शनिवार, अक्तूबर 02, 2010
शास्त्रीजी को भी नमन
संजय स्वदेश
बचपन में में हमारे चाचा ने चाचा नेहरू के बारे में बताया, कि वे बच्चों से बहुत प्रेम करते थे। इसलिए उनका नाम चाचा नेहरू पड़ा। स्कूली किताबों में भी चाचा नेहरू जी के बारे में पढ़ा। कैसे बच्चों के लिए एक गरीब के सारे गुब्बारे खरीद लेते हैं। चाचा ने गांधीजी के बारे में भी बताया। उन्होंने देश का अजाद कराया। अकेले। एक लंगोटी पर। बताया कि जब चंपारण आये थे तब एक महिला को आधे वस्त्र में देखा। मन इतना विचलित हुआ कि ताउम्र एक धोती में गुजार दिया। चाचा ने लाल बहादुर शास्त्रीजी के बारे में बताया। कैसे, नदी तैरकर पढऩे जाते थे।
तीनों महापुरुषों में सबसे ज्यादा प्रभावित चरित्र शास्त्री जी का लगा। बड़ा हुआ तो समझ में आया कि एक प्रधानमंत्री को इतना समय कैसे मिल सकता है कि वह दूसरे कार्यों को दरकिनाार कर बच्चों को प्यार करें। हां, किसी पार्टी, आयोजन या अन्य किसी समारोह में बच्चे हों और वहां उन्हें लाड़-दुलार कर लिया। प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले नेरूरीजी के ये कार्य इतिहास में दर्ज हो गया। जबकि उसके बाद कई नेता हुये जिन्होंने बच्चों को खूब प्यार किया पर उन्हें चचा का वह दर्जा नहीं प्राप्त हो पाया, जिस दरजे पर नेहरूजी है।
गांधी तो राष्टपित तो हो गया। पद से ज्यादा कद। बापू का कद ही इतना बड़ा है कि सब छोटे पड़ गये। पर बापू के दाम पर भी कई छिंटे लगाये गए। पर शास्त्रीजी की क्या गलती? 2 अक्टूबर को जितना लोग बापू को याद करते हैं, उससे तुलना में शास्त्री जी तो कुछ भी याद नहीं किया जाता है। राजघाट सजता-धजता है, भीड़ लगती है, लेकिन शास्त्रीजी की समाधी सूनी रहती है। भूले-बिसरे शास्त्री परिवार या कोई अन्य औपचारिकवश आ जाए तो बात दूसरी है।
दरअसल हमारी प्राथमिक पाठ्यकपुस्तों में शास्त्रीजी संक्षिप्त जीवन का शामिल करना उसी तरह जरूरी होना चाहिए जैसे चाचा नेहरू और गांधी के जीवन प्रसंग शामिल हैं। बाल मन पर ऐसे महापुरुषों के जीवन के प्रसंगों का गहरा असर पड़ता है। शास्त्री के सिर पर बचपनप में ही पिता का साया उठ गया। मां ने संघर्षों से पाला। खुद संघर्ष किया। अपनी योग्याता साबित की। इनके जीवन के प्रसंग बाल विषम परिस्थियों में की मजबूती के साथ डटे रहने का आत्मविश्वास भरते हैं। नेहरू परिवार के संपर्क में आने से कांग्रेस कमेटी काम का मौका मिला। उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रमुख पद पर जाकर उन्होंने जो कुछ किया, उससे उनका कद और बढ़ गया। सरल-सहज और सच्चे व्यक्तित्व का मजबूत प्रभाव इतना था कि उनके प्रधानमंत्रीत्व काल में स्वयं इंदिरा भी भयभीत थी।
कमजोर भारत को जय-जवान और जय किसान के नारे से इतन मजबूत बना दिया कि दुश्मनसेना को मुंह की खानी पड़ी। ताश्कंद में रहस्यम मौत रहस्य ही रह गया। सरकार ने कभी भी शास्त्री जी के मौत के रहस्य को सुलझाने की कोशिश नहीं की। दिल का दौरा पडऩे की हुई मौत कह कर इनकी जीवन का इतिश्री कर दिया गया। जबकि जो व्यक्ति जीवन के विषम परिस्थितियों से जूझते हुए इतना आगे आए वह इतना कमजोर नहीं हो सकता है कि उसे दिल का दौरा आये और वह दुनिया से चल बसे।
ऐसे आदर्श और प्रेरणादायी व्यक्तित्व का उनके जन्मदिवस पर शत, शत नमन है।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें