शनिवार, मई 15, 2010

यूएलसी और सात-बारा को बीच अटकी किसानों की जमीन

खेती के लिए कर्ज देने से कतरा रहे हैं बैंक
फसल नष्ट होने पर नहीं मिल रहा है मुआवजा

संजय कुमार
नागपुर।
राज्य सरकार की ओर से यूएलसी कानून समाप्त होने बाद भी जिले के करीब दो हजार किसान किसी ने किसी कारण अपनी ही जमीन का मनमानी उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। पहले से ही सात बारा में चढ़ी जमीनों को जब यूएलसी में शामिल किया गया तब तो किसानों को इस बात को लेकर बड़ी खुशी हुई थी, उनके जमीन को अच्छी कीमत मिलेगी। लेकिन धीरे-धीरे इस कानून का खामियाजा उभर का सामने आया। सूत्रों की मानें तो सात-बारा की जमीन यूएलीसी में आने से सैकड़ों किसानों की हजारों एकड़ खेतियां गैर-कृषि योग्य हो गईं। लेकिन कसानों के जमीनें उनकी उनकी मुहमांगी कीमतों में भी नहीं बिकीं। इसलिए इन खेतों पर कृषि कार्य जारी रहा। लेकिन अब इन जमीनों पर कृषि कार्य के लिए बैंकों ने किसानों को कर्ज देने से पल्ला झाड़ लिया है। बैंक यह कह कर किसानों को कर्ज नहीं दे रहे हैं कि उनकी जमीन यूएलसी में आने से वे गैर-कृषि जमीन हो चुकी हैं। इसके साथ ही इन जमीनों में पर हुई खेती में गत महीनों में हुए प्राकृतिक आपदाओं से नष्ट फसलों के मुआवजे के रूप में सरकार से कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ। सरकारी अमले ने भी यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि यूएलसी जमीन खेती के लिए नहीं है। इसलिए उस जमीन पर नष्ट हुई फसल की भरपाई सरकार नहीं कर सकती हैं। विदर्भ जन आंदोलन समिति के प्रमख किशोर तिवारी ने बताया कि दरअसल सरकार का यह कानून किसानों के लिए था ही नहीं। बिल्डरों ने पहले ही सैकड़ों एकड़ कृषि की जमीन खरीद ली थी। फिर बाद में सरकार पर दवाब डाल कर उसे यूएलसी में करवा लिया। जिन किसानों की जमीन शहरों से बहुत दूर थी, वे भी इस कानून के चंगुल में बुरी तरह से फंस चुके हैं। फार्म हाऊस के रूप में भी ये जमीने नहीं बिक रही हैं। वहीं शहर के समीप स्थित खेती के जमीनों को किसानों ने पहले की खरीद लिया था। कानून का लाभ उन्हें ही ज्यादा मिला है। पहले से ही किसान खेती की जमीन व्यवसायिक होने से उसकी कीमत बढ़ तो गई, लेकिन ग्राहक नहीं मिल रहे रहे हैं। जब तक जमीन बिक नहीं रही है, तब तक खेती कार्य जारी है और इस खेती पर सरकार और बैंकों का अपेक्षित सहायोग नहीं मिलपा रहा है।
जानकारों की मानें तो यूएलसी कानून समाप्त करने के कुछ ही दिन पहले सरकार ने पारशिवनी के लगभग 350 किसानों की भूमि के सात-बारा पर यूएलसी का नाम चढ़ा दिया था। नाम दर्ज होने के उन्हें बुआई के लिए कर्ज से वंचित होना पड़ रहा है। इसको लेकर स्थानीय विधायक आशीष जैसवाल ने एक आंदोलन भी शुरू किया था। तब सरकार ने सात-बारा से यूएलसी का नाम हटाने का आश्वासन दिया था। लेकिन अब तक कोई फैसला नहीं हो पाया।
ज्ञात हो कि वर्ष 1976 में राज्य सरकार ने यूएलसी कानून लागू किया था। इसके बाद राज्य में बड़े पैमाने पर यूएलसी कानून अंतर्गत जमीनों का अधिग्रहण किया गया था। पारशिवनी तहसील के खंडाला, मिरज, कांदरी, सिरोहा, कन्हान की लगभग 750 एकड़ भूमि यूएलसी कानून के तहत अधिग्रहीत की गई थी। अधिग्रहण के समय यह कहा गया था कि इसका उपयोग औद्योगिक कार्य के लिए होगा। लेकिन अब इन जमीनों पर औद्योगिकीकरण का विकास नहीं हो पाया तो इन्हें यूएलसी से मुक्त कर फिर से कृषि क्षेत्र घोषित कर दिया गया। लेकिन रिकार्ड में सात-बारा के साथ-साथ यूएलसी के नाम इन खेतियों के दर्ज होने से किसान परेशानियों में फंस गए हैं। नियमानुसार उनकी जमीन न औद्योगिक कार्य के लिए रही और न ही कृषि कार्य के लिए।

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