानरी के कायास कहां लगाये जायें।
भ्रष्टाचार के मामले में रंगे हाथ पकड़े जाने के बाद भी लंबी न्यायिक प्रक्रिया और उसमें से बच निकलने की संभावना भ्रष्टाचारियों के इरादे को नहीं डगमगा पाती है। यदि ऐसे मामले में एक साल के अंदर ही दोषी को सजा दे दी जाए तो जनता में विश्वास भी जगे। पर एक दूसरी हकीकत यह है कि जनता बैठे-बिठाये यह चाहती है कि देश से भ्रष्टाचार खत्म हो जाए, जो संभव नहीं है। लोकतंत्र के नस-नस में भ्रष्टाचार घुलमिल गया है। सरकारी महकमे में जिनका भी काम पड़ता है, वे भ्रष्टाचार से संघर्ष के बिना सीधे घुटने टेक देते हैं। इस हार को जनता बुद्धिमानी कहती है। यह व्यवहारिक है। कौन बाबू से लड़ने झगड़ने जाए। इस सोच ने भ्रष्टाचार की जड़ें मजबूत कर दिया है। यदि कोई लड़ने भी जाए तो उसके कागजों में तरह-तरह के नुस्क निकाल कर इतना प्रताड़ित किया जाता है कि वह घुटने टेकना मजबूरी हो जाती है। लिहाजा, जनता के लिए भ्रष्टाचार के सामने नतमस्तक की बेहतर विकल्प अच्छा लगता है। इस सोच के रहते भ्रष्टाचार के खत्म और सुशासन की कल्पना, कल्पना भर है।
हकीकत में भ्रष्टाचार मिटाना है तो जनता के मन से भ्रष्टाचार को नमन की प्रवृत्ति मिटानी ही पड़ेगी। भ्रष्टाचार के विरूद्ध क्रांति की बात करने वालों को पहले जनता के मन से इस सोच को मिटाने के लिए आंदोलन चलाना चाहिए। जब तक यह सोच खत्म नहीं होगी, भ्रष्टाचार की जड़ कमजोर नहीं होगी। यदि यह बात गलत होती तो देश में भ्रष्टाचार के विरुद्ध क्रांति के तमाम कारण होने के बावजूद भी किसी क्रांति की सुगबुगाहट नहीं है।
सोमवार, अगस्त 01, 2011
खनिज संपदा, प्राकृतिक गैस के लिए ‘समु्रद मंथन’
2014 तक करीब 90 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के सर्वेक्षण की योजना
नई दिल्ली। बंगाल की खाड़ी, खम्भात की खाड़ी और अंडमान क्षेत्र से लगे सागर
में मौजूद अमूल्य खनिज संपदाओं, प्राकृतिक गैस, परतों की बनावट एवं धातु
तत्वों की मौजूदगी आदि का पता लगाने के लिए सरकार ने अपतटीय एवं समु्रदी
सर्वेक्षण शुरू किया है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव शैलेश नायक ने
कहा कि इस योजना के तहत 2014 तक करीब 90 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के
सर्वेक्षण की योजना बनाई गई है। यह काम भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण (जीएसआई)
के सहयोग से किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण के तहत पश्चिमी
बंगाल की खाड़ी में ‘गैस सर्वेक्षण’ की अहम योजना को आगे बढ़ाया जा रहा है।
राष्ट्रीय अंटार्कटिक एवं समुंद्र अनुसंधान केंद्र (एनसीएओआर) गोवा भी
शामिल है। समुद्र सर्वेक्षण की योजना के तहत पूर्वी और पश्चिमी अपतटीय
क्षेत्र में हाइड्रोकार्बन के भूगर्भ रसायन के आकलन के लिए जीएसआई के साथ
तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग की भी मदद ली जा रही है।
इस योजना के तहत 2013-14 के लिए जिन योजनाओं को रेखांकित किया गया है,
उनमें बंगाल की खाड़ी में समु्रद तल में ढांचागत बदलाव और चुंबकीय पैटर्न
में परिवर्तन का अध्ययन शामिल है। इसमें सुमात्रा में आए भूकंप के
मद्देनजर ग्रेट निकोबार द्वीप पर पड़ने वाले प्रभाव और पश्चिमी तटीय
क्षेत्र में फास्फोरस तत्वों का पता लगाया जाएगा।
अपतटीय एवं समु्रदी सर्वेक्षण योजना के तहत, तमिलनाडु और उड़ीसा से लगे
समु्रदी क्षेत्रों में खनिज संसाधनों का मूल्यांकन किया जाएगा। अधिकारी
ने बताया कि हिंद महासागर में एक ऐसे उपकरण का भी परीक्षण किया जा रहा है
जो समुद्र की गहराई में संसाधनों का पता लगाने में सक्षम होगा।
कई राज्यों में लागू होगी योजना
समु्रद सर्वेक्षण की इस योजना में केरल, गुजरात, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु
जैसे राज्यों ने जीएसआई के साथ मिलकर काम करने में काफी रुचि दिखाई है।
इसके तरह बहु धातु तत्वोें, हाइड्रोकार्बन और सल्फाइड के भंडार का पता
लगाया जाएगा।
योजना के तहत 2013-14 में आंध्रप्रदेश के भिमुनिपट्टनम के समुद्री इलाकों
में खनिज संपदा का मूल्यांकन किया जाएगा। इसके अलावा ओखा क्षेत्र में
केरल और कर्नाटक के समु्रदी क्षेत्र में खनिज युक्त बालू का मूल्यांकन
किया जाएगा।
केंद्रीय अंडमान क्षेत्र में समुद्री क्षेत्र में जलउष्मीय गतिविधियों का
भी अध्ययन किया जाएगा। हिन्द महासागर में कोबाल्ट बहुल क्षेत्रों में भी
यह अध्ययन किया जाएगा, जबकि अंडमान सागर में सल्फाइड खनिज की तलाश के
अलावा समुद्र के भीतर ‘ टेक्टोनिक ’ परतों की संरचना का भी अध्ययन होगा।
दूसरे देशों से ली जाएगी मदद
अधिकारी ने बताया कि इस वृहद समु्रदी सर्वेक्षण में कनाडा, आस्ट्रेलिया,
श्रीलंका, इंडोनेशिया और नामिबिया से भी मदद ली जाएगी, क्योंकि इसके लिए
तकनीकी दक्षता एवं नये पोतों की जरूरत है।
लंबी अवधि की योजना
जीएसआई ने इस उद्देश्य के लिए 30 से 35 वर्ष की योजना तैयार की है जिसके
तहत पोतों और अत्याधुनिक उपकरणों की खरीद की जायेगी ताकि क्षमता का
विस्तार किया जा सके।
नई दिल्ली। बंगाल की खाड़ी, खम्भात की खाड़ी और अंडमान क्षेत्र से लगे सागर
में मौजूद अमूल्य खनिज संपदाओं, प्राकृतिक गैस, परतों की बनावट एवं धातु
तत्वों की मौजूदगी आदि का पता लगाने के लिए सरकार ने अपतटीय एवं समु्रदी
सर्वेक्षण शुरू किया है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव शैलेश नायक ने
कहा कि इस योजना के तहत 2014 तक करीब 90 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के
सर्वेक्षण की योजना बनाई गई है। यह काम भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण (जीएसआई)
के सहयोग से किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण के तहत पश्चिमी
बंगाल की खाड़ी में ‘गैस सर्वेक्षण’ की अहम योजना को आगे बढ़ाया जा रहा है।
राष्ट्रीय अंटार्कटिक एवं समुंद्र अनुसंधान केंद्र (एनसीएओआर) गोवा भी
शामिल है। समुद्र सर्वेक्षण की योजना के तहत पूर्वी और पश्चिमी अपतटीय
क्षेत्र में हाइड्रोकार्बन के भूगर्भ रसायन के आकलन के लिए जीएसआई के साथ
तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग की भी मदद ली जा रही है।
इस योजना के तहत 2013-14 के लिए जिन योजनाओं को रेखांकित किया गया है,
उनमें बंगाल की खाड़ी में समु्रद तल में ढांचागत बदलाव और चुंबकीय पैटर्न
में परिवर्तन का अध्ययन शामिल है। इसमें सुमात्रा में आए भूकंप के
मद्देनजर ग्रेट निकोबार द्वीप पर पड़ने वाले प्रभाव और पश्चिमी तटीय
क्षेत्र में फास्फोरस तत्वों का पता लगाया जाएगा।
अपतटीय एवं समु्रदी सर्वेक्षण योजना के तहत, तमिलनाडु और उड़ीसा से लगे
समु्रदी क्षेत्रों में खनिज संसाधनों का मूल्यांकन किया जाएगा। अधिकारी
ने बताया कि हिंद महासागर में एक ऐसे उपकरण का भी परीक्षण किया जा रहा है
जो समुद्र की गहराई में संसाधनों का पता लगाने में सक्षम होगा।
कई राज्यों में लागू होगी योजना
समु्रद सर्वेक्षण की इस योजना में केरल, गुजरात, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु
जैसे राज्यों ने जीएसआई के साथ मिलकर काम करने में काफी रुचि दिखाई है।
इसके तरह बहु धातु तत्वोें, हाइड्रोकार्बन और सल्फाइड के भंडार का पता
लगाया जाएगा।
योजना के तहत 2013-14 में आंध्रप्रदेश के भिमुनिपट्टनम के समुद्री इलाकों
में खनिज संपदा का मूल्यांकन किया जाएगा। इसके अलावा ओखा क्षेत्र में
केरल और कर्नाटक के समु्रदी क्षेत्र में खनिज युक्त बालू का मूल्यांकन
किया जाएगा।
केंद्रीय अंडमान क्षेत्र में समुद्री क्षेत्र में जलउष्मीय गतिविधियों का
भी अध्ययन किया जाएगा। हिन्द महासागर में कोबाल्ट बहुल क्षेत्रों में भी
यह अध्ययन किया जाएगा, जबकि अंडमान सागर में सल्फाइड खनिज की तलाश के
अलावा समुद्र के भीतर ‘ टेक्टोनिक ’ परतों की संरचना का भी अध्ययन होगा।
दूसरे देशों से ली जाएगी मदद
अधिकारी ने बताया कि इस वृहद समु्रदी सर्वेक्षण में कनाडा, आस्ट्रेलिया,
श्रीलंका, इंडोनेशिया और नामिबिया से भी मदद ली जाएगी, क्योंकि इसके लिए
तकनीकी दक्षता एवं नये पोतों की जरूरत है।
लंबी अवधि की योजना
जीएसआई ने इस उद्देश्य के लिए 30 से 35 वर्ष की योजना तैयार की है जिसके
तहत पोतों और अत्याधुनिक उपकरणों की खरीद की जायेगी ताकि क्षमता का
विस्तार किया जा सके।
मैं दिल्ली हूं....
दिल्ली : इंदप्रस्थ से ढिल्लिका तक का सफर/ दिल्ली को देश की राजधानी बनाए जाने के सौ बरस पूरे होने पर विशेष
नई दिल्ली। अगर पुराने जमाने के नगर देवता की परिकल्पना सच है तो दिल्ली का नगर देवता जरूर कोई अलबेला कलाकार रहा होगा। तभी तो सात बार उजड़ने और बसने के बाद भी इस शहर में गजब की रवानगी है। कनॉट प्लेस से शांतिपथ तक फैला लुटियंस जोन क्षेत्र पश्चिम के सुव्यवस्थित नगर जैसा प्रतीत होता है, वहीं पुरानी दिल्ली की संकरी गलियां ‘बनारस’ की याद ताजा कर देती हैं। अंग्रेजों ने 1911 में कलकत्ता के स्थान पर नई दिल्ली को एकीकृत भारत की राजधानी बनाया, जिस स्थिति को आजादी के बाद भी बदला नहीं गया।
इतिहासकारों के मुताबिक, देश में बहुत कम नगर है, जो दिल्ली की तरह अपने दीर्घकालीन अविच्छिन्न अस्तित्व एवं प्रतिष्ठा को बनाये रखने का दावा कर सकेंं। दिल्ली के प्रथम मध्यकालीन नगर की स्थापना तोमर शासकों ने की थी, जो ढिल्ली या ढिल्लिका कहलाती थी। इतिहासकार वाई डी शर्मा के अनुसार, ढिल्लिका नाम का प्रथम उल्लेख उदयपुर के बिजोलिया के 1170 ईसवी के अभिलेख में आता है, जिसमें दिल्ली पर चह्वानों (चौहानों) द्वारा अधिकार किए जाने के उल्लेख है। गयासुद्दीन तुगलक के 1276 के पालम बावली अभिलेख मेंं इसका नाम ढिल्ली लिखा है, जो हरियानक प्रदेश में स्थित है। उनके अनुसार, लाल किला संग्रहालय में रखे मुहम्मद बिन तुगलक के 1328 के अभिलेख में हरियाना में ढिल्लिका नगर के होेने का उल्लेख है। इसी प्रकार डिडवाना के लाडनू के 1316 के अभिलेख में हरीतान प्रदेश में धिल्ली नगर का जिक्र है।
शर्मा ने स्पष्ट लिखा है कि अंग्रेजी शब्द डेल्ही या दिहली या दिल्ली इसी से निकला है, जो अभिलेखों में ढिल्ली का साम्य है। इसको हिन्दी शब्द ‘देहरी’ से जोड़कर देखना केवल कल्पना मात्र है। दिल्ली पर तोमर, चौहान, गुलाम, खिलजी, तुगलक, सैयद, लोदी, सूर, मुगल वंश के शासकों ने राज किया और 1911 मेें अंग्रेजों ने कलकत्ता के स्थान पर इसे एकीकृत भारत की राजधानी बनाया, जिस स्थिति को आजादी के बाद भी बदला नहीं गया।
महाभारत के अनुसार, कुरू देश की राजधानी गंगा के किनारे हस्तिनापुर में स्थित थी और कौरवों एवं पांडवों के बीच संबंध बिगड़ने के बाद धृतराष्ट्र ने उन्हें यमुना के किनारे खांडवप्रस्थ का क्षेत्र दे दिया। यहां बसाये गये नगर का नाम इं्रदपस्थ था। शर्मा के अनुसार, सोलहवीं शताब्दी में बने पुराने किले के स्थल पर ही संभवत इंदप्रस्थ बसा हुआ था, जो महाभारत महाकाव्य के योद्धाओं की राजधानी थी। इस स्थान पर पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने खुदाई भी की, जिसमें प्रारंभिक ऐतिहासिक काल से लेकर मध्यकाल तक के आवास होने के प्रमाण मिले हैं। यहां उत्तर गुप्तकाल, शक, कुषाण और मौर्यकाल तक के घरों, सोख-कुओं और गलियों के प्रमाण मिले हैं। 1966 में मौर्य सम्राट अशोक के 273-236 ईसा पूर्व के अभिलेख की खोज 1966 में हुई, जो श्रीनिवासपुरी पर अरावली पर्वत श्रृंखला के एक छोर पर खुरदुरी चट्टान पर खुदा हुआ है। शर्मा के मुताबिक, सात नगरों में सबसे पहला दसवीं शताब्दी के अंतिम समय का है, लेकिन यह दिल्ली के अतीत का प्रमाण प्रस्तुत करने के लिए काफी नहीं है और यह यहां के दीर्घकालीन और महत्वपूर्ण इतिहास के सम्पूर्ण काल का प्रतिनिधित्व करता है।
ऐसा लगता है कि दिल्ली के आसपास पहली बस्ती लगभग तीन हजार साल पहले बसी थी और पुराने किले की खुदाई में मिले भूरे रंग के मिट्टी के बर्तन मिले हैं, जो एक हजार साल से अधिक पुराने है। इतिहास में उल्लेखित दिल्ली के सात नगरों में बारहवीं सदी में चौहान शासक पृथ्वीराज तृतीय का किला राय पिथौरा, 1303 में अलाउद्दीन खिलजी द्वारा बसायी गई सीरी, गयासुद्दीन तुगलक द्वारा बसाया गया तुगलकाबाद, मुहम्मद बिन तुगलक का जहांपनाह शहर, फिरोजशाह तुगलक द्वारा बसाया गया फिरोजाबाद (कोटला फिरोजशाह) शेर शाह सूरी का पुराना किला और 1638-1648 के बीच मुगल शासक शाहजहां द्वारा बसाया गया] शाहजहांबाद शामिल है। इसके बाद अंग्रेजों ने 1911 में अपनी राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित कर दी और रायसीना हिल्स में अंग्रेज वास्तुकार लुटियंस ने नई दिल्ली की योजना तैयार की और इसके बाद 1920 के दशक में पुरानी दिल्ली के दक्षिण में नयी दिल्ली यानी लुटियंस की दिल्ली बसाई गई।
1947 में भारत आजाद हो गया और नयी दिल्ली देश की राजधानी बनी। 1991 में संविधान में 69वां संशोधन हुआ और इसके तहत कें्रद शासित प्रदेश दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के नाम से जाना जाने लगा।
वर्तमान नई दिल्ली क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा महानगर और भारत का दूसरा सर्वाधिक आबादी वाला शहर है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, यहां की आबादी 1,67,53,235 है और यह दुनिया का आठवां सबसे बड़ा शहर है।
नई दिल्ली। अगर पुराने जमाने के नगर देवता की परिकल्पना सच है तो दिल्ली का नगर देवता जरूर कोई अलबेला कलाकार रहा होगा। तभी तो सात बार उजड़ने और बसने के बाद भी इस शहर में गजब की रवानगी है। कनॉट प्लेस से शांतिपथ तक फैला लुटियंस जोन क्षेत्र पश्चिम के सुव्यवस्थित नगर जैसा प्रतीत होता है, वहीं पुरानी दिल्ली की संकरी गलियां ‘बनारस’ की याद ताजा कर देती हैं। अंग्रेजों ने 1911 में कलकत्ता के स्थान पर नई दिल्ली को एकीकृत भारत की राजधानी बनाया, जिस स्थिति को आजादी के बाद भी बदला नहीं गया।
इतिहासकारों के मुताबिक, देश में बहुत कम नगर है, जो दिल्ली की तरह अपने दीर्घकालीन अविच्छिन्न अस्तित्व एवं प्रतिष्ठा को बनाये रखने का दावा कर सकेंं। दिल्ली के प्रथम मध्यकालीन नगर की स्थापना तोमर शासकों ने की थी, जो ढिल्ली या ढिल्लिका कहलाती थी। इतिहासकार वाई डी शर्मा के अनुसार, ढिल्लिका नाम का प्रथम उल्लेख उदयपुर के बिजोलिया के 1170 ईसवी के अभिलेख में आता है, जिसमें दिल्ली पर चह्वानों (चौहानों) द्वारा अधिकार किए जाने के उल्लेख है। गयासुद्दीन तुगलक के 1276 के पालम बावली अभिलेख मेंं इसका नाम ढिल्ली लिखा है, जो हरियानक प्रदेश में स्थित है। उनके अनुसार, लाल किला संग्रहालय में रखे मुहम्मद बिन तुगलक के 1328 के अभिलेख में हरियाना में ढिल्लिका नगर के होेने का उल्लेख है। इसी प्रकार डिडवाना के लाडनू के 1316 के अभिलेख में हरीतान प्रदेश में धिल्ली नगर का जिक्र है।
शर्मा ने स्पष्ट लिखा है कि अंग्रेजी शब्द डेल्ही या दिहली या दिल्ली इसी से निकला है, जो अभिलेखों में ढिल्ली का साम्य है। इसको हिन्दी शब्द ‘देहरी’ से जोड़कर देखना केवल कल्पना मात्र है। दिल्ली पर तोमर, चौहान, गुलाम, खिलजी, तुगलक, सैयद, लोदी, सूर, मुगल वंश के शासकों ने राज किया और 1911 मेें अंग्रेजों ने कलकत्ता के स्थान पर इसे एकीकृत भारत की राजधानी बनाया, जिस स्थिति को आजादी के बाद भी बदला नहीं गया।
महाभारत के अनुसार, कुरू देश की राजधानी गंगा के किनारे हस्तिनापुर में स्थित थी और कौरवों एवं पांडवों के बीच संबंध बिगड़ने के बाद धृतराष्ट्र ने उन्हें यमुना के किनारे खांडवप्रस्थ का क्षेत्र दे दिया। यहां बसाये गये नगर का नाम इं्रदपस्थ था। शर्मा के अनुसार, सोलहवीं शताब्दी में बने पुराने किले के स्थल पर ही संभवत इंदप्रस्थ बसा हुआ था, जो महाभारत महाकाव्य के योद्धाओं की राजधानी थी। इस स्थान पर पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने खुदाई भी की, जिसमें प्रारंभिक ऐतिहासिक काल से लेकर मध्यकाल तक के आवास होने के प्रमाण मिले हैं। यहां उत्तर गुप्तकाल, शक, कुषाण और मौर्यकाल तक के घरों, सोख-कुओं और गलियों के प्रमाण मिले हैं। 1966 में मौर्य सम्राट अशोक के 273-236 ईसा पूर्व के अभिलेख की खोज 1966 में हुई, जो श्रीनिवासपुरी पर अरावली पर्वत श्रृंखला के एक छोर पर खुरदुरी चट्टान पर खुदा हुआ है। शर्मा के मुताबिक, सात नगरों में सबसे पहला दसवीं शताब्दी के अंतिम समय का है, लेकिन यह दिल्ली के अतीत का प्रमाण प्रस्तुत करने के लिए काफी नहीं है और यह यहां के दीर्घकालीन और महत्वपूर्ण इतिहास के सम्पूर्ण काल का प्रतिनिधित्व करता है।
ऐसा लगता है कि दिल्ली के आसपास पहली बस्ती लगभग तीन हजार साल पहले बसी थी और पुराने किले की खुदाई में मिले भूरे रंग के मिट्टी के बर्तन मिले हैं, जो एक हजार साल से अधिक पुराने है। इतिहास में उल्लेखित दिल्ली के सात नगरों में बारहवीं सदी में चौहान शासक पृथ्वीराज तृतीय का किला राय पिथौरा, 1303 में अलाउद्दीन खिलजी द्वारा बसायी गई सीरी, गयासुद्दीन तुगलक द्वारा बसाया गया तुगलकाबाद, मुहम्मद बिन तुगलक का जहांपनाह शहर, फिरोजशाह तुगलक द्वारा बसाया गया फिरोजाबाद (कोटला फिरोजशाह) शेर शाह सूरी का पुराना किला और 1638-1648 के बीच मुगल शासक शाहजहां द्वारा बसाया गया] शाहजहांबाद शामिल है। इसके बाद अंग्रेजों ने 1911 में अपनी राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित कर दी और रायसीना हिल्स में अंग्रेज वास्तुकार लुटियंस ने नई दिल्ली की योजना तैयार की और इसके बाद 1920 के दशक में पुरानी दिल्ली के दक्षिण में नयी दिल्ली यानी लुटियंस की दिल्ली बसाई गई।
1947 में भारत आजाद हो गया और नयी दिल्ली देश की राजधानी बनी। 1991 में संविधान में 69वां संशोधन हुआ और इसके तहत कें्रद शासित प्रदेश दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के नाम से जाना जाने लगा।
वर्तमान नई दिल्ली क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा महानगर और भारत का दूसरा सर्वाधिक आबादी वाला शहर है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, यहां की आबादी 1,67,53,235 है और यह दुनिया का आठवां सबसे बड़ा शहर है।
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