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dainik_jagran/Jan 19, 09:56 pm
आगरा। 'बेटा रो मत चुप हो जा, नहीं तो गब्बर आ जायेगा' 'शोले' के गब्बर सिंह का यह डॉयलॉग केवल कल्पना आधारित नहीं था, बल्कि वास्तविकता में एक समय चंबल घाटी में गब्बर की हुकूमत चलती थी। यही नहीं, वास्तविक गब्बर फिल्मी गब्बर से कहीं अधिक क्रूर था। उसकी क्रूरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 'शोले' में जहां फिल्मी गब्बर ने सिर्फ ठाकुर बलदेव सिंह के परिवार को बरबाद किया था, चंबल के कुख्यात ने दो दर्जन परिवारों के कुलदीपक बुझाकर निर्ममता की हद पार कर दी थी।
अमजद खान ने 'शोले' फिल्म में जिस गब्बर का किरदार जिया, वह मूल रूप से मध्यप्रदेश राज्य के भिंड का रहने वाला था। 1957 में 22 बच्चों को लाइन में खड़ा करके गोली भून डाला था। ऐसा उसने तांत्रिक के कहने पर इष्ट देवी को प्रसन्न करने के मकसद से किया था। तांत्रिक का कहना था कि अगर वह 116 बच्चों की बलि दे तो उसके बल और सामर्थ्य में वृद्धि होगी। वैसे कुछ ग्रामीणों के मुताबिक उनके गांव के किसी व्यक्ति के गब्बर की मौजूदगी की खबर पुलिस को देने से बौखलाकर उसने बच्चों की हत्याएं की थीं। इस कांड के बाद उ.प्र. और म.प्र. सरकार ने उस पर 20-20 हजार, जबकि राजस्थान सरकार ने 10 हजार का इनाम घोषित किया था।
गब्बर उर्फ गबबरा गुर्जर 1926 में मप्र के भिंड जिले के एक मजरे में पैदा हुआ था। 13 नवम्बर 1959 को मप्र पुलिस के तत्कालीन युवा आईपीएस आरपी मोदी ने उसे 'गम का पुरा' नामक गांव में मुठभेड़ में ढेर कर दिया था। पूर्व आईपीएस और पुलिस एकेडमी हैदराबाद के पूर्व निदेशक पीवी राजगोपाल द्वारा संपादित और हाल में प्रकाशित पुस्तक 'द ब्रिटिश, द बैंडिट्स एंड द बॉर्डर मैन' में इसका ब्यौरा है। यह पुस्तक मध्यप्रदेश के पूर्व आईजी केएफ रुस्तम जी की पुलिस डायरी और रिकार्डो पर आधारित है।
नेहरू जी को था बर्थडे गिफ्ट
आगरा : गब्बर सिंह को धराशाई किये जाने की खबर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को उनके 59वें जन्म दिवस पर उपहार स्वरूप खुद रुस्तम जी ने सुनाई थी। राजगोपाल की पुस्तक में उल्लेख है कि नेहरू जी इस क्रूर दस्यु का जल्द से जल्द खात्मा चाहते थे।
गब्बर गुर्जर को ही जिया था अमजद ने
आगरा : सांसद जया बच्चन के पिता तरुण कुमार भादुड़ी ने अपनी रिपोर्टो पर आधारित एक पुस्तक 'अभिशप्त चंबल' भी लिखी। इसमें गब्बर गुर्जर का विवरण भी है। तरुण ने पत्रकार के नाते चंबल के बारे में रिपोर्टिग की थी। जब अमजद खान को गब्बर सिंह के रोल के लिए चुन लिया गया तो उसने सबसे पहले इसी किताब को मंगवाया था और शूटिंग के दौरान लगातार इसे साथ रखता था। तम्बाकू चबाने और 'कितने आदमी थे' डॉयलॉग भी इसी किताब में दिये विवरण पर आधारित माना जाता है।
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1 टिप्पणी:
badhiya jaankaari dee aapne dost...
shukriya
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