रविवार, फ़रवरी 14, 2010

14 फरवरी-23 मार्च

युवा कवि श्री उमेश यादव की कविता

14 फरवरी-23 मार्च

इस बार वैलेंटाइन डे में,
तुम्हें नहीं दे पाऊंगा फूल,
नहीं मिलने आ सकूंगा तुमसे
किसी बाग या रेस्तरां में,
नहीं जा सकेंगे हम
साथ साथ कोई रूमानी फिल्म,
नहीं थिरक सकेंगे डिस्को में।

इसलिए नहीं कि
डर गया हूं मैं
वैलेंटाइन डे विरोधी गुंडों से,
इसलिए भी नहीं कि
वैलेंटाइन डे का विरोध कर
कहलाना चाहता हूं देशभक्त
और भारतीय संस्कृति का रक्षक,
केवल इसीलिए कि
आज के बाद नहीं रहेगी
पल भर की फुरसत,
इसलिए वैलेंटाइन डे ही नहीं,
आगे और कई बार
तुम नहीं करना मेरा इंतजार।

सुनो,
आज से अस्सी बरस पहले
वैलेंटाइन डे से ठीक 37 दिन बाद
शहीद हो गया था एक देशभक्त,
उम्र थी उसकी
मुझसे भी 5-6 बरस कम।
मेरी पीढ़ी जानती है
उसके बारे में सिर्फ इतना
कि असेम्बली में बम फेंककर
उसने उड़ा दी थी
ब्रिटिश हुकूमत की नींद
और हंसते हंसते
फांसी पर झूल गया था वह।
मेरी पीढ़ी नहीं जानती
उसका सपना,
चाहता था वह कि
देश में कोई भूखा न सोए,
सबके तन पर वस्त्र
और सिर पर छत रहे।

70 एमएम के परदे पर
बदहवास चेहरे देखकर
बड़ी हुई है मेरी पीढ़ी,
ईडियट बॉक्स में
कैद है उसका सोच।

दोष नहीं है मेरी पीढ़ी का भी,
आजादी मिली तो मेरे बुजुर्ग
खेलने लगे कुर्सीदौड़,
आगे जाकर दौड़ में
शामिल हो गए हम।

केवल अंगरेजमुक्त आजादी में
न रुका बाजार, न भ्रष्टïाचार
बिकने लगा इंसान
गली से लेकर संसद तक।
स्कूल बने सिर्फ साक्षरता के केन्द्र
नैतिकता की ऊंचाइयां
हासिल नहीं कर सके हम!

गिरवी हैं जीवनमूल्य!
कठिन है लड़ाई!
इस बार अंगरेज नहीं,
अपने हैं ठीक सामने!
लंबी चलेगी जंग
इसलिए इंतजार मत करना
मैं भगत सिंह का सपना
पूरा कर ही लौटूंगा।

-उमेश यादव

(पेशे से पत्रकार उमेश यादव पद्य विधा का ताजा झोंका माने जा रहे हैं।)

2 टिप्‍पणियां:

संजय स्वदेश Sanjay Swadesh ने कहा…

dear shri umesh ji
namskar.
aapki kavita behtrin hain.
aapke man ki bechaniy kavita ke madhyam se bhaphi ja sakati hai.

Ravi ने कहा…

velentine day par umesh ji ne achhi kavita likhi hai.
aaj k wasna ka payar aur shadiye ke payar ka aantar kaha koe dekhata hi.