सोमवार, नवंबर 29, 2010
सरोकारों की पत्रकारिता की गुंजाइश
वर्तमान पत्रकारिता जगत की स्थितियां चाहे जैसी भी हो। सरोकारों की पत्रकारिता करने की पूरी गुंजाइश है। प्रबंधन भले ही बाजार के दवाब में कुछ क्षेत्रों में अंकुश लगा दे। पर दूसरे क्षेत्र में अवसर का खुला मैदान भी होता है। बस, सरोकारों की पत्रकारिता करने का बेचैनी बना रहे। यह बेचैनी कही न कहीं आग जरूर लगा देगी।
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