शनिवार, फ़रवरी 06, 2010

मृत्यु पूर्व किसी एक बयान के आधार पर सजा नहीं

बांबे उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने कहा है कि यदि मृतक ने मरने के पूर्व एक से ज्यादा बयान दिए हो और सभी बयामों में घटना की वजह अलग-अलग बताई गई हो तो किसी एक बयान को स्वीकार कर आरोपियों को सजा देना, आरोपी के साथ अन्याय होंगा। न्यायाधीश ए.पी.लावांदे व पी.डी.कोदे की संयुक्तपीठ ने ऐसे ही एक मामले में मरने के पूर्व दिए गए 4 बयानों को दर-किनार कर आरोपियों को निर्दोष घोषित कर बरी कर दिया हैं। अदालत ने यह फैसला दहेज बली के मामले में देते हुए आरोपी बालू पोरेड्डीवपार एवं श्रीमती कलाबाई संतोषवार को रिहा किया हैं।
अभियोजन पक्ष के अनुसार आरोपी बालू उसकी मां पार्वताबाई व बहन कलाबाई के साथ मिलकर उसकी पत्नी राजेश्वरी को दहेज के लिए प्रताडि़त करता था। दहेज की मांग पूरी नहीं होने पर इन्होंने राजेश्वरी पर केरोसिन ड़ालकर उसे आग के हवाले कर दिया था, जिसके बाद मौत हो गई। पुलिस द्वारा दर्ज किए गए मामले की सुनवाई कर जिला अदालत ने बालू व कलाबाई को दोषी करार देते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई थी। जिला अदालत द्वारा दी गई सजा को चुनौती देते हुए अधिवक्ता राजेन्द्र डागा ने हाईकोर्ट को बताया मृतक ने मरने के पूर्व 4 बयान दिए थे। इन सभी बयानों में अलग- अलग लोगों पर केरोसिन छिड़कने, पकड़कर रखने एवं आग लगाने के आरोप लगाए गए हैं। ऐसे हालात में जिला अदालत ने 4 में से एक बयान को स्वीकार कर आरोपियों को सजा देकर गलती की है। अधिवक्ता डागा ने जिला अदालत के फैसले को खारिज कर आरोपियों को बरी करने के आदेश देने की प्रार्थना हाईकोर्ट से की थी।

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