मुझे ई-मेल से चंचल मुखर्जी की दो पेंटिंग भेजी गई है।
चंचल मुखर्जी की पेंटिग्स कुछ कहती है। जरा आप इनकी मौन भाषा समझिये।
- संजय स्वदेश
गुरुवार, फ़रवरी 25, 2010
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संजय स्वदेश, पत्रकारिता के साथ जनसरोकारों में सक्रिय भागीदारी
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ईमानदारी, सदाचार और परिश्रम का कोई विकल्प नहंी होता है।
1 टिप्पणी:
"कुछ नहीं बहुत कुछ कहतीं ये पेंटिग,पर मुझे इन दोनों का रंग-संयोजन अद्भुत लगा एकदम जीवंत। "
प्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com
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