गुरुवार, फ़रवरी 04, 2010

लड़कियों के चरित्र पर लांछन लगाने वाले पत्रकार

संजय स्वदेश

इन दिनों में एक-दो पत्रकार महोदय दो-चार बेव-ब्लॉग पर मीडिया के उन लोगों पर नाम और संस्थान के नाम लिए बगौर संकेतों से चर्चा कर रहे हैं, जो महिलाओं का यौन-शोषण करते हैं। चर्चा में उन महिलाओं मीडियाकर्मियों की ओर भी संकेत हैं, जो इस पेशे में आगे बढऩे के लिए प्रभावशाली सहकर्मी के साथ हमबिस्तर होती है। ऐर्सी चर्चाओं पर तरह-तरह की प्रतिक्रिया आईं। पर प्रतिक्रिया देने वाले अधिकतर मर्द निकलें। एक दो बहनों ने हिम्मत दिखा कर प्रतिरोध किया। कहने की कोशिश की कि लड़कियां उतना समझौता नहीं करती, जितना कि लिखा जा रहा है?
जो भी हो, मामला जब भी सैक्स से जुड़ा होता है, उसे चटकारे लेकर लिखे-पढ़े और सुने जाते हैं। पर इन चर्चाओं ने किसी मर्द ने प्रतिभाशाली महिला मीडियाकर्मी का उदाहरण नहीं दिया। आज बेहतरीन कार्य करने वाली किसी भी महिला मीडियाकर्मी के सहकर्मी से चर्चा करें। उनमें से दो-चार उनके चरित्र पर लांछन लगाने वाले जरूर मिल जाएंगे। चर्चा करने वाले मीडिया के दूसरे हाउस तक भी पहुंचती है। पत्रकारों की आपसी चर्चाओं में चटकारे लेकर संबंधित महिला पत्रकार के इज्जत पर संदेह आम हो चुकी है।
सफलता की राह पर आगे बढ़ रही महिलाओं के मनोबल को गिराने का सबसे मजबूत हथियार है, उनके चरित्र पर लांछन लगाना। यह सबसे आसान काम हैं। झट से उसके साथ किसी का संबंध जोड़़ दो। शब्दों से उसकी इज्जत को तार-तार कर दो। मैंने भी सुना है, टी.वी. पर कई दिग्गज महिला मीडियाकर्मियों के बारें में कि उनका यौन संबंध फलां-फलां के साथ है। इन्हीं संबंधों पर वे आगे बढ़ी है। पर कभी भरोसा नहीं किया। जब व्यक्ति का चरित्र पतित होता है, तो उसका आत्मबल कमजोर हो जाता है। और मीडिया में कमजोर आत्मबल वाले भला कहां टिकते या टिकती हैं? चलिए कुछ देर के लिए मान भी लेते हैं, कि ऐसे संबंधों पर कुछ महिलाएं आगे निकल गई। लेकिन जो आगे निकली हैं, जरा उनके कार्यों को तो देखें। सफलता की शिखर पर बैठी महिला मीडियाकर्मी क्या पुरुषों से कम काम करती हैं?
मजेदार बात यह है कि महिला पत्रकारों के चरित्र पर लांछन लगाने वाले ऐसे लोग हैं जो पत्रकारिता में किसी न किसी कारणवश पिछड़ कर कुंठित हो चुके हैं। निराश होकर प्रतिभाशाली पत्रकारों की सफलता की आग से जल रहे हैं। मैं प्रिंट मीडिया के कई हाउस में काम कर चुका हूं। महिलाएं सहकर्मी रहीं। हमारे पुरुष सहकर्मियों ने भी महिला सहकर्मियों के बारे में चरित्र हनन को लेकर चर्चाएं की। लेकिन मुझे कभी उन पर संदेह नहीं हुआ। उनके कार्य प्रखर और तेवर भरे रहे।
पेशें में तेवर दिखाने वाली महिलाओं ने जब भी किसी पुरुष के साथ हंस कर बात क्या कर ली, झट से चर्चा होने लगी-कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर हैं।
फिलहाल अभी ब्लॉग और बेव पर जितनी चर्चाएं हो रही हैं और जिस तरह से महिला पत्रकारों की आबरू उछाली जा रही है, वास्तव में उतना होता नहीं है। किसी भी महिला के साथ यौन-संबंध स्थापित करना आसान काम नहीं है। और मीडिया में आने वाली हर लड़की इतनी गिरी हुई नहीं रहती है, कि झट से वे किसी के साथ हमबिस्तर हो जाएं। बॉय-फ्रेंड के मामलों में अगर कुछ होता है तो बाल अलग है।
जो लड़कियां बेवाकी से पत्रकारिता कर रही हैं, उन पर चरित्र पर संदेह करने वाले जरा एक बार जरूर सोचे कि जिस उम्र और अनुभव में वह जो कर रही है, उसके मुकाबले वे कितना बेहतर कर रहे हैं। लड़कियों की प्रतिभा के सामने पिछड़ते पुरुष पत्रकार यह नहीं भुले कि वे भी किसी के भाई या पति हैं। चाहे महिला हो या पुरुष, चरित्र गिराकर पत्रकारिता करने वालों में बेवाकी की पत्रकारिता की साहस कहा?

संपर्क
मोबाइल ०९८२३५५१५८८८

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

भाई आपने कुछ बातते बहुत बढिया कही और कही भटके भी.

काम और चरित्र दो अलग अलग बाते है उनको एक दूसरे से जोडकर देखना ठीक नही है. किसी भी पेशे से जुडे महिला या पुरुष चरित्रवान हो भी सकते है और नही भी. आपको भी लगता है कि कुछ महिलाये वैसे सम्बन्ध बनाकर आगे बढ जाती है तो उन कुछ महिलाओ के लिये लगने वाले आरोप सच ही होते होगे. सभी महिलाये चरित्रहीन नही होती अत: सभी के बारे मे कानाफ़ूसी सिर्फ़ और सिर्फ़ निन्दनीय है