नागपुर जेल में हत्या के दंड में सेवा काट चुकी हैं संध्या
संजय स्वदेश
नागपुर। छह माह पूर्व जब यशवंतराव चौहान मुक्त विद्यापीठ के नागपुर केंद्र ने जब नागपुर जेल में हत्या की सजा काट चुकी एक महिला कैदी को नौकरी पर रखा, तो यह उम्मीद जगी थी कि सजा काट चुके लोगों को भी समाज के मुख्यधारा से जोड़ा जा सकता है। लेकिन छह माह की सेवा के बाद इस महिला को नौकरी से हटा दिया गया है। जब उसे नौकरी पर रखा गया था, तब छह माह की सेवा के बाद उसे नियमित करने का आश्वासन दिया गया था, लेकिन छह माह के अंदर विद्यापीठ के कुलगुरु सुधीर गवाने के बदलने से विद्यापीठ के विचार भी बदले लगे। नये कुलगुरु डा. कृष्ण कुमार को एक सजा काट चुकी महिला की सेवा रास नहीं आ रही है। लिहाजा, उन्होंने उसकी सेवा का स्थायी करने से इनकार कर दिया है। लिहाजा, छह माह पूर्व नियुक्त महिला सड़क पर आ गई है। भले ही वर्तमान कुलगुरु डा. कृष्ण कुमार के विचार पिछले कुलगुरु सुधीर गवाने के विचार अलग हो, लेकिन इससे समाजिक उत्तरदायित्वों के प्रति विद्यापीठ की छबि खरा हो रही है। तत्कालीन कुलगुरु सुधीर गवाने ने नौकरी नियमित करने का आश्वसन दिया था, यह आश्वसन उनका निजी नहीं, विद्यापीठ की ओर से था। छह माह में ही नौकरी सेवामुक्त हुई संध्या जाधव निराश मन से कहती है कि इससे अच्छा होता कि मुझे नौकरी ही नहीं दी जाती। एक बड़े कार्यक्रम में नौकरी देकर विद्यापीठ ने अपनी पीठ तो थपथपा ली। लेकिन छह माह बाद ही नाता तोड़ दिया।
ज्ञात हो कि करीब छह माह पहले यशवंतराव चौहान मुक्त विद्यापीठ के तत्कालीन कुलगुरु ने नागपुर जेल में विभिन्न जुर्म में सजा काट रहे कैदियों को शिक्षित कर उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोडऩे के लिए नौकरी देने की पहल की थी। इस पहल में नागपुर जेल में हत्या की सजा काट रही संध्या प्रकाश जाधव ने जेल में ही रहकर मुक्तविद्यापीठ से स्नातक तक पढ़ाई की। जेल में ही भव्य समारोह आयोजित कर करीब दर्जन भर कैदियों को शैक्षिणक डिग्री बांटी गईं। मंच से संध्या जाधव को विद्यापीठ के नागपुर केंद्र में सहायक पद पर नियुक्त करने की भी घोषणा की गई। तत्कालीन कुलगुरु ने सजा काट चुकी महिला को नौकरी पर रख कर समाज में यह मिशाल कायम की कि लोगों को सजा काट चुके दोषियों को समाज से मुख्यधारा में जोडऩे के लिए सकारात्मक होना चाहिए। दूसरे संस्थानों को भी ऐसी पहल कर ऐसे लोगों को नौकरी पर रखना चाहिए जिससे कि वे समाज की मुख्यधारा से जुड़ कर समाजहित के लिए कुछ कर सकें। यूं की उपेक्षित रखने से सजा काट चुके लोग फिर से अपराध की दुनिया में शामिल हो जाते हैं और समाज के लिए बाधा उत्पन्न करते हैं।
संध्या प्रकाश जाधव का कहना है कि वह 13 नवंबर, 2009 जेल से रिहा हुई और 16 नवंबर, 2009 को विद्यापीठ के नागपुर केंद्र में सहायक पद नियुक्ति हुई। जाधव का कहना है कि नियुक्त के समय यह नहीं बताया गया कि उसकी नौकरी अल्पकालीन है। जिस समय नियुक्ति पत्र दिया गया, उस समय कहा गया कि मुझे साठ साल की उम्र तक सेवा करने का मौका दिया जाएगा। प्रेस के सामने बड़ी-बड़ी ढेर सारी बाते कह कर विद्यापीठ ने अपनी प्रतिष्ठा बढ़ा ली। लेकिन अचानक छह माह बाद सेवा समाप्त करने मैं सड़क पर आ गई हंू। उन्होंने बताया कि इस संबंध में मैंने वर्तमान कुलपति डा. कृष्ण कुमार से फोन पर बातचीत करना चाही, लेकिन जैसे ही मैंने उन्हें अपना नाम बताया, उन्होंने झट से फोन काट दिया। संगीता ने बताया मेरी नियुक्ति सहयाक पर पर हुई, लेकिन मुझे चतुर्थवर्गीय कर्मचारी का भी कार्य करवाया गया। कभी-कभी गाड़ी से आए पुस्तकों के बंडल उठवाये गये, यहां तक पानी पीलाने का भी कार्य करना पड़ा। इससे अच्छा होता कि विद्यापीठ चतुर्थ श्रेणी में ही मेरी नियिमित नियुक्ति करता, तो मन को संतोष होता। मेरी इतनी फजीहत तो नहीं होती।
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यशवंतराव चौहान मुक्तविद्यापीठ के नागपुर केंद्र के संचालक अरविंद बोंद्रे का कहना है कि सह यही बात है कि जिस समय संध्या जाधव को नियुक्त किया गया था, उस समय तत्तकालीन कुलपति ने उसकी सेवा नियमित करने का आश्वासन दिया था। संगीता की सेवा को नियमित करने के लिए मैंने प्रस्ताव नासिक स्थित विद्यापीठ मुख्यालय में भेज दिया था, लेकिन वहां से प्रस्ताव को स्वीकृति नहीं मिली।
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