रविवार, फ़रवरी 21, 2010

चीन में बन रहा है प्रजातांत्रिक माहौल

17वें कर्माप्पा लामा ग्यालवांग से अनौचारिक चर्चा

संजय स्वदेश
नागपुर।
चीन में धीरे-धीरे बढऩे वाली आर्थिक उदारीकरण का सबसे बड़ा लाभ यह हो रहा है कि वहां के लोग दूसरे देशों के लोगों के संपर्क में आ रहे हैं। इससे उनमें प्रजातंात्रिक मूल्यों के प्रति आस्था बढ़ रही है। धीरे-धीरे मनवाधिकार की मांग भी जोर पकडऩे लगी है। यह कहना है कि तिब्बत धर्म गुरु 17वें कर्माप्पा लामा ग्यालवांग का। कर्माप्पा नागपुर के धंतोली स्थित तिलक पत्रकार भवन में पत्रकारों से अनौपचारिक चर्चा कर रहे थे। वे तिब्बती भाषा में बातचीत कर रहे थे। उनके साथ दुभाषिये की जिम्मेदारी रौशनलाल निभा रहे थे। कर्माप्पा ने कहा कि चीन में आर्थिक उदारीकरण की नीतियों के कारण ही वहां धीरे-धीरे प्रजातांत्रिक माहौल तैयार हो रहा है। एक सवाल का जवाब देते हुए कर्माप्पा ने कहा कि भले ही दुनिया के सभी बैद्ध देश तिब्बत की स्वतंत्रता चाहते हों, लेकिन इसके लिए वे चीन पर दवाब नहीं बना सकते हैं। आज चीन दुनिया में तेजी से उभरता हुआ मजबूत देश है। हर देश इसके साथ साकारात्मक संबंध बना कर रखना चाहता है।
मेरे प्रवास को राजनीतिक रंग न दें
उन्होंने कहा कि यह कहना गलत होगा कि बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा और मेरे कारण भारत और चीन के आपसी संबंधों पर गलत असर पड़ा है। भारत और तिब्बत का संबंध गुरु और शिष्य की तरह है। गंगा, सतलुज मानसरोवर तिब्बत से जुड़ी हैं। यह भारतीय अस्था के प्रतीक है। करीब 7वीं, 8वीं शताब्दी में तिब्बत में बौद्ध धर्म का महायान सिद्धांत गया। तब तिब्बत के तत्कालीन राजाओं ने इन सिद्धांतों को तिब्बती भाषा में अनुवाद कराया। यह करीब 100 बंडल की सामग्री होगी। तिब्बत में अलग-अलग बौद्ध गुरु आए, जिससे सिद्धांतों में अंतर आया। बौद्ध धर्म के सभी धाराओं का मूल दर्शन, भावना और चिंतन एक ही है। नालंदा और विक्रमशिला के बौद्ध आचार्यों ने तिब्बत में जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया। मुझे लगता है कि दलाई लामा के भारत आने से तिब्बत के साथ भारत का संबंध और गहरा हुआ है। उनके और हमारे कारण भारत को न हीत हुआ है और न ही अहित हुआ है। कर्माप्पा ने कहा कि वे भारत में अध्ययन और बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए आए हैं। भारत के प्रति पूरी आस्था और श्रद्धा है। इसलिए मेरे भारतीय प्रवास को राजनीतिक रंग नहीं देना चाहिए। भारत में तिब्बत शरणार्थियों के पुर्नवास के सवाल पर उन्होंने कहा कि व्यक्ति की इच्छाएं अनंत है। इसलिए तिब्बतियों पुर्नवास के मामले में संतुष्ठी के आधार पर मैं कुछ भी नहीं कह सकता हू। लेकिन भारत ने तिब्बत के लिए जो भी किया, उसके कर्ज से हम उबर नहीं सकते हैं।
असली सुख मन से धार्मिक होने में
ईसाई मिशनरियों द्वारा विदर्भ में नवबौद्धों के धर्मांतरण के मुद्दे पर कर्माप्पा ने कहा कि मैं जन्म और प्रकृति से बौद्ध हूं। पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही बौद्ध परंपरा से जुड़ा हूं। यदि इसी तरह से जुड़ा व्यक्ति धर्मातरण करता है, तो वह पुश्तैनी धर्म से अलग हो जाता है। उसे नये धर्म में सहज कष्टाकारण होगा। भगवान बुद्ध ने कहा है कि किसी भी व्यक्ति के लिए धर्म उसकी रुचि और आस्था के अनुरूप होना चाहिए। व्यक्ति किसी भी धर्म को अपनाने के लिए स्वतंत्र है। इसलिए धर्मांतरित होने के इच्छुक लोगों को देखना चाहिए कि कौन-सा धर्म उनके अनुरूप है। असली सुख मन से धार्मिक होने में है। मन से धार्मिक हर व्यक्ति समाज और राष्ट्र की सेवा करता है।
राग द्वेष का समूल नष्ट संभव नहीं
एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि बौद्ध धर्म में जितनी भी भोग्य वस्तुएं हैं, उससे दूर रहने की सलाह दी गई है। लेकिन आज की सूचना और संपर्क क्रांति के युग में एकांत संभव नहीं है। एकांत के लिए लोगों से दूर भागने पर वे कहीं न कहीं से खोज लेंगे। भगवान बुद्ध ने मानसिक रूप से एकांत आवश्यक बताया है। अच्छे गुरु के संपर्क में मन से एकाग्र होने का प्रयास करना चाहिए। इसी से व्यक्ति खुशहाल रह सकता है। जहां तक मेरी बात है तो हम मैं निश्चय ही एकांत पर हूं। मगर हम सबमें राग द्वेष का समूल नष्ट हो यह संभव नहीं है। यह जीवन में कम से कम आए, यह एकांत से ही संभव है।
अहिंसा का प्रचार कर रहे हैं दलाई लामा
चीन के विरोध के बाद भी दलाई लामा के अमेरिका यात्रा पर कर्माप्पा ने कहा कि अमेरिका के लोग भी शांति चाहते हैं। इसी संदर्भ में धर्मगुरु दलाई लामा अमेरिका गए। तिब्बत ओर अमेरिका का संबंधा तिब्बत के गुलामी से पहले का है। दलाई लामा के अमेरिकी यात्रा पर मैं क्या कहूं? मेरी निजी राय यह है कि वे दुनिया भर में अहिंसा के सिद्धांत का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।

1 टिप्पणी:

L.Goswami ने कहा…

देखते हैं आगे क्या होता है ..वैसे इन प्रयासों से कुछ सकारात्मक परिणाम निकालेंगे ऐसी आशा कम ही है