शुक्रवार, अक्तूबर 29, 2010

कंपनी को जमीन मिली,पर पीडि़तों को मुआवजा नहीं


आईओसी आग : एक साल
कंपनी को जमीन मिली,पर पीडि़तों को मुआवजा नहीं
आज से ठीक एक वर्ष पूर्व २९ अक्टूबर, २००९ को जयपुर में आईओसी (इंडियन ऑयल कॉपरपोरेशन) में लगी भीषण हादसे के बाद सरकार ने सबक लेने की सोची है। डिपो को शहर और घनी आबादी से दूर बनाने का निर्णय लिया गया है। लेकिन सीतापुर औद्योगिक क्षेत्र में स्थित आईओसी के डिपो में एक साल पूर्व लगी भीषण आग में मरे ११ लोगों के परिवार अभी भी मुआवजे की वाट जो रहे हैं। घटना के बाद केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्रकृतिक गैस मंत्री मुरली देवड़ा ने पीडि़तों को दस-दस लाख रुपये की राशि देने की घोषणा की थी। लेकिन हादसे के करीब एक साल बाद आईओसी को डिपो बनाने के लिए जमीन तो आवंटित हो गई है। लेकिन पीडि़तों के हाथ में कुछ नहीं आया। निराश पीडि़तों ने गत दिनों पूर्व ही राष्ट्रपति के नाम पत्र लिख कर मुआवजा दिलाने की गुहार लगाई है।
आईओसी डिपो में आग लगने के बाद सरकार ने चीफ टाउन प्लानर की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी। समिति ने सरकार से सिफारिश की थी कि भविष्य में पेट्रोल-डीजल और गैस डिपों का निर्माण शहरी आबादी से करीब तीस किलोमीटर हो। रिपोर्ट के बाद राज्य सरकार ने जिला प्रशासन को शहर से डिपों दूर करने के लिए उचित जमीन तलाशने के आदेश दिये थे। आखिर जमीन मिला। जिला प्रशासन ने फागी में स्थित मोहनपुरा स्थित गांव में पड़ी सरकारी जमीन पर इसके निर्माण का प्रस्ताव सरकार के पास भेजा था। इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई।
आश्चर्य की बात यह है कि समिति ने शहरी आबादी में रहने वाले लोगों की जान की चिंता तो की। लेकिन गांव की निवासियों की तनिक भी चिंता नहीं की। आबादी चाहे शहरी हो या गवई। आईओसी जैसे हादसों से खतरे एक समान होते हैं। ऐसे कार्यों के लिए सरकार को पहले से ही ऐसी जमीन तलाशनी चाहिए थी, जो आबादी से दूर हो। अब जिस जगह आईओसी के नये डिपो बनाने की जगह दी गई। वहां से गांव को हटाया जाएंगा। नये जमीन पर पुरानी कंपनी के नये डिपो बसाने के लिए पुराने वशिंदों को उजाड़ा जाएगा। भविष्य में इस जमीन के आसपास लोगों को नहीं बसने देने की संभावना भी कम है।
दूसरे डिपो भी शहर से बाहर बनेंगेघटना के ठीक एक साल पूरे होने के कुछ दिन पूर्व ही सरकार ने इस मामले में और ठोस पहल करते हुए यह निर्णय लिया कि राज्य में अब कभी भी पेट्रोल और डीजल सहित गैस के डिपो का निर्माण आबादी क्षेत्र में नहीं किया जाएगा। इसके लिए शहर से दूर ही जमीन का आवंटन या मंजूरी दी जाएगी। इस नीति के तहत ही सरकार ने भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड को भी शहर से दूर सांभर के आसलपुर गांव में जमीन का आवंटन करने की योजना बनाई है। इस जमीन को शीघ्र ही अवाप्त करके कंपनी को डिपो के निर्माण के लिए दिया जाएगा। इसी नियम के तहत ही सरकार ने पिछले दिनों हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन के डिपो को भी बगरू में आबादी रहित जमीन पर बनाया गया।
सीतापुरा जमीन पर योजना बाकी:सीतापुरा स्थित आईओसी के पुराने डिपो वाली जमीन पर अभी इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने कोई योजना को मूर्तरूप नहीं दिया है। जमीन पर क्योंकि अधिकार कंपनी का है, इसलिए सरकार इसमें अपनी दखलंदाजी नहीं कर सकती है। देखना यह है कि अब कंपनी इस जमीन का उपयोग किस काम के लिए करती है।
अदालत में चल रही आईओसी की प्रक्रियाआईओसी में लगी आग को लेकर शहर के सांगानेर सदर थाने में दो एफआईआर दर्ज कराई गई थी। एफआईआर नंबर २४१/०९ जीनस कंपनी और २४२/०९ बीएलएम इन्सीट्यूट की ओर से बीएल मेहरड़ा ने दर्ज कराई। इसके अलावा आदर्शनगर थाने में भी एक एफआईआर नंबर ३३७/०९ दर्ज कराई गई। इसके अलावा अदालती आदेश पर शहर के बजाज नगर थाने में तत्कालीन एसपी पूर्व बीजू जॉर्ज जोसफ, तत्कालीन कलेक्टर कुलदीप रांका और आईजी बीएल सोनी को आरोपी बनाते हुए एफआईआर नंबर ५६०/०९ दर्ज की गई।
एफआईआर नंबर २४१/०९ में कार्रवाई करते हुए पुलिस ने गत २ जुलाई को आईओसी के तत्कालीन जनरल मैनेजर गौतम बोस, तत्कालीन मुख्य ऑपरेशन मैनेजर राजेशकुमार स्याल, सीनियर ऑपरेशन मैनेजर शशांक शेखर, तत्कालीन पाइप लाइन डिवीजन प्रभारी सुमित्रशंकर गुप्ता, तत्कालीन मैनेजर कैलाशशंकर कनोजिया, सीनियर मैनेजर अरुणकुमार पोद्दार, उपप्रबंधक कपिल गोयल, ऑपरेशन ऑफिसर अशोककुमार और चार्जमैन कैलाशनाथ अग्रवाल को गिरफ्तार किया था। इनमें से आरोपी अशोक कुमार को छोड़कर शेष सभी आरोपियों को ७ जुलाई को जमानत मिल चुकी है, जबकि अशोककुमार अभी न्यायिक हिरासत में है। हाईकोर्ट में जमानत पर रिहा इन आठ आरोपियों की जमानत याचिका रद्द करने के लिए याचिका लंबित है तथा आरोपी अशोक कुमार की जमानत याचिका लंबित है। पुलिस ने इन आरोपियों के खिलाफ सांगानेर की निचली अदालत में गत दिनों चालान पेश कर दिया है। वहीं शेष एफआईआर २४२/०९ और ३३७/०९ पर पुलिस जांच कर रही है। जबकि बजाज नगर थाने में दर्ज एफआईआर ५६०/०९ में जांच के दौरान तीन बार अनुसंधान अधिकारी बदले जा चुके हैं। वर्तमान में पुलिस महानिरीक्षक मानवाधिकार मोरिस बाबू प्रकरण की जांच कर रहे हैं।
यूं लगी थी आगघटना के समय डिपो से बीपीसीएल को पाइप लाइन के माध्यम से पेट्रोल और केरोसिन आपूर्ति होती थी। इस कार्य के लिए ऑपरेशन ऑफिसर व तीन चार्जमैन को नियुक्त किया गया था। विभागीय निर्देशानुसार पाइप लाइन ट्रान्सफर के दौरान प्रत्येक स्थान पर वॉल्व ऑपरेशन के लिए दो कर्मचारियों की उपस्थिति आवश्यक होती है, जबकि वहां केवल एक ही कर्मचारी रामनिवास मौजूद था। जिसने हैमर वॉल्व में हैमर आई को फिक्स किए बिना ही डिलीवरी वॉल्व एवं बॉडी वाल्व को खोल दिया, जिससे आग लगी। इसके अलावा जिस टैंक में आग सबसे पहले लगी उसके बाहर लगा ड्रेन वॉटर वॉल्व खुली अवस्था में था, जबकि उसे बंद रहना चाहिए था। टैंक से करीब सवा घंटे से अधिक समय तक पेट्रोल का लीकेज होता रहा। लेकिन इस अवधि के दौरान अधिकारियों ने उसे रोकने का प्रयास नहीं किया। जिससे एक-एक कर सभी ११ टैंकों में आग लग गई। इसके अलावा केन्द्र पर नागरिकों को घटना की चेतावनी देने के लिए पब्लिक एड्रेस सिस्टम का भी पूर्णतया अभाव था। घटना के बाद अधिकारियों ने हाईडेंट और फोम सिस्टम का भी समय पर उपयोग नहीं किया। इसके अलावा टर्मिनल में फायर फाइटिंग सूट, ऑक्सीजन मास्क आदि सुरक्षा उपकरणों का भी अभाव था।
sanjay swadesh

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