रविवार, नवंबर 07, 2010

मन में कोने में बचपन को जिंदा रखना जरूरी

यदि किसी व्यक्ति के अंदर से साहस खत्म हो जाए तो उसे क्या कहेंगे? गंभीरता से विचार करें। कई बार बच्चे कभी-कभी ऐसे गंभीर सवाल इतनी सहजा से पूछ लेते हैं, कि उसे पूछने का साहब किसी बड़े या उम्रदराज अनुभवी लोगों में नहीं होता है। इस दृष्टिकोण से मुझे लगता है कि हर किसी को अपने अंदर के बचपन को मरने नहीं देना चाहिए। जिसके अंदर बचपन की जिंदादिली है, वह साहसी है। नहीं तो उम्र के साथ अनुभव के बोझ के साथ जीवन में निरसता आ जाती है। बड़ी खुशियों में बड़े लोग मजह मुस्कान से काम चला लेते हैं। लेकिन बच्चे जी भर कर हंसते हुए खुशियों में गोता लगाते है। लिहाजा, बड़ी उम्र और अनुभव में साथ अपने अंदर के बचपने को मरने नहीं देना चाहिए। भले ही समाज किसी बात को लेकर यह क्यों न कहे कि अमुख व्यक्ति बचकना बाते करता हैं। कम से कम समाज के इस ताने से जीवन निरसता के बोझ से तो नहीं दबा रहेगा और खुशियों को निश्चछल भाव से जी भर मनाने में कोई कंजूसी भी नहीं होगी।

कोई टिप्पणी नहीं: