सोमवार, अक्तूबर 04, 2010

राष्टÑमंडल खेल के समापन के बाद दिखेंगी विकृतियां

राष्टÑमंडल खेल शुरू हो गये। करीब 70 हजार करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। पर यह तो रकम खर्च की है। इसके पीछे जो कुछ नष्ट हुआ है, उसकी कीमत लगाए, तो इससे कहीं ज्यादा होगा। इस खेल के बहाने से भले ही दिल्ली दुल्हन जैसी सजी-धजी हो। पर दुलहन की यह खूबसूरती महज कुछ खास इलाकों तक ही सीमित है। पूर्वी दिल्ली में में खेलगांव बना है। पूर्वी दिल्ली के भजनपुरा हो आइएं, जमीनी हकीकत का अंदाज हो जाएगा। खेल के बहाने दिल्ली से गरीब हटा दिये गये। खबर आ रही है कि अब दिल्ली के घरों में नौकर-चाकर के टोटे पड़ गए हैं। सब्जी-भाजी बेचने वालों को दिल्ली से बाहर निकल गए। बड़े दुकानदारों की चांदी हो गई। किराया बढ़ने से मकान मालिकों की धौंस बढ़ गई। फिलहाल दिल्ली राष्ट्रमंडल खेले के जश्न में डूबी है। पर इसकी बुनियाद में जो अमानवीयता को दबाई गई है, उसके बदनूमा दाग इस खेले के बाद दिखेंगे। किसी जामाने से दिल्ली में एसिायाड़ गेम हुए थे। साऊथ एक्स चमक गया। पर साऊथ एक्स में आपसी भाईचारा गायब हो गया। अनेक तरह के असमाजिक घटाएं साऊथ एक्स से आती रही।
इतिहास गवाह है जहां भी समृद्धि और प्रतिष्ठा के लिए गरीबों का गला घोंटा गया, वहां समृद्धि और प्रतिष्ठा तो आई, पर मानवीय संवेदनाओं को सहेजने वाला समाज खत्म हो गया। विकृत मानासिकता हावी हो गई। ऐसे समाज और संस्कृति में गुजर-बसर करने वाले संवेदनशील भीड़-भाड़ में भी तन्हा रहते हैं। कोसते हैं। राष्टÑमंडल खेल के आयोजन की विकृतियां इसके समापन के बाद दिखेगी।
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